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Old 29-05-2011, 11:11 AM   #101
ndhebar
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ये एयर-फ्रेशनर का नया फ्लेवर है या ट्रैश-बैग से आती बदबू.
इस पंक्ति से मुझे एक बात याद आई
मैं भी एक सच्चा वाकया सुनाता हूँ
मैं दिल्ली में जिस माकन में रहता था, वहां मान्शाहार की मनाही थी और हम ठहरे विशुद्ध मान्शाहरी
सो छुप छुप के बना ही लेते थे, एक दिन रसोई में चिकन बन रहा था तभी मकान मालिक का लड़का आ गया
उसने पूछ यार निशांत बड़ी गंध आ रही है क्या बात है
मेरा रूम पार्टनर ने कहा "भैया वो क्या है की कचरा वाला पांच दिनों से नहीं आया ना, उसी से गंध आ रही है"
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
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Old 29-05-2011, 11:25 AM   #102
Bond007
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इस पंक्ति से मुझे एक बात याद आई
मैं भी एक सच्चा वाकया सुनाता हूँ
मैं दिल्ली में जिस माकन में रहता था, वहां मान्शाहार की मनाही थी और हम ठहरे विशुद्ध मान्शाहरी
सो छुप छुप के बना ही लेते थे, एक दिन रसोई में चिकन बन रहा था तभी मकान मालिक का लड़का आ गया
उसने पूछ यार निशांत बड़ी गंध आ रही है क्या बात है
मेरा रूम पार्टनर ने कहा "भैया वो क्या है की कचरा वाला पांच दिनों से नहीं आया ना, उसी से गंध आ रही है"


वैसे इतने आलसी तो नहीं होते होंगे बैचलर्स.......!!!
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फिर मिलेंगे|
मुझे तोड़ लेना वन-माली, उस पथ पर तुम देना फेंक|
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक||

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Old 29-05-2011, 11:34 AM   #103
ndhebar
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वैसे इतने आलसी तो नहीं होते होंगे बैचलर्स.......!!!
ये तो कुछ भी नहीं
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Old 29-05-2011, 12:37 PM   #104
khalid
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ये तो कुछ भी नहीं
क्या इस से भी ज्यादा कोई और भयानक तजुर्बा हैँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना
जैसे इबादत करना
वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना
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Old 29-05-2011, 12:53 PM   #105
ndhebar
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क्या इस से भी ज्यादा कोई और भयानक तजुर्बा हैँ
बहुत भयानक भयानक तजुर्बे हैं खालिद भाई
याद करके रूह तक कांप जाने वाले
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Old 29-05-2011, 01:02 PM   #106
Bond007
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मायके गई पत्नी को लिखा गया भैरंट लेटर


सादर प्रणाम!

सादर प्रणाम इसलिए कि आपकी दिशा में किए गए मेरे सारे काम सादर एवं साष्टांग अवस्था में ही होते हैं। उपरोक्त तथ्य आपको पता ही है, लेकिन मेरे लिए आश्चर्य दूसरों के लिए सत्य कि यह तथ्य सर्वविदित है। आगे समाचार यह कि तुम्हारे बिना घर सूना-सूना सा लग रहा है। कुछ जलनखोर इसे खिजा में बहार आ गई बताते हैं (हालांकि खिजा का मतलब क्या है मुझे नहीं पता, लेकिन गुरु शब्द तो वाकई जोरदार है।) कुछ शुभचिंतक इस मरघट में शांति आ गई बताते हैं। दोनों ही उदाहरणों के माध्यम से मुझे लोगों के चरित्र और शिक्षा-दीक्षा के लेबल का पता चल रहा है। लोग गिरे हुए हैं एक पत्नी वियोगी को इस तरह की समझाइश दे रहे हैं। हालांकि लोगों को कसूर नहीं है देश की शिक्षा व्यवस्था की कमजोरी के कारण ही लोग इस विशिष्ट परिस्थिति के लिए कोई खास शब्द या उदासीनतामूलक वाक्य नहीं रच पाए हैं। लेकिन हर खामी के लिए देश को जिम्मेदार ठहराना या देश ही जिम्मेदार होता है, किस्म के वाक्य जरूर खूब रच लिए गए हैं। पूरा देश किसी भी तरह की समस्या आने पर बेखटके इन वाक्यों के प्रयोग पर पूरी तरह एकमत है। तो जाहिरा तौर पर लोग इस संदर्भ में गिरे हुए माने जाएंगे।

और प्रिये एक्सक्यूज मी!, यहां शिक्षा-दीक्षा के तरन्नुम में दीक्षा का जिक्र फिजूल में ही आ गया है। मेरा उससे कोई लेना-देना नहीं है। जैसा कि तुम आज तक नहीं मानती हो। उससे मेरा कोई संबंध नहीं है। उसकी कजरारी आंखों बड़ी-बड़ी जरूर थीं लेकिन मैं उनमें नहीं डूबा। उसकी मुस्कान बड़ी कंटीली जरूर थी लेकिन मैं उनसे घायल नहीं हुआ। उसकी नाक बड़ी सुंदर जरूर थी लेकिन उसके साथ रासरंग रचाकर अपनी नाक नहीं कटवाई है। उसके हाथ कमल के फूल जैसे जरूर थे लेकिन मैं उन्हें थामने के लिए कीचड़ में नहीं उतरा। उसके पैर बड़े खूबसूरत थे लेकिन मैंने कभी ‘इन्हें जमीन पर मत रखिए मैले हो जाएंगे’ टाइप के डायलॉग नहीं बोले। हालांकि मुझे याद है जिस दिन उसकी शादी हुई थी तुम कितनी खुश थीं, उस दिन तुमने हलवा-पूरी के साथ खीर भी बनाई थी। कितना आग्रह करके तुमने सब खिलाया था। कितना स्वादिष्ट था उस दिन का खाना, वाह!। कितनी करारी थीं पूरियां अहा!। कितना धांसू अंदाज था तुम्हारे परोसने का उफ्फ!। कितना दुखी सीन था दीक्षा के विदा के समय का, ओह!


क्रमशः...

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Old 29-05-2011, 01:03 PM   #107
Bond007
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खैर, मुद्दे पर लौटें। जब से तुम गईं हो रसोई का बुरा हाल है। बर्तन उदास हैं। मसालेदानी चीत्कार कर रही है। जिस मूंग की दाल को तुमने मुझे बिना नागा खिलाया था उसका डिब्बा अब उपेक्षित सा महसूस कर रहा है। जिस काली मिर्च के गुण बता-बताकर उसे हर चीज में डालती थीं उसका वो तीखापन जाता रहा है। मिक्सी अपनी स्थिति को लेकर सांसत में है। जिन बाइयों के चेहरे घर में घुसते समय कुम्हला जाते थे उनमें नई चमक और अतिरिक्त रौनक दिखाई दे रही है। उनका डर जाता रहा है। घी के डिब्बे का स्तर रोज घट रहा है, तो सब्जियां आ रही हैं, जा कहां रही हैं पता नहीं चल रहा है। कल ही जिस मूली को आधा खाकर मैंने रखा था आज पत्तियों के रूप में केवल उसके अवशेष मिले हैं। परसों ही जेब में रखी चिल्लर गायब हो चुकी है। हालांकि खुशी इस बात की है कि रुपए सुरक्षित हैं। जा चिल्लर ही रही है। कोई दुष्ट नोटों को छोड़ चिल्लर पर ही नजर गढ़ाए है। और हां, आचार कहीं तुम्हारे वियोग में अपने ही बचे-खुचे तेल में डूबकर आत्महत्या न कर ले। आ जाओ प्रिये, उनकी फफूंदी दूर करो, उनका वर्तमान संवारो, उन्हें भविष्य का नया जीवन दो।
आगे सब ठीक है, लेकिन दूसरों की बुराई को सुनने का तुम्हारा धैर्य और नियमित रूप से उसके लिए समय निकालने की लगन के चलते आस-पड़ोस की तुम्हारी सहेलियां तुम्हारी कमी हरदम महसूस कर रही हैं। उनकी आवाज में अपनी सास की बुराई करने के लिए वांछित स्तर की ऊष्मा और ऊर्जा दोनों ही पैदा नहीं हो पा रही है। उनकी उदासी मुझसे देखी नहीं जाती है। मेरी मजबूरी है अन्यथा मैं उनके पास खड़ा होकर तुम्हारी जगह भरने की कोशिश करता। तुम तो जानती ही हो किसी का भी दुख मुझसे देखा नहीं जाता है। फिर मामला तो पास-पड़ोस का है। (पड़ोसिनें तो प्राचीनकाल से ही खूबसूरत रहती चली आ रही हैं।) तो ऐसे में मैं.. मतलब हम ही उनके काम नहीं आएंगे तो कौन आएगा। सोचो। विचार करो। मेरे नहीं तो कम से कम अपनी पड़ोस की सहेलियों के दुख को तो समझो। लौटे प्रिये, अविलंब लौटो।
वैसे तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, बाकी सब ठीक है। हां, ड्राइंगरूम की हालत कोमा में आ गए जैसी है। सोफे निराशा के गर्त में डूब चुके हैं। उनकी गद्दियां औंधे मुंह पड़ी हैं। सेंटर टेबल धूल के गर्त के नीचे दबकर पुरातात्विक महत्व की हो चुकी है। गुलदस्तों में जो फूल अंतिम बार खोंसे गए थे वे अब किसी का सामना नहीं कर पा रहे हैं, उनकी गर्दन लज्जा से झुक चुकी है। पूरी दोपहर टीवी खाली-खाली सूनी आंखों से निहारता रहता है। प्राइम टाइम में तो उसकी आंखों से चिंगारियां निकलती हैं। जिन सीरियलों को देखकर निजी तौर पर उनकी टीआरपी बढ़ाने का ठेका लिए हुए थीं उनकी हालत खराब हो चुकी है। बालिका वधू से लेकर बिदाई तक सभी जगह सासें प्रभावशाली हो चुकी हैं। बहुओं की हालत पतली है। सासें बड़े जोशो-खरोश से बहुओं पर अत्याचार कर रही हैं। पहले तुम्हारी उपस्थिति मात्र से उनकी इतनी हिम्मत नहीं पड़ती थी। छोटे पर्दे की बहुओं के लिए तुम्हारा घर बैठे-बैठे इतना संबल और नैतिक समर्थन काफी था। टीवी पर आने वाले पुराने फ्रिज, वाशिंग मशीन के विज्ञापन किसी को भी अपील नहीं कर पा रहे हैं। शायद कंपनी वाले भी जान गए हैं इसलिए नए विज्ञापन दे भी नहीं रहे हैं। पत्नी मायके में हो तो नए विज्ञापन देने से कोई फायदा नहीं कंपनी वाले जानते हैं। कंपनी वाले बड़े चालाक होते हैं,भई लेकिन इन दिनों तुम्हारे जाने से कुछ मुश्किल में चल रहे हैं। और हां इसी बीच कुछ नए सीरियल भी आ चुके हैं उनकी भी बहुएं तुम्हारे भरोसे ही हैं। उधर, एकता कपूर भी तुम्हारे आसरे ही बैठी है। चैनलवाले भी तुम्हारी ही राह ताक रहे हैं। पूरी विज्ञापन इंडस्ट्री भी तुमसे उम्मीद लगाए बैठी है। मुंह न मोड़ो, अपनी जिम्मेदारी समझो। आ जाओ प्रिये, जल्दी आ जाओ। छोटे पर्दे के अपने निजी संसार को बचाने के लिए जल्दी आ जाओ।


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Old 29-05-2011, 01:04 PM   #108
Bond007
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Wink ।।हंसीले कटीले व्यंग्य।।

और आगे क्या लिखूं। तुम मेरे खाने पीने की चिंता मत करो। जबसे पता चला है मेरे दोस्त रोज शाम को हमारे घर आ जाते हैं। उन्हें मेरे खाने-पीने का पूरा खयाल है। रोज खाने-पीने के बाहर से सामान ले आते हैं। लेकिन एक बात है मैं उन्हें खाली बोतलें अपने घर में नहीं छोड़ने देता। नॉनवेज के लिए तुमने मना किया था इसलिए मैं अपने घर के बर्तन नहीं देता हूं, बेचारों को अपने ही घरों से इसके लिए बर्तन लाने पड़ते हैं। ताश खेलने के लिए बेचारे कह-कह कर थक गए लेकिन जुआ के लिए जब से तुमने अपने सिर की कसम देकर मना किया है मैं नहीं खेलता केवल जरूरत पड़ने पर दोस्तों को उधार ही देता हूं। वे इतने भोले हैं कि इस बात का बुरा नहीं मानते। बेचारे मेरा दुख देखकर देर रात तक रुकते हैं, बहुत जोर देने या घर से पत्नियों के फोन आने पर ही जाते हैं। वे तो रविवार या सरकारी छुट्टी में दिन में भी आ जाते हैं। वे भी मेरे दुख में बहुत दुखी हैं। जो सबसे ज्यादा रुपए हारा है, रोज तुम्हारे आने की तारीख पूछते हैं। कल ही मुझे बता रहा था कि यार, तेरा घर मेरे लिए बड़ा लकी है पिछले बार भी शुरू में मुझे बड़ी जमकर दच्च लगी थी। बाद के चार दिनों में सब बराबर हो गया था। इस बार भी भाभीजी छह दिन और न आएं तो वो पिछली वसूली कर प्रोफिट में आ जाएगा। हालांकि मैं इस बार उससे यह कह पाने की स्थिति मे नहीं हूं कि इस बार तू दच्च ही खाएगा या प्रोफिट में आ पाएगा। बताओ प्रिये, उसे किस दिशा की तरफ इशारा करूं। ऐसे ही अब तुम्हें क्या सुनाऊं, हमारे बैडरूम की दीवारों पर तुम्हारे खौफ के कारण डरते-डरते डोलने वाली छिपकलियों की हिम्मत और हिमाकत इन दिनों कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। दो दिन पहले ही एक छिपकली आधा मकोड़ा खाकर मेरे लिखने वाली टेबल पर छोड़ गई थी, आज वापस आई थी मकोड़ा टेबल पर न देखकर मुझे आंखें दिखा रही थी। पहले उसकी मजाल थी कि ऐसा करे। मकड़ियां भी पहले हमारे कमरे के कोने-आतरों में शहर से बाहर फेंक दिए गए झुगगीवासियों की तरह छोटे-छोटे घरघूले बनाए थीं आज उन्होंने पूरे कमरे में बड़े-बड़े प्लॉट हथिया लिए हैं। एनआरआई किस्म के लक्जरी बंगलों का निर्माण कर लिया है। आस-पड़ोस के कमरों से रिश्तेदारों को बुलाकर पूरे कमरे में अवैध कॉलोनियां काट डाली हैं। यहां तक की हमारे बिस्तर तक से उन्होंने अपनी कॉलोनियों में जाने के लिए सड़कों का निर्माण कर लिया है। आ जाओ प्रिये, नगरनिगम के अतिक्रमणहारी दस्ते की तरह आकर इन बेरसूखदार छिपकलियों और मकड़ियों को उनकी औकात दिखाओ। अन्यथा ऐसा न हो कि इनके मुंह में बड़े कॉलोनाइजरों वाला स्वाद लग जाए और हम एक अदद कमरे तक से विस्थापित हो जाएं।
अंत में कुल मिलाकर समाचार यह है कि इन दिनों हमारे पूरे गृहप्रदेश पर संकट छाया हुआ है। हर आंतरिक मोर्चा एक समस्या खड़ी कर रहा है। बच्चे मनमानी पर उतर आए हैं। चावल-दाल के डिब्बे अपने सूखे और अकाल की स्थिति पर लगातार बाइयों के माध्यम से ज्ञापन भेज रहे हैं। केंद्रीय मदद का पैसा गलत हाथों में न चला जाए। महालेखा परीक्षक की तरह आ जाओ प्रिये, आकर इस भ्रष्टाचार से निपटने में भिड़ जाओ। न आओ तो कम से कम आने की तारीख तो बताओ ताकी जब तक इस अराजकता का ही आनंद लिया जा सके।
पुनश्च: बुरा मत मानना, लेकिन रोज-रोज मुझे बहाने बनाना अच्छा नहीं लगता है इसलिए इतना तो जरूर लिखना कि दोस्त को क्या बताना है उसे दच्च लगेगी या बंदा प्रोफिट में रहेगा।
सादर,
तुम्हारा
सेवकराम सत्यपति
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लौटती डाक से आया जवाब प्रथम पैराग्राफ तक ही अक्षरश: कल सुबह पहुंच रही हूं। स्टेशन आ जाना। पिछली बार की तरह ज्यादा इंतजार न करना पड़े। आने से पहले दूध उबालकर फ्रिज में रख देना नहीं तो बिल्ली मुंह मार देगी। स्टेशन के रास्ते में सब्जी मंडी पड़ती है वहां से रविवार वाली लिस्ट देखकर सब्जी खरीद लेना। जल्दीबाजी में फिर सड़ी सब्जियां मत उठा लाना। जाते समय कपड़े प्रेस को दिए थे तुमने तो उठाए नहीं होंगे आज ही उठा लेना। जाते समय पापड़ छत पर डाले थे.., बगीचे में पानी भी नहीं दिया होगा, पौधे सूख गए होंगे.., तुमसे कोई काम ढंग से नहीं होता, चार दिन भी पीछे से नहीं संभाल सकते..दोस्तों के साथ ऐश चल रही है। गैरजिम्मेदारी कब जाएगी तुम्हारी। इतनी उमर हो गई है, कुछ तो सीखो..वगैरहा-वगैरहा।
पत्नी का लौटती डाक मिले जवाब के बाद अब फिर से मेरी बातः बड़ी हंसी आ रही है न आपको। बड़ा मजा आ रहा है न पत्र पढ़ने में..। पढ़िए-पढ़िए। कल आपकी भी शादी होगी न, आपकी बीवी भी मायके जाएगी न। तब देखूंगा आप क्या लिख लेते हो। लिख तो फिर भी लोगो गुरु, लेकिन हमारे जैसी अच्छी सब्जी खरीदने की तमीज कहां से लाओगे।




---xxx---
जेजे ब्लॉग पर भारत पुरोहित|
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Agar ghar me 200 khali water bottle mile to manoge? Agar makaan malik kam wali laga ke de aur bichari wo hamesha wapas jaye to manoge? Jab rat ke 1 baje dinner kya bane is par discussion chalu ho tab manoge? Hehehe
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