My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Religious Forum
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 01-12-2012, 08:26 AM   #41
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

रामजी ने पूछा, हे भगवन्! ये तो दूर गये थे और उनमें से एक इस जगत् में अब मृग हुआ है, तुमने कैसे जाना कि आगे वह ब्रह्माण्ड में था और अब इस जगत् में है? वशिष्ठजी बोले हे रामजी!मैं ब्रह्म हूँ और सर्व ब्रह्माण्ड मेरे अंग हैं | मुझको सबका ज्ञान है | जैसे अवयवी पुरुष अपने अंगों को जानता है कि यह अंग फुरता है और यह नहीं फुरता, तैसे ही मैं सबको जानता हूँ | जहाँ जहाँ यह लाँघता गया है उसे बुद्धि के नेत्रों से मैं जानता हूँ परन्तु तुम नहीं जान सकते | जैसे समुद्र में अनेक तरंग फुरते हैं और समुद्र सबको जानता है, तैसे ही मैं समुद्ररूप हूँ और मेरे में ब्रह्माण्डरूपी तरंगें हैं इससे मैं सबको जानता हूँ | हे रामजी! वह जो मृग है सो दूर ब्रह्माण्ड में फिरता है | वह विपश्चित् यह सामान्य मृग नहीं है परन्तु जैसा है सो सुनो! हे रामजी! एक ब्रह्माण्ड इस हमारे ब्रह्माण्ड सा है जिसका ऐसा ही आकार है, ऐसी ही चेष्टा है, एक ही सा जगत् है और स्थावर-जंगम सब एक ही से हैं |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:26 AM   #42
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

वहाँ जो देश, काल और क्रिया का बिचरना होता है सो इसके ही समान होता है | जैसे नामरूप आकार यहाँ होते हैं, जैसे बिम्ब का प्रतिबिम्ब तुल्य ही होता है और जैसे एक ही आकार का एक प्रतिबिम्ब जल में होता है और द्वितीय दर्पण में होता है सो दोनों तुल्य हैं, तैसे ही दोनों ब्रह्माण्ड एक समान हैं और ब्रह्मरूपी आदर्श में प्रतिबिम्बित होते हैं | इस कारण यह मृग विपश्चित् है इसी निश्चय को धारे हुए है यह और वह दोनों तुल्य हैं सो पहाड़ की कन्दरा में हैं | रामजी ने पूछा, हे भगवन्! वह विपश्चित् अब कहाँ है और उसका क्या आचार है? अब मैं जानता हूँ कि उसका कार्य हुआ है | अब चलकर मुझको दिखाओ और उसको दर्शन देकर अज्ञानफाँस से मुक्त करो | इतना कहकर वाल्मीकिजी बोले, हे अंग! जब रामजी ने इस प्रकार कहा तब मुनिशार्दूल वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जहाँ तुम्हारा लीला का स्थान है और तुम क्रीड़ा करते हो उस ठौर में वह मृग बाँधा हुआ है | यह तुमको तिरगदेश के राजा ने दिया है सो बहुत सुन्दर है इस कारण तुमने उसे रखा है |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:27 AM   #43
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

उसको मँगाओ | तब रामजी ने अपने सखाओं से, जो निकटवर्ती थे, कहा कि उस मृग को सभा में ले आओ | हे राजन्! जब इस प्रकार रामजी ने कहा तब वे सभा में उस मृग को ले आये और जितने श्रोता सभा में बैठे थे वे बड़े आश्चर्य को प्राप्त हुए | वह मृग बड़ी ग्रीवा किये महासुन्दर और कमल की नाईं नेत्रवाला था, कभी वह घास खाने लगे, कभीं सभा में खेले और कभी ठहर जावे | तब रामजी ने कहा, हे भगवन्! आप इसको कृपा करके मनुष्ययोनि को प्राप्त कीजिये और उपदेश करके जगाइये कि हमारे साथ प्रश्न-उत्तर करे, अभी तो यह प्रश्न-उत्तर नहीं करता? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! इस प्रकार उसको उपदेश न लगेगा, क्योंकि जिसका कोई इष्ट होता है उसी से उसको सिद्धि होती है, इससे मैं इसके इष्ट को ध्यान करके बुलाता हूँ- उससे इसका कार्य सिद्ध होगा | बाल्मीकिजी बोले, हे राजन्? इस प्रकार कहकर वशिष्ठजी ने कमण्डलु हाथ में लेकर तीन आचमन किया और पद्मासन बाँध, नेत्र मूँद और ध्यान में स्थित होकर अग्नि का आवाहन किया |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:27 AM   #44
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

हे वह्ने! यह तेरा भक्त है इसकी सहायता करो इस पर दया करो | तुम सन्तों का दयालु स्वभाव है | जब ऐसे वशिष्ठजी ने कहा तब सभा में बड़े प्रकाश धारे अग्नि की ज्वाला काष्ठ अंगार से रहित प्रकट हुई और जलने लगी | जब ऐसे अग्नि जागी तब वह मृग उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसके चित्त में बड़ी भक्ति उत्पन्न हुई | तब वशिष्ठजी ने नेत्र खोलकर अनुग्रह सहित मृग की ओर देखा |उससे उसके सम्पूर्ण पाप दग्ध हो गये | वशिष्ठजी ने अग्नि से कहा, हे भगवन्, वह्ने! यह तेरा भक्त है | अपनी पूर्व की भक्ति स्मरण करके इस पर दया करो और उसके मृगशरीर को दूर करके इसको विपश्चित् शरीर दो कि यह अविद्याभ्रम से मुक्त हो | हे राजन्! इस प्रकार वशिष्ठजी अग्नि से कहकर रामजी से बोले, हे रामजी! अब यही मृग अग्नि में प्रवेश करेगा तब इसका मनुष्यशरीर हो जावेगा | ऐसे वशिष्ठजी कहते ही थे कि अग्नि को वह मृग देखकर एक चरण पीछे को हटा और उछलकर अग्नि में प्रवेश कर गया |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:27 AM   #45
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

जैसे बाण निशान में आ प्रवेश करते हैं, तैसे ही उसने प्रवेश किया | हे राजन्! उस मृग को कुछ खेद न हुआ बल्कि उसको अग्नि आनन्दरूप दृष्टि आया | तब उसका मृगशरीर अन्तर्धान हो गया और महाप्रकाशरूप मनुष्यशरीर को धारे अग्नि से निकला | जैसे कपड़े के ओढ़े से स्वाँगी स्वाँग धारण कर निकल आता है, तैसे ही वह निकल आया और अति सुन्दर वस्त्र पहिरे हुए, शशि पहिरे हुए, शीश पर मुकुट, कण्ठ, में रुद्राक्ष की माला और यज्ञोपवीत धारण किये था | अग्निवत् वह तेजवान् था किन्तु सभा में जो बैठे थे उनसे भी अधिक उसका तेज था मानो अग्नि को भी लज्जित किया है | जैसे सूर्य के उदय हुए चन्द्रमा का प्रकाश लज्जित हो जाता है, तैसे ही वह सर्व से प्रकाशवान् हो गया |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:27 AM   #46
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

फिर जैसे समुद्र से तरंग निकलकर लीन हो जाता है, तैसे ही वह अग्नि अन्तर्धान हो गये | उसको देखकर रामजी आश्चर्य को प्राप्त हुए और सर्वसभा विस्मय को प्राप्त हुई | तब बड़े प्रकाश को धारनेवाला विपश्चित् निकलकर ध्यान में लग गया और विपश्चित् से आदि लेकर इस शरीरपर्यन्त सर्व शरीर स्मरण करके नेत्र खोल वशिष्ठजी के निकट आ साष्टांग प्रणाम कर बोला, हे ब्राह्मण! ज्ञान के सूर्य और प्राण के दाता! तुमको मेरा नमस्कार है | जब इस प्रकार उसने कहा तब वशिष्ठजी ने उसके शिर पर हाथ रखा और कहा, हे राजन्! तू उठ खड़ा हो | अब मैं तेरी अविद्या दूर करूँगा और तू अपने स्वरूप को प्राप्त होगा | तब राजा विपश्चित् ने उठकर राजा दशरथ को प्रणाम किया और बोला, हे राजन्! तेरी जय हो |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:27 AM   #47
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

तब राजा दशरथ ने अपने आसन से उठकर कहा, हे राजन्! तुम बहुत दूर फिरते रहे हो अब यहाँ मेरे पास बैठो | तब राजा विपश्चित् विश्वा मित्र आदिक जो ऋषि बैठे थे उनको यथायोग्य प्रणाम करके बैठ गया और राजा दशरथ ने विपश्चित् को, जो बड़े प्रकाश को धारे हुए था, भास कहके बुलाया और कहा, हे भास! तुम संसारभ्रम के लिये चिरकाल फिरते रहे हो, थके होगे अब विश्राम करो जो देश काल क्रिया की हैं और देखा है सो कहो! यह आश्चर्य है कि अपने मन्दिर में सोये हो और निद्रादोष से गढ़े में गिरते फिरे और देश देशान्तरों को भटकते फिरे | यही अविद्या है |हे भास! जैसे वन का विचरनेवाला हाथी जंजीर से बन्धायमान हुआ दुःख पाता है, तैसे ही तुम विपश्चित् भी थे और अविद्या से जगत् के देखने के निमित्त भटकते रहे | हे राजन्! जगत् कुछ वस्तु नहीं है पर भासता है यही माया है | जैसे भ्रम से आकाश में नाना प्रकार के रंग भासते हैं तैसे ही अविद्या से यह जगत् भासते हैं और सत्य प्रतीत होते हैं पर सब आकाशरूप ही आकाश में स्थित हैं | उस आकाश में जो कुछ तुमने आत्मरूपी चिन्तामणि के चमत्कार से देखा है सो कहो |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:28 AM   #48
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

दशरथजी बोले, हे भास! बड़ा आश्चर्य है कि तुम विपश्चित् बुद्धिमान थे और चेष्टा से तुमने अविपश्चित् बुद्धि की है जो अविद्या के देखने को समर्थ हुए थे | यह जगत्् प्रतिभा तो मिथ्या उठी है, असत्य के ग्रहण की इच्छा तुमने क्यों की? बाल्मीकिजी बोले, हे राजन! जब इस प्रकार राजा दशरथ ने कहा तब प्रसंग पाकर विश्वामित्र बोले, हे राजन्, दशरथ! यह चेष्टा वही करता है जिसको परम बोध नहीं होता और केवल मूर्ख और अज्ञानी भी नहीं होता, क्योंकि जिसको परमबोध और आत्मा का अनुभव होता है वह जगत् को अविद्यक जानता है और उस अविद्यक जगत् के अन्त लेने को इतना यत्न नहीं करता, क्योंकि वह तो असत्य जानता है और जो देहअभिमान मूर्ख अज्ञ है वह भी यह यत्न नहीं करता, क्योंकि उसको देखने की सामर्थ्य भी नहीं होती |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:28 AM   #49
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

इससे मध्य भावी है | जो आत्मबोध से रहित है और जिसने आधिभौतिक शरीर त्याग किया है वही संसार देखने का यत्न करता है और जिनको उत्तम बोध नहीं हुआ वे इस प्रकार बहुत भटकते फिरते हैं | हे राजन्! इसी प्रकार बट धाना भी इसी ब्रह्माण्ड में फिरते हैं | सत्तर लक्ष वर्ष उनके व्यतीत हुए हैं कि इसी ब्रह्माण्ड में फिरते हैं | उनने भी यही निश्चय धारा है कि पृथ्वी कहाँ तक चली जाती है | इस निश्चय से वह निवृत्त नहीं होते और इसी ब्रह्माण्ड में भ्रमते हैं और उनको अपनी वासना के अनुसार विपरीत और ही औरस्थान भासते हैं | हे राजन्! जैसे किसी बालक का रचा संकल्प का वृक्ष आकाश में हो, तैसे ही यह भूगोल ब्रह्मा के संकल्प में स्थित है और संकल्प से गेंद के समान आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी इन पाँचों तत्त्वों का ब्रह्माण्ड रचा है और उसके चौफेर चींटियाँ फिरती हैं, जिस ओर से वे जाती हैं सो ऊर्ध्व भासता है सो और ही और निश्चय होता है, तैसे ही यह संकल्प के रचे भूगोल के किसी कोण में बटधाना जीव हुआ है |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Old 01-12-2012, 08:28 AM   #50
ravi sharma
Special Member
 
ravi sharma's Avatar
 
Join Date: Jan 2011
Location: सागर (M.P)
Posts: 3,627
Rep Power: 33
ravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant futureravi sharma has a brilliant future
Send a message via MSN to ravi sharma Send a message via Yahoo to ravi sharma
Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

हे राजन्! उसके तीन पुत्र थे, उनको यह संकल्प उदय हुआ कि हम जगत् का अन्त देखें | इसी संकल्प से फिरते फिरते पृथ्वी लाँघते है फिर पृथ्वी और जल आता है जल लाँघते हैं फिर आकाश आता है फिर पृथ्वी, जल वायु फिर उसी भूगोल के चहुफेर फिरते रहे | जैसे आकाश में गेंद हो तैसे ही यह पृथ्वी आकाश में है और इसका अध-ऊर्ध्व कोई नहीं | चरण अध शिर ऊर्ध्व उसी के चौफेर घूमते रहे परन्तु अपने निश्चय से और का और जानते रहे | जबतक स्वरूप का प्रमाद है तबतक जगत् का अभाव नहीं होता और जब आत्मा का साक्षात्कार होता है तब जगत् ब्रह्मरूप हो जाता है | जगत् कुछ वन नहीं, फुरने में भासता है जैसे स्वप्ने में अज्ञान से अनन्त जगत् दीखते हैं कि यह फुरना परब्रह्म में हुआ है और जो फुरने में है सो भी परब्रह्म है और कुछ बना नहीं-आत्मसता ही अपने आपमें स्थित है |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
ravi sharma is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 01:19 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.