13-06-2012, 10:43 AM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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भरपूर इनायत है
आँखों में ख़्वाब ज़िन्दा , रहबर की इनायत है . कुछ मर रहे हैं भूखे , कुछ फूल रहे खा के ; बेशर्म ख़ब्तियों की , प्लानिंग की इनायत है . नंगे हैं खिलखिलाते , रोते उसूल वाले ; बहुमत ठगा - सा भटके , सिस्टम की इनायत है . कुछ अहमकों के चलते , ये मुल्क़ तक बंटा है ; पाटे न पटे खाईं , मज़हब की इनायत है . रुख भांप कर हवा का , जो चाल बदल लेते ; झण्डे उन्हीं के फहरें , तिकड़म की इनायत है . कितने ही बांगड़ू हैं , पैदाइशी ख़लीफ़ा ; भेड़ों को हांकते हैं , किस्मत की इनायत है . तन - मन सुलग रहा है , फिर भी न उबलते हम ; नामर्द जेहनियत की , भरपूर इनायत है . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . ( शब्दार्थ ~~ इनायत = कृपा , ग़ुरबत = दरिद्रता , रहबर = अगुआ / नेता , ख़ब्तियों = पागलों , अहमकों = पागलों ,बांगड़ू = मूर्ख , ख़लीफ़ा = नेता , जेहनियत = सोच ) |
13-06-2012, 10:56 AM | #2 |
Administrator
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Re: भरपूर इनायत है
भरपूर इनायत है की आप फिर से सक्रिय हुए, कई हफ्तों बाद फिर से कुछ ताज़ा पढने का मौका मिला..
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
13-06-2012, 02:57 PM | #3 |
Diligent Member
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Re: भरपूर इनायत है
तन - मन सुलग रहा है , फिर भी न उबलते हम ;
नामर्द जेहनियत की , भरपूर इनायत है . bahoot khoob , nice one |
13-06-2012, 11:36 PM | #4 |
Special Member
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Re: भरपूर इनायत है
last line is awsome
welcome to home big brother
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
20-06-2012, 12:25 PM | #5 |
अति विशिष्ट कवि
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Re: भरपूर इनायत है
सर्वश्री Abhisays जी , n.dhebar जी , Amol जी , Sombirnaamdev जी एवं Dark Saint Alaick जी ; पढ़ने हेतु आप सभी का धन्यवाद .
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