17-11-2013, 03:32 PM | #21 |
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24-11-2013, 03:30 PM | #22 |
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13-12-2013, 05:59 PM | #23 |
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24-12-2013, 08:56 PM | #24 |
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15-01-2014, 05:53 PM | #25 |
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Re: पिता.................
मां का साया नहीं, पिता दुधमुंही को लिए ढो रहा है सवारी : जयपुर: राजस्थान के भरतपुर में एक रिक्शा चालक पिछले कुछ दिनों से कपड़े में अपनी नवजात बेटी को एक हाथ में लिए और दूसरे से रिक्शे के हैंडल को पकड़े सवारी को उनकी मंजिल तक पहुंचाता दिखता है। अपनी एक माह की दुधमुंही बच्ची को इस तरह मौसम के थपेड़ों के बीच घूमने को मजबूर रिक्शाचालक का नाम बबलू है। दलित जाति से रिश्ता रखने वाले बबलू को उसकी जीवन संगिनी शांति बच्ची को पैदा करते ही चल बसी। रोज कमाकर परिवार का पेट पालने वाले बबलू के लिए ज्यादा समय शोक मनाने के लिए भी नहीं बचा। और किसी तरह क्रिया क्रम करने के बाद अपने बूढ़े पिता का भार संभाल रहे बबलू को रिक्शे का हैंडल संभालना पड़ा। घर में और किसी के न होने की वजह से बबलू को अपनी नन्ही परी को साथ लेकर ही घूमना पड़ता है। बबलू कहता है कि कभी-कभार वह बच्ची को अपने पिता के पास छोड़कर जाता है लेकिन बीच में बार-बार दूध पिलाने के लिए वापस भी आता है। शांति की आखिरी निशानी को बड़े जतन से पालने की कोशिश भले ही बबलू कर रहा हो लेकिन पेट की भूख की वजह से बदलते मौसम की वजह से बच्ची पिछले दो दिनों से बीमार है और भरतपुर के सरकारी अस्पताल में भर्ती है। आज भी बबलू अपनी शांति के आखिरी पलों को याद कर रो पड़ता है। बहते हुए आंसू के बीच उसकी कांपती हुई आवाज ने कहा, ''बच्ची के पैदा होने के बाद खून की कमी के कारण शांति की तबीयत बिगड़ी, डॉक्टर ने खून लाने के लिए कहा, मैं खून लेकर लौटा तो पता चला कि शांति की सांस हमेशा के लिए उखड़ गई, मेरी आँखों के आगे अँधेरा पसर गया।" बबलू ने बताया कि करीब 15 वर्ष के दांपत्य जीवन के बाद उनके जीवन में पहली संतान के रूप में यह बच्ची तमाम खुशियां लेकर आई थी। आर्थिक तंगी से जूझ रहे बबलू ने कहा कि वह एक किराए के कमरे में रहता है जहां पर उसे प्रतिमाह 500 रुपये देना होता है। इसके अलावा प्रतिदिन 30 रुपये रिक्शा का किराया भी देता है। पिता की जिम्मेदारी भलिभांति समझते हुए बबलू कहता है, "कभी कभी किराये के कमरे पर पिता के साथ बेटी को छोड़ जाता हूं, बीच-बीच में उसे दूध पिलाने लौट आता हूं। ये शांति की अमानत है, इसलिए मेरी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।" आज जब तमाम शहरों में बेटी के पैदा होने पर परिजनों के चेहरे मुरझा जाते हैं, लोग दुधमुंही बच्ची को लावारिस छोड़ कर भाग जाते हैं, ऐसे में गरीब बबलू का बेटी से लगाव एक उदाहरण पेश करता है। बबलू का कहना है “शांति तो इस दुनिया में नहीं है, लेकिन मेरी हसरत है ये उसकी धरोहर फूले फले, मेरा सपना है उसे बेहतरीन तालीम मिले। हमारे लिए वो बेटे से भी बढ़ कर है।” समाज से उसे मदद मिलने के प्रश्न पर बबलू कहता है 'हमदर्दी के अल्फाज तो बहुत मिले, लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली। रिश्तेदारों ने भी कोई मदद नहीं की : लिंक:.........
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20-02-2014, 09:02 PM | #26 |
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20-02-2014, 09:40 PM | #27 |
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20-02-2014, 09:46 PM | #28 |
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Re: पिता.................
हमारे माता पिता : एक बार की बात है एक जंगल में सेब का एक बड़ा पेड़ था| एक बच्चा रोज उस पेड़ पर खेलने आया करता था| वह कभी पेड़ की डाली से लटकता कभी फल तोड़ता कभी उछल कूद करता था, सेब का पेड़ भी उस बच्चे से काफ़ी खुश रहता था| कई साल इस तरह बीत गये| अचानक एक दिन बच्चा कहीं चला गया और फिर लौट के नहीं आया, पेड़ ने उसका काफ़ी इंतज़ार किया पर वह नहीं आया| अब तो पेड़ उदास हो गया| काफ़ी साल बाद वह बच्चा फिर से पेड़ के पास आया पर वह अब कुछ बड़ा हो गया था| पेड़ उसे देखकर काफ़ी खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा| पर बच्चा उदास होते हुए बोला कि अब वह बड़ा हो गया है अब वह उसके साथ नहीं खेल सकता| बच्चा बोला की अब मुझे खिलोने से खेलना अच्छा लगता है पर मेरे पास खिलोने खरीदने के लिए पैसे नहीं है| पेड़ बोला उदास ना हो तुम मेरे फल तोड़ लो और उन्हें बेच कर खिलोने खरीद लो| बच्चा खुशी खुशी फल तोड़ के ले गया लेकिन वह फिर बहुत दिनों तक वापस नहीं आया| पेड़ बहुत दुखी हुआ| अचानक बहुत दिनों बाद बच्चा जो अब जवान हो गया था वापस आया, पेड़ बहुत खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा पर लड़के ने कहा कि वह पेड़ के साथ नहीं खेल सकता अब मुझे कुछ पैसे चाहिए क्यूंकी मुझे अपने बच्चों के लिए घर बनाना है| पेड़ बोला मेरी शाखाएँ बहुत मजबूत हैं तुम इन्हें काट कर ले जाओ और अपना घर बना लो| अब लड़के ने खुशी खुशी सारी शाखाएँ काट डालीं और लेकर चला गया| वह फिर कभी वापस नहीं आया| बहुत दिनों बात जब वह वापिस आया तो बूढ़ा हो चुका था पेड़ बोला मेरे साथ खेलो पर वह बोला की अब में बूढ़ा हो गया हूँ अब नहीं खेल सकता| पेड़ उदास होते हुए बोला की अब मेरे पास ना फल हैं और ना ही लकड़ी अब में तुम्हारी मदद भी नहीं कर सकता| बूढ़ा बोला की अब उसे कोई सहायता नहीं चाहिए बस एक जगह चाहिए जहाँ वह बाकी जिंदगी आराम से गुजर सके| पेड़ ने उसे अपने जड़ मे पनाह दी और बूढ़ा हमेशा वहीं रहने लगा| मित्रों इसी पेड़ की तरह हमारे माता पिता भी होते हैं, जब हम छोटे होते हैं तो उनके साथ खेलकर बड़े होते हैं और बड़े होकर उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं और तभी वापस आते हैं जब हमें कोई ज़रूरत होती है| धीरे धीरे ऐसे ही जीवन बीत जाता है| हमें पेड़ रूपी माता पिता की सेवा करनी चाहिए नाकी सिर्फ़ उनसे फ़ायदा लेना चाहि :......... साभार :.........
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21-02-2014, 11:50 AM | #29 |
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Re: पिता.................
वाकई माता-पिता और कहानी का वृक्ष एक समान हैं. दोनों ही अपने बच्चे/बच्चों के लिये सब कुछ कुरबान कर देने के लिये तत्पर रहते हैं.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-02-2014, 04:56 PM | #30 | |
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Re: पिता.................
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प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद...........
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