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Old 22-12-2011, 09:19 PM   #111
tanveerraja
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

मेयार को बुलन्द करना

पुराने ज़माने के अरब में बराबर की अख्लाक़ियात (नैतिकता) का रिवाज था उनकी ज़िन्दगी का उसूल यह था कि जो शख्स़ जैसा करे उसके साथ वैसा ही किया जाए। यानी अच्छा सुलूक करने वाले के साथ अच्छा सुलूक और बुरा सुलूक करने वाले के साथ बुरा सुलूक।

इस्लाम से पहले के ज़माने का एक शायर अपने मुक़ाबिले के क़बीले के बारे में कहता है कि ज़्यादती की कोई क़िस्म हमने बाक़ी नहीं छोड़ी। उन्होने हमारे साथ जैसा किया था वैसा ही हमने उनको बदला दिया।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए तो आपने अख्लाक़ के इस उसूल को बदला। बराबरी के अख्लाक़ के बजाय आपने उनको बुलन्दअख्लाक़ी की तालीम दी।

आपने फ़रमाया कि जो शख्स तुम्हारे साथ बुरा सुलूक करे उसके साथ तुम अच्छा सुलूक करो।

एक हदीस में है :
तुम लोग इम्मआ (मौक़ापरस्तखुदगर्ज़) न बनोकि यह कहने लगो कि अगर लोग हमारे साथ अच्छा करें तो हम भी उनके साथ अच्छा करेंगे। और अगर वे ज़्यादती करें तो हम भी ज़्यादती करेंगे। बल्कि अपने आपको इसके लिए तैयार करो कि लोग तुम्हारे साथ अच्छा करें तो तुम उनके साथ अच्छा करोगे और अगर लोग तुम्हारे साथ बुरा करें तब भी तुम उनके साथ ज़्यादती नहीं करोगे। (मिश्कातुल मसाबेहतीसरा भाग)

आपकी एक सुन्नत यह भी है कि लोगों के शुऊर(चेतना) को बुलन्द किया जाए। उनके अख्लाक़ को ऊंचा किया जाए। उनकी हालत को हर लिहाज़ से ऊपर उठाने की कोशिश की जाए।

इन्सान के इन्सानी मेयार को बुलन्द करनाफिक्रीइल्मीअख्लाक़ी हैसियत से उसको ऊपर उठाना अहमतरीन काम है। इसमें आदमी की भलाई है और इसी में पूरे समाज की भलाई भी। यह ठीक रसूल का तरीक़ा है यानी सुन्नते रसूल है और इसको ज़िन्दा करना सुन्नतेरसूल को ज़िन्दा करना है।

अलरिसाला(हिन्दी) मार्च–1991
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Last edited by tanveerraja; 22-12-2011 at 09:27 PM.
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Old 24-12-2011, 07:06 PM   #112
tanveerraja
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

तमाम पैग़म्बर एक ही दीन लेकर आए। और वह दीने तौहीद है। मगर इन पैग़म्बरों के मानने वाले बाद को अलग–अलग दीनी फ़िरक़ों में तक्सीम हो गए।

इसकी वजह मर्कज़े तवज्जोह में तब्दीली थी।
पैग़म्बरों के अस्ल दीन में मर्कज़े तवज्जोह तमामतर ख़ुदा था।

हर एक की तालीम यह थी कि सिर्फ़ एक ख़ुदा के परस्तार बनो। मगर उनकी उम्मतों ने बाद को अपना मर्कज़े तवज्जोह तब्दील कर दिया। वे ख़ुदा के बजाए ग़ैर ख़ुदा के परस्तार बन गए।

क़दीम अरब के लोग इब्तिदा में हज़रत इब्राहीम की उम्मत थे। मगर बाद को अपने कुछ बुजुर्गों की अज़मत उनके ज़ेहनों पर इस तरह छाई कि उन्हीं को उन्होंने अपना मर्कज़े तवज्जोह बना लिया। यहां तक कि उनके बुत बनाकर वे उन्हें पूजने लगे।

यहूद हज़रत मूसा की उम्मत थे। मगर उन्होंने अपनी नस्ल को मख़सूस नस्ल समझ लिया।

उनकी तवज्जोहात अपनी नस्ल की तरफ़ इतनी ज़्यादा मायल हुईं कि बिलआख़िर ख़ुदाई दीन उनके यहां नस्ली दीन बनकर रह गया।
वे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ला0) के सिर्फ़ इसलिए मुंकिर हो गए कि वह उनकी अपनी नस्ल में पैदा नहीं हुए थे।

इसी तरह ईसाई हज़रत ईसा की उम्मत थे। उन्होंने हज़रत ईसा को ख़ुदा का पैग़म्बर मानने के बजाए उन्हें ख़ुदा का बेटा फ़र्ज़ कर लिया।
इस तरह बाद को उन्होंने जो दीन बनाया उसमें मसीह को ख़ुदा का बेटा मानने में सबसे ज़्यादा अहमियत हासिल कर ली।

ख़ुदा को अपने बंदों से जो दीन मत्लूब है वह यह है कि वह ख़ालिस तौहीद (एकेश्वरवाद) पर क़ायम हों।
सिर्फ़ एक ख़ुदा उनकी तमाम तवज्जोहात का मर्कज़ बन जाए।
यही इक़ामते दीन (दीन की स्थापना) है।
इस मर्कज़े तवज्जोह में तब्दीली का दूसरा नाम शिर्क है।

और जब लोगों में शिर्क आता है तो फ़ौरन तफरीक़ (विभेद) और इख़तेलाफ़ शुरू हो जाता है। क्योंकि तौहीद की सूरत में मर्कज़े तवज्जोह एक रहता है, जबकि शिर्क की सूरत में मर्कज़े तवज्जोह कई बन जाते हैं।

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का दीन अगरचे अपने मत्न (मूल रूप) के एतबार से महफ़ूज़ दीन है। मगर आपकी उम्मत महफ़ूज़ उम्मत नहीं।

उम्मत के लोगों के लिए बदस्तूर यह इम्कान खुला हुआ है कि वे नई–नई चीज़ें को अपना मर्कज़े तवज्जोह बनाएं।
वे ख़ुदसाख़ता (स्वनिर्मित) तशरीह व ताबीर के ज़रिए अस्ल दीन में तब्दीलियां करें और फिर एक दीन को अमलन कई दीन बनाकर रख दें।


क़ुरआन की सूरह–42 अश–शूरा
अल्लाह ने तुम्हारे लिए वही दीन (धर्म) मुक़र्रर किया है जिसका उसने नूह को हुक्म दिया था और जिसकी ‘वही’ (प्रकाशना) हमने तुम्हारी तरफ़ की है और जिसका हुक्म हमने इब्राहीम को और मूसा को और ईसा को दिया था कि दीन को क़ायम रखो और उसमें इख़तेलाफ़ (मत-भिन्नता, बिखराव) न डालो। मुश्रिकीन पर वह बात बहुत गिरां (भार) है जिसकी तरफ़ तुम उन्हें बुला रहे हो। अल्लाह जिसे चाहता है अपनी तरफ़ चुन लेता है। और वह अपनी तरफ़ उनकी रहनुमाई करता है जो उसकी तरफ़ मुतवज्जह होते हैं। (13)
तज्क़िरूल क़ुरआन
- मौलाना वहीदुद्दीन खाँ
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Old 12-08-2012, 09:18 AM   #113
stolen heart
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

यह बात करने की नहीं, मगर मेरी इच्छा है कि मेरी इन प्रेम भरी बातों को आप प्यार की आँखों से देखें और पढ़ें। उस स्वामी के बारे में जो सारे संसार को चलाने और बनाने वाला है, सोच विचार करें, इस संसार में आने के बाद एक मनुष्य के लिए जिस सच्चाई को जानना और मानना आवश्यक है और जो इसकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी और कर्तव्य है वह प्रेम भरी बात में आपको सुनाना चाहता हूँ।
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Old 12-08-2012, 09:21 AM   #114
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

प्रकृति का सबसे बड़ा सच
इस संसार, बल्कि प्रकृति की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि इस संसार में सारे जीवों और पूरी कायनात को बनाने वाला, पैदा करने वाला और उसका प्रबन्ध करने वाला केवल और केवल एक अकेला स्वामी है। वह अपनी ज़ात, गुण और अधिकारों में अकेला है। दुनिया को बनाने, चलाने, मारने और जिलाने में उसका कोई साझी नहीं। वह एक ऐसी शक्ति है जो हर जगह मौजूद है। हरेक की सुनता है हरेक को देखता है। सारे संसार में एक पत्ता भी उसकी आज्ञा के बिना हिल नहीं सकता। हर मनुष्य की आत्मा उसकी गवाही देती है, चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो अंदर से वह विश्वास रखता है कि पैदा करने वाला, पालने वाला, पालनहार और असली मालिक तो केवल वही एक है।
इंसान की बुद्धि में भी इसके अलावा और कोई बात नहीं आती कि सारे संसार का स्वामी एक ही है। यदि किसी स्कूल के दो प्रधानाचार्य हों तो स्कूल नहीं चल सकता। यदि एक गांव के दो प्रधान हों तो गांव की व्यवस्था तलपट हो जाएगी। किसी देश के दो बादशाह नहीं हो सकते तो इतनी बड़ी और व्यापक कायनात की व्यवस्था एक से अधिक स्वामियों के द्वारा कैसे चल सकती है? और संसार की प्रबंधक कई हस्तियां कैसे हो सकती हैं?
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Old 12-08-2012, 09:28 AM   #115
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

एक दलील
कुरआन, जो अल्लाह की वाणी है उसने दुनिया को अपनी सत्यता बताने के लिए यह दावा किया है कि-
‘‘हमने जो कुछ अपने बन्दे पर ( कुरआन) उतारा है उसमें यदि तुमको संदेह है (कि कुरआन उस मालिक का सच्चा कलाम नहीं है) तो इस जैसी एक सूरत ही (बना) ले आओ और चाहो तो इस काम के लिए अल्लाह को छोड़ कर अपने सहायकों को भी (मदद के लिए) बुला लो, यदि तुम सच्चे हो।0’’ (अनुवाद कुरआन, बक़रा 2:23)


चौदह-सौ साल से आज तक दुनिया के योग्य लेखक, विद्वान और बुद्धिजीवी शौध और रिसर्च करके थक चुके और अपना सिर झुका चुके हैं, पर वास्तव में कोई भी अल्लाह की इस चुनौती का जवाब न दे सका और न भविष्य में दे सकेगा।


इस पवित्र पुस्तक में अल्लाह ने हमारी बुद्धि को अपील करने के लिए बहुत सी दलीलें दी हैं। एक उदाहरण यह है कि-
‘‘यदि धरती और आकाशों में अल्लाह के अलावा स्वामी और शासक होते तो इन दोनों में बड़ा बिगाड़ और उत्पात मच जाता।’’ (अनुवाद कुरआन, अम्बिया 21:22)


बात स्पष्ट है। यदि एक के अलावा कई शासक व स्वामी होते तो झगड़ा होता। एक कहताः अब रात होगी, दूसरा कहताः दिन होगा। एक कहताः छः महीने का दिन होगा, दूसरा कहताः तीन महीने का होगा। एक कहताः सूरज आज पश्चिम से उदय होगा, दूसरा कहताः नहीं पूरब से उदय होगा। यदि देवी-देवताओं को यह अधिकार वास्तव में होता और वे अल्लाह के कामों में भागीदार भी होते तो कभी ऐसा होता कि एक गुलाम ने पूजा अर्चना करके वर्षा के देवता से अपनी इच्छा मनवा ली तो बड़े स्वामी की ओर से आदेश आता कि अभी वर्षा नहीं होगी। फिर नीचे वाले हड़ताल कर देते। अब लोग बैठे हैं कि दिन नहीं निकला, पता चला कि सूरज देवता ने हड़ताल कर रखी है।
सच यह है कि दुनिया की हर चीज़ गवाही दे रही है, यह संगठित रुप से चलती हुई कायनात की व्यवस्था गवाही दे रही है कि संसार का स्वामी अकेला और केवल एक है। वह जब चाहे और जो चाहे कर सकता है। उसे कल्पना एवं विचारों में क़ैद नहीं किया जा सकता। उसकी तस्वीर नहीं बनाई जा सकती। उस स्वामी ने सारे संसार को मनुष्यों के फ़ायदे और उनकी सेवा के लिए पैदा किया है। सूरज मनुष्य का सेवक, हवा मनुष्य की सेवक, यह धरती भी मनुष्य की सेवक है। आग, पानी, जानदार और बेजान दुनिया की हर वस्तु मनुष्य की सेवा के लिए बनायी गयी है। और उस स्वामी ने मनुष्य को अपना दास बना कर उसे अपनी उपासना करने और आदेश मानने के लिए पैदा किया है, ताकि वह इस दुनिया के सारे मामलों को सुचारु रुप से पूरा करे और इसी के साथ उसका स्वामी व उपास्य उससे प्रसन्न व राज़ी हो जाए।
न्याय की बात है कि जब पैदा करने वाला, जीवन देने वाला, मौत देने वाला, खाना, पानी देने वाला और जीवन की हर ज़रूरत को पूरी करने वाला वही एक है तो सच्चे मनुष्य को अपने जीवन और जीवन संबंधी समस्त मामलों को अपने स्वामी की इच्छा के अनुसार उसका आज्ञापालक होकर पूरा करना चाहिए। यदि कोई मनुष्य अपना जीवनकाल उस अकेले स्वामी का आदेश मानते हुए नहीं गुज़ार रहा है तो सही अर्थों में वह मनुष्य कहलाने योग्य नहीं।
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Old 12-08-2012, 09:30 AM   #116
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

एक बड़ी सच्चाई
उस सच्चे स्वामी ने अपनी सच्ची पुस्तक कुरआन में बहुत सी सच्चाई में से एक सच्चाई हमें यह बतायी है-
‘‘हर जीवन को मौत का स्वाद चखना है फिर तुम सब हमारी ही ओर लौटाए जाओगे।’’ (अनुवाद कुरआन, अन्कबूत 29:57)
इस आयत के दो भाग हैं। पहला यह कि हरेक जीव को मौत का स्वाद चखना है। यह ऐसी बात है कि हर धर्म, हर वर्ग और हर स्थान का आदमी इस बात पर विश्वास करता है बल्कि जो धर्म को भी नहीं मानता वह भी इस सच्चाई के सामने सिर झुकाता है और जानवर तक मौत की सच्चाई को समझते हैं। चूहा, बिल्ली को देखते ही अपनी जान बचाकर भागता है और कुत्ता भी सड़क पर आती हुई किसी गाड़ी को देख कर अपनी जान बचाने के लिए तेज़ी से हट जाता है, क्योंकि ये जानते हैं कि यदि इन्होंने ऐसा न किया तो उनका मर जाना निश्चित है।
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Old 12-08-2012, 09:32 AM   #117
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

मौत के बाद
इस आयत के दूसरे भाग में क़ुरआन एक और बड़ी सच्चाई की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। यदि वह मनुष्य की समझ में आ जाए तो सारे संसार का वातावरण बदल जाए। वह सच्चाई यह है कि तुम मरने के बाद मेरी ही ओर लौटाए जाओगे और इस संसार में जैसा काम करोगे वैसा ही बदला पाओगे।
मरने के बाद तुम मिट्टी में मिल जाओगे या गल सड़ जाओगे और दोबारा जीवित नहीं किए जाआगे, ऐसा नहीं है और न यह सच है कि मरने के बाद तुम्हारी आत्मा किसी और शरीर में प्रवेश कर जाएगी। यह दृष्टिकोण किसी भी दृष्टि से मानव बुद्धि की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
पहली बात यह है कि आवागमन का यह काल्पनिक विचार वेदों में मौजूद नहीं है, बाद के पुरानों (देवमालाई कहानियों) में इसका उल्लेख है। इस विचारधारा की शुरुआत इस प्रकार हुई कि शैतान ने धर्म के नाम पर लोगों को ऊँच-नीच में जकड़ दिया। धर्म के नाम पर शूद्रों से सेवा कराने और उनको नीच और तुच्छ समझने वाले धर्म के ठेकेदारों से समाज के दबे कुचले वर्ग के लोगों ने जब यह सवाल किया कि जब हमारा पैदा करने वाला ईश्वर है और उसने सारे मनुष्यों को आँख, कान, नाक, हर वस्तु में समान बनाया है तो आप लोग अपने अपको ऊँचा और हमें नीचा और तुच्छ क्यों समझते हैं? इसका उन्होंने आवागमन का सहारा लेकर यह जवाब दिया कि तुम्हारे पिछले जीवन के बुरे कामों ने तुम्हें इस जन्म में नीच और अपमानित बनाया है।
इस विचाराधारा के अनुसार सारी आत्माएं। दोबारा पैदा होती हैं और अपने कामों के हिसाब से शरीर बदल कर आती हैं। अधिक बुरे काम करने वाले लोग जानवरों के शरीर में पैदा होते हैं। इनसे और अधिक बुरे काम करने वाले वनस्पति के रुप में आ जाते हैं, जिनके काम अच्छे होते हैं, वे आवागमन के चक्कर से मुक्ति पा जाते हैं।
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Old 12-08-2012, 09:35 AM   #118
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

आवागमन के विरुद्ध तीन तर्क
1. इस सम्बंध में सबसे बड़ी बात यह है कि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस धरती पर सबसे पहले वनस्पति पैदा हुई, फिर जानवर पैदा हुए और उसके करोड़ों साल बाद मनुष्य का जन्म हुआ। अब जबकि मनुष्य अभी इस धरती पर पैदा ही नहीं हुआ था और किसी मानव आत्मा ने अभी बुरा काम किया ही नहीं था तो सवाल पैदा होता है कि वे किसकी आत्माएं थीं, जिन्होंने अनगिनत जानवरों और पेड़ पौधों के रुप में जन्म लिया?
2. दूसरी बात यह है कि इस विचार धारा को मान लेने के बाद तो यह होना चाहिए था कि धरती पर जानवरों की संख्या में निरंतर कमी होती रहती। जो आत्माएं आवागमन से मुक्ति पा लेतीं, उनकी संख्या कम होती रहनी चाहिए थी, जबकि यह वास्तविकता हमारे सामने है कि धरती पर मनुष्यों, जानवरों और वनस्पति हर प्रकार के जीवों की संख्या में निरंतर बड़ी भारी वृद्धि हो रही है।
3. तीसरी बात यह है कि इस दुनिया में पैदा होने वालों और मरने वालों की संख्या में धरती व आकाश के जितना अंतर दिखाई देता है, मरने वालों की तुलना में पैदा होने वालों की संख्या कहीं अधिक है। खरबों अनगिनत मच्छर पैदा होते हैं, जबकि मरने वाले इससे बहुत कम हैं
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Old 12-08-2012, 09:36 AM   #119
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

कर्मों का फल मिलेगा
यदि मनुष्य अपने पालनहार की उपासना और उसकी बात मानते हुए अच्छे काम करेगा, भलाई और सदाचार के रास्ते पर चलेगा तो वह अपने पालनहार की कृपा से जन्नत में जाएगा। जन्नत, जहाँ आराम की हर वस्तु है, बल्कि वहाँ तो आनंद व सुख वैभव की ऐसी वस्तुएं भी है, जिनको इस दुनिया में न किसी आँख ने देखा न किसी कान ने सुना न किसी दिल में उनका विचार आया। और जन्नत की सबसे बडी नेमत यह होगी कि जन्नती लोग वहाँ अपनी आँखों से अपने स्वामी एवं पालनहार को देख सकेंगे, जिसके बराबर आनन्द और हर्ष की कोई वस्तु नहीं होगी।
इसी तरह जो लोग बुरे काम करेंगे अपने पालनहार के साथ दूसरों को भागी बनाएंगे और विद्रोह करके अपने स्वामी के आदेश का इन्कार करेंगे वे नरक में डाले जाएंगे। वे वहाँ आग में जलेंगे। वहाँ उनको उनके बुरे कामों और अपराधों का दण्ड मिलेगा और सबसे बडा दंड यह होगा कि वे अपने स्वामी को देखने से वंचित रह जाएंगे और उन पर उनके स्वामी की दर्दनाक यातना होगी।
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Old 12-08-2012, 01:29 PM   #120
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

मंच प्रबंधन से अनुरोध है कि यदि कोई प्रविष्टि किसी धर्म विशेष के विरुद्द प्रतीत हो तो उसे तुरंत मिटा दिया जाये ताकि किसी मित्र की भावनाएं आहत न हो |ये सभी विचार मेरे अपने नहीं है बल्कि किसी अन्य माध्यम से लिए गए हैं अंत में मूल लेखक का नाम (एवं पता यदि किसी को वेरीफाई करना हो तो) भी उपलब्ध कराया जायेगा |
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