19-05-2020, 03:45 PM | #1 |
Diligent Member
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ग़ज़ल- ये दुख हुआ है जानकर
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . है ग़रीबी साथ पर ये दुख हुआ है जानकर मुँह छिपाये जा रहा था वो मुझे पहचान कर नाव थी मझधार मेरी वो किनारा कर गया जी रहा था मैं जिसे पतवार अपनी मानकर बात आई थी हवा से पाप धुलता है कहीं मैल है दिल में अगर तो क्या करेंगे स्नान कर ये धरा भी एक दिन मिट कर रहेगी तय सुनें है ज़मीं ये कह रही मत बैठना अभिमान कर कह रहा "आकाश" मुझको वो कबूतर आजकल देखता जैसे शिकारी तीर कोई तान कर ग़ज़ल - आकाश महेशपुरी (यह रचना सन् 2012 के ग्रीष्म ऋतु में लिखी गयी थी) ■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश |
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