11-09-2012, 03:23 PM | #1 |
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तरीका जश्ने उल्फ़त का !
जब आशिक पास आते हैं तो फ़िर क्यों भाव खाती हो ! तेरी तारीफ़ पर तुझको अगर यूँ ऐंठना ही है ; फ़िर इतना वक़्त क्यों सजने - सँवरने पे लगाती हो ! घटा कहता हूँ सावन की तुम्हारे गेसुओं को मैं ; कड़क कर मेरे अरमानों पे क्यों बिजली गिराती हो ! कभी कॉलेज के रस्ते पे तेरा पीछा जो करता हूँ ; ये जब तुम जान जाती , क्यों कमर ख़ुब डगमगाती हो ! तुम्हारे दिल के दरवाज़े को कब से खटखटाता हूँ ; रहम मुझपे दिखाकर क्यों नहीं भीतर बिठाती हो ! उजालों में तुम्हें मिलना गवारा जब नहीं मुझसे ; तो मेरे ख़्वाब में आकर के क्यों रातें बिताती हो ! तेरे सेल फ़ोन पर तुझपे ग़ज़ल मेसेज करी थी जो ; पढ़ाकर अपनी सखियों में क्यों तुम जलवा जमाती हो ! ख़ता भी तुम ही करती हो , तुम्हीं इंसाफ़ करती हो ; अज़ब मुंसिफ हो सूली पे क्यों आशिक को चढ़ाती हो ! तरीका जश्ने उल्फ़त का गज़ब तुम हुस्न वालों में ; क्यों आशिक क़त्ल कर - कर फ़ोटो एल्बम में सजाती हो ! रचयिता ~ ~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . |
25-09-2012, 12:59 PM | #2 |
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Re: तरीका जश्ने उल्फ़त का !
समस्त अज्ञात पाठकों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ .
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25-09-2012, 01:03 PM | #3 |
Administrator
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Re: तरीका जश्ने उल्फ़त का !
गजब की कविता है राकेश जी।
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25-09-2012, 03:31 PM | #4 | |
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Re: तरीका जश्ने उल्फ़त का !
Quote:
बहुत अच्छे
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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15-10-2012, 08:49 PM | #5 |
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Re: तरीका जश्ने उल्फ़त का !
अत्यधिक आभार सर्वश्री अभिशेष जी , एन ढेबर जी एवं अरविन्द जी .
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29-10-2012, 03:36 PM | #6 |
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Re: तरीका जश्ने उल्फ़त का !
[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;163747]
उजालों में तुम्हें मिलना गवारा जब नहीं मुझसे ; तो मेरे ख़्वाब में आकर के क्यों रातें बिताती हो ! बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने. धन्यवाद और बधाई. |
29-10-2012, 11:37 PM | #7 |
Special Member
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re: तरीका जश्ने उल्फत का !
डॉक्टर राकेश जी .... अतिसुन्दर कविता है.....!
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ऑफलाइन में हिंदी लिखने के लिए मुझे डाउनलोड करें ! आजकल लोग रिश्तों को भूलते जा रहे हैं....! love is life Last edited by bhavna singh; 29-10-2012 at 11:48 PM. |
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