14-01-2013, 11:50 AM | #1 |
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याद कैलेंडर
जनवरी
सदियों के लिहाफ से चुपके निकलता है सूरज कुछ चहलकदमी करके, वापस लौट जाता है यादों को लौटने का हुनर क्यों नही आता... फरवरी सुर्ख फूलों की क्यारियां बच्चों की हँसी की खुशबू तेरी याद सी मासूम... मार्च धरती ने पहनी धानी चुनर लगाया अमराइयों का इत्र और तेरी याद का काजल... अप्रैल झर गई स्मृतियां खाली पड़े हैं आंखों के कोटर नए भेष में आई है याद इंतज़ार बनकर... मई हाँफते दिनों का हाथ थाम रात तक बचा ही लेता हूँ आँख की नमी...तुम्हारी कमी... जून गुलमोहर और अमलताश कुदरत के दो रंग दो राग तीसरा तुम्हारी याद... जुलाई बूँदों की ओढ़नी मोहब्बत का राग और तुम्हारा नाम... अगस्त दिन की किनारी पर बंधे दिन...रात... और तुम्हारे कदमो की आहट... सितंबर लाल आकाश पर समंदर की परछाईं रात के माथे पर उगते सूरज की तरह जैसे तूने जोर से फूंका हो रात को... अक्टूबर वक्त की शाख से उतरकर कन्धे पर आ बैठें है सारे मौसम...
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21-01-2013, 07:59 PM | #2 |
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Re: याद कैलेंडर
बहुत ही खुबसूरत कविता है।
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21-01-2013, 08:04 PM | #3 | |
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Re: याद कैलेंडर
Quote:
धरती का जीवन हो जाता है पाकर जिसे निहाल. जनवरी से वर्ष चला तो अक्टूबर पर क्यों अटका, अब तक का था सफ़र सुहाना, आगे कौन हवाल? |
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21-01-2013, 08:28 PM | #4 |
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Re: याद कैलेंडर
खुबसूरत.....................................
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21-01-2013, 08:47 PM | #5 |
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Re: याद कैलेंडर
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