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Old 09-09-2014, 05:20 PM   #1
Rajat Vynar
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Talking विचार (thought) की भाषा

ह सूत्र उन लोगों के लिए है जो द्विभाषी, त्रिभाषी या बहुभाषी हैं. यदि आप कई भाषाओं के ज्ञाता हैं तो क्या कभी आपने यह सोचा है कि आप किस भाषा में विचार करते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप किसी विषय पर चिंतन करते हैं तो उस समय आपके चिंतन की भाषा क्या होती है? कृपया इस विषय पर अपने अनमोल विचार प्रस्तुत करें.
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Old 09-09-2014, 05:32 PM   #2
soni pushpa
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Default Re: विचार (thought) की भाषा

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Originally Posted by rajat vynar View Post
ह सूत्र उन लोगों के लिए है जो द्विभाषी, त्रिभाषी या बहुभाषी हैं. यदि आप कई भाषाओं के ज्ञाता हैं तो क्या कभी आपने यह सोचा है कि आप किस भाषा में विचार करते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप किसी विषय पर चिंतन करते हैं तो उस समय आपके चिंतन की भाषा क्या होती है? कृपया इस विषय पर अपने अनमोल विचार प्रस्तुत करें.



धन्यवाद रजत जी ... अच्छा विषय चुना है आपने .. मेरा मानना है की चिंतन किसी भाषा में नही अपितु , चिंतन हिर्दय से और मस्तिष्क से होता है. भाषा तो सिर्फ बोली जाती है, लिखी जा सके उसे भी हम हिंदी में लिपि कहते हैं न जैसे की देवनागरी लिपि को ही ले लीजिये . हाँ उन शब्दों में जो भाव डाले जाते हैं वो हमरे ह्रदय से निकले उद्गार होते हैं , जसके माध्यम से हम लिख सकते है शब्दों के द्वारा ....
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Old 09-09-2014, 11:53 PM   #3
Pavitra
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Talking Re: विचार (thought) की भाषा

चाहे हम कितनी भी भाषाओं के ज्ञाता क्यों न हों , परन्तु जब भी व्यक्ति क्रोध में होता है , भावुक होता है ( अर्थात रो रहा होता है या अपनी भावनाएं ह्रदय से व्यक्त कर रहा होता है ) , और जब मन में विचार कर रहा होता है तो वह अपनी मातृ भाषा का ही प्रयोग करता है या वह भाषा जो व्यक्ति आम बोल-चाल में प्रयोग करता है।

जैसे आजकल लोग हिंगलिश में ही स्वाभाविक रूप से बातें करते हैं , तो मन में विचार भी उसी भाषा में करते हैं। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही है , मेरे मन में विचार हिंगलिश में ही आते हैं।

जैसे - oh wow कितना Interesting post है , मैं इसको reply ज़रूर करुँगी .


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Old 10-09-2014, 12:56 PM   #4
Rajat Vynar
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Talking Re: विचार (thought) की भाषा

ससे पहले मैं इस सूत्र पर अपने विचार रखूँ, हिंगलिश की बात पर मुझे हिंगलिश पर अपना वह लेख याद आ गया जो मैंने कुछ वर्ष पहले लिखा था-

"आज हिन्दी में कोई पुस्तक लिखना जो सभी वर्गाें के पाठकों के लिए सरल और आसान हो- कितना कठिन कार्य है! यहाँ पर सभी वर्गाें के पाठकों का मतलब है- हिंदी के पाठक और अंग्रेज़ी के पाठक। हिन्दी के पाठक वे लोग हैं जो हिन्दी मीडियम से पढ़े हैं और हिन्दी पूरी तरह से समझते हैं। अंग्रेज़ी के पाठक वे लोग हैं जो अंग्रेज़ी मीडियम से पढ़े हैं और अंग्रेज़ी पूरी तरह से समझते हैं किन्तु हिन्दी पढ़ने से परहेज करते हैं क्योंकि वे मातृभाषा हिन्दी होने के कारण हिन्दी जानते हुए भी हिन्दी के कई कठिन शब्दों पर अटक जाते हैं और उसका अर्थ नहीं निकाल पाते। कठिन शब्दों की बात छोड़िए, कभी-कभी तो ये हिन्दी की संख्याओं का अर्थ भी नहीं समझते और पूछ बैठते हैं- ’’पैंतालीस मीन्ज़? अरे... अंग्रेज़ी में बताओ, यार।’’ और ऐसे पाठक पैंतालीस का मतलब तभी समझेंगे जब तक इन्हें कोई अंग्रेज़ी में पैंतालीस का मतलब फाॅर्टी-फाइव न बता दे! हिन्दी के पाठकों में भी बहुत से ऐसे हैं जो अक्सर उन्तालीस और उन्चास का अर्थ समझने में भ्रमित हो जाते हैं।
वर्ष 1980 से पूर्व यह समस्या नहीं थी क्योंकि उस समय अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वालों की संख्या बहुत ही कम थी। वर्ष 1980 से पूर्व के जो भी लोग अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़े हैं, उनकी गिनती उस समय जन-साधारण में नहीं होती थी। ऐसे लोग समाज के उच्च वर्ग से सम्बन्धित थे किन्तु वर्ष 1980 के बाद परिस्थितियाँ बदलती चली गईं। समाज के मध्यम वर्ग के लोग भी अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाने में सक्षम हो गए और अंग्रेज़ी पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि होने लगी। अंग्रेज़ी के इन पाठकों की दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए हिन्दी के प्रमुख दैनिक समाचार-पत्र समूह दैनिक जागरण ने पहल करके नई पीढ़ी के इन अंग्रेज़ी भाषी पाठकों के लिए हिन्दी के वाक्यों में अंग्रेज़ी के शब्दों का समावेश करके एक नई भाषा ’हिंगलिश’ (Hinglish) बनाई और एक नए समाचार-पत्र i-next का प्रकाशन शुरू किया जिससे दोनों वर्गाें के पाठकों को पढ़ने और समझने में कोई कठिनाई न हो।
हिंगलिश का यह अनूठा प्रयोग भले ही अंग्रेज़ी वर्ग के पाठकों के लिए सरलता से ग्राह्य हो किन्तु यह प्रवृत्ति राजभाषा हिन्दी के विकास में निश्चित रूप से बाधक है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ हिन्दी मेें ही अंग्रेज़ी शब्दों का समावेश करके एक नई भाषा हिंगलिश का निर्माण किया गया हो। अब तो अंग्रेज़ी भाषा के दैनिक समाचार-पत्रों भी हिन्दी शब्दों का प्रयोग बहुतायत से किया जाने लगा है। हिन्दी में तो सिर्फ़ कुछ अंग्रेज़ी शब्दों का ही उपयोग किया जाता है जिससे हिंगलिश बन जाती है, किन्तु अंग्रेज़ी में तो हिन्दी के सम्पूर्ण वाक्यों का उपयोग किया जाने लगा है...
निःसंदेह अंग्रेज़ी में हिन्दी शब्दों या वाक्यों के प्रयोग से अंग्रेज़ी भाषा का स्तर नीचे नहीं गिरता। हमारे देश के लिए तो यह परीक्षण ठीक है, वह भी हिन्दी भाषी प्रदेशों तक किन्तु भारत के उन प्रदेशों में अथवा विदेश में जहाँ पर सिर्फ़ अंग्रेज़ी बोली और समझी जाती है वहाँ के लोग अंग्रेज़ी के वाक्यों में हिन्दी शब्दों का समावेश देखकर बुरी तरह मुँह बनाने लगते हैं। इस बारे में अभी-अभी मुझे एक वाकया याद आया। एक बार मैंने आॅनलाइन गपशप (chat) करते हुए एक अन्तर्राष्ट्रीय गपशप संगोष्ठी (International Chat Forum) में क्लीन चिट् (clean chit) लिख दिया तो अंग्रेज़ चकरा गए। कुछ पूछने लगे कि ये क्लीन चिट क्या होता है? मैं सोच ही रहा था कि क्या उत्तर दिया जाए तो तभी एक अधिक पढ़े-लिखे विज्ञ अंग्रेज़ ने अनुमान के आधार पर उत्तर दे दिया- ’’मुझे तो ये क्लीन शीट लगता है। लगता है- एशिया में क्लीन शीट की जगह क्लीन चिट चलता है।’’

Last edited by Rajat Vynar; 10-09-2014 at 01:02 PM.
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Old 13-09-2014, 11:17 AM   #5
Rajat Vynar
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Talking Re: विचार (thought) की भाषा

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Originally Posted by lavanya View Post
चाहे हम कितनी भी भाषाओं के ज्ञाता क्यों न हों , परन्तु जब भी व्यक्ति क्रोध में होता है , भावुक होता है ( अर्थात रो रहा होता है या अपनी भावनाएं ह्रदय से व्यक्त कर रहा होता है ) , और जब मन में विचार कर रहा होता है तो वह अपनी मातृ भाषा का ही प्रयोग करता है या वह भाषा जो व्यक्ति आम बोल-चाल में प्रयोग करता है।

जैसे आजकल लोग हिंगलिश में ही स्वाभाविक रूप से बातें करते हैं , तो मन में विचार भी उसी भाषा में करते हैं। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही है , मेरे मन में विचार हिंगलिश में ही आते हैं।

जैसे - oh wow कितना interesting post है , मैं इसको reply ज़रूर करुँगी .


स सूत्र पर मैं लावण्या जी के विचारों से पूर्णरूपेण सहमत हूँ, किन्तु कुछ संशोधन के साथ. मेरे व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार-
प्रायः हम उसी भाषा में विचार अथवा चिन्तन करते हैं जिस भाषा को हम तत्कालीन परिवेश के अनुरूप प्रचुरतापूर्वक बोल रहे होते हैं. इसके लिए यह आवश्यक है कि दोनों, तीनों या सभी भाषाओँ पर आपकी पकड़ एक समान हो. यदि किसी भाषा पर आपकी पकड़ ज़रा भी कम हुई तो आपका मस्तिष्क तुरन्त दूसरी भाषा में चिन्तन करने लगेगा. मातृभाषा का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है.
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Old 13-09-2014, 11:18 AM   #6
Rajat Vynar
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Talking Re: विचार (thought) की भाषा

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Originally Posted by soni pushpa View Post
धन्यवाद रजत जी ... अच्छा विषय चुना है आपने .. मेरा मानना है की चिंतन किसी भाषा में नही अपितु , चिंतन हिर्दय से और मस्तिष्क से होता है. भाषा तो सिर्फ बोली जाती है, लिखी जा सके उसे भी हम हिंदी में लिपि कहते हैं न जैसे की देवनागरी लिपि को ही ले लीजिये . हाँ उन शब्दों में जो भाव डाले जाते हैं वो हमरे ह्रदय से निकले उद्गार होते हैं , जसके माध्यम से हम लिख सकते है शब्दों के द्वारा ....
सोनी पुष्पा जी, यह सत्य है कि चिन्तन हृदय और मस्तिष्क से होता है किन्तु यह चिन्तन शून्य भाषा में नहीं होता. वस्तुतः हम किसी न किसी भाषा में ही चिन्तन करते हैं. यह सत्य है कि चिन्तन मस्तिष्क से ही हो सकता है, हृदय से नहीं. जहाँ पर हम हृदय की बात करते हैं तो उसका तात्पर्य भावना अर्थात emotion से होता है. संक्षेप में, भावनात्मक चिन्तन की प्रक्रिया को हृदय के साथ जोड़ दिया जाता है. जैसे- हार्दिक बधाई.

Last edited by Rajat Vynar; 13-09-2014 at 11:28 AM.
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Old 17-09-2014, 04:48 PM   #7
Pavitra
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Default Re: विचार (thought) की भाषा

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Originally Posted by rajat vynar View Post
स सूत्र पर मैं लावण्या जी के विचारों से पूर्णरूपेण सहमत हूँ, किन्तु कुछ संशोधन के साथ. मेरे व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार-
प्रायः हम उसी भाषा में विचार अथवा चिन्तन करते हैं जिस भाषा को हम तत्कालीन परिवेश के अनुरूप प्रचुरतापूर्वक बोल रहे होते हैं. इसके लिए यह आवश्यक है कि दोनों, तीनों या सभी भाषाओँ पर आपकी पकड़ एक समान हो. यदि किसी भाषा पर आपकी पकड़ ज़रा भी कम हुई तो आपका मस्तिष्क तुरन्त दूसरी भाषा में चिन्तन करने लगेगा. मातृभाषा का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है.


मैं आपसे सहमत हूँ। मैंने भी यही कहा कि या तो मातृभाषा का प्रयोग करता है व्यक्ति या उस भाषा का जो वह आम बोलचाल में प्रयोग करता है।

और आपकी यह बात भी 100% सही है कि व्यक्ति की सभी भाषाओँ पर सामान पकड़ होनी चाहिए वरना व्यक्ति दूसरी भाषाओँ से शब्द उधर लेना प्रारम्भ कर देता है।
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