07-11-2019, 11:37 AM | #1 |
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ग़ज़ल- रोटी और मकान नहीं है
□■□■□■□■□■□ रोटी और मकान नहीं है जीवन यह आसान नहीं है खुद की बदहाली पर सोचो रोता कौन किसान नहीं है फुटपाथों पर सोने वाला बोलो क्या इंसान नहीं है? रोजी-रोटी ढूँढ रहा जो वह कोई नादान नहीं है चूल्हे में है आग भले पर चावल और पिसान नहीं है हाय कुपोषित बच्चों में तो लगती जैसे जान नहीं है भीख माँगते बच्चों पर भी सरकारों का ध्यान नहीं है जो बैठा "आकाश" शिखर पर वह कोई भगवान नहीं है ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी दिनांक- 06/11/2019 ■□■□■□■□■□■□■ वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मोबाईल- 9919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 07-11-2019 at 11:43 AM. |
15-11-2019, 05:40 PM | #2 |
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Re: ग़ज़ल- रोटी और मकान नहीं है
Bahut sundar v uddeshyapoorn kavita.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
20-11-2019, 09:08 AM | #3 |
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Re: ग़ज़ल- रोटी और मकान नहीं है
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