01-04-2013, 06:39 PM | #1 |
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आधुनिक गीता
साभार: मूलनिर्माता का तो पता नहीं, अगर किसी को मालूम हो तो जरुर बताएं ताकि बंधु को उसका “साभार” दे पाऊं. कृपया ध्यान दें कि सूत्र में निहित सामग्री एवं सूत्र के शीर्षक से इस पवित्र ग्रन्थ के महात्म्य को बिंदुमात्र भी घटाने का प्रयत्न नहीं किया जा रहा है। बल्कि गीता-सार के अर्थ को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में रख कर प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया गया है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
01-04-2013, 06:43 PM | #2 |
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Re: आधुनिक गीता
हे कर्मचारी ! इन्क्रीमेंट अच्छा नहीं हुआ, बुरा हुआ ..... इंसेंटिव नहीं मिला ये भी बुरा हुआ .......... वेतन में कटौती हो रही है, बुरा हो रहा है ....... तुम पिछले इंसेंटिव ना मिलने का पश्चाताप ना करो, तुम अगले इंसेंटिव की चिंता भी मत करो, बस तुम अपने वेतन में संतुष्ट रहो .....
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01-04-2013, 06:47 PM | #3 |
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Re: आधुनिक गीता
तुम्हारी जेब से क्या गया, जो रोते हो ...... जो आया था सब से आया था ......... जब तुम नहीं थे तब भी ये कंपनी चल रही थी ..... जब तुम नहीं होगे तब भी चल रही होगी .... तुम कुछ भी लेकर यहाँ नहीं आये थे ... जो अनुभव मिला यहीं मिला .. जो भी काम किया वो कंपनी के लिए किया , डिग्री लेकर आये थे, अनुभव लेकर जाओगे ...
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01-04-2013, 06:52 PM | #4 |
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Re: आधुनिक गीता
जो कम्यूटर आज तुम्हारा है ...
वह कल किसी और का था ... कल किसी और का और परसों किसी और का होगा ...... तुम इसे अपना समझ कर क्यों मगन हो .. क्यों खुश हो ... यही खुशी तुम्हारी समस्त परेशानियों का मूल कारण है ... क्यों तुम व्यर्थ चिंता करते हो ..किस से और क्यों डरते हो ... तुम्हे कोई नहीं निकाल सकता है ....
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01-04-2013, 06:57 PM | #5 |
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Re: आधुनिक गीता
सतत "नियम-परिवर्तन" कंपनियों का नियम है ... जिसे तुम "नियम-परिवर्तन" कहते हो, वही तो चाल है ... एक पल में तुम बेस्ट परफार्मर और हीरो नं वन अथवा सुपर स्टार हो .. किन्तु दूसरे ही पल तुम वर्स्ट परफार्मर बन जाते हो और अपना टार्गेट नहीं एचीव कर पाते हो ...
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01-04-2013, 06:59 PM | #6 |
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Re: आधुनिक गीता
एप्रेजल, इंसेंटिव आदि को अपने मन से हटा दो ...
अपने विचारों से मिटा दो इन सब को ... फिर कम्पनी तुम्हारी है और तुम कम्पनी के ... ना तो ये इन्क्रीमेंट आदि तुम्हारे लिए हैं .. और ना ही तुम इनके लिए हो ....
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01-04-2013, 07:04 PM | #7 |
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Re: आधुनिक गीता
परन्तु तुम्हारा जाब सुरक्षित है ...
फिर तुम परेशान क्यों होते हो ... तुम पाने आपको कम्पनी को अर्पित कर दो ... मत करो इन्क्रीमेंट की चिंता ... बस मन लगाकर अपना कर्म किये जाओ ... यही सबसे बड़ा गोल्डन रूल है .. जो इस रूल को जानता है और जो इसको फालो करता है ... वही तो वास्तव में सुखी है .... क्योंकि वह इन रिव्यू, इंसेंटिव, एप्रेजल, रिटायरमेंट आदि के बंधनों से सदा के लिए मुक्त हो जाता है ... तो तुम भी मुक्त होने का प्रयास करो और खुश रहो ......
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