04-04-2015, 11:06 PM | #321 |
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Re: इधर-उधर से
दूसरी घटना आजकल चर्चा में है. केन्द्रीय सरकार में मानव संसाधन मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी अपने पति के साथ गोवा के दौरे पर थीं. वहाँ वे "fabindia" के एक शोरूम में खरीदारी करने पहुंची थीं. उन्होंने वहाँ देखा कि ट्रायल रूप के एकदम बाहर एक cctv कैमरा लगा था. कैमरे की दिशा या उसका मुँह ट्रायल रूम के अंदर की ओर था. cctv कैमरों की तस्वीरें मेनेजर के केबिन में लगे मॉनिटर पर दिखाई देती हैं. इसे देखते ही उन्होंने गोवा के एक एम एल ए को इस बारे में सूचित किया. तुरंत पुलिस कार्यवाही हुई और इस बात के लिए ज़िम्मेदार व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया. आज समाचार आया है कि कोल्हापुर स्थित फैबइंडिया के ही एक अन्य शोरूम में भी इसी प्रकार कर कैमरा पकड़ा गया है. इन घटनाओं से एक सप्ताह पहले west end के दिल्ली स्थित एक शो रूम में पकड़ धकड़ हो चुकी है जिसकी पुलिस तफ्तीश कर चुकी है. यह घटनाएं उन यौन उत्पीड़न की घटनाओं से अलग हैं जो आये दिन अखबारों में छाई रहती हैं (पीड़िता किसी भी जाति, धर्म, उम्र, तबके या पृष्ठभूमि से हो सकती हैं). इन ताजा घटनाओं द्वारा भी पुरुषों की विकृत मानसिकता नज़र आती है. इस प्रकार की मानसिकता वाले व्यक्ति कल को महिलाओं के प्रति कुछ भी रूख अख्तियार कर सकते हैं. ऐसे लोगों से भी अत्यधिक सावधान रहने की जरुरत है.
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24-05-2015, 12:13 PM | #322 |
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Re: इधर-उधर से
कितनी महँगी शादी?
आजकल शादी-ब्याह का खर्च इतना बढ़ गया है कि सोच सोच कर हैरानी होती है. कुछ तो महंगाई इतनी हो गयी है और कुछ समाज में देखा-देखी दिखावा भी बढ़ गया है. हर आदमी अपने बूते से बाहर जा कर अपने बच्चों (खास तौर पर लड़कियों) की शादी पर खर्च करना चाहता है, चाहे मजबूरी में ही सही. इसका सबसे ज्यादा असर उन माता-पिता पर पड़ता है जो अधिक साधन-संपन्न नहीं हैं. पिछले दिनों हमारी रिश्तेदारी में ही एक शादी तय हुयी थी. लड़की के पिता नहीं थे. उसकी माँ तथा वह स्वयं नौकरी करते थे और परिवार का खर्च चलाते थे. दोनों पक्षों ने अपने अपने तरीके से शादी की तैयारियाँ शुरू कर दी. पहले लड़के वालों ने लड़की को लहंगा पसंद करने और नापजोख के लिए एक शोरूम में बुलवाया गया, ताकि समय रहते यह तैयार हो जाये. कुछ दिनों बाद लड़के की माँ ने लड़की की माँ को फोन किया. बातचीत में उसने पूछ लिया कि क्या आपने भी (शादी से जुड़े एक अन्य फंक्शन के लिए) लड़की का लहंगा खरीद लिया है? इस पर वह बेचारी बोल उठी, “बहनजी, हम लहंगा नहीं खरीद रहे, बल्कि लहंगा किराए पर ही ले लेंगे. एक दिन के लिए इतना खर्च हम नहीं कर सकते. इस पर लड़के की माँ ने ऐतराज़ करते हुए कहा कि हम नहीं चाहते कि हमारी बहु ऐसा लहंगा पहने जो अन्य लड़कियों द्वारा भी पहले पहना जा चुका हो. इसके अतिरिक्त एक दो मसलों पर और विवाद उठ खड़ा हुआ. बस फिर क्या था? बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ी कि सम्हल न सकी. अन्ततः कुछ दिन बाद वह रिश्ता ही टूट गया.
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18-06-2015, 09:44 PM | #323 |
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Re: इधर-उधर से
फलों का राजा आम
आजकल आम का सीज़न अपने शबाब पर है. सोचा कि क्यों न इस बार आम के विषय में चर्चा की जाये. तो शुरू करें. बचपन से ले कर 64 वर्ष की आयु तक मेरा वजूद एक आम आदमी का रहा है. आर्थिक-सामाजिक दृष्टि से देखा जाये तो भी मैं एक मिडिल क्लास आम आदमी हूँ और आमों की दृष्टि से देखा जाये तो भी मेरी पहचान एक आम आदमी की ही रही है. जो व्यक्ति अधिक शराब पीता है उसके बारे में अक्सर कहा जाता है कि इसकी नसों में रक्त की जगह शराब दौड़ रही है. इसी प्रकार पिछले साठ वर्षों में मैंने इतने आम खाए हैं कि मैं कह सकता हूँ कि मेरी नसों में आम बह रहा है. वैसे देखा जाये तो आम तौर पर हर भारतवासी आमों पर जान छिड़कता है. और क्यों न हो? आम आदमियों की तरह आम भी देश के हर भाग में उगाया जाता है और यदि उगाया नहीं जाता तो पाया, खरीदा, बेचा और खाया जरुर जाता है. मेरे कहने का आशय यह है कि हर व्यक्ति स्वादानुसार अथवा अपनी हैसियत के अनुसार सब्जी मंडी, फ्रूट मंडी, रेहड़ी या फर्शिया दुकानों से अपनी पसंद का आम खरीद कर खा सकता है.
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18-06-2015, 09:50 PM | #324 |
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Re: इधर-उधर से
फलों का राजा आम
^ मित्रो, आम को फलों का राजा कहा जाता है. आख़िर ऐसी क्या खास बात है आम नाम के फल में? एक मजदूर से ले कर राजा तक आम खाने का शौक़ीन है. पुराने समय से आज तक यह स्थिति बरकरार है. इसके पीछे है रसीले आमों की सैंकड़ों नस्लें जो भारत के विभिन्न भागों में मार्च के अंत से जुलाई के अंत तक भरपूर उपलब्ध होती हैं. पके आमों चाकू से काट कर या वैसे ही खाने के अलावा इसके आकर्षण का एक पहलू और भी है. वह यह कि आम का इस्तेमाल अनेकानेक तरीके से होता है. हर रूप में इसका स्वाद बेहतरीन होता है. इनमे मेंगो शेक, मेंगो लस्सी, मेंगो स्क्वाश, मेंगो ड्रिंक (जिनमे फ्रूटी आदि शामिल हैं), आम पापड़, कच्चे आम का पणा, कच्चे आम की सब्जी, अमचूर, चटनी, मुरब्बा और दर्जनों तरह का अचार शामिल हैं.
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18-06-2015, 10:01 PM | #325 |
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Re: इधर-उधर से
फलों का राजा आम
मिर्ज़ा ग़ालिब और आमों की नस्लें ग़ालिब आम के बहुत शौक़ीन थे. वे अपने मित्रों और परिचितों को लिखे पत्रों में भी आमों की नस्लों का ज़िक्र किया करते थे. ग़ालिब के ऐसे 63 पत्र मिले हैं जिनमे उन्होंने आमों और उनकी नस्लों का ज़िक्र किया है. आम की इन नस्लों में मालदा, फ़ज़ली, ज़र्द आलू, जहांगीर, दसहरी, रहमत-ए- ख़ास, सरौली, मालघोबा, अज़ीज़ पसंद, महमूद समर, सुलतान-उस-समर, रामकेला, बॉम्बे ग्रीन, रतोल, सफेदा, मलीहाबादी, दिलपसंद, हुसन आरा, नाज़ुक पसंद, किशन भोग, नीलम, खुदादाद, हेमलेट, तोतापुरी, निशाति, जाफ़रानी, सिंधूरी, खट्टा-मीठा, बारा मासी, लंडा, अल्फ़ान्सो, फजरी समर बहिश्त, गुलाब बक्श, बिशप ज़ेविअर, रूमानी और बादामी. ग़ालिब ने इन सभी प्रकार के आमों का रसास्वादन किया था. देखा जाये तो आम के प्रति उनका मोह शराब और शायरी से भी कहीं बढ़ कर था. और जून व जुलाई के महीनों में जब कि आमों की आमद होती थी तब मिर्ज़ा दीवानगी की हद तक उन्हें पाने और खाने के लिए उतावले रहते थे. आमों के प्रति मिर्ज़ा ग़ालिब की चाहत के कई किस्से मशहूर हुए.
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18-06-2015, 10:03 PM | #326 |
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Re: इधर-उधर से
फलों का राजा आम
मिर्ज़ा ग़ालिब और आम एक रोज़ बादशाह चन्द मुसाहिबों के साथ आम के बाग 'हयात बख्श' में टहल रहे थे. साथ में गालिब भी थे. आम के पेडों पर तरह-तरह के रंग-बिरंगे आम लदे हुए थे. यहां का आम बादशाह और बेग़मात के सिवाय किसी को मयस्सर नहीं हो सकता था. गालिब बार बार आमोँ की तरफ गौर से देखते जाते थे. बादशाह ने पूछा, 'गालिब इस क़दर गौर से क्या देखते हो'. गालिब ने हाथ बाँध कर अर्ज़ किया, 'पीरोमुरशद, देखता हूं कि किसी आम पर मेरा या मेरे घर वालों का नाम भी लिखा है या नहीं?’ बादशाह मुस्कुराये और उसी रोज़ एक टोकरा आम गालिब के घर भिजवा दिया। **
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18-06-2015, 10:57 PM | #327 | |||
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Re: इधर-उधर से
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आम के बारे में एसे लेख पढने को मिलना आम बात नहीं है! बहुत ही रोचक और मीठी प्रस्तुति। आम की ईतनी सारी प्रजातियों के बारे में जान कर अचरज हुआ। शायद ईन्ही प्रजाति के देसी नाम भी होंगे।
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30-07-2015, 02:29 PM | #328 |
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Re: इधर-उधर से
नई हवा के नए दोहे
(इन्टरनेट से) नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात; बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात; पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज; कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज; मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश; बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश; बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान; पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान; पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग; मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग; फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर; पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर; पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप; बाहर बांटे पूरियाँ, घर में भूखा बाप।
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30-07-2015, 09:47 PM | #329 |
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Re: इधर-उधर से
नज़्म
अफज़ल अहमद सैयद बाज़ लोगों को खुदा विरसे में मिलता है बाज़ को तोहफे में बाज़ अपनी मेहनत से उसे हासिल कर लेते हैं बाज़ चुरा लाते हैं बाज़ फ़र्ज़ कर लेते हैं मैंने खुदा किश्तों में खरीदा था किश्तों में खरीदे हुए खुदा उस वक़्त तक दुआएं पूरी नहीं करते जब तक सारी किश्तें अदा न हो जायें
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14-08-2015, 05:26 PM | #330 |
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Re: इधर-उधर से
भारत पाक युद्ध का एक प्रेरक प्रसंग
------------------------------ सन 1965 में फिलौरा में भारत-पाक युद्ध चल रहा था. लोहे के भीमकाय दैत्य जैसे टैंक आपस में टकरा रहे थे. इसी युद्ध में मेजर भास्कर राय और मेजर भूपिंदर सिंह ने मरणोपरांत महावीर चक्र जीते थे. मेजर भूपिंदर सिंह की यूनिट ने पाकिस्तानियों के 21 टैंक तबाह कर दिए थे. इसी युद्ध में इसी रिसाले के रिसालदार मेजर अय्यूब खां ने भी एक पाकिस्तानी शेफ़ी टैंक को अपना निशाना बनाया था. टैंक को तबाह करते ही रिसालदार मेजर अय्यूब खां अपने कमांडर के पास पहुंचे और सेल्यूट करके बोले, “सर, रिसालदार मेजर अय्यूब खां ने फील्ड मार्शल अय्यूब खां (उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति) का एक टैंक तबाह कर डाला है.” भारत के रिसालदार मेजर अय्यूब खां को तुरंत ही वीर चक्र से अलंकृत करने की घोषणा करवा दी गई.
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