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Old 22-09-2013, 06:56 PM   #1
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Default लम्बी कहानी/ रक्तबीज

लम्बी कहानी/ रक्तबीज
साभार: साहित्य कुञ्ज
लेखक: महेश चन्द्र द्विवेदी


मैं, हरिहरनाथ कपूर (छद्मनाम), एयर इंडिया की फ्लाइट पर असहज भाव से बैठा कादम्बिनीपत्रिका में रक्तबीजशीर्षक से लिखा लेख पढ़ रहा था। यह पत्रिका मैंने सामने की सीट के पीछे लगे झोले में से निकाली थी और यूँ ही इसके पन्ने उलटने लगा था। शीर्षक में नवीनता लगी अत: मैंने पूरा लेख पढ़ डाला। लेख श्री मार्कंडेयपुराण के आठवें अध्याय में देवी माहात्म्य के अंतर्गत रक्तबीज-वधनामक वर्णन पर आधारित था :-

"मातृगणों से पीड़ित दैत्यों को युद्ध से भागते देख रक्तबीज नामक महादैत्य क्रोध में भरकर युद्ध के लिये आया। उसके शरीर से जब रक्त की बूँद पृथ्वी पर गिरती, तब उसी के समान शक्तिशाली एक दूसरा महादैत्य पृथ्वी पर पैदा हो जाता। महासुर रक्तबीज हाथ में गदा लेकर इन्द्रशक्ति के साथ युद्ध करने लगा। तब ऐन्द्री ने अपने बज्र से रक्तबीज को मारा। बज्र से घायल होने पर उसके शरीर से बहुत सा रक्त चूने लगा। उसके शरीर से रक्त की जितनी बूँदें गिरी, उतने ही पुरुष उत्पन्न हो गये। वे सब रक्तबीज के समान ही वीर्यवान, बलवान और पराक्रमी थे। इस प्रकार उस महादैत्य के रक्त से प्रकट हुए असुरों द्वारा सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया। इससे देवताओं को उदास देख चण्डिका ने काली से कहा, "चामुण्डे। तुम अपना मुख और भी फैलाओ तथा मेरे शस्त्रपात से गिरने वाले रक्त बिन्दुओं को खा जाओ। यों कहकर चण्डिका देवी ने शूल से रक्तबीज को मारा और ज्यों ही उसका रक्त गिरा त्यों ही चामुण्डा ने उसे अपने मुख में ले लिया। इस प्रकार शस्त्रों से आहत एवं रक्तहीन होकर रक्तबीज पृथ्वी पर गिर पड़ा।"

मेरे जैसे आधुनिक विचारों वाले वैज्ञानिक को लेख कल्पना की उड़ान-मात्र लगा और उसके समाप्त होते-होते मेरा ध्यान पुन: अपने वर्तमान पर खिंच गया। उस समय मुझे लग रहा था कि यह संसार सुख का अथाह सागर है जिसमें अपनी इच्छानुसार तैरने को मुझे छोड़ दिया गया है। दो माह पहले ही मैं इंडियन इंस्टीच्यूट आफ टेक्नोलोजी से कम्प्यूटर में एम.टेक. करने के उपरान्त माइक्रोसौफ्ट लिमिटेड कम्पनी (छद्मनाम) के द्वारा चुना गया था और मुझे न्यूयार्क स्थित कार्यालय में 16 जुलाई, 1993 से नियुक्ति का आदेश दिया गया था। यह कम्पनी मेरे साथ के सभी अभ्यर्थियों के लिये ड्रीम-कम्पनीथी और केवल मैं अकेला ही चुनाव में सफल हुआ था। मेरे उच्चस्तर के साक्षात्कार के अलावा मेरा आई.आई.टी. का गोल्ड-मेडलिस्टहोना भी मेरे चुने जाने में सहायक था। मेरी फ्लाइट दिल्ली से लंदन को जा रही थी। मेरे हवाई जहाज पर यात्रा करने और विदेश जाने दोनों का यह प्रथम अवसर होने के कारण प्रत्येक दृश्य अथवा घटना के प्रति मेरी इंद्रियाँ उसी प्रकार सचेत थीं जैसे एक शिशु की इंद्रियाँ उसके जीवन में घटित होने वाली किसी नवीन घटना को आत्मसात करने को होती है। हवाई जहाज की खिड़की पर लगी सीढ़ियों पर चढ़ने पर जैसे ही मैंने आँख उठाई थी तो अप्सरा समान एक सुंदरी को नमस्ते की मुद्रा में मेरा स्वागत करते पाया था। मैं उसके नख-शिख, वेश-भूषा देखता ही रह गया था कि उस सुंदरता की मूiर्त के मुख से पुष्प सम झरते शब्द मेरे कानों को सुनाई दिये थे, मेरी नासिका में महकने लगे थे और मेरे नेत्रों को दिखाई दिये थे, "कृपया बोर्डिंग-पास दिखायें।" मेरा सीट नम्बर देखकर उसने मुझे मेरी सीट इंगित कर दी थी और मैं भौंचक्का सा वहाँ आकर बैठ गया था।

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Old 22-09-2013, 06:59 PM   #2
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उसी परिचारिका, जिसे मेरे मन ने अप्सरा नाम दे दिया था, के द्वारा आपात्कालीन स्थिति में आक्सीजन मास्क नाक पर लगाने, पैराशूट पहनने एवं आपात्-द्वार द्वारा बाहर निकलने की प्रक्रिया समझाने पर मेरा ध्यान उसके नख-शिख निरीक्षण तक सीमित रहा था; मैं उसके द्वारा बताई गई प्रक्रिया को कुछ भी न समझ सका था। हवाई जहाज के उड़ान भरने से पूर्व उसके इंजिन की चिंघाड़ जैसे-जैसे बढ़ी थी, मेरे हृदय की धड़कन उसके समताल पर बढ़ी थी, परन्तु वांछित ऊँचाई पर पहुँचने पर उसकी ताल व लय में बहुत कुछ समरसता आ गई थी और मैं पहले से अधिक सहज हो गया था। तब मैंने अनुभव किया कि मेरे से अगली पंक्ति में मेरी सीट से बाँयी ओर बैठे दो गोरे व्यक्ति मेरी ओर यदा-कदा चोर निगाहों से देखकर गुपचुप बातें करने लगते थे। उनकी इन निगाहों से अपना ध्यान हटाने के लिये ही मैंने कादम्बिनीउठा ली थी और रक्तबीजशीर्षक लेख पढ़ डाला था। तभी अप्सराएक ट्रे में टॉफीलेकर आ गई थी और मैंने सकुचाते हुए चार टॉफियाँ उठा ली थी। उनका रसा-स्वादन करते हुए मैंने फिर पाया कि वे दोनों व्यक्ति पाता नहीं क्यों मुझमें आवश्यकता से अधिक रुचि ले रहे हैं। उनकी यह हरकत मुझे पसंद नहीं आ रही थी परन्तु आपत्ति उठाने का न तो कोई स्पष्ट कारण उपलब्ध हो पा रहा था और न मेरा मूडथा। फिर भी मेरी शेष यात्रा के दौरान नवीन दृश्यों को देखने एवं यदा-कदा अप्सराके लुके-छिपे दर्शन का आनंद लेने में इन दो यात्रियों द्वारा बार-बार मुझे देखना बाधा डालता रहा था।
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Old 22-09-2013, 07:02 PM   #3
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Default Re: लम्बी कहानी/ रक्तबीज

हीथ्रो एयरपोर्ट पर वीसा एवं कस्टम्स अधिकारियों से छुट्टी पाकर जैसे ही मैं लाउंज में निकल रहा था कि वे दोनों व्यक्ति मेरे सामने आ गये और उनमें से एक अंग्रेजी में बोला कि हमारे साथ आइये। मैं यह सोचकर कि शायद कुछ बची हुई प्रक्रिया की पूर्ति हेतु मुझे बुलाया जा रहा होगा, मैं उनके पीछे चल दिया। एकांत में स्थित एक कमरे का ताला खोल कर वे मुझे अंदर ले गये और एक कुर्सी पर बैठने को कहा। उन्होंने मुझसे मेरा पास-पोर्ट लेकर उसका भली-भाँति अध्ययन किया और फिर मेरे विषय में मुझसे कई प्रश्न किये। उनके हाव-भाव से लग रहा था कि वे मेरी बात पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। फिर उन्होंने मेरे सामने मेज पर रखे कम्प्यूटर की कुछ कीज’ (बटन) को दबाया और उसके स्क्रीनका गहराई से अध्ययन करने लगे। उनमें से एक ने कहा "क्या मैं अपने द्वारा बताये परिचय के विषय में निश्चित हूँ?" मेरे हाँ कहने और माइक्रोसौफ्ट कम्पनी अथवा भारत में मेरे विषय में पूछताछ कर पुष्टि कर लेने को कहने पर उन्होंने कहा कि उनके पास पुष्टिकरण के लिये उससे अधिक आसान व विश्वसनीय साधन उपलब्ध हैं यदि मैं अपनी उँगलियों के निशान उन्हें देने में आपत्ति न करूँ। मैंने तुरन्त अपनी सहमति दे दी और उन्होंने मेरे फिंगर-प्रिंट्सलेकर कम्प्यूटर में फीडकर दिये। कुछ ही सेकंडों पश्चात् कम्प्यूटर पर जो लिखकर आया, उसे देखकर उनके मुख पर सफलता का भाव झलका और उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा, "यू आर अंडर अरेस्ट, बिल। (बिल! आपको बंदी बनाया जाता है)।"
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Old 22-09-2013, 07:03 PM   #4
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Default Re: लम्बी कहानी/ रक्तबीज

यह सुनकर मुझ पर तो जैसे वज्रपात हो गया, मेरी समस्त प्रसन्नता एवं जोश ग्रीष्म ऋतु की सूर्य की तीव्र-किरणों के सामने पड़ती ओस की बूँदों के समान भाप बनकर उड़ गये और मेरा गला सूखने लगा। फिर भी मैने साहस बटोर कर कहा, "मैं बिल नहीं हूँ और मैंने कोई अपराध भी नहीं किया है। आपको कोई भ्रम हुआ है।" इस पर उनमें से सीनियर सा दिखने वाला व्यक्ति बोला, "हम दोनों इंटरपोल से सम्बन्ध रखते हैं। मेरा नाम ऐल्बर्ट है। आपके नाम इंटरपोल का इंटरनेशनल वारंट है। आप बिल ही है जैसा कि आपको देखकर हमें शक था और जो आपके फिंगर-प्रिंट्*स के मिलान से साबित हो गया है।" मैंने उनसे अपने विषय में पुन: जानकारी करने का अनुरोध किया तो वे बोले, "मिस्टर बिल, आप पुलिस को पहले भी झाँसा दे चुके हैं। परन्तु इस बार आपकी पहचान के विषय में हमने अन्य जाँच की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। आप को आगे जो भी कहना है, कोर्ट में कहियेगा।" वे मुझे वहाँ से कोर्ट ले गये जहाँ पर कोर्ट ने मेरे से सम्बन्धित प्रपत्र देखने के बाद मुझे न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेज दिया।" पाँच दिन तक ठंडी जेल की यातना सहने के बाद मुझे बताया गया कि मेरी प्रभावशाली पत्नी फियोना ने मेरी जमानत तो करवा ली है परन्तु मेरे पूर्व आपराधिक रिकार्ड को देखते हुए फियोना को निर्देश दिया गया है कि मैं घर पर पूर्णत: नजरबंद रहूँगा और मुझे अपने वकील के अतिरिक्त किसी बाहरी व्यक्ति से किसी प्रकार का सम्पर्क करने की अनुमति नहीं होगी। इन आदेशों का पालन सुनिश्चित करने का पूर्ण उत्तरदायित्व फियोना पर होगा और अवज्ञा की दशा में उस पर एक अंतर्राष्ट्रीय जालसाज को फरार कराने में सहायता करने का आरोप लगाया जा सकता है। मेरे साथ पिछले पाँच दिन में घटी अनपेक्षित घटनाओं और जेल की यातनाओं ने मेरी संज्ञा को इतना कुंठित कर दिया था कि मैंने बिना कोई प्रतिवाद किये यह सूचना सुन ली।
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Old 22-09-2013, 09:06 PM   #5
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मैं जैसे ही जेल के भीमकाय फाटक के बाहर निकला, वैसे ही एक गोरी नवयौवना ने दौड़कर मुझे बाँहों में भर लिया और अश्रुसिक्त चुम्बनों की झड़ी लगा दी। बीच-बीच में उसके मुख से केवल ये शब्द निकलते थे "बिल, आई लव यू; परन्तु तुमने ऐसा क्यों किया?" मेरे लिये किसी नवयौवना द्वारा बाहों में भरा जाना प्रथम अनुभव था और सार्वजनिक स्थान पर इस प्रकार का चुम्बन-प्रहार कल्पनातीत अनुभव था और मैं प्रत्येक चुम्बन के साथ अपने को लज्जावश अधिक से अधिक संकुचित होता अनुभव कर रहा था। आवेश कुछ शांत होने पर वह नवयौवना, जिसे मैं समझ गया था कि वह फियोना ही है, मेरी बाँह में बाँह डालकर घसीटती हुई सी मुझे अपनी कार तक ले गई और बगल की सीट पर मुझे बिठाल कर वह स्वयं ड्राइवर-सीट पर बैठ गई और गाड़ी स्टार्ट कर दी। तब मैंने कहा, "मैं बिल नहीं हूँ। आप मुझे कहाँ ले जा रही हैं।"

उसने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, "बिल, इतने दिन जेल में रहने के बाद भी तुम्हारी मजाक करने की आदत गई नहीं है।"

मैंने फिर समझाने वाले अंदाज से उससे कहा, "मैं सही कह रहा हूँ कि मैं तो भारतवासी हरिहरनाथ कपूर हूँ तुम्हारा बिल नहीं।"

इस पर वह केवल मुस्करा दी और गाड़ी चलाती रही। फिर मुझे वह एक फार्म पर बने भव्य मकान पर ले गई। उसने दूर से ही कार के डैशबोर्ड पर एक बटन दबाया और गैराज का दरवाजा खुल गया और हमारी कार अंदर पहुँचने पर बटन दबाने पर बंद हो गया। गैराज में ही पीछे का दरवाजा अन्दर एक सुन्दर ड्राइंग-रूम में खुलता था। ड्राइंग-रूम में घुसते ही उसने मुझे फिर बाँहों में भर लिया और वह मेरे मुख पर दीर्घ चुम्बन देते हुए आवेशित हो रही थी, तभी मैंने कह दिया, "मैं सबसे पहले नहाना चाहता हूँ, जेल में नहाने हेतु गर्म पानी न मिलने के कारण मैं कभी ठीक से नहीं नहा पाया और बड़ा गंदा सा महसूस कर रहा हूँ। मुझे भूख भी बड़ी जोर से लग रही है।" यह सुनकर उसने मुझे छोड़ दिया और मेरे लिये कपड़े बाथरूम में रख दिये। फिर किचेन में खाना तैयार करने में जुट गई। मैं नहा-धोकर जब बाहर निकला तो मुझे देखकर वह बोली, "बिल! इन दिनों में तुम पहले से अधिक सुंदर लगने लगे हो। अब डाइनिंग रूम में बैठो, खाना लगभग तैयार है।"
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Old 22-09-2013, 09:07 PM   #6
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मैं उसके द्वारा फुर्ती से मेज पर खाना लगाना देखता रहा। फिर वह भी मेरी बगल की कुर्सी पर बैठ गई और बड़े दिन बाद मैंने भरपेट भोजन किया। तब तक सायंकालीन अंधकार घिरने लगा था। फियोना मुझे ड्राइंग-रूम में ले गई और टी.वी. खोलकर मेरे साथ सोफे पर बैठ गई और बोली, "बिल, तुमने यह सब क्यों किया? हमारे पास किस चीज की कमी है?" मैंने अब अपने विषय में उसे विश्वास दिलाने हेतु बात पुन: प्रारम्भ की, "फियोना, मैं बिल नहीं हूँ। सचमुच भारतवासी हूँ। मेरे पास भारतीय पास-पोर्ट भी था जिसे कचहरी के आदेश से जब्त कर लिया गया है। मैंने कोई अपराध नहीं किया है।"

इस पर वह तुनक कर बोली, "बिल! अब बकवास बंद करो। मैं अखबार में पढ़ चुकी हूँ कि तुमने कितनी बड़ी जालसाजी की है और तुम्हारे पास कितने देशों के पास-पोर्ट हैं। हाँ, इतना याद रखना कि तुम्हारी जमानत में कोर्ट ने शर्तें लगा दी हैं कि तुम पूर्णत: मेरी अभिरक्षा में रहोगे और किसी से कोई सम्पर्क नहीं करोगे। यदि टेलीफोन से भी वकील के अतिरिक्त किसी व्यक्ति से सम्पर्क करोगे, तो तुम्हारी जमानत तो रद्द हो ही जायेगी और तुम्हारे पलायन के प्रयत्न के षडयंत्र में मुझे भी सम्मिलित समझा जा सकता है।"
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Old 22-09-2013, 09:10 PM   #7
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मैंने फिर कोई बात करना व्यर्थ समझा। अपनी उस दशा में भी मुझे फियोना के प्रति कृतज्ञता का भाव जागा और साथ ही उसकी स्थिति पर तरस भी आया। कुछ देर टी.वी. देखने के बाद थकावट व तनाव के कारण मुझे नींद आने लगी और मैंने सोने की इच्छा प्रकट की। इस पर फियोना ने टी.वी. बन्द कर दिया और बेडरूम को चल दी। मैं उसके पीछे-पीछे चल दिया। बेडरूम पहुँच कर मैंने उससे गुड-नाइटकहा और अर्ध निद्रित सा पलंग पर लेट गया और अपनी पुरानी आदत के अनुसार बाँयी करवट लेकर रजाई से मुँह ढंक लिया। परन्तु कुछ ही देर पश्चात् फियोना मेरे पीछे आकर सटकर लेट गई। मुझे आभास हुआ कि वह वस्त्रविहीन है। मैंने फिर भी अपने को संयमित कर कहा, "फियोना, मेरा विश्वास करो मैं बिल नहीं हूँ।"


इसके उत्तर में बिना कुछ बोले उसने मेरे ऊपर से रजाई हटा दी और नाइट-लाइट में मेरी बाँह देखकर हँसते हुए बोली, "बिल, मैं तो समझती थी कि जेल में लोग दुबले हो जाते होंगे पर तुम्हारी बाँह तो पहले से मोटी हो गयी है।"


मैं इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करता कि अचानक कमरे का ताला बाहर से खुलने की आवाज आई। फियोना के मुँह से निकला, "कौन है?" और मैंने भी पीछे घूमकर देखने का उपक्रम किया। तभी कमरे का दरवाजा खुल गया और कमरा रोशनी से भर गया। दरवाजे पर एक व्यक्ति खड़ा था, जिसके मुख पर क्रोधाग्नि जल रही थी परन्तु मुझे देखकर वह एक अजीब से असमंजस में पड़ता हुआ दिखाई दिया। मैं भी उसे देखकर आश्चर्यचकित था- उसका चेहरा मेरे चेहरे से हू-बहू मिलता था और हम दोनों की आयु, रंग व शक्लों में लेश-मात्र का अंतर नहीं था। अब आश्चर्य से भौंचक सा अपने क्रोध को दबाते हुए उसने मुझे घूरते हुए पूछा "तुम कौन हो? "
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Old 22-09-2013, 09:16 PM   #8
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उस व्यक्ति द्वारा किसी भी क्षण हम दोनों पर आक्रमण कर देने के भय को ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी सम्पूर्ण स्थिति को स्पष्ट कर देने का यह उचित अवसर समझा और अपना परिचय देते हुए संक्षेप में आप-बीती सुनाई; यह भी बता दिया कि यद्यपि मैं बार-बार अपना सही परिचय दे रहा हूँ परन्तु फियोना भ्रमवश मुझे अपना पति समझ रही है परन्तु हम दोनों में कोई शारीरिक सम्बन्ध स्थापित नहीं हुआ है। मेरे शब्दों में निहित आत्म-विश्वास के कारण एवं मेरे शरीर पर वस्त्र पहने हुए होना देखकर उसे मेरी बातों पर विश्वास हो गया और उसके चेहरे पर एक स्मित-रेखा खिंच गई। तभी फियोना चुपचाप आँख नीची किये हुए लजाती अपने वस्त्र पहनने बाथरूम में घुस गई और वह व्यक्ति, जो स्पष्टत: बिल था, धीरे से आगे बढ़कर मेरे निकट बेड पर बैठ गया। उसने मेरे चेहरे को पुन: एकाग्रचित्त होकर देखा जैसे उसकी प्रत्येक रेखा का अध्ययन कर रहा हो, मेरे हाथों को छूकर देखा और मेरे पैर देखे। फिर भावावेश में मेरे गाल पर हल्का सा चुम्बन देते हुए कहा, "हम दोनों एक ही पिता के क्लोन्स (रक्तबीज) हैं।


मैं भौंचक्का सा उसकी ओर देख रहा था और वह बोले जा रहा था, "हमारे जनक प्रोफेसर फ्रेडरिक रोज़लिन बायो-टेक्नोलोजी इंस्टीच्यूट, एडिनबरा में जीन्स पर शोध कार्य किया करते थे। आज से तीस वर्ष पूर्व उन्होंने चार अन्फर्टिलाइज्ड फीमेल एग्*सेल (अगर्भित अंड) प्राप्त कर और उनमें उपलब्ध सभी डी.एन.ए. निकाल कर उनमें अपने शरीर के सेल के सभी डी.एन.ए. प्रस्थापित कर दिये थे। सहवास के उपरांत स्त्री एवं परुष के आधे-आधे डी.एन.ए. अंडे के अंदर मिलने से शरीर की रचना प्रारम्भ हो जाती है और इस प्रकार शरीर के प्रत्येक सेल में दोनों के डी.एन.ए. होते हैं। यदि किसी खाली अंडे में एक ही व्यक्ति के शरीर के सेल के सभी डी.एन.ए. स्थापित कर दिये जायें, तो उस व्यक्ति का प्रतिरूप तैयार होने लगता है।
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Old 22-09-2013, 09:17 PM   #9
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Default Re: लम्बी कहानी/ रक्तबीज

इस प्रकार प्रोफेसर फ्रेडरिक ने टेस्ट-ट्यूब्स में अपने ही चार क्लोन्स (रक्तबीजों) को जन्म दिया था। प्रोफेसर फ्रेडरिक यह कार्य पूर्णत: गुप्त रूप से कर रहे थे। चूँकि वह अपने इंस्टीच्यूट में अत्यंत सम्मानित वैज्ञानिक थे अत: उनकी इच्छानुसार उनकी प्रयोगशाला में उनके अतिरिक्त अन्य किसी का आना पूर्णत: वर्जित था। जब ये रक्तबीज पूर्णत: विकसित शिशु बन गये तो एक रात लैबोरेटरी का ताला तोड़ कर किसी ने तीन शिशुओं की चोरी कर ली। तब प्रोफेसर फ्रेडरिक ने अपनी सफलता की पूरी कहानी अपने साथियों को बताई, परन्तु उसी रात उनकी लाश संदेहपूर्ण परिस्थितियों में स्विमिंग-पूल में पाई गई। चूँकि लैबोरेटरी में केवल एक शिशु ही मिला था अत: उसे परखनली शिशु मानते हुए उनकी बात को केवल एक सनक समझा गया और किसी ने विश्वास नहीं किया और इंस्टीच्यूट की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए उनकी बात का कोई प्रचार भी नहीं होने दिया गया। मुझ य पूरी घटना मेरे पालनकर्ता इसी इंस्टीच्यूट के एक वैज्ञानिक ने बताई थी और मैं भी रक्तबीजों की रचना को कल्पना की उड़ान मात्र समझता था। परन्तु आज तुम्हें देखकर मुझे विश्वास हो गया है कि हो न हो तुम उन्हीं तीन रक्तबीजों में से एक हो।"


फियोना जो बाथरूम के दरवाजे से सटी यह सब आश्चर्य से सुन रही थी, रूठी हुई सी बोली, "तो तुमने मुझे यह पहले क्यों नहीं बताया था।" इस पर बिल ने कहा, "मैं स्वंय प्रोफेसर फ्रेडरिक की बात कपोलकल्पित समझ रहा था अत: तुम्हें क्या बताता? हाँ आज जब मैं स्वंय नहीं समझ पा रहा हूँ कि मैं मैं हूँ या यह मैं है तो प्रोफेसर द्वारा कही बात पर आश्वस्त हो रहा हूँ। तुम्हारे द्वारा इनको भ्रमवश मुझे मान लेने में तुम्हारा कोई दोष नहीं है।"
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Old 22-09-2013, 09:21 PM   #10
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Default Re: लम्बी कहानी/ रक्तबीज

फिर देर रात तक हम लोग बातें करते रहे। मुझे बिल के प्रति एक अनोखी एकानुभूति एवं मोह लग रहा था। मैंने अपनी जीवन गाथा संक्षेप में सुनाई और बताया कि मेरे मम्मी-पापा ने मुझे कभी नहीं बताया कि मैं उनके द्वारा जन्मी संतान नहीं हूँ, यद्यपि मेरे रंग को देखकर वहाँ सभी आश्चर्य करते हुए कहते थे कि ऐसा गोरा रंग भारतीय माता-पिता से पैदा होना अनोखी बात है। मेरे मम्मी-पापा के अन्य कोई सन्तान नहीं है। तब बिल ने बताया कि उसने लदंन स्कूल आफ इकोनोमिक्स से फाइनेन्शियल मैनेजमेंट में मास्टर की उपाधि प्राप्त की है और अब बैंक आफ इंग्लैंड की ट्रेजरी शाखा में कार्यरत है; उसका अपने कार्यक्षेत्र में बड़ा नाम है। वह एक सप्ताह पूर्व बैंक के काम से कान्टीनेंट गया हुआ था और लौटने पर अपने बेडरूम में मुझे पाया। उसने कोई जालसाजी अथवा अपराध नहीं किया है।

दूसरे दिन स्थानीय इंटरपोल कार्यालय का फोन मिलाकर बिल ने ऐल्बर्ट नामक उस अधिकारी से सम्पर्क स्थापित किया जिसने मुझे बंदी बनाया था। उसने ऐल्बर्ट को बताया कि उसके द्वारा एयरपोर्ट पर बंदी बनाया गया व्यक्ति बिल नहीं है परन्तु उससे जो व्यक्ति टेलीफोन पर बात कर रहा है वह बिल है, और उससे अनुरोध किया कि न्याय के हित में वह उस व्यक्ति का पक्ष एक बार पुन: सुन ले जिसे उसने बंदी बनाया था, परन्तु इसके लिये उसे इंटरपोल की कार में छिपाकर कार्यालय बुलाना होगा, नहीं तो मार्ग में स्थानीय पुलिस द्वारा बंदी बनाये जाने की शंका है। ऐल्बर्ट राजी हो गया और इंटरपोल की कार में छिपकर मैं व बिल ऐल्बर्ट के कार्यालय पहुँच गये। हम दोनों को साथ-साथ देखकर ऐल्बर्ट भौंचक्का रह गया।
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