22-10-2013, 12:45 AM | #1 |
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लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
लेखक: लिओ टॉलस्टॉय भाग एक मध्य गर्मियों का दिन था, मैं खेतों के रास्ते घर जा रहा था। खेतों में घास मौजूद थी और राई कटने के लिए तैयार थी। वर्ष के इन दिनों में खिले फूलों का चुनाव अद्भुत था। लाल-सफेद-गुलाबी, सुगन्धित और रोएँदार तिपतिया; दूध जैसे सफेद पर केन्द्र में चमकीले, पीले एवं मधु-कटु गन्ध वाले अक्षिपुष्प; मधुर सुगन्धि फैलाती पीली जंगली सरसों; लंबे, गुलाबी और सफेद धतूरे के घण्टाकार फूल; मोठ की चढ़ती बेलें; पीले, लाल और गुलाबी खुजलीमार पौधे; शान्त-गम्भीर बैंजनी कदली, जो नीचे पीली होने का सन्देह देती है और जिसमें से एक तीखी सुवास फूटती है; चमकीली नीली अनाज बूटियाँ जो सन्ध्या होने पर अरुणिम हो जाती हैं तथा बादामी गंध वाली कोमल वल्लरियाँ खिली हुई थीं। मैंने अलग-अलग फूलों के बड़े-बड़े गुच्छ तोड़ लिए थे और घर की ओर बढ़ रहा था। तभी मैंने खाई में उगा और पूरी तरह खिला बैंजनी गोखरू का एक शानदार पौधा देखा। इसे हम 'तातार' कहते हैं। यह कभी दराँती से काटा नहीं जाता और यदि कभी संयोग से कट भी जाए तो घसियारे अपने हाथों को इसके काँटों से बचाने के लिए इसे घास में बीन कर फेंक देते हैं। मैंने सोचा, मैं इस कँटीले फूल को उठा लूँ और इसे अपने फूलों के गुच्छे के बीच रख लूँ। बस, मैं खाई में उतर गया। एक झबरा-सा भौंरा तृप्त होकर फूल के बीच गहरी नींद में सोया पड़ा था। पहले मैंने उसे वहाँ से भगाया। अब मैंने फूल तोड़ने का प्रयत्न किया। लेकिन यह दुष्कर सिद्ध हुआ, क्योंकि डंठल काँटों से भरा हुआ था। मैंने अपने हाथ पर रूमाल लपेट लिया था, लेकिन वे रूमाल को बेध गए। डंठल भयंकर रूप से इतना मजबूत था कि मैं पाँच मिनट तक उससे जूझता रहा और उसके रेशों को एक-एक करके तोड़ता रहा। |
22-10-2013, 12:46 AM | #2 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
अंतत: जब मैं फूल तोड़ने में सफल हुआ, तब डण्ठल फूटकर छितर चुका था। यह फूल भी उतना ताजा और सुन्दर प्रतीत नहीं हुआ। उसका रुक्ष स्थूल स्वरूप गुच्छे के दूसरे फूलों से मेल नहीं खा रहा था। मुझे पश्चात्ताप हुआ कि मैंने एक फूल को खराब कर दिया, जो अपनी जगह खिला हुआ ही सुन्दर था। मैंने उसे फेंक दिया। 'कितनीऊर्जा और जीवन-शक्ति!' अपने उस प्रयास को याद करते हुए मैंने सोचा, जो मैंने उसे तोड़ने में किया था। 'कैसी घोर निराशा के साथ उसने अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष किया और फिर कैसे प्यार के साथ स्वयं को समर्पित कर दिया था।'
मेरे घर का रास्ता ताजा जुते और परती पड़े खेतों के बीच से होकर धूल भरी काली धरती पर से ऊपर की ओर जाता था। जुती हुई जमीन एक बहुत विस्तृत धर्मशुल्क भूमि थी और इसके दोनों ओर और सामने जहाँ तक नजर जाती थी, बस हल से बने सीधे खाँचे, जिन पर अभी हेंगा नहीं चलाया गया था, ही दीख पड़ते थे। खेतों को भलीभाँति जोता गया था, जिससे एक भी पौधा या घास की कोई पत्ती ऊपर निकली दीख नहीं रही थी। केवल काली जमीन ही सामने थी। 'मानव कितना विध्वसंक प्राणी है! अपने जीवन निर्वाह के लिए वह किस प्रकार प्राकृतिक जीवन को ही नष्ट कर डालता है,' उस जड़ काली धरती पर किसी सचेतन जीव को अनजाने ही खोजते हुए मैंने सोचा। तभी सामने मार्ग के दाहिनी ओर एक गुच्छा-सा कुछ मुझे दीख पड़ा। जब मैं निकट गया तो मैंने देखा कि यह भटकटैया (तातार) का एक गुच्छा था। |
22-10-2013, 12:48 AM | #3 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
इस 'तातार' की तीन शाखाएँ थीं। एक टूट कर नीचे पड़ी हुई थी। इसका बचा हुआ भाग, कटी बाँह के टुकड़े की भाँति पौधे से चिपका हुआ था। शेष दो में से प्रत्येक में एक फूल था। वे फूल कभी लाल रहे होंगे लेकिन अब काले पड़ चुके थे। एक डंठल टूटा हुआ था। इसका ऊपर का आधा भाग अपने अंतिम छोर पर एक बदरंग फूल को लिए लटक रहा था। लेकिन इसका दूसरा हिस्सा ऊपर की ओर सीधा तना हुआ था। पूरा पौधा हल के पहिए के द्वारा कुचला जाकर विखंडित हो न वह तब भी खड़ा हुआ था, जबकि उसके शरीर का एक भाग विनष्ट हो चुका था, उसकी अँतड़ियाँ निकल आई थीं, उसका एक हाथ और एक आँख समाप्त हो चुके थे, फिर भी वह उद्धत खड़ा दिख रहा था, इसके बावजूद कि मनुष्य ने उसके आस-पास के सहोदरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। 'कितनी ऊर्जा,' मैंने सोचा, 'मनुष्य ने सब कुछ जीतने में, घास की लाखों पत्तियों को नष्ट करने में खर्च की होगी, फिर भी यह अपराजित-सा खडा़ है।'
तभी मुझे काकेशस की एक पुरानी कहानी याद आ गई, जिसके कुछ हिस्से को मैंने स्वयं देखा, कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से सुना और शेष को मैंने अपनी कल्पना से पूरा किया। वही कहानी, जिस रूप में मेरी स्मृति और कल्पना में साकार हुई, यहाँ प्रस्तुत है। |
22-10-2013, 12:49 AM | #4 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
-1-
1851 के नवम्बर की एक ठण्डी शाम। रूसी सीमा से लगभग पन्द्रह मील दूर चेचेन्या के एक लड़ाकू गांव मचकट में जलते हुए उपलों का तीखा धुआं उठ रहा था, जब हाजी मुराद ने वहॉं प्रवेश किया। अजान देनेवाले मुअज्जिनों का उच्च तीखा स्वर अभी-अभी रुका था और जलते उपलों की गंध से भरी शुद्ध पहाड़ी हवा में नीचे झरने के पास इकट्ठे, बहस करते पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों की कंठ ध्वनियॉं सुनाई दे रही थीं। ये ध्वनियॉं बाड़ों में बन्द किए जा रहे पशुओं और भेड़ों के रंभाने और मिमियाने से ऊपर उठी सुनी जा सकती थीं। पशु और भेड़ें बाड़ों में वैसे ही ठूंसी जा रही थीं जैसे मधुमक्खी के छत्ते में मधुमक्खियॉं। हाजी मुराद शमील का एक लेफ्टीनेण्ट था जो रूसियों के विरुद्ध शौर्यपूर्ण कार्यों के लिए विख्यात था। वह उसे घेर कर चलते दर्जनों मुरीदों-अनुयाइयों या शिष्यों के साथ, अपने निजी ध्वज के नीचे ही युद्धों में भाग लिया करता था। वह सिर पर टोपी पहने हुए था और उसने लबादा ओढ़ रख था। उसकी राइफल की नाल बाहर निकली दीख रही थी। अपने एक मुरीद के साथ, सड़क पर मिले ग्रामीणों के चेहरों पर अपनी सतर्क काली, तेज आँखों से एक सरसरी दृष्टि डालता हुआ और अपनी ओर उनका ध्यान कम से कम आकर्षित करने का प्रयास करता हुआ वह आ रहा था। हाजी मुराद जब गॉंव के बीच में पहुंचा, तो चौराहे तक जाने वाली सड़क के बजाय वह बांयीं ओर संकरी गली में मुड़ गया। गली में वह दूसरे मकान के सामने पहुंचा, जो पहाड़ी के नीचे दबा-सा दीखता था। यहॉं वह रुका और उसने चारों ओर देखा। उस मकान के आगे सायबान के नीचे कोई नहीं था, लेकिन छत पर नया पलस्तर की गई मिट्टी की चिमनी के पीछे फर का कोट पहने एक आदमी खड़ा था। हाजी मुराद ने चाबुक फटकार कर और जीभ से ट्क-ट्क की आवाज कर उसका ध्यान आकर्षित किया। रात की टोपी और फर के कोट से झिलमिलाता हुआ दिखाई देता एक पुराना वस्त्र पहने वह एक वृद्ध व्यक्ति था। उसकी धुंधली आँखों पर बरौनियाँ नहीं थीं और पलकों को खोलने के लिए वह उन्हें मिचका रहा था। हाजी मुराद ने रिवाजी ढंग से उसे ‘सलाम आलेकुम’ कहा और अपना चेहरा दिखाया। |
22-10-2013, 12:50 AM | #5 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
‘आलेकुम सलाम’ वृद्ध ने कहा, जिससे उसके दंतहीन मसूढ़े दीखाई पड़े। हाजी मुराद को पहचानते ही वह अपने दुर्बल पैरों को घसीटते हुए चिमनी के पास पड़ी लकड़ी के तलों वाली अपनी चप्पलों तक ले गया। फिर घीमे से और सावधानीपूर्वक उसने अपनी बाहें सकुड़नों भरी मिरजई की आस्तीनों में डालीं और छत से लगी सीढ़ी से चेहरा सामने करके नीचे उतरने लगा। वृद्ध ने धूप से झुलसी दुबली-पतली गर्दन पर टिका सिर हिलाया और दंतहीन जबड़ों से निरंतर बुदबुदाता रहा। जब वह नीचे पहुंचा तब उसने विनम्रतापूर्वक हाजी मुराद के घोड़े की लगाम और दाहिनी रकाब पकड़ ली, लेकिन हाजी मुराद का मुरीद फुर्ती से घोड़े से उतरा और उसने वृद्ध का स्थान ले लिया। उसे एक ओर हटाकर उसने घोड़े से उतरने में हाजी मुराद की सहायता की। हाजी मुराद घोड़े से उतरकर हल्का-सा लंगड़ाता हुआ सायबान के नीचे आया। लगभग पन्द्रह वर्ष का एक लड़का दरवाजे से निकलकर उसकी ओर आया और अपनी छोटी चमकदार आँखों से आगन्तुक को विस्मयपूर्वक देखने लगा।
‘‘दौड़कर मस्जिद तक जा और अपने पिता को बुला ला।” वृद्ध ने उससे कहा। इसके पश्चात् उसने बत्ती जलाई और चरमराहट के साथ हाजी मुराद के लिए घर का दरवाजा खोला। जिस समय हाजी मुराद घर में प्रवेश कर रहा था पीले ब्लाउज और नीले पायजामे पर लाल गाउन पहने एक कृशकाय वृद्धा कुछ गद्दे लिए हुए अंदर के दरवाजे से आयी। ‘‘आपका आगमन सुख-शान्ति लाए,” वह बोली और अतिथि के लेटने के लिए सामने की दीवार के साथ दुहरा करके गद्दे बिछाने लगी। ‘‘आपके बेटे जीवित रहें”, हाजी मुराद ने अपना लबादा, राइफल और तलवार उतारकर वृद्ध के हवाले करते हुए कहा। |
22-10-2013, 12:53 AM | #6 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
वृद्ध ने सावधानीपूर्वक राइफल और तलवार गृहस्वामी के हथियारों के साथ दो बड़े प्लेटों के बीच खूंटी पर लटका दिये जो अच्छे ढंग से पलस्तर की हुई सफेदी पुती दीवार पर चमक रहे थे। हाजी मुराद ने पिस्तौल को संभालकर अपने पीछे रख लिया। वह गद्दे के पास आया। उसने अपनी ट्यूनिक उतारकर रख दी और गद्दे पर बैठ गया। वृद्ध अपनी नंगी एडि़यों पर टिककर उसके समने बैठ गया। उसने अपनी आँखे बंद कर लीं और हथेलियों को उभारते हुए हाथ ऊपर उठाये। हाजी मुराद ने भी वैसा ही किया। फिर दोनों चेहरे पर धीरे-धीरे हाथ फेरते हुए इस प्रकार सस्वर नमाज अदा करने लगे कि उनके हाथ दाढ़ी की नोक का बार-बार स्पर्श करते रहे।
‘‘ने हबार ? (कोई समाचार?) ” हाजी मुराद ने वृद्ध से पूछा। ‘‘हबार योक (कोई समाचार नहीं है)।” वृद्ध ने लाल और उदासीन आँखों से हाजी मुराद के चेहरे के बजाय उसकी छाती की ओर देखते हुए उत्तर दिया। ‘‘मैं मधुमक्खियों में गुजारा करता हूँ, और इस समय मैं अपने बेटे को देखने आया हूँ। समाचार वही जानता है।” हाजी मुराद ने अनुमान लगाया कि वृद्ध बात नहीं करना चाहता। उसने अपना सिर हिलाया और अधिक कुछ नहीं कहा। ‘‘अच्छा समाचार नहीं है।” वृद्ध बोला, ‘‘समाचार केवल यह है कि खरगोश सदैव चिन्तित रहते हैं कि उकाबों को किस प्रकार दूर रखा जाये और उकाब उन्हे एक-एक कर झपट रहे हैं। पिछले सप्ताह रूसी कुत्तों ने मिशिको में भूसा जला डाला था। लानत है उनकी आँखों को,” वृद्ध गुस्से से बुदबुदाया। हाजी मुराद का मुरीद मजबूत लंबे डग भरता हुआ धीमे से प्रविष्ट हुआ। अपना लबादा, राइफल और तलवार उसने उतार दी जैसा कि हाजी मुराद ने किया था और उन्हे उसी खूंटी पर टांग दिया जिस पर उसके स्वामी के टांगे गये थे। केवल अपनी कटार और पिस्तौल उसने अपने पास रखी। ‘‘वह कौन है?” मुरीद की ओर देखते हुए वृद्ध ने पूछा। ‘‘वह एल्दार है, मेरा मुरीद,” हाजी मुराद ने कहा। |
22-10-2013, 12:54 AM | #7 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
‘‘बिल्कुल ठीक” वृद्ध बोला और हाजी मुराद के पास गद्दे पर आसन गृहण करने के लिए उसे इशारा किया। एल्दार पैर पर पैर रखकर बैठ गया और बातें कर रहे वृद्ध के चेहरे पर अपनी बड़ी खूबसूरत आँखें स्थिर कर दीं। वृद्ध ने उन्हें बताया कि उनके योद्धाओं ने सप्ताह भर पहले दो रूसी सैनिकों को पकड़ा था। एक को मार दिया था और दूसरे को शमील के पास भेज दिया था। हाजी मुराद ने दरवाजे की ओर सरसरी दृष्टि डाली और बाहर से आने वाली आवाज पर ध्यान केन्द्रित करते हुए अन्यमनस्क भाव से वृद्ध की बात सुनी। घर के सायबान के नीचे कदमों की आहट थी। तभी दरवाजा चरमराया और गृहस्वामी ने प्रवेश किया।
गृहस्वामी, सादो, लगभग चालीस वर्ष का व्यक्ति था। उसकी दाढ़ी छोटी, नाक लंबी और आँखें उसी प्रकार काली थीं, यद्यपि उतनी चमकदार नहीं थीं, जैसी उसके पन्द्रह वर्षीय पुत्र की थीं जो उसे बुलाने गया था। वह भी अंदर आया और दरवाजे के पास बैठ गया। सादो ने अपने लकड़ी के जूते उतार दिए। बिना हजामत किए हुए ठूंठी जैसे काले बालोंवाले बड़े सिर पर से जीर्ण-शीर्ण फर की टोपी को उसने पीछे हटाया और तुरंत हाजी मुराद के सामने पाल्थी मारकर बैठ गया। उसने उसी प्रकार आँखें बंद कर लीं, जिस प्रकार वृद्ध ने की थीं और हथेलियों को उभारते हुए हाथों को ऊपर उठाया। उसने सस्वर नमाज अदा की और बोलने से पहले चेहरे पर धीरे-धीरे अपने हाथ फेरे। फिर उसने कहा कि शमील ने हाजी मुराद को जीवित या मृत पकड़ने का आदेश भेजा था। शमील का दूत कल ही वापस गया था, और इसलिए सावधान रहना उनके लिए आवश्यक था। |
22-10-2013, 01:04 AM | #8 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
‘‘मेरे घर में, जब तक मैं जीवित हूँ” सादो ने कहा, ‘‘कोई भी मेरे मित्र को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। लेकिन बाहर के विषय में कौन जानता है ? हमें इस पर विचार करना चाहिए।”
हाजी मुराद ने एकाग्रतापूर्वक उसकी बात सुनी और सहमति में सिर हिलाया, और जैसे ही सादो ने बात समाप्त की, वह बोला - ‘‘हूँ … अब मुझे पत्र देकर एक आदमी रूसियों के पास भेजना है। मेरा मुरीद जाएगा, लेकिन उसे एक मार्ग-दर्शक की आवश्यकता है।” ‘‘मैं अपने भाई बाटा को भेजूंगा,” सादो ने कहा। ‘‘बाटा को बुलाओ,” उसने अपने बेटे से कहा। लडका उत्सुकतापूर्वक अपनी टांगों को उछालता और बाहों को लहराता हुआ तेजी से घर से बाहर निकल गया। दस मिनट बाद वह गहरे ताम्बई रंग, छोटी टांगों वाले एक हृष्ट-पुष्ट चेचेन के साथ लौटा। उसने आस्तीनों पर रोंयेदार मुलायम चमड़े का पैबंद लगा चिथड़ा पीला ट्यूनिक, और लंबी काली पतलून पहन रखी थी। हाजी मुराद ने आगन्तुक को अभिवादन किया और एक भी शब्द व्यर्थ किए बिना तुरंत बोला : ‘‘क्या तुम मेरे मुरीद को रूसियों के पास ले जाओगे ?” ‘‘मैं ले जा सकता हूँ।” बाटा ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर दिया। ‘‘मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कोई भी चेचेन ऐसा नहीं है जो मुझसे बढ़कर हो। कुछ लोग आते हैं और आपसे दुनिया भर के वायदे करते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं, लेकिन मैं यह कर सकता हूँ।” |
22-10-2013, 01:06 AM | #9 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
‘‘अच्छा” हाजी मुराद बोला। ‘‘इस काम के लिए तुम्हें तीन रूबल मिलेंगे।” तीन उंगलियॉं दिखाते हुए उसने कहा।
बाटा यह प्रदर्शित करता हुआ सिर हिलाता रहा कि वह समझ गया है, लेकिन उसने आगे कहा कि वह पैसा नहीं चाहता, वह केवल आदर भाव के कारण हाजी मुराद की सेवा के लिए तैयार हुआ था। पहाड़ों में सभी इस बात को जानते हैं कि हाजी मुराद ने किस प्रकार रूसी सुअरों की पिटाई की थी।” ‘‘इतना ही पर्याप्त है।” हाजी मुराद बोला, ‘‘एक रस्सी को लंबा होना चाहिए, लेकिन भाषण छोटा होना चाहिए।” ‘‘तो मैं चुप रहूंगा।” बाटा बोला। ‘‘झरने के सामने जहॉं आर्गुन मोड़ है, वहॉं जंगल में एक खुला स्थान है और वहॉं सूखी घास के दो ढेर हैं। तुम्हे उस स्थान के विषय में मालूम है ?” ‘‘ मुझे मालूम है।‘‘ ‘‘मेरे तीन घुड़सवार वहॉं मेरा इंतजार कर रहे हैं।” हाजी मुराद ने कहा। ‘‘अहा।” सिर हिलाते हुए बाटा बोला। ‘‘खान महोमा को पूछना। खान-महोमा जानता है कि क्या करना है और क्या कहना है। क्या तुम उसे रूसी प्रधान, प्रिन्स, वोरोन्त्सोव के पास ले जा सकते हो ?” ‘‘मैं ले जा सकता हूँ।” ‘‘उसे ले जाओ और वापस ले आओ। ठीक ?” ‘‘बिल्कुल ठीक।” ‘‘उसे लेकर जंगल में वापस आओ। मैं वहीं हूंगा।” ‘‘मैं यह सब करूंगा,” अपनी छाती पर अपने हाथों को दबाकर, उठकर खड़े होते हुए और बाहर जाते हुए बाटा ने कहा। |
22-10-2013, 01:07 AM | #10 |
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Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
‘‘एक दूसरा आदमी मुझे घेखी के पास भेजना आवश्यक है,” बाटा के चले जाने के बाद हाजी मुराद ने अपने मेजबान से कहा। ‘‘यह घेखी के लिए है,” ट्यूनिक की एक थैली को पकड़ते हुए उसने कहना जारी रखा, लेकिन जब उसने दो महिलाओं को कमरे में प्रवेश करते हुए देखा, उसने तुरन्त हाथ बाहर निकाल लिया और रुक गया।
उनमें से एक सादो की पत्नी थी। वही दुबली-पतली अधेड़ महिला, जिसने लाकर गद्दे बिछाये थे। दूसरी लाल पायजामे पर हरे रंग का वस्त्र पहने एक युवती थी जिसके वस्त्र के वक्ष भाग में धागे से चॉंदी के सिक्के जड़े हुए थे। चॉंदी का एक रूबल उसके मांसल स्कंधस्थल के बीच लटकती मजबूत काली चोटी के अंत में लटका हुआ था। वह कठोर दिखने का प्रयास कर रही थी, लेकिन पिता और भाई की भॉंति मनकों जैसी उसकी आँखें उसके चेहरे पर झपक रही थीं। उसने आगन्तुकों की ओर नहीं देखा, लेकिन स्पष्ट रूप से वह उनकी उपस्थिति से अवगत थी। सादो की पत्नी एक नीची गोल मेज में चाय, मक्खनवाले मालपुआ, चीज, पावरोटी और मधु लेकर आयी थी। लड़की एक कटोरा, एक सुराही और एक तौलिया लायी थी। जब तक दोनों महिलाएं मुलायम तलों वाले जूतों से खामोश कदम रखती हुई मेहमानों के सामने सामान रखती रहीं; तब तक सादो और हाजी मुराद चुप रहे। जब तक महिलाएं कमरे में रहीं एल्दार अपनी बड़ी आँखें आड़े-तिरछे रखे पैरों पर गड़ाये पूरे समय मूर्तिवत बैठा रहा था। जब दोनों महिलाएं कमरे से बाहर चली गयीं और दरवाजे के पीछे उनके कदमों की आवाज आनी बंद हो गयी, तब एल्दार ने राहत की ठण्डी सांस ली और हाजी मुराद ने अपनी ट्यूनिक की एक थैली को पकड़ा, उसके अंदर ठुंसी एक गोली, और उसके नीचे लपेट कर रखा पत्र निकाला। |
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