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Old 21-03-2014, 07:51 PM   #1
Dr.Shree Vijay
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Arrow नही रहें खुशवन्त सिंह :.........


99 की उम्र में भारत के एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक,
उपन्यासकार और इतिहासकार खुशवंत सिंह का निधन :




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Old 21-03-2014, 07:57 PM   #2
Dr.Shree Vijay
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Arrow Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........



खुशवन्त सिंह (जन्म: 2 फरवरी 1915, मृत्यु: 20 मार्च 2014) भारत के एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार थे। एक पत्रकार के रूप में उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली। उन्होंने पारम्परिक तरीका छोड़ नये तरीके की पत्रकारिता शुरू की। भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय में भी उन्होंने काम किया। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे।

खुशवन्त सिंह जितने भारत में लोकप्रिय थे उतने ही पाकिस्तान में भी लोकप्रिय थे। उनकी किताब ट्रेन टू पाकिस्तान बेहद लोकप्रिय हुई। इस पर फिल्म भी बन चुकी है। उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक जिन्दादिल इंसान की तरह पूरी कर्मठता के साथ जिया किन्तु उसका शतक लगाने से चूक गये :.........


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Old 21-03-2014, 08:01 PM   #3
Dr.Shree Vijay
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Arrow Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........



खुशवन्त सिंह (जन्म: 2 फरवरी 1915, मृत्यु: 20 मार्च 2014) खुशवन्त सिंह का जन्म 2 फ़रवरी, 1915 को हदाली, पंजाब (अविभाजित भारत) में हुआ था। उन्होंने गवर्नमेण्ट कॉलेज, लाहौर और कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी लन्दन में शिक्षा प्राप्त करने के बाद लन्दन से ही क़ानून की डिग्री ली। उसके बाद उन्होंने लाहौर में वकालत शुरू की। उनके पिता सर सोभा सिंह अपने समय के प्रसिद्ध ठेकेदार थे। उस समय सोभा सिंह को आधी दिल्ली का मालिक कहा जाता था।

खुशवन्त सिंह का विवाह कँवल मलिक के साथ हुआ था। इनके पुत्र का नाम राहुल सिंह और पुत्री का नाम माला है। उनका निधन 99 साल की उम्र में 20 मार्च 2014 को नई दिल्ली में हुआ।

एक पत्रकार के रूप में भी खुशवन्त सिंह ने बहुत ख्याति अर्जित की। 1951 में वे आकाशवाणी से जुड़े थे और 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र 'योजना' का संपादन किया। 1980 तक मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' और 'न्यू डेल्ही' के संपादक रहे।

1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के संपादक भी वही थे। तभी से वे प्रति सप्ताह एक लोकप्रिय 'कॉलम' लिखते हैं, जो अनेक भाषाओं के दैनिक पत्रों में प्रकाशित होता है। खुशवन्त सिंह उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में विख्यात रहे हैं।

साल 1947 से कुछ सालों तक खुशवन्त सिंह ने भारत के विदेश मंत्रालय में महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे।

वर्तमान संदर्भों और प्राकृतिक वातावरण पर भी उनकी कई रचनाएं हैं। दो खंडों में प्रकाशित 'सिक्खों का इतिहास' उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है। साहित्य के क्षेत्र में पिछले सत्तर वर्ष में खुशवन्त सिंह का विविध आयामी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

खुशवन्त सिंह ने कई अमूल्य रचनाएं अपने पाठकों को प्रदान की हैं। उनके अनेक उपन्यासों में प्रसिद्ध हैं - 'डेल्ही', 'ट्रेन टू पाकिस्तान', 'दि कंपनी ऑफ़ वूमन'। इसके अलावा उन्होंने लगभग 100 महत्वपूर्ण किताबें लिखी। अपने जीवन में सेक्स, मजहब और ऐसे ही विषयों पर की गई टिप्पणियों के कारण वे हमेशा आलोचना के केंद्र में बने रहे। उन्होंने इलेस्ट्रेटेड विकली जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया :.........


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Old 21-03-2014, 08:06 PM   #4
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Arrow Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........



जिंदा होते हुए खुशवंत सिंह से मिलना कितना कठिन था यह तो नहीं कह सकते। लेकिन गुरुवार को दुनिया से चले जाने के बाद प्रसिद्ध साहित्यकार के घर में प्रवेश थोड़ा आसान था। हर कोई उनके परिवार को सांत्वना देने और श्रद्धांजलि देने पहुंच रहा था।

यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, भाजपा नेता लालकृष्ण अडवानी, बिसन सिंह बेदी, अभिनेता बिनोद खन्ना और साहित्य, कला, राजनीति, बॉलीवुड की तमाम हस्तियों से लेकर प्रसंशकों का भारी हुजूम घर से लेकर अंतिम संस्कार तक मौजूद था। वीआईपी के आने के चलते सुरक्षा व्यवस्था भी कड़ी थी। बहुत ही भारी मन से लोगों ने विदा तो किया लेकिन वो लोगों के दिलों में और गहरे तौर पर बस गए|

उनके परिवार से मिलने पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार और उनके पुराने मित्र कुलदीप नैयर जब सुजान पार्क स्थित उनके आलीशान घर में प्रवेश किया तो परिजन उनसे आत्मीयता से गले लगा लिया और आंसुओं की धारा बह निकली। एक टेबल को घेरे हुए कई सफेद पोशाकों में महिला-पुरुष शांत हो मातम मना रहे थे। उनके बेटे राहुल सिंह और उनकी बेटी मीना सिंह इस घड़ी में लोगों की सांत्वना ग्रहण कर रहे थे। घर के भीतर के कोने से संगीत की ध्वनि बाहर आ रही थी।

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर कहते हैं कि देश में आपातकाल लगाए जाने के दौरान खुशवंत से उनकी असहमति थी, क्योंकि वे ईमर्जेंसी के पक्ष में थे। हालांकि नैयर तारीफ करते हुए कहते हैं कि खुशवंत ने उन्हें जो भी मर्जी हो वह लिखने की छूट दी थी। उन्होंने नैयर को लेखों के लिए अधिक पैसे भी दिए थे ताकि नौकरी जाने पर दिक्कत न हो :.........


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Old 21-03-2014, 08:11 PM   #5
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Arrow Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........



पूर्वजों की थी आधी दिल्ली :

कहा जाता है कि इनके पिता शोभा सिंह ब्रिटिश जमाने के बहुत बड़े ठेकेदार थे। खुद खुशवंत सिंह ने इस बात को स्वीकार किया है कि नई दिल्ली को देश की राजधानी बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। जब ब्रितानी हुकूमत ने देश की रजाधानी को कोलकाता (तब कलकत्ता) से दिल्ली किया तो शिलान्यास का पत्थर किंग्सवे के पास किया गया था।

उस पत्थर पर इस बावत सब उकेर दिया गया था। लेकिन इंग्लैंड से आए एक आर्किटेक्ट ने जब अरावली पहाड़ी के किनारे आज के नई दिल्ली इलाके को देखा तो उसने स्थान बदलने की सिफारिश की। ब्रिटिश हुकूमत ने शिलान्यास के पत्थर को किंग्सवे से नई दिल्ली लाने का ठेका शोभा सिंह को दिया। शर्त यह थी कि स्थानांतरण की इस गतिविधि को कोई न जान सके। इसके लिए उन्हें उस जमाने में 16 रुपये दिए गए थे। खुशवंत सिंह के दादा परदादा आधी दिल्ली के मालिक हुआ करते थे।

उनके पूर्वजों ने कालका शिमला रेल मार्ग का निर्माण, दिल्ली के वायसराय भवन सरीखे साउथ ब्लाक के बहुत सारे भवनों के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी।

कहा जाता है कि उनके पिता सरदार शोभा सिंह ने ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को पकडवाया था, और उनके खिलाफ सरदार शोभा सिंह ने ही गवाही दी थी :.........


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Last edited by Dr.Shree Vijay; 21-03-2014 at 08:15 PM.
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Old 21-03-2014, 09:01 PM   #6
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Default Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........

इस महान लेखक को माई हिंदी फोरम की तरफ से श्रद्धांजलि।
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum
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Old 22-03-2014, 12:08 AM   #7
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Default Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........

आज 'हिन्दुस्तान टाइम्स' में एक छोटा सा कार्टून प्रकाशित हुआ है. इस कार्टून में खुशवंत सिंह का बल्ब वाला कार्टून छपा है लेकिन आज उसमे खुशवंत सिंह को बैठा हुआ नहीं दिखाया गया बल्कि बल्ब के बाहर फर्श पर उनके दूर जाते पैरों के निशान दिखाए गये हैं. यह कार्टून देख कर मन भर आया. ऐसी थी उनकी शख्सियत. उनको हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि.

मेरिओ मिरांडा का पुराना कार्टून
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Old 22-03-2014, 12:14 AM   #8
rajnish manga
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Default Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........

मैं बिना तकलीफ के मरना चाहता हूँ
खुशवंत सिंह
[खुशवंत सिंह के विभिन्न लेखों तथा इन्टरनेट पर उपलब्ध अन्य सामग्री के आधार पर संकलित]

एक बार मैंने दलाईलामा से पूछा कि मृत्यु का सामना कैसे करना चाहिए। उन्होंने ध्यान करने की सलाह दी। एक बार मैं बाम्बे में आचार्य रजनीश से मिला। मैंने उनसे अपने भय के बारे में बात की और उनसे पूछा कि इससे कैसे पार पाया जाए। उन्होंने मुझे बताया कि मौत के भय से पार पाने का एकमात्र जरिया यह है कि हम मरते हुए को देखें, मृत को देखें। मैं यह बहुत दिनों से करता रहा हूं। मैं शायद ही किसी की शादी में जाता हूं लेकिन अंतिम संस्कार में जरूर जाता हूं। मैं मृत व्यक्ति के रिश्तेदारों के साथ बैठता हूं और अक्सर निगमबोध घाट के श्मशान घाट भी जाता हूं और वहां चिता में आग लगते हुए और शरीर को लपटों में जलते हुए देखता हूं।मृत्यु आखिरी पूर्ण विराम है। इससे आगे कुछ भी नहीं। यह एक ऐसा शून्य है जिसको कोई भी नहीं भेद पाया। इसका कोई कल नहीं है। मेरी सारी उम्मीद यह है कि जब मेरी मृत्यु आए, बिना अधिक तकलीफ के, जैसे गहरी नींद में ही गुजर जाऊं। मैं अक्सर जैन दर्शन में विश्वास करता हूं कि मृत्यु का उत्सव मनाना चाहिए। मैंने अपना मृत्यु लेख 1943 में ही लिख लिया था जब मैंने 20 की उम्र को पार ही किया था। वह बाद में मेरी कहानियों के संकलन पोस्थुमस में प्रकाशित हुआ। इस लेख में मैंने यह कल्पना की है कि ट्रिब्यून मेरी मृत्यु की घोषणा पहले पन्ने पर एक छोटी सी तस्वीर के साथ कर रहा है। उसका शीर्षक इस तरह से पढ़ा जा सकता था : -हमें सरदार खुशवंत सिंह की अचानक मौत के बारे में बताते हुए दुख हो रहा है। कल शाम 6 बजे उनकी मृत्यु हो गई। स्वर्गीय सरदार के घर आने वालों में अनेक मंत्री, उच्च न्यायालय के जज शामिल थे।

यह अजीब इत्तेफाक है कि जाने-माने लेखक सरदार खुशवंत सिंह के निधन के कुछ समय पहले ही पेंग्विन इंडिया ने उनकी किताब खुशवंतनामा को छापा है। इसका अनुवाद प्रभात रंजन ने किया है। इसमें खुशवंत सिंह की रचनाओं में उक्त बातें लिखी गई हैं। उसमें उन्होंने मौत के भय और मौत से आदमी का सामना को लेकर कई बातें लिखी हैं। जिस मौत के लिए वह चाहते थे कि वह चुपचाप आये, बिना तकलीफ के। वैसा ही हुआ। 99 साल तक की उम्र तक खुशवंत जिंदादिली से जीये। वह अपनी जिंदादिली के संबंध में ही कहते थे, जिस्म बूढ़ा है, आंख बदमाश और दिल जवां।
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Old 22-03-2014, 12:37 AM   #9
Dark Saint Alaick
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Default Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........

मुझे इस अनीश्वरवादी, अनुपम और महान इंसान से मिलने के कई मौके अपने जीवन में मिले, मैं ईश्वर का इस इनायत के लिए शुक्रिया अदा करता हूं। दरअसल, खुशवंत सिंहजी को पूरी तरह जानने के लिए उनसे मिलना जरूरी है, उनके लेखन के आधार पर आप उनकी जो तस्वीर ज़ेहन में उकेरते हैं, वह वाकई अधूरी होती है। कभी समय और अवसर मिला, तो मैं इन मुलाकातों के संस्मरण फोरम पर प्रस्तुत करना चाहूंगा, लेकिन फिलहाल लाचार हूं। जब भी परमपिता का आशीर्वाद मिलेगा, मैं आप सभी के सामने वह सब रखूंगा, जो मुझे इन मुलाकातों और साक्षात्कारों में उनसे मिला। मेरी इस महान शख्सियत को विनम्र श्रद्धांजलि।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 22-03-2014, 11:48 PM   #10
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Default Re: नही रहें खुशवन्त सिंह :.........

खुश्वन्त सिंहजी की हमें बहुत याद आती है।
1970s में कुछ साल के लिए वे Illustrated Weekly of India के Editor रहे।
Circulation आसमान छूने लगा।
फिर, पता नहीं क्यों अचानक उन्हे नौकरी से निकाला गया था।

Scotch Whisky का शौक और Sex के बारे में लिखने के लिए मशहूर थे।
किसीने उन्हें "Sexaarjee" भी कहा!

१९६७-१९७२ का एक किस्सा सुनाता हूँ।
उस समय हम BITS - Pilani में छात्र थे।
एक दिन हमारे Student's Mess Notice Board पर एक अनाधिकृत नोटिस लगा मिला।
साधारणतया, नोटिसें Mess Manager को दिए जाते थे और manager साहब, शीशे के कैबिनेट को खोलकर उस नोटिस को अन्दर लगाकर, ताला लगाते थे। पर आज एक नोटिस बाहर notice board के cabinet के शाशे पर ही चिपका मिला था।

नोटिस था
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BITS STUDENTS ENGLISH LITERARY SOCIETY
Talk this evening by Khushwant Singh
Topic: "SEX AND THE INDIAN WOMAN"
Venue: College auditorium
Time: 6 pm
ALL ARE CORDIALLY INVITED
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ठीक समय पर, कई छात्र वहाँ उनको सुनने पहुँच गए
सबको निराश होकर वापस आना पडा। Auditorium पर कोई नहीं मिला।
तब जाकर लोगों को बात समझ में आई।
तिथी थी १, अप्रैल!
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