11-12-2011, 05:35 PM | #16 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
भगवान-
मेरी महिमा का नहीं अंत अर्जुन, मेरी महिमा है अनन्त मेरी महिमा का नहीं पार इसलिए कहूँगा सार-सार मैं हीं जीवों में प्राण, पार्थ मैं हीं मनुजों में ज्ञान, पार्थ मैं ज्वाला पुंजों में दिनकर मैं ही रुद्रों में हूँ शंकर पर्वत-शिखरों में हूँ सुमेरू यक्षों में मैं ही हूँ कुबेर मैं वेदों में हूँ सामवेद चार नीतियों में हूँ मैं भेद मैं वचनों में ओंकार, पार्थ मैं हूँ वामन अवतार, पार्थ अर्जुन, नागों में हूँ शेषनाग अर्जुन, वसुओं में हूँ आग मुनियों में मै हूँ वेद-व्यास ऋतुओं में मैं हूँ मधुरमास कालों में मैं हूँ महाकाल व्यालों में मैं हूँ महाव्याल नभचर में मैं ही हूँ उकाब फ़ूलों में मैं ही हूँ गुलाब वृक्षों में मैं ही बरगद हूँ ऋषियों में मैं ही नारद हूँ देवों में मैं हूँ देवराज जितने भूषण उनमें हूँ ताज मासों में मैं ही अगहन हूँ जीवेन्द्रियों में मैं हीं मन हूँ मैं ही तारों में चंदा हूँ मैं ही नदियों में गंगा हूँ वनचरो में मैं ही हूँ नाहर कुंजरों में एरावत कुंजर गिरियों में मैं हिमगिरि महान महर्षियों में मुझे भृगु जान पितरों में मैं ही पितरेश्वर मीनों में मैं ही मीन मकर मैं जल स्त्रोतों में हूँ सागर मैं सात स्वरों में पंचम स्वर गंधर्वों में मैं गंधर्वराज सिद्धों में मैं ही सिद्धराज मैं कार्तिकेय सेनापतियों में मैं परम गति सब गतियों में धामों में मैं हूँ काशीधाम धनुर्धारियों में हूँ मैं राम मैं भूपों में हूँ महाभूप मैं रूपों में हूँ कामरूप मैं ब्रह्म-विद्या सभी विद्याओं में कामधेनु हूँ मैं सभी गायों में जग के जितने भी आकर्षण वे सब मुझसे ही हैं उत्पन्न हे सखे! रहा जो कुछ निहार सब मेरा ही है चमत्कार अर्जुन, जो कहता हूँ कर उठ, दुष्ट कैरवों से तू लड़ *** *** *** |
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