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Old 11-03-2014, 01:08 AM   #1
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Default रहस्य रोमांच की कहानियाँ

रहस्य रोमांच की कहानियाँ
हॉस्टल वाला भूत

हमारे गाँव के पास ही एक स्नातकोत्तर महाविद्यालय है। इसकी गणना एक बहुत ही अच्छे शिक्षण संस्थान के रूप में होती है। दूर-दूर से बच्चे यहाँ शिक्षा-ग्रहण के लिए आते हैं। 7-8 साल पहले की बात है। बिहार काएक लड़का यहाँ हॅास्टल में रहकर पढ़ाई करता था। वह बहुत ही मेधावी और मिलनसार था। हॅास्टल में उसके साथ रहनेवाले अन्य बच्चे उसे दूबे-भाई दूबे-भाई कियाकरते थे।

एकबार की बात है कि वह अपने बड़े भाई की शादी में सम्मिलित होने के लिए 15 दिन के लिए गाँव गया। हॅास्टल के अन्य बच्चों ने उससे कहा कि दूबे भाई जल्दी ही वापस आ जाइएगा। 15 दिन के बाद वह लड़का फिर से आकर हॅास्टल में रहने लगा। लेकिन अब वह अपने दोस्तों से कम बात करता था। यहाँ तक कि वह उनके साथ खाना भी नहीं खाता था और कहता था कि बाद में खा लूँगा। अब वह पढ़नेमें भी कम रुचि लेता था। जब उसके साथवाले बच्चे उससे कुछ बात करना चाहते थे तो वह टाल जाता था। वह दिन भर पता नहीं कहाँ रहता था और रात को केवल सोने के लिए हॅास्टल में आता था।

घर से हॅास्टल में आए उसे अभी एक हफ्ता ही हुआ था कि एक दिन उसके कुछ घरवाले हॅास्टल में आए। सबके चेहरे पर उदासी थी। एक लड़का उन लोगों से बोल पड़ा कि दूबे भाई तो अभी हैं नहीं, वे तो केवल रात को सोने आते हैं। उस लड़के की बात सुनकर दूबे के घरवाले फफक कर रो पड़े और बोले वह रात को भी कैसे आ सकता है।

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Old 11-03-2014, 01:09 AM   #2
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उन्होंने बताया कि हमलोग तो उसका सामान लेने आए हैं। अब वह नहीं रहा। हॅास्टल से जाने के दो दिन बाद ही वह मोटर-साइकिल से एक रिस्तेदार के यहाँ जा रहा था कि अचानक उसकी मोटर-साइकिल सामने से आते एक तेज ट्रक से टकरा गई थी और वह ऑन द स्पाट ही काल के गाल में समा गया था। इतना कहकर वे लोग और तेज रोने लगे। हॅास्टल के जो बच्चे ये बात सुन रहे थे उनकी काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गयी थी और रोमांच के कारण उनके शरीर के रोयें खड़े हो गए थे। वे बार-बार यही सोच रहे थे कि रात को जो लड़का उनके पास सोता था या जिसे वे देखते थे क्या वह दूबे भाई का भूत था।

खैर उस दिन के बाद दूबे भाई का भूत फिर कभी सोने के लिए हास्टल में नहीं आया पर कई महीनों तक हॅास्टल के सारे बच्चे खौफ में जीते रहे और दूबे भाई के रहनेवाले कमरे में ताला लटकता रहा। लोग कहते रहे कि दूबे भाई को अपने हॅास्टल से बहुत ही लगाव था इसलिए स्वर्गीय होने के बाद भी वे हॅास्टल का मोह छोड़ न सके। कहते हैं आज भी जो बच्चे दूबे भाई के भूत के साथ सोते थे डरे-सहमे ही रहते हैं। यह घटना सही है या गलत; यह मैं नहीं कह सकता। क्योंकि मैंने यह घटना अपने क्षेत्र के कुछ लोगों से सुनी है। खैर भगवान दूबे भाई की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करें।

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Old 11-03-2014, 01:16 AM   #3
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भूतों का सामना

बचपन में लोगों से भूतों की तरह तरह की कहानियां अक्सर सुनने को मिलती थी। उन कहानियों में रात को गांव की गली में भूत ने किसी पर अचानक ईंट फेंकी तो किसी व्यक्तिको रात में खेतों से लौटते रास्ते में कोई वृक्ष बिना हवा के हिलता नजर आता था तो किसी का पीपल के पेड़ के पास पहुँचते ही पीपल के पेड़ की अजीबो-गरीब हरकतों से सामना होता था कई लोग बताते थे कि रात को खेत से लौटते समय कैसे भूत ने उनकी धोती का पल्लू पकड़ लिया वो कैसे उससे पिंड छुड़वा कर भागे |

लगभग 1984-85 के दौरान हमारे गांव के बस स्टैंड के पास ही एक वाहन दुर्घटना में एक ही परिवार के 16-17 लोगों की मौत हो गयी थी और इन दर्दनाक अकाल मौतों की वजह से उनके भूत बनने की अफवाहे जोरों से फेल गयी थी शाम 8 बजे के बाद तो कोई भी व्यक्ति अकेला बस स्टैंड पर जाने की हिम्मत तक नहीं करता था | सिर्फ गांव का पूर्व सरपंच गोरु किर्डोलिया, जो उस समय रोडवेज़ में कंडक्टर था, ही रोजाना अपनी ड्यूटी से देर रात को उधर से आता था या कभी-कभार मुझे देर रात को शहर से गांव पहुँचने पर बस स्टैंड पर आना होता था | बस स्टैंड पर रात को बस उतरते ही दिल की धड़कन अपने आप तेज हो जाया करती थी शरीर के रोंगटे खड़े हो जाया करते थे और कदम घर जल्दी पहुँचने की पूरी तत्परता दिखाते थेi

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Old 11-03-2014, 01:17 AM   #4
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Default Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ

तब यह सुन रखा था कि भूत हथियार के पास नहीं आते अतः जिस दिन देर से आना होता था उस दिन एक बटन वाला रामपुरी चाकू साथ लेकर जाता था बस ये समझ लीजिये उस चाकू के सहारे ही देर रात बस से उतरने की हिम्मत बनती थी | क्योकि बस स्टैंड पर उस दुर्घटना में मरे भूतो का डर तो आगे रास्ते में श्मशान में गांव के भूतों का डर | उन्ही दिनों एक दिन शहर से आते आते मुझे रात के साढ़े दस बज गए। अँधेरी रात थी बस स्टैंड पर बस से उतरते ही वहाँ पसरे सन्नाटे ने दिल की धड़कन तेज करदी,शरीर के रोंगटे उठ खड़े हुए डर के मारे रामपुरी चाकू अपने आप हमेशा की तरह हाथ में आ गया जिसके बूते ही हिम्मत कर में अपने घर की तरफ बढ़ा |

बस स्टैंड से गांव के बीच लगभग 400 मीटर पुरानी ज़माने से ही गोचर भूमि छोड़ी हुई है इसी खाली भू-भाग में ही गांव की सभी जातियों के अलग अलग श्मशान स्थल भी बने हुए है जो भूतों का डर कुछ और बढ़ा देते थे | रामपुरी चाकू हाथ में ले मैं हिम्मत करके गांव की तरफ थोडा ही आगे बढा ही था कि गौचर भूमि की झाडियों के पीछे से अचानक एक साथ कई पेरों की दड-बड़ दड-बड़ आवाज सुनाई दी जैसे ही में रुका वह आवाज भी रुक गयी और मेरे चलते ही वह आवाज फिर अचानक सुनाई दी में समझ चूका था कि आज ये कोई और नहीं भूत ही है जो मुझे डराने कि कोशिश कर रहे है लेकिन रामपुरी चाकू के हाथ में होते में भी हिम्मत नहीं हार रहा था साथ ही ऐसे वक्त पर हनुमान चालीसा तो अपने आप याद आ ही जाता है सो इन्ही दो चीजों के सहारे मैं घर पहुँच गया लेकिन घटना के बारे में मैंने घर पर किसी को नहीं बताया |

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Old 11-03-2014, 01:18 AM   #5
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Default Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ

रात को बड़ी मुश्किल से नींद आई क्योकि घर में ऊपर बने मेरे कमरे की खिड़की उसी तरफ खुलती थी और दिन में तो खिड़की से दूर तक पूरा बस स्टैंड और पूरी गौचर भूमि नजर आती थी आखिर डर कम करने के वास्ते मैं सिरहाने तलवार रखकर सो गया | तलवार भी इसीलिए कि हथियार के पास भूत नहीं आएगा. दूसरे दिन सुबह 8 बजे फिर मुझे बस पकड़नी थी, सो बस स्टैंड जाते समय जैसे ही में रात वाली उसी जगह पहुंचा झाडियों के पीछे से अचानक वही आवाज मुझे फिर सुनाई दी हालाँकि दिन होने की वजह से ये आवाज कुछ धीमी थी व डरावनी नहीं लग रही थी| मैं रुका तो वो कदमो की आवाज भी रुक गयीi

मेरे उधर नजर दौड़ते ही मुझे एक मृत पशु दिखाई दिया जिसे एक कुतों का झुंड नोचने लगा था मेरे पास से गुजरते ही वो कुत्तों का पूरा झुंड एकदम से दूर भागा और रुक गया मेरे दुबारा चलने पर फिर वह झुंड पीछे हटने को एकदम थोड़ा फिर भागा और रुक गया ऐसा ही रात को हुआ था| लेकिन रात्रि की घटना में अँधेरी रात होने की वजह से कुत्ते दिखाई नहीं दे रहे थे और भूतों की सुनी हुई बातों के आगे दिमाग उस हर हरकत को भूतों की हरकत ही समझ रहा था इस तरह सुबह दुबारा उसी स्थान से गुजरने पर उस गलतफहमी का निराकरण हो सका वरना मैं भी आजतक उस ग़लतफ़हमी को असली भूतों की घटना मान दूसरो को सुनाता रहता और लोगों के मन में भूत के अस्तित्व की धारणा और ज्यादा मजबूत होती | शायद पुराने समय में गांवों में रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था न होने, जनसंख्या कम होने, सूनापन अधिक होने की वजह से और ऐसी ग़लतफ़हमी वाली घटनाओं का निराकरण न होने के कारण लोग इन घटनाओं को भूतों से सम्बंधित ही मान बैठते थे और फिर चटखारे ले लेकर दूसरो को सुनाते थे जो भूत होने की धारणाको और मजबूत कर देते थे |
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Old 11-03-2014, 01:22 AM   #6
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भूतों की बावड़ी

राजस्थान के जोधपुर शहर तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में पानी की अनेक बावड़ियां हैं, जिन्हें या तो राजा-महाराजाओं ने बनवाया था, या फिर उनकी महारानियों ने। पानी की अनेकानेक ऐसी बावडियों में से एक ऐसी भी बावडी है, जिसे भूतों ने बनवाया था। इसे भूत बावडी के नाम से जाना जाता है। जोधपुर से नब्बे किलोमीटर दूर पीपड-मेहता सिटी राजमार्ग के बीच बसा है रठासी' नामक ऐतिहासिक गांव। मारवाड का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब जोधपुर में राजपूतों की चम्पावत' शाखा विभाजित हुई, तो उन्होंने कापरडा' गांव को अपना निवास स्थान बनाया था लेकिन यहां बसने वाले युवा कुंआरों ने गांव के किसी ऋषि की बगीची उजाडने के साथ-साथ उसकी साधना में भी विध्न डाला था, तब ऋषि ने कुपित होकर उन कुंआरों को शाप दे दिया था कि इस गांव में उनके वंशज पनप नहीं सकेंगे। बाद में यहां के कुंआरों ने शाप के भय से कापरडा गांव को छोड दिया तथा वे जिस गांव में जाकर बसे, वह आज रणसी गांवके नाम से प्रसिद्ध है।

रणसी गांव में भूतों के सहयोग से बनी पानी की विशाल बावडी तथा ठाकुर जयसिंह का महल इतना चर्चित है कि आज भी लोग बहुत दूर-दूर से उन्हें देखने आते हैं। रहस्यमयी बावडी के संबंध में कहा जाता है कि ठाकुर जयसिंह घोडे पर सवार होकर जोधपुरसे रणसी गांव की ओर अपने सेवकों के साथ वहां के प्रसिद्ध मेले गणगोरियों, को देखने निकले। राह में सेवकों के घोड़े काफी आगे निकल गये और ठाकुर जयसिंह पीछे छूट गए। राजा का घोडा काफी थक चुका था। तथा उसे प्यास भी लगी थी। रास्ते में एक तालाब को देखकर ठाकुर जयसिंह ने अपने घोड़े को रोका और नीचे उतरकर घोडे को पानी पिलाने के लिए उस तालाब के पास पहुंचे। उस समय आधी रात बीत चुकी थी। घोडा पानी पीने के लिए ज्यों ही आगे बढा, जयसिंह को तालाब के किनारे एक आकृति दिखाई दी। वह आकृति तुरंत ही आदमी के रूप में बदल गई। ठाकुर साहब को बहुत आश्चर्य हुआ। उस आदमी ने कहा मैं भूत हूं। किसी शाप के कारण इस तालाब को छू नहीं सकता। मुझे भी जोर से प्यास लगी है, पानी पिलाइये।' ठाकुर जयसिंह ने निर्भीकता पूर्वक उस आत्मा को पानी पिला दिया।

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Old 11-03-2014, 01:23 AM   #7
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ठाकुर की निर्भीकता एवं दयालुता को देखकर भूत ने उनकी अधीनता स्वीकारते हुए कहा आप जो भी आदेश देंगे, उसे मैं पूरा करूंगा।' ठाकुर जयसिंह ने कहा मेरे लिए एक गढ , महल तथा पानी की बावडी के साथ-साथ एक सुन्दर-सा शहर तुम्हें बनाना होगा। भूत ने कहां' मुझे आप का आदेश स्वीकार है, किन्तु मैं यह कार्य प्रत्यक्ष रूप से नहीं करूंगा। आप दिन भर जो भी निर्माण कराएंगे,वह रात में सौ गुना अधिक बढ़ जाया करेगा किन्तु आप इस रहस्य को किसी को नहीं बताएंगे। जिस दिन भी यह भेद खुल जाएगा, उसी दिन मेरा काम खत्म हो जाएगा।' संवत्* १६०० में निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। अगले ही दिन से महल एवं बावडी की इमारतें बनने लगीं।पूरे गांव में कौतुहल छा गया। रात में पत्थर ठोकने की रहस्यमय आवाजें आने लगीं, दिन-प्रतिदिन निर्माण कार्य त्वरित गति से आगेबढ ता गया। एक दिन जब जयसिंह की ठकुरानी साहिबा ने महल व बावड़ी के विस्तार का रहस्य पूछा तो ठाकुर ने उन्हें भी बताने से साफ़ साफ़ इन्कार कर दिया। इस पर ठकुरानी रूठ गयी और अनशन शुरू कर दिया। कई दिनों तक अनशन करने के कारण ठकुरानी की दशा बिगड़ने लगी।

ठकुरानी को मरणासन्न देखकर ठाकुर ने उसे सारा रहस्य बता दिया। ठाकुर के ऐसा करते ही उसी रात से सारा निर्माण कार्य रूक गया। इसके परिणामस्वरूप सात मंजिला महल केवल दो मंजिला ही बना रह गया और पानी की बावड़ी का अंतिम हिस्सा दीवार भी अधूरी ही रह गई जो आज भी ज्यों का त्यों ही है। लाल पत्थरों से बना कलात्मक घडाईदार महल का मेहराब एवं गवाक्ष लोगों को आकर्षित करते हैं। बावडी की गहराई दो सौ फुट से अधिक है। इसमें नक्काशीदार चौदह खम्भे हैं तथा अन्दर जाने के लिए 174 सीढ़ियाँ हैं। सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि बावड़ी में बड़े बड़े पत्थर लॉक तकनीक' से लगाये गये हैं, जो अधरझूल होने पर भी गिरते नहीं हैं।
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Old 11-03-2014, 01:25 AM   #8
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वह कौन थी ?

बात कोई 15-16 साल पहले की है। मैं जिस जगह पर काम करता था वहीं पास में एक फ्लैट किराए पर लिया था। इस फ्लैट में मैं अकेला ही रहता था। इस फ्लैट में एक बड़ा-सा हाल था और इसी हाल से सटा एक बाथरूम और रसोईघर।मैं आपको बता दूँ कि इस फ्लैट का हाल बहुत बड़ा था और इसके पिछले छोर परसी से जड़ित दरवाजे लगे थे जिसे आप आसानी से खोल सकते थे। पर मैं इस हाल के पिछले भाग को बहुत कम ही खोलता था क्योंकि कभी-कभी भूलवश अगर यह खुला रह गया तो बंदर आदि आसानी से घर में आ जाते थे और बहुत सारा सामान इधर-उधर कर देते है। आप सोच रहे होंगे कि बंदर आदि कहाँ से आते होंगे तो मैं आप लोगों को बताना भूल गया कि यह हमारी बिल्डिंग एकदम से एक सुनसान किनारे पर थी और इसके अगल-बगल में बहुत सारे पेड़-पौधे, जंगली झाड़ियाँ आदि थीं।

एक दिन शाम के समय मेरे गाँव का ही एक लड़का जो उसी शहर में किसी दूसरी कंपनी में काम करता था, मुझसे मिलने आया। मैंने उससे कहा कि आज तुम यहीं रूक जाओ और सुबह यहीं से ड्यूटी चले जाना। पर वह बोला कि मेरी ड्यूटी सुबह 7 बजे से होती है इसलिए मुझे 5 बजे जगना पड़ेगा और आप तो 7-8 बजे तक सोए रहते हैं तो कहीं मैं भी सोया रह गयातो मेरी ड्यूटी नहीं हो पाएगी। इस पर मैंने कहा कि कोई बात नहीं। एक काम करते हैं, चार बजे सुबह का एलार्म लगा देते हैं और तूँ जल्दी से जगकर अपने लिए टिफिन भी बना लेना पर हाँ एक काम करना मुझे मत जगाना। रात को खा-पीकर लगभग 11.30 तक हम लोग सो गए। हम दोनों हाल में ही सोए थे। मैं खाट पर सोया था और वह लड़का लगभग मेरे से 2 मीटर की दूरी पर चटाई बिछाकर नीचे ही सोया था। एक बात और रात को सोते समय भी मैं हाल में जीरो वाट का बल्ब जलाकर रखता था।

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Last edited by rajnish manga; 11-03-2014 at 01:28 AM.
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Default Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ

अचानक लगभग रात के दो बजे मेरी नींद खुली। यहाँ मैं आप लोगों को बता दूँ कि वास्तव में मेरी नींद खुल गयी थी पर मैं लेटे-लेटे ही मेरी नजर किचन के दरवाजे की ओर चली गई, मैं क्या देखता हूँ कि एक व्यक्ति किचन का दरवाजा खोलकर अंदर गया और मैं कुछ बोलूँ उससे पहले ही फिर से किचन का दरवाजा धीरे-धीरे बंद हो गया। मुझे इसमें कोई हैरानी नहीं हुई क्योंकि मुझे पता था कि गाँव वाला लड़का ड्यूटी के लिए लेट न हो इस चक्कर में जल्दी जग गया होगा। बिना गाँववाले बच्चे की ओर देखे ही ये सब बातें मेरे दिमाग में उठ रही थीं। पर अरे यह क्या फिर से अचानक किचन का दरवाजा खुला और उसमें से एक आदमी निकलकर बाथरूम में घुसा और फिर से बाथरूम का दरवाजा बंद हो गया।

अब तो मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया और चूँकि वह गाँव का लड़का रिश्ते में मेरा लड़का लगता है इसलिए मैंने घड़ी देखी और उसके बिस्तर की ओर देखकर गाली देते हुए बोला कि बेटे अभी तो 3 भी नहीं बजा है और तूने जगकर खटर-पटर शुरू कर दिया। अरे यह क्या इतना कहते ही अचानक मेरे दिमाग में यह बात आई कि मैं इसे क्यों बोल रहा हूँ यह तो सोया है। अब तो मैं फटाक से खाट से उठा और दौड़कर उस बच्चे को जगाया, वह आँख मलते हुए उठा पर मैं उसको कुछ बताए बिना सिर्फ इतना ही पूछा कि क्या तूँ 2-3 मिनट पहले जगा था तो वह बोला नहीं तो और वह फिर से सो गया।अब मेरे समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, मैंने हाल में लगे ट्यूब को भी जला दिया था अब पूरे हालमें पूरा प्रकाश था और मेरी नजरें अब कभी बाथरूम के दरवाजे पर तो कभी किचन के दरवाजे पर थीं पर किचन और बाथरूम के दरवाजे अब पूरी तरह से बंद थे अब मैं हिम्मत करके उठा और धीरे से जाकर बाथरूम का दरवाजा खोला। बाथरूम छोटा था और उसमें कोई नहीं दिखा इसके बाद मैं किचन का दरवाजा खोला और उसमें भी लगे बल्ब को जला दिया पर वहाँ भी कोई नहीं था अब मैं क्या करूँ। नींद भी एकदम से उड़ चुकी थी। इस घटना का जिक्र मैंने किसी से नहीं किया। मुझे लगा यह मेरा वहम था और अगर किसी को बताऊँगा तो कोई मेरे रूम में भी शायद आने में डरने लगे।

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इस घटना को बीते लगभग 1 महीने हो गए थे और रात को फिर कभी मुझे ऐसा अनुभव नहीं हुआ। एक दिन मेरे गाँव के दो लोग हमारे पास आए। उनमें से एक को विदेश जाना था और दूसरा उनको छोड़ने आया था। वे लोग रात को मेरे यहाँ ही रूके थे और उस रात मैं अपने एक रिश्तेदार से मिलने चला गया था और रात को वापस नहीं आया। सुबह-सुबह जब मैं अपने रूम पर पहुँचा तो वे दोनों लोग तैयार होकर बैठे थे और मेरा ही इंतजार कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे बहुत ही डरे हुए और उदास हों। मेरे आते ही वे लोग बोल पड़े कि अब हम लोग जा रहें हैं। मैंने उन लोगों से पूछा कि फ्लाइट तो कल है तो आज की रात आप लोग कहाँ ठहरेंगे। उनमें से एक ने बोला रोड पर सो लेंगे पर इस कमरे में नहीं।

अब अचानक मुझे 1 महीना पहले घटित घटना याद आ गई। मैंने सोचा तो क्या इन लोगों ने भी इस फ्लैट में किसी अजनबी (आत्मा) को देखा? मैंने उन लोगों से पूछा कि आखिर बात क्या हुई तो उनमें से एक ने कहा कि रात को किसी व्यक्ति ने आकर मुझे जगाया और बोला कि कंपनी में चलते हैं। मेरा पर्स वहीं छूट गया है। फिर मैं थोड़ा डर गया और इसको भी जगा दिया। इसने भी उस व्यक्ति को देखा वह देखने में एकदम सीधा-साधा लग रहा था और शालीन भी। हम लोग एकदम डर गए थे क्योंकि हमें वह व्यक्ति इसके बाद किचन में जाता हुआ दिखाई दिया था और उसके बाद फिर कभी किचन से बाहर नहीं निकला और हमलोगों का डर के मारे बुरा हाल था।

हम लोग रातभर बैठकर हनुमान का नाम जपते रहे और उस किचन के दरवाजे की ओर टकटकी लगाकर देखते रहे पर सुबह हो गई है और वह आदमी अभी तक किचन से बाहर नहीं निकला है। अब तो मैं भी थोड़ा डर गया और उन दोनों को साथ लेकर तेजी से किचन का दरवाजा खोला पर किचन में तो कोई नहीं था। हाँपर किचन में गौर से छानबीन करने के बाद हमने पाया कि कुछ तो गड़बड़ है। जी हाँ.. दरअसल फ्रिज खोलने के बाद हमने देखा कि फ्रीज में लगभग जो 1 किलो टमाटर रखे हुए थे वे गायब थे और टमाटर के कुछबीज, रस आदि वहीं नीचे गिरे हुए थे और इसके साथ ही किचन में एक अजीब गंध फैली हुई थी।पता नहीं यह हम लोगों को वहम था या वास्तव में कोई आत्मा। मैंने इससे छुटकारा पाने के लिए उस फ्लैट को ही चेंज कर दिया i
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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