09-12-2010, 03:43 PM | #11 |
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Re: " रामायण "
पार्वती जी का जन्म और तपस्या
मृत्यु पूर्व सती जी ने भगवान हरि से यह वर माँगा था कि मेरा प्रत्येक जन्म में मेरा अनुराग शिव जी के चरणों में रहे। इसी कारण से उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती जी का शरीर पाकर पुनः जन्म लिया। हिमाचल के घर पार्वती जी के जन्म होने पर समस्त सिद्धियाँ एवं सम्पत्तियाँ वहाँ छा गईं, मुनियों ने जहाँ तहाँ आश्रम बना लिये और मणियों की खानें प्रकट हो गईं। पार्वती जी के जन्म के विषय में सुनकर कौतुकवश नारद जी हिमाचल के घर पधारे। हिमाचल ने देवर्षि नारद का यथोचित सत्कार किया और अपनी पुत्री को उनके चरणों में डाल कर कहा, “हे मुनिवर! आप त्रिकालज्ञ और सर्वज्ञ हैं, सर्वत्र ही आपकी पहुँच है। अतः हृदय में विचार कर के इस कन्या के गुण दोष कहिये।” नारद मुनि ने मुस्कुरा कर रहस्ययुक्त कोमल वाणी से कहा, “हे हिमाचल! तुम्हारी कन्या समस्त गुणों की खान है। यह स्वभाव से सुन्दर, सुशील और बुद्धिमती है। उमा, अम्बिका और भवानी इसके नाम हैं। यह कन्या सभी सुलक्षणों से सम्पन्न है और यह अपने पति को सदा प्यारी होगी। इसका सुहाग सदा अचल रहेगा और इसके माता पिता यश पावेंगे। यह सारे जगत् में पूज्य होगी और जो इसकी सेवा करेगा उसके लिये कुछ भी दुर्लभ नहीं रहेगा। संसार की समस्त पतिव्रताओं के लिये यह कन्या आदर्श होगी। तुम्हारी कन्या सभी प्रकार से सुलक्षणी है किन्तु इसके कुछ अवगुण भी हैं। इसकी हाथ की रेखा बताती है कि इसे गुणहीन, मानहीन, माता-पिता विहीन, उदासीन, संशयहीन, योगी, जटाधारी, निष्कामहृदय, नग्न और अमंगल वेष वाला पति मिलेगा।”
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