My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 11-05-2022, 06:24 AM   #1
आकाश महेशपुरी
Diligent Member
 
आकाश महेशपुरी's Avatar
 
Join Date: May 2013
Location: कुशीनगर, यू पी
Posts: 944
Rep Power: 24
आकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud of
Send a message via AIM to आकाश महेशपुरी
Default पुस्तैनी जमीन

पुस्तैनी जमीन

रामनरेश चाहते थे कि उनका बड़ा बेटा मनोहर ड्रामा पार्टी में काम न करे, लेकिन बार बार मना करने के बावजूद वह ड्रामा करने चला ही जाता था। मनोहर एक उत्कृष्ट नर्तक था। वह कभी पुरुष तो कभी महिला के परिधान में नृत्य किया करता था। उसके पिता को यह बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी। वह खुद को अपमानित महसूस करते थे।
रामनरेश का छोटा बेटा संतोष घर का सारा काम व खेती-बारी सम्हालता था। रामनरेश, संतोष के कार्यों से बहुत प्रसन्न रहते थे। वह हमेशा उसकी प्रशंसा किया करते थे। वह तो यह तक कहा करते थे कि यदि बड़े बेटे ने नाचना गाना नहीं छोड़ा तो वह अपनी पूरी जायदाद छोटे बेटे के नाम कर देंगे। यह सब सुनकर छोटी बहू, ससुर की आव-भगत में लगी रहती।
बड़ी बहू मनोहर से कहती 'बाबू जी अगर सच में सारी जमीन संतोष को दे देंगे तो हम लोग क्या करेंगे? आप नाच गाना छोड़कर कोई और काम क्यों नहीं कर लेते?' मनोहर कहता 'एक बाप इतना निर्दयी नहीं हो सकता कि अपने एक बेटे का हक छीनकर दूसरे बेटे को दे दे। वह ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे, तुम निश्चिंत रहो। जहाँ तक दूसरे काम का सवाल है, तो मैं दूसरा कुछ ठीक से नहीं कर पाऊँगा। कोई भी काम आदमी पैसे कमाने के लिए करता है, यदि मैं नाच गा कर ही अपनी रोजी-रोटी चला रहाँ हूँ तो इसमें खराबी क्या है?'
मनोहर की माँ को गुजरे कई वर्ष बीत गए थे। वह जब जीवित थीं तो उसकी ढाल बनीं रहतीं थीं, लेकिन अब तो प्रतिदिन पिता द्वारा अपमानित होना पड़ता था।
कुछ वर्ष इसी तरह और बीते। रामनरेश अब काफी बूढ़े हो चले थे। छोटी बहू इस उम्मीद में कि एक दिन सारी जायदाद हमारी होगी दिनरात उनकी सेवा में लगी रहती थी, लेकिन सच तो यही था कि अब वह तंग आ चुकी थी। एक दिन उसने अपने पति संतोष से फिर कहा 'इसी तरह सेवा करते करते सारी उम्र निकल जायेगी, और अगर इसी बीच बुढऊ चल दिये तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। आप जाकर जमीन अपने नाम क्यों नहीं करवा लेते?'
'मुझे यह सब करना अच्छा नहीं लग रहा, पर तुम्हारे जिद के कारण सब सेटिंग करवा आया हूँ।'
'ठीक है जी! मैं आज फिर बाबूजी से बात करूँगी।'
शाम को बढ़िया व्यंजन के साथ छोटी बहू, ससुर जी के पास पहुँची। खाना खिलाने के बाद उसने कहा 'मेरी सेवा में कोई कमी हो तो बताइए बाबूजी!'
'नहीं नहीं बहू! तुम्हारी जैसी बहू ईश्वर सबको दें, तुम मेरे घर की लक्ष्मी हो। तुमने जितनी मेरी सेवा की है, आज के युग में कोई नहीं करता। भगवान तुमको सदैव खुश रखें।'
'बाबूजी! आपका आशीर्वाद तो सदैव मिलता है, और मिलता रहेगा। लेकिन फलीभूत तभी होगा जब आप अपने वचन को पूरा भी कर देंगे। जेठ जी को तो आपके सम्मान से मतलब है नहीं! वे दिन रात इस वंश की उज्ज्वल छवि को धूमिल करने का ही काम करते हैं। जब उनको पूर्वजों के सम्मान से मतलब नहीं, तो उनको पूर्वजों की जायदाद से भी मतलब नहीं होना चाहिए। ये नाच गाने से अर्जित धन रहता ही कितने दिन है! आपके नहीं रहने पर जो हिस्सा उनको मिलेगा उसे बेंचकर खा जाएंगे। मैं आज फिर आपसे विनती करतीं हूँ कि अपनी पुस्तैनी जमीन को बिकने से बचाने के लिए हमारे नाम कर दीजिए।'
रामनरेश काफी सोच-विचार करने के बाद बस इतना बोल पाये- 'कब चलना है?'
'कल का दिन शुभ है, उनसे बात करूँ?
'इतनी जल्दी...! चलो ठीक है...!
रामनरेश ने अपनी सारी जमीन संतोष के नाम कर दी। कुछ दिनों के बाद जब इसकी जानकारी मनोहर और उसके परिवार को हुई तो उसके घर खाना नहीं बना। मनोहर ने तहसील में इस रजिस्ट्री के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी, परन्तु न्याय मिलने की उम्मीद उसे नहीं थी। अब आये दिन दोनों भाइयों में झगड़ा होता रहता, कई बार तो मार-पिट की नौबत भी आ जाती थी।
कुछ माह और बीते संतोष अब मनोहर को खेतों में घुसने भी नहीं देता था। छोटी बहू का ससुर के प्रति व्यवहार भी काफी बदल चुका था। जब ससुर के नाम कुछ रहा ही नहीं, तो फिर वह स्वार्थी महिला उनका सम्मान, उनकी सेवा क्यों करे? भोजन माँगने पर विलम्ब होना कोई बड़ी बात नहीं थी, पर जो भोजन गालियों के साथ मिले, वह भोजन नहीं, जहर होता है। रामनरेश स्वाभिमानी व्यक्ति थे। जब रोज का अपमान सहन नहीं हुआ तो घर से निकल पड़े।
काफी समय बीतने के बाद भी जब वह वापस नहीं आये, तो मनोहर ने डाँटते हुए अपने भाई से कहा 'नमकहराम, स्वार्थी, हरामखोर! उनकी सारी संपत्ति तो तुमने अपने नाम करवा ली, और अब उन्हें दो वक्त की रोटी भी नहीं दे पा रहे हो! बेशरम... रख ले तू उनकी सारी जायदाद! भले मुझे कुछ नहीं मिला, पर मैं अपने बाप को इस हाल में नहीं देख सकता। गरीब हूँ पर तुम्हारी तरह नीच नहीं। याद है तुम्हें, बचपन से उन्होंने तुम्हारी कितनी फिक्र की है। शायद तुम्हें याद न हो! जब तुम बीमारी से मरने वाले थे तो तुम्हें बचाने के लिए पिता जी ने जमीन आसमान एक कर दिया था। अपनी जिंदगी दाव पर लगा दी थी। मैं जाता हूँ उन्हें ढूँढने, तुम जाकर अपनी बीवी के पल्लू में छुप जाओ।'
'मैं भी चलता हूँ भैया! रुकिए!'
पीछे से पत्नी से संतोष का हाँथ पकड़ लिया। 'आप कहाँ जा रहे हैं जी! उनको जाने दीजिए। वे लाकर रक्खे अपने घर..., बुढ्ढे को...! पिंड छूटे...!
अचानक संतोष की आँखे गुस्से से लाल हो गईं, वह अपनी पत्नी को एक जोरदार तमाचा रसीद करते हुए दहाड़ा 'हरामखोर औरत! मेरा घर बरबाद करने चली है...! मेरे बाप...मेरे भाई को मुझसे छीनने चली है! अभी दूर हो जा मेरी नज़रों से...वरना! खून सवार है मुझपर...! मैं भैया को उनका हिस्सा भी दूँगा और पिता जी को अपने घर भी लाऊँगा। अगर आज के बाद फिर तुमने पिता जी की बेअदबी की तो मैं भूल जाऊँगा कि तुम मेरी पत्नी हो...!' यह सब देखकर मनोहर भावुक हो गया, उसने अपने भाई को गले लगा लिया। संतोष का मन भी अब निर्मल हो चुका था। दोनों की आँखों से आँसुओं की बूंदे टपकने लगीं।

कहानी - आकाश महेशपुरी
दिनांक- 08/05/2022
आकाश महेशपुरी is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 04:02 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.