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Old 17-02-2011, 09:44 AM   #11
Kumar Anil
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१ इस दर्द को व्ही बया कर सकता जिस के घर में कई -२ लडकिया हे और शादी करने के लिए पैसे नही होते !

२ कोई लड़कियों के लिए तरसता हे ! तो कोई लडको के लिए तरसता हे किसी के पास इतने लडके हे की वो लड़की की तमना में ही रहता हे जिदगी भर !

३ हर चीज के दो पहलू होते हे अच्छे भी और बुरे भी

यहा पर लिखना बहुत आसान होता हे काश कोई उसके दिल से भी पूछे जिन पर ये बीतती हे !

में कई ऐसे दोस्तों को जनता हू जिनके साथ ये प्रोब्लम हे !
सागर भाई ! आपके विचारोँ मेँ दो बातेँ प्रतिध्वनित हो रही हैँ , प्रथम तो जाने अनजाने आपने भ्रूण हत्या को दहेज के कारण न्यायसंगत सिद्ध करने की कोशिश कर डाली और अन्ततोगत्वा लड़की के समस्त गुण , धर्म , भावनाओँ को दरकिनार करते हुये मात्र विवाह के लिये ही उसके वज़ूद को अपनी स्वीकृति प्रदान की । आदिकाल से ही पुरुष सामंती सोच का था । शायद इसीलिये हमारी स्त्रियोँ को हीनतर और कमतर होने का बोध कराया जाता रहा । परिणामतः इस हीन वर्ग से नाता जोड़ने के लिये ही क्षतिपूर्ति की अवधारणा के तहत दहेज नामक भस्मासुर को ईज़ाद कर लिया गया होगा । आप आज के सन्दर्भ मेँ जरा झाँक कर देखिये तो सही । कुछ एक लोगोँ को अपवादस्वरूप छोड़ दीजिये । क्या हमारे साझा मुद्दोँ पर भी निर्णय एकल नहीँ हुआ करते । अपनी मूर्खता और मूढ़ता पर बाहर लतिया जाने वाला पुरुष घर मेँ अपनी बीबी के सामने बुद्धिमत्ता का सिरमौर बना घूमता रहता है । अब भला हम इस पुरुषप्रधान देश मेँ अपनी सामंती सोच और हमारे द्वारा ही पोषित दहेज समस्या का ठीकरा इन लड़कियोँ के ऊपर क्योँ फोड़े ? इसमेँ इनका क्या दोष हैँ ? हमेँ समस्याओँ से लड़ना होगा न कि उसके शार्टकट अपनाने के लिये भ्रूणहत्या को बढ़ावा देना होगा । समस्या के लिये मानव देह की बलि हमारे पैशाचिक कृत्योँ का वो खूनी दलदल है जिसमेँ मानवता कराह रही है , हमारी कायरता हमेँ धिक्कार रही है और हमारी लड़कियोँ की चीखेँ हमसे पूछ रही हैँ कि तुम्हारी सज़ा भला हम क्योँ भुगतेँ ? जब तुम किसी को जीवन दे नहीँ सकते तो छीनने का हक़ किसने दिया ?
__________________
दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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Old 17-02-2011, 10:19 AM   #12
Bholu
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बहुत बढिया अनिल जी
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Old 17-02-2011, 10:26 AM   #13
Sikandar_Khan
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सागर भाई ! आपके विचारोँ मेँ दो बातेँ प्रतिध्वनित हो रही हैँ , प्रथम तो जाने अनजाने आपने भ्रूण हत्या को दहेज के कारण न्यायसंगत सिद्ध करने की कोशिश कर डाली और अन्ततोगत्वा लड़की के समस्त गुण , धर्म , भावनाओँ को दरकिनार करते हुये मात्र विवाह के लिये ही उसके वज़ूद को अपनी स्वीकृति प्रदान की । आदिकाल से ही पुरुष सामंती सोच का था । शायद इसीलिये हमारी स्त्रियोँ को हीनतर और कमतर होने का बोध कराया जाता रहा । परिणामतः इस हीन वर्ग से नाता जोड़ने के लिये ही क्षतिपूर्ति की अवधारणा के तहत दहेज नामक भस्मासुर को ईज़ाद कर लिया गया होगा । आप आज के सन्दर्भ मेँ जरा झाँक कर देखिये तो सही । कुछ एक लोगोँ को अपवादस्वरूप छोड़ दीजिये । क्या हमारे साझा मुद्दोँ पर भी निर्णय एकल नहीँ हुआ करते । अपनी मूर्खता और मूढ़ता पर बाहर लतिया जाने वाला पुरुष घर मेँ अपनी बीबी के सामने बुद्धिमत्ता का सिरमौर बना घूमता रहता है । अब भला हम इस पुरुषप्रधान देश मेँ अपनी सामंती सोच और हमारे द्वारा ही पोषित दहेज समस्या का ठीकरा इन लड़कियोँ के ऊपर क्योँ फोड़े ? इसमेँ इनका क्या दोष हैँ ? हमेँ समस्याओँ से लड़ना होगा न कि उसके शार्टकट अपनाने के लिये भ्रूणहत्या को बढ़ावा देना होगा । समस्या के लिये मानव देह की बलि हमारे पैशाचिक कृत्योँ का वो खूनी दलदल है जिसमेँ मानवता कराह रही है , हमारी कायरता हमेँ धिक्कार रही है और हमारी लड़कियोँ की चीखेँ हमसे पूछ रही हैँ कि तुम्हारी सज़ा भला हम क्योँ भुगतेँ ? जब तुम किसी को जीवन दे नहीँ सकते तो छीनने का हक़ किसने दिया ?
अनिल भाई जी
आपके विचारों को शत -शत नमन
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 17-02-2011, 03:40 PM   #14
Kumar Anil
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अनिल भाई जी
आपके विचारों को शत -शत नमन
शुक्रिया मित्र ! परन्तु विचार क्रियान्वन मेँ परिणत न हो सकने पर अर्थहीन हो जाते हैँ । आवश्यकता तो इस बात की है कि दहेजरूपी नासूर को समाप्त कर भ्रूणहत्या जैसे जघन्य अपराध से बच सकेँ ।
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Old 18-02-2011, 06:44 AM   #15
Bholu
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शुक्रिया मित्र ! परन्तु विचार क्रियान्वन मेँ परिणत न हो सकने पर अर्थहीन हो जाते हैँ । आवश्यकता तो इस बात की है कि दहेजरूपी नासूर को समाप्त कर भ्रूणहत्या जैसे जघन्य अपराध से बच सकेँ ।
मान गाये अनिल भाईया आप तो नायक के अनिल कपूर निकले
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Gaurav kumar Gaurav
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Old 26-03-2011, 09:26 PM   #16
Sikandar_Khan
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धनिया लेटी है अपनी खाट पर
देख रही है सुंदर सपना
सोच रही है इस दुनिया में
कोई तो होगा अपना,
वो खुश है आज, बहुत खुश
क्योंकि कुछ ही महीनों के बाद
वो बनने वाली है माँ
उसके मन में
माँ बनने की उमंग है
दिल में ममता की तरंग है,
सोच रही है
मेरे जैसी होगी मेरी बेटी
जो घूमेगी घर के आँगन में
रुनझुन-रुनझुन,
जो बोलेगी
अपनी तोतली बोली में
और कहेगी ‘माँ जला छुन
जब मेली छादी होदी न
सुंदल-सा दूल्हा आएदा
मैं दोली में बैठतल
अपनी छुछराल चली जाऊँदी !
पर माँ लोना नईं
जब तू बुलाएगी ना
मैं झत से दौलतल
तेरे पास चली आऊँगी
या फिल तुझे बुला लूँदी अपने पाछ !’
धनिया खुश थी मन ही मन
उसके दिल में
प्रसन्नता की हिलोरें उठ रही थीं
उसने पहले ही सोच लिया था
कि अपनी चाँद-सी बेटी को
पढ़ना सिखाऊँगी,
लिखना सिखाऊँगी
और उससे खत लिखवाऊँगी,
फिर मैं अपने मन की बात को
अपनी अम्मा और बापू तक
पहुँचा सकूँगी !
इन्हीं विचारों में उलझी
धनिया बड़ी बेसब्री से
सुबह होने का
कर रही थी इंतज़ार
सोच रही थी बारंबार
कल जब अल्ट्रासाउंड की
रिपोर्ट आएगी घर पर
तो खुश होंगे
मेरे साथ-साथ सभी परिवारी-जन
करेंगे इंतज़ार
नन्ही-सी परी के आने का !
पास-पड़ौस के सभी लोग
देने आएँगे बधाई
मेरे माँ-बापू भी मनाएँगे उत्सव
गाए जाएँगे मंगलगीत
मिलेगी मुझे सबकी प्रीत !
अपनी परी का नाम
रखूँगी चमेली जो बड़ी होकर बनेगी
अनोखी, अलबेली
रक्षाबंधन के दिन
भैया की सूनी कलाई पर
बाँधेगी राखी
भैया भी उसको
देगा रक्षा का वचन !
मेरे सपनों की परी
जब और बड़ी होगी
तो घर के कामों में
बटाएगी मेरा हाथ
मेरे थकने पर प्यार से
मेरा सिर सहलाएगी,
अपने दादी-बाबा की
वो बनेगी लाडली
घर में बनेगी सबकी दुलारी
दोपहर को खेत पर
अपने बापू के लिए
लेकर जाएगी रोटी
तब मेरे बुझे मन को
और थके तन को
मिलेगा थोड़ा-सा आराम
मुझे मिलेगा मेरा खोया हुआ
अपना ही सुंदर नाम !
यही सोचते-सोचते धनिया
न जाने कब सो गई
मीठे-मीठे सपनों में खो गई
मुँह अँधेरे ही वो उठकर बैठ गई
जब उठी तो थी बहुत
उल्लसित और प्रफुल्लित,
जल्दी-जल्दी कर रही थी
घर के सारे काम
कामों से निपटकर
वह बैठी ही थी
कि अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट लेकर
उसका पति मुँह लटकाए आया
समझ नहीं आ रहा था
उसकी उदासी का राज़
पूछने पर उसने बताया
‘रिपोर्ट नहीं है अच्छी’
सभी थे चिंतामग्न
सभी थे परेशान
अनहोनी की आशंका से
सब तरफ थी खामोशी ,चुप्पी
और सभी कर रहे थे इंतज़ार
रिपोर्ट को जानने का !
छाई हुई खामोशी को तोड़ते हुए
धनिया का पति बोला ¬–
‘ रिपोर्ट में तो लड़की बताई है ‘
घर के सभी सदस्यों ने
ठंडी साँस ली और बोले-
‘ इसमें चिंता की क्या बात है
अब तो हमारे देश ने
बड़ी उन्नति कर ली है ‘
घर के बुजुर्ग बोले-
‘ चिंता मतकर
डॉक्टर से मिलकर
इस आफत से मुक्ति पा लेंगे
इस बार नहीं
तो कोई बात नहीं
अगली बार
घर का चिराग पा लेंगे !’
पर किसी ने
उस माँ के दिल की पीड़ा को
न समझा, न जाना
न उसकी मन:स्थिति को पहचाना !
वह बुझी-सी, टूटी-सी
उठकर चली गई अंदर
और बहाती रही आँसू
वह अपने मन की टीस को
किसी से बाँट भी तो नहीं सकती
अपने मन की बात
किसी से कह भी तो नहीं सकती
कहेगी तो सुनेगा कौन
इसीलिए तो वो है मौन !
धनिया की आँखें निरंतर
बरस रही थीं झर-झर
मानो कह रही हों, सुनो,
समाज के कर्णधारो ! सुनो
समाज के सुधारको सुनो,
बेटों के चाहको सुनो न !
मेरा तो बस यही है कहना
ऐसे सोच को समाज के
दिलो-दिमाग से पूरी तरह
निकालकर फेंक दो न !
और उन सबको समझाओ
जो बेटी नहीं, चाहते हैं बेटा !
यदि देश में इसी तरह
सताई जाती रहेंगी बेटियाँ
होती होती रहेंगी भ्रूण हत्याएँ
तो एकदिन ऐसा आएगा
जब हमारे चारों ओर
होंगे केवल बेटे-ही-बेटे
दु:ख-दर्द को मिटाने वाली
बेटियाँ कहीं दूर तक
नज़र नहीं आएँगीं,
और एकदिन ऐसा आएगा
जब पुरुष रह जाएगा अकेला
अच्छा नहीं लगेगा
उसे दुनिया का मेला,
और फिर वह अकेले ही अकेले
ढोएगा जीवन का ठेला !


डॉ. मीना अग्रवाल
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Old 26-03-2011, 09:34 PM   #17
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अपने सपनों को नई ऊँचाई देने के लिये
मैंने बड़े जतन से टुकड़ा टुकडा आसमान जोडा था
तुमने परवान चढ़ने से पहले ही मेरे पंख
क्यों कतर दिये माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने भविष्य को खूबसूरत रंगों से चित्रित करने के लिये
मैने क़तरा क़तरा रंगों को संचित कर
एक मोहक तस्वीर बनानी चाही थी
तुमने तस्वीर पूरी होने से पहले ही
उसे पोंछ क्यों डाला माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने जीवन को सुख सौरभ से सुवासित करने के लिये
मैंने ज़र्रा ज़र्रा ज़मीन जोड़
सुगन्धित सुमनों के बीज बोये थे
तुमने उन्हें अंकुरित होने से पहले ही
समूल उखाड़ कर फेंक क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
और अगर हूँ भी तो क्या यह दोष मेरा है ?


साधना वैद
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Old 26-03-2011, 09:49 PM   #18
VIDROHI NAYAK
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अपने सपनों को नई ऊँचाई देने के लिये
मैंने बड़े जतन से टुकड़ा टुकडा आसमान जोडा था
तुमने परवान चढ़ने से पहले ही मेरे पंख
क्यों कतर दिये माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने भविष्य को खूबसूरत रंगों से चित्रित करने के लिये
मैने क़तरा क़तरा रंगों को संचित कर
एक मोहक तस्वीर बनानी चाही थी
तुमने तस्वीर पूरी होने से पहले ही
उसे पोंछ क्यों डाला माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने जीवन को सुख सौरभ से सुवासित करने के लिये
मैंने ज़र्रा ज़र्रा ज़मीन जोड़
सुगन्धित सुमनों के बीज बोये थे
तुमने उन्हें अंकुरित होने से पहले ही
समूल उखाड़ कर फेंक क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
और अगर हूँ भी तो क्या यह दोष मेरा है ?


साधना वैद
क्या रुलाने का इरादा है सिकंदर भाई ?
__________________
( वैचारिक मतभेद संभव है )
''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है''

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Old 26-03-2011, 09:58 PM   #19
Sikandar_Khan
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Originally Posted by vidrohi nayak View Post
क्या रुलाने का इरादा है सिकंदर भाई ?
क्या कुछ गलत लिख
दिया है ?
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Old 26-03-2011, 10:04 PM   #20
VIDROHI NAYAK
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क्या कुछ गलत लिख
दिया है ?
नहीं कुछ मार्मिक लिखा है ! वास्तव में हम आज भी इन चीजों को समझ नहीं पाए हैं !
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''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है''

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