02-08-2014, 11:52 PM | #24 |
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Re: कथा-लघुकथा
आत्मसंतोष की दौलत
साभार: डॉ. एच. आर. कुमावत ^ एक गांव में एक गरीब आदमी रहता था। वह बहुत मेहनत करता, अपनी ओर से पूरा श्रम करता, लेकिन फिर भी वह धन न कमा पाता। इस प्रकार उसके दिन बड़ी मुश्किल में बीत रहे थे। कई बार तो ऐसा हो जाता कि उसे कई-कई दिन तक सिर्फ एक वक्त का खाना खाकर ही गुजारा करना पड़ता। इस मुसीबत से छुटकारा पाने का कोई उपाय उसे न सूझता।^ एक दिन उस गरीब आदमी को एक महात्माजी मिल गए। गरीब ने उन महात्माजी की बहुत सेवा की। महात्माजी उसकी सेवा से प्रसन्न हो गए और उसे धन की देवी की आराधना का एक मंत्र दिया। मंत्र से कैसे देवी की स्तुति व स्मरण किया जाए, उसकी पूरी विधि भी महात्माजी ने उसे अच्छी तरह समझा दी। गरीब उस मंत्र से देवी की नियमित प्रार्थना करने लगा। कुछ दिन मंत्र आराधना करने पर देवी उससे प्रसन्न हुईं और उसके सामने प्रकट हुईं। देवी ने उस गरीब से कहा, ‘मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हूं। बोलो, क्या चाहते हो? नि:संकोच होकर मांगो।’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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