03-08-2012, 10:58 PM | #1 |
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खुदगर्जी तो देख ली सबने मेरी मजबूरी कौन दे
जिसको मौका मिलेगा दो रोटी पहले अपनी सकेगा ! तुझे क्या मालूम काम कैसे चल रहा है मरता क्यों मैं नहीं देख के जमाना जल रहा है पी कर के जहर आंसू का कैसे हंसी ही उगल रहा है मिलन दो दिन का देख लिया सबने सदियों लम्बी दूरी कौन देखेगा ! आस का दामन थाम के ......हम तो तेरी आस लेके बैठे है जाने कब बंद हो जाये क्या मालूम .......बाकि चंद सांसे ले के बैठे है खुली रख के भी आँखे अपनी पलकों में सपने तुम्हारे देखे है '' नामदेव ''बस यु हीं रुके है के बाद हमारे कौन राह तुम्हारी देखेगा लेखक --सोमबीर सिंह सरोया |
17-10-2012, 03:20 PM | #2 |
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Re: खुदगर्जी तो देख ली सबने मेरी मजबूरी कौन दे
Me dard ki kalam se apne jakhmo pe likh rahi thi...
Kuch shabd aise jinse hum wakif kabhi na the.... |
18-10-2012, 12:46 AM | #3 | |
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Re: खुदगर्जी तो देख ली सबने मेरी मजबूरी कौन दे
Quote:
आपको भी श्रेष्ठ सृजन के लिए शुभकामनाएं, सोमवीरजी !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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18-10-2012, 10:23 PM | #4 |
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Re: खुदगर्जी तो देख ली सबने मेरी मजबूरी कौन दे
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19-10-2012, 12:20 PM | #5 |
Special Member
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Re: खुदगर्जी तो देख ली सबने मेरी मजबूरी कौन दे
सबसे अच्छी बात की आपकी गलतियाँ बहुत कम हो गयी है
लिखते तो आप हमेशा ही अच्छा थे
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
21-10-2012, 11:46 PM | #6 |
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Re: खुदगर्जी तो देख ली सबने मेरी मजबूरी कौन दे
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