02-10-2012, 08:06 AM | #1 |
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हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया
बन्दा भला था सब्र दिखाता चला गया . अपनों की हर ख़ुशी में उसे भी ख़ुशी मिले ; वो दिल को इस तरह का बनाता चला गया . हर कायदा बना है शरीफों के वास्ते ; हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया . मर्दानगी ही मस,अलों से जूझती रही ; नामर्द उनसे आँख चुराता चला गया . दुनिया संवारने का जुनूं जिसके सिर चढ़ा ; वो ज़ख्म अपने दिल पे कमाता चला गया . नामर्दगी हुनर में जो तब्दील कर सका ; दुनिया का हर इक लुत्फ़ उठाता चला गया . सच ये भी है , नामर्द को सब भूलते गये ; हर मर्द हर ज़ेहन में समाता चला गया . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . |
02-10-2012, 11:59 AM | #2 | |
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Re: हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया
यू तो आपकी हर रचना बेजोड़ है पर इस रचना की निम्नलिखित पंक्तियों ने तो मरम की बात कहे दी।
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02-10-2012, 02:50 PM | #3 |
Administrator
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Re: हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया
हर कायदा बना है शरीफों के वास्ते ;
बिलकुल सही बात है बहुत ही शानदार रचना है डॉक्टर साहब।
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02-10-2012, 10:48 PM | #4 |
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Re: हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया
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04-10-2012, 11:16 PM | #5 |
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Re: हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया
बहुत सुन्दर रचना है / धन्यवाद /
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04-10-2012, 11:29 PM | #6 |
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Re: हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया
नामर्दगी हुनर में जो तब्दील कर सका ;
दुनिया का हर इक लुत्फ़ उठाता चला गया . बहूत खूब लिखा डॉ साहब हमेशा की तरह एक बेजोड़ काव्य संगम सुंदर सब्द और भावो का मिश्रण बेजोड़ है बधाई हो सोमबीर नामदेव |
15-10-2012, 09:07 PM | #7 |
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Re: हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया
अत्यधिक आभार आप सभी का सर्वश्री सोम वीर जी , अभिशेष जी , युवराज जी ,अनिल कृति , डार्क सेंट अल्लैक जी .
समस्त अज्ञात पाठकों का भी आभार व्यक्त करता हूँ . |
28-10-2012, 05:06 PM | #8 |
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Re: हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया
[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;165675]
कान्धों पे रोज़ बोझ बढ़ाता चला गया ; बन्दा भला था सब्र दिखाता चला गया . अपनों की हर ख़ुशी में उसे भी ख़ुशी मिले ; वो दिल को इस तरह का बनाता चला गया . हर कायदा बना है शरीफों के वास्ते ; हर मर्द मात फ़र्ज़ से खाता चला गया . डा. श्रीवास्तव, बहुत सुन्दर. विशेष रूप से पहले कुछ शे’र तो दिल छू लेते हैं. धन्यवाद और बधाई. |
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