11-09-2013, 06:27 PM | #1 |
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क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले
क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले पिघल रहे है लम्हात बदल रहे है हालत क्यूँ न इस ज़माने को बदल दे एक ऐसी खबर छोड़ चले कोई शक्स कंही रुका सा कोई शक्स कंही थमा सा क्यूँ न एन बेजान बुतों में एक पैकर छोड़ चले हर तरफ अँधेरा , ख़ामोशी , तन्हाई , बेरुखी , रुसवाई क्यूँ न नूरे मुजस्सिम का एक सितायिश्गर छोड़ चले इन बेईज्ज़त बे परवाह ताजरी-तोश ज़माने में क्यूँ न कह दे रेत से ये अन्ल्बहर छोड़ चले हर तरफ धोखा, झूट, फरेब, नाइंसाफी , बेमानी क्यूँ न बुझती अतिशे-सचाई पर एक शरर छोड़ चले कैसे लाये वोह अबरू हया दिलके-हर दोशे में क्यूँ न हर किसी की मोजे शरोदगी पर एक नज़र छोड़ चले मची है नोच खसोट एक होड़ हर तरफ पाने की क्यूँ न पाकर अपनी मंजिल को यह लम्बा सफ़र छोड़ चले करके अपने ख्वाबों को पूरा क्यूँ न अपनी ताबीर को मु'यासर' छोड़ चले
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11-09-2013, 06:57 PM | #2 |
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Re: क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले
असरदार प्रस्तुती.....
और मजा आता अगर शब्द सरल होते
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
11-09-2013, 08:52 PM | #3 |
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Re: क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले
[quote=dipu;371611]
इस रचना में कुछ कहने की तड़प तो दिखाई देती है किन्तु कुछ उर्दू शब्द या तो ठीक लिखे नहीं जा सके, या समझ में नहीं आते. इन्हीं शब्दों में से कुछ इस प्रकार हैं: सितायिश्गर, अन्ल्बहर, अतिशे-सचाई, दोशे, मोजे शरोदगी, इसके अतिरिक्त निम्न दो शे'र अपनी बात को पाठक तक पहुंचा नहीं पाते: मची है नोच खसोट एक होड़ हर तरफ पाने की क्यूँ न पाकर अपनी मंजिल को यह लम्बा सफ़र छोड़ चले करके अपने ख्वाबों को पूरा क्यूँ न अपनी ताबीर को मु'यासर' छोड़ चले |
11-09-2013, 09:13 PM | #4 |
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Re: क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले
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11-09-2013, 09:13 PM | #5 | |
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Re: क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले
[QUOTE=rajnish manga;371735]
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11-09-2013, 11:53 PM | #6 |
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Re: क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले
बहुत खूब.
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