09-06-2011, 12:03 AM | #1 |
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मुद्दे की बात
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
09-06-2011, 12:04 AM | #2 |
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Re: मुद्दे कि बात
देश के सामने गंभीर हालात मौजूद हैं. आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी आक्रामक और अलगाववादी गतिविधियां बदस्तूर जारी हैं. अराजक तत्व गाहे-बेगाहे सिर उठाते फिर रहे हैं, घाटी की हालत जग जाहिर है. पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर दुविधापूर्ण स्थिति बनी हुई है. उत्तर-पूर्व के राज्य उपेक्षित हैं. संवैधानिक दायित्वों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है. ऐसे में कई सवालात ऐसे हैं जिनका समाधान खोजना राष्ट्र हित में अनिवार्य है. यथा,
क्या सरकार का दायित्व केवल अपनी सत्ता बचाने और मंत्रियों व मातहतों का स्वार्थ सिद्ध करने तक है या उसके दायरे में पूरा देश और आम जनता का हित आता है? यूपीए सरकार की कार्यशैली जनहित और राष्ट्रहित की दिशा में किस सीमा तक उपयुक्त है? आतंकवादियों के प्रति बरती जा रही नरमी का गुनाहगार कौन है? भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देती सरकार से देश हित की दिशा में किस सीमा तक उम्मीद की जा सकती है.
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09-06-2011, 12:06 AM | #3 |
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Re: मुद्दे कि बात
भारत अपनी तकदीर पर चीत्कार कर रहा है. रहनुमा बन कर सत्तासीन ताकतें उसकी इस बेबसी पर भयानक हंसी से सराबोर हो रही हैं. सरकार अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटते हुए अपनी छाती खुद ही ठोंक रही है, जबकि जनता जिसे कभी जनार्दन कहा जाता था, आज मजबूर और असहाय होकर उनके इस क्रूर मजाक को खून के आंसू जज्ब कर सहन करते जा रही है.
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12-06-2011, 11:14 AM | #4 |
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Re: मुद्दे कि बात
बढिया सूत्र है
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17-06-2011, 06:52 PM | #5 |
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Re: मुद्दे कि बात
सावधान ! ये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार है
कैसे रहते होंगे लोग तानाशाही में, इस बात को समझने के लिए ये जरूरी नहीं की आपको हिटलर का इतिहास पढना पढ़े, या सद्दाम हुसैन को जानना पड़े. भारत सरकार भी किसी तानाशाह से कम नहीं है. कहने के लिए हो सकता है की भारत एक लोकतांत्रिक देश है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अपनी लोकतांत्रिक छवि को धूमिल किया है ये सब कुछ हुआ केंद्र सरकार के स्वार्थी दृष्टिकोण के कारण. सारी मर्यादाएं ताक पर रख दी गयीं हैं, लगता ही नहीं की यहाँ जनता के द्वारा चुनी हुई जनता की ही सरकार है. राजनेताओं ने राजनीति की परिभाषा ही बदल कर रख दी है, देश के नेता वास्तव में कोई नेता नहीं होकर केवल राजनैतिक व्यक्ति हैं और उन के लिए ये राष्ट्र, इसके नागरिक, इसकी संस्कृति सब गौड़ हैं. केवल स्वार्थ सर्वोपरि है. राष्ट्रवाद पर व्यक्तिपूजा भारी है. विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में, लोकतंत्र कैसे स्थापित रह सकता है, लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना कैसे हो सकती है जबकि सरकार में बैठी सत्तासीन राजनैतिक पार्टी में ही लोकतंत्र नहीं है.
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17-06-2011, 06:53 PM | #6 |
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Re: मुद्दे कि बात
वास्तव में, सत्तासीन पार्टी के अन्दर ही प्रजातंत्र का आभाव है और सब के सब एक खास परिवार के आगे नतमस्तक हैं चाहे वो सही हो या गलत, चाहे उन्हें देश की जनता चाहती हो या नहीं, पार्टी में उस परिवार के विरुद्ध किसी को बोलने का अधिकार नहीं है, पार्टी तो क्या देश में भी यदि कोई इस परिवार के विरुद्ध कोई बोलता है तो इस पार्टी के कार्यकर्ता देश में तोड़फोड़ पर उतारू हो जाते हैं, गुंडागर्दी करते हैं…………
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17-06-2011, 06:53 PM | #7 |
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Re: मुद्दे कि बात
आजादी के बाद से आज तक ८०% से ज्यादा समय तक यही पार्टी सत्ता में बनी रही है. तो देश में फैली अराजकता के लिए कोई और जिम्मेदार कैसे हो सकता है. आजादी के साथ ही इस पार्टी ने देश को एक एक कर के समस्याएं उपहार स्वरुप देनी शुरू की, कश्मीर, आतंकवाद, पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह, नागा, बोडो, उल्फा, नक्सलवाद, माओवाद, साम्प्रदायिकता, बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि. और ये सब समस्याएं एक साथ नहीं आयीं बल्कि धीरे धीरे आयीं हैं इन समस्याओं ने एक साथ इतना विकराल रूप धारण नहीं किया बल्कि धीरे धीरे ये बढती चली गयीं. वास्तव में समस्याओं के बढ़ने का कारण उनका निराकरण न करना रहा है पहले पहल तो समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया गया और बाद में उसका निराकरण करने की इच्छाशक्ति नहीं थी, साथ ही साथ दूरदर्शिता की कमी और पार्टी नेताओं का अपना स्वार्थ भी इन राष्ट्रीय समस्याओं के निराकरण के आड़े आता रहा.
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17-06-2011, 06:55 PM | #8 |
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Re: मुद्दे कि बात
निश्चित ही आज राष्ट्र की जो स्थीति है उस के लिए केवल एकमात्र आज की सत्तासीन राजनैतिक पार्टी ही है. क्योंकि इसने जानबूझकर अपने वोट बैंक की खातिर इन समस्याओं को पैदा किया और देश को अलग अलग समुदायों में बांटे रखा, घोर साम्प्रदायिकता का बीज बोया. कोई भी सरकार देश के बहुसंख्यक वर्ग की उल्हेना करके राष्ट्र में शांति स्थापित नहीं कर सकती. और इस पार्टी की सरकार ने हमेशा ही जनभावनाओं को अंगूठा दिखाया, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बाँट दिया, आरक्षित और गैर आरक्षित में बाँट दिया जिस से लोग केवल अपने स्वार्थ को ही सर्वोपरि रखें और राष्ट्रीय मुद्दों से उदासीन बने रहे …….! अब क्योंकि समस्याएं विकराल हो गयीं हैं और जनता जागरूक, बस यहीं से एक लोकतांत्रिक सरकार अपने स्वार्थों की पूर्ती के लिए और राष्ट्रीय हितों को ताक पर रखकर निरंकुश हो गयी है. प्रजातंत्र ख़त्म, तानाशाही शुरू.
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17-06-2011, 07:05 PM | #9 | |
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17-06-2011, 08:06 PM | #10 | |
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Re: मुद्दे कि बात
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