10-03-2014, 06:10 PM | #111 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पानी, जहर और जीडीपी :......... लेखक : देविंदर शर्मा...... आप जितना प्रदूषित पानी पिएंगे, बीमार पड़ने की उतनी ही अधिक संभावना होगी. फिर आप डाक्टर के पास जाएंगे, जो आपसे फीस वसूलेगा. जिसका मतलब हुआ कि पैसा हाथों से गुजरेगा. इससे जीडीपी बढ़ेगी. यहां तक कि सफाई अभियान भी, जैसे यमुना की सफाई के लिए एक हजार करोड़ रुपए की परियोजना, जो जीडीपी की गणना को बढ़ाती है । यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में नदियों को प्रदूषित करने की अनुमति दी जाती है. इससे जीडीपी में तिहरी वृद्धि होती है. पहले तो प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की स्थापना करके. दूसरे, प्रदूषित पानी पीने के कारण बीमार पड़ने पर लोगों को चिकित्सा पर अधिक रकम खर्च करनी पड़ती है, जिससे जीडीपी में वृद्धि होती है. और अंत में, नदियों को साफ करने के लिए तकनीकी निवेश भी जीडीपी को बढ़ाता है. इस तरह, नदियों में जितनी गंदगी गिरेगी, देश की जीडीपी में उतनी ही वृद्धि होगी :............ (लेखक खाद्य नीति के विशेषज्ञ हैं) साभार:.........
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10-03-2014, 06:12 PM | #112 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पानी, जहर और जीडीपी :......... लेखक : देविंदर शर्मा...... पीने के पानी की उपलब्धता सिकुड़ने के मुद्दे पर वापस आएं. एक संसदीय समिति ने बताया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 84 प्रतिशत से अधिक घर ग्रामीण जलापूर्ति के दायरे में आते हैं, फिर भी केवल 16 प्रतिशत आबादी ही सार्वजनिक नलों से पानी का पानी ले पाती है. मात्र 12 प्रतिशत घरों में ही व्यक्तिगत नल की व्यवस्था हैं. क्या इससे झटका नहीं लगता कि आजादी के 63 साल बाद भी केवल 12 प्रतिशत ग्रामीण घरों में पीने के पानी के नल हैं? यह हाल भी तब है जबकि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम जारी है, जिसके लिए 2009-10 में आठ हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. आश्चर्यजनक बात यह है कि पीने के पानी वाले नल भले ही सूख रहे हैं, लेकिन टैंकरों से आपूर्ति किए जाने वाले जल की कभी कोई समस्या नहीं रही. उदाहरण के तौर पर मुंबई में तकरीबन 48 प्रतिशत पीने का पानी खराब पाइपलाइनों की वजह से बहकर नष्ट हो जाता है. कुछ लोग सोचते हैं कि यह बहुत सामान्य बात है क्योंकि यहां टैंकर माफियाओं का राज है. टैंकर माफियाओं का राज केवल मुंबई शहर में ही नहीं है बल्कि देश के दूसरे शहरों में भी चलता है. यदि पूरे देश में पानी के स्रोत सूख रहे हैं तो आश्चर्य है कि इन टैंकरों को पानी कहां से मिलता है?. हरेक को मालूम है कि देश भर में पानी की कमी और सूखा आदि की वजह यह टैंकर माफिया हैं, लेकिन इस पर ध्यान किसे है :............ (लेखक खाद्य नीति के विशेषज्ञ हैं) साभार:.........
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10-03-2014, 06:13 PM | #113 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पानी, जहर और जीडीपी :......... लेखक : देविंदर शर्मा...... जल संकट की इस समस्या की एक बड़ी वजह औद्योगिक इकाईयां हैं. यह पीने के पानी को गटक जाते हैं और नदियों के साथ पानी के दूसरे स्रोतों को प्रदूषित करते हैं. इसके बाद कंपनियां अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के तहत पानी बचाओ अभियान शुरू करती हैं. गुणगांव में आईटीसी कंपनी ने एक ऐसा ही प्रोजेक्ट लांच किया है. इसमें घरों में काम करने वाली नौकरानियों को बताया जाता है कि किस तरह वे बरतन की सफाई करते हुए एक मग जल की बचत कर सकती हैं. हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने गुंटूर जिले में स्थित कोका कोला कंपनी को कृष्णा नदी से प्रतिदिन 21.5 लाख लीटर पानी देने का निर्णय लिया है. हालांकि गुंटूर जिले में सैकड़ों गांव पीने के पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं. शायद सरकार यह सोचती है कि गांवों में रहने वाले ये गरीब अपनी प्यास पानी की बजाय कोक से बुझा सकते हैं. कोका कोला कंपनी इसके बदले में अपनी सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत माजा बनाने के लिए वहां आम खरीदने का दावा करती है. यह एक तीर से दो निशाने वाली बात है. हमें इसके पीछे की बात नहीं भूलनी चाहिए कि जितना अधिक कोक के बोतल बिकेंगे, सकल घरेलू उत्पाद भी उतना ही बढ़ेगा. अब ऐसे में पानी के लिए होने वाले लड़ाई की परहवाह कौन करेगा :............ (लेखक खाद्य नीति के विशेषज्ञ हैं) साभार:.........
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14-04-2014, 04:17 PM | #114 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पेयजल की समस्या :......... लेखक : सत्येंद्र सिंह...... आज पूरे विश्व में पेयजल की कमी का संकट मँडरा रहा है। कहीं यह गिरते भू-जल स्तर के रूप में है तो कहीं नदियों के प्रदूषित पानी के रूप में और कहीं तो सूखते, सिमटते तालाब और झील के रूप में। इसका कारण है, इन स्रोतों से पानी का भारी दोहन किया जाना। पानी के संरक्षित रखने के दर्शन को तो त्याग ही दिया गया है। पूरे विश्व के यूरोप के प्रभाव में आने के बाद से एक ही दर्शन सामने आया कि प्रकृति में जो भी चीजें उपलब्ध हैं उनका सिर्फ दोहन करो। इस दर्शन में संयम का कोई स्थान नहीं है। आज समूचे यूरोप के 60 प्रतिशत औद्योगिक और शहरी केन्द्र भू-जल के गंभीर संकट की सीमा तक पहुँच गए हैं। पेयजल की गंभीर स्थिति का सामना नेपाल,फिलीपींस, थाइलैण्ड,आस्ट्रेलिया, फिजी और सामोआ जैसे देश भी कर रहे हैं :............ इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)के सौजन्य से :.........
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14-04-2014, 04:18 PM | #115 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पेयजल की समस्या :......... लेखक : सत्येंद्र सिंह...... पेयजल का प्रत्यक्ष संकट अधिकतर तीसरी दुनिया के देशों में है, क्योंकि भारी कीमत देकर बाहर से जल मँगाने की इनकी आर्थिक स्थिति नहीं है। इन देशों में जहाँ एक तो नगदी फसलों के चक्र में फँसाकर इन देशों के भू-जल का दोहन हुआ, दूसरे विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा भी भू-जल का जमकर दोहन किया गया और इनसे नदियाँ भी प्रदूषित हुईं। पिछली सदी में अफ्रीका को विश्व का फलोद्यान कहा जाता था। परन्तु आज 19 अफ्रीकी देश पेयजल से वंचित हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अन्तर्गत एक चिंताजनक आँकलन यह भी है कि एक टन मल बहाने के लिए 2000 टन शुद्ध जल बरबाद हो जाता है। शौच के लिए पेयजल की बर्बादी को देखते हुए जाने माने लेखक जोसेफ जैनक्सि समाज को दो रूप में देखते हैं एक तो वह समाज जो अपना मल पीने के पानी से बहाते हैं और दूसरा वह समाज जो मल मिला हुआ पानी पीते हैं :............ इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)के सौजन्य से :.........
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14-04-2014, 04:19 PM | #116 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पेयजल की समस्या :......... लेखक : सत्येंद्र सिंह...... मनुष्य बिना जल के तीन दिन भी जिन्दा नहीं रह सकता। पृथ्वी के कई भू-भाग पेय जल के संकट से गुजर रहे हैं। औद्योगीकरण के चलते दुनिया का आधा पेय जल पहले ही पीने के अयोग्य घोषित हो चुका है। भूमण्डल की गर्मी बढ़ने के साथ-साथ पृथ्वी का जल तल 3 मीटर प्रतिवर्ष की दर से गिर रहा है और इस समय प्रतिवर्ष 160 अरब क्यूबिक मीटर की कमी दर्ज की गई है। बदलता पर्यावरण कई स्थानों को सूखे में तब्दील कर चुका है। भारत में भी पेयजल का संकट कई तरह से उत्पन्न हो चुका है। दिल्ली में पानी की किल्लत के चलते पानी कभी हरियाणा से मँगाया जाता है तो कभी भाखड़ा से। यहाँ यमुना का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है, साथ ही भू-जल स्तर भी तेजी से नीचे जा रहा है। जाड़े में ही यहाँ पानी का ऐसा संकट है कि दिल्ली में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोग रोजाना पानी खरीद कर पी रहे हैं :............ इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)के सौजन्य से :.........
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14-04-2014, 04:20 PM | #117 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पेयजल की समस्या :......... लेखक : सत्येंद्र सिंह...... मुम्बई में तो खारे पानी का ही संकट उत्पन्न हो गया है। भूगर्भीय मीठा पानी लगभग समाप्त होने के कगार पर है। मुम्बई में जमीन की भीतरी बनावट कुछ ऐसी है कि बारिश का पानी एक निर्धारित सीमा तक ही जमीन के भीतर तैरता रहता है, जो प्रसंस्कृत होकर अपने आप पीने योग्य बन जाता है। जबकि ज्यादा गहराई में खारा पानी पाया जाता है। विश्व के सबसे अधिक वर्षा के क्षेत्र चेरापूँजी तक में भी पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया। अधिकांश शहरों में पेयजल ट्यूबवेल के माध्यम से ही उपलब्ध कराया जाता है। इन ट्यूबवेलों के द्वारा भारी मात्रा में भूमिगत जल को बाहर निकाला जाता है और यह पानी पूरे शहर की पक्की नालियों के द्वारा शहर से बाहर चला जाता है। मतलब यह कि भूमिगत जल के केवल दोहन का ही ध्यान है, घटते जल स्तर की चिंता नहीं। शहरों में जो बड़े और छोटे तालाब थे उन्हें भी भरकर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। ये तालाब भूमिगत जलस्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं :............ इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)के सौजन्य से :.........
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14-04-2014, 04:21 PM | #118 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पेयजल की समस्या :......... लेखक : सत्येंद्र सिंह...... जल संकट उत्पन्न करने में हरित क्रांति का भी कम योगदान नहीं है। खेतों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों की शुरूवात हुई और जैसे-जैसे खेतों में इनका प्रयोग बढ़ता गया खेतों में सिंचाई की आवश्यकता भी बढ़ती गई, इससे ट्यूबवेलों की संख्या बढ़ी। नतीजा भूमिगत जल का स्तर तेजी से नीचे गया। सबसे अधिक अनाज उत्पन्न करने वाले प्रदेश हरियाणा और पंजाब में यह संकट तेजी से बढ़ रहा है। गुजरात में जिन इलाकों में 150 फुट नीचे पानी मिल जाता था, भू-जल के बेहिसाब दोहन के कारण अब 1000 फुट तक बोरिंग करनी पड़ती है। गुजरात और सौराष्ट्र के उन क्षेत्रों में जहाँ सूखा पड़ा था पिछले दशक में एक लाख से ज्यादा नलकूप सिंचाई के लिए खोदे गए। परम्परागत जल स्रोतों को उपेक्षित छोड़ दिया गया जो आज समाप्त प्राय हैं। ये स्रोत जगह-जगह बारिश के पानी को संग्रहित करते ही थे भूमिगत जल के स्तर को भी बनाए रखते थे :............ इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)के सौजन्य से :.........
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14-04-2014, 04:22 PM | #119 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पेयजल की समस्या :......... लेखक : सत्येंद्र सिंह...... विकास की प्रतिमान औद्योगिक इकाईंयों ने भी बहुमूल्य भू-जल का मनमाना इस्तेमाल किया है और प्रदूषित पानी नदियों में बहाकर नदियों को भी प्रदूषित किया है। उद्योगों में पानी के पुनः उपयोग की कोई व्यवस्था नहीं है। गुजरात में तो लगभग पूरा भू-जल उद्योगों को दिया जा रहा है। इस प्रदेश के विकसित औद्योगिक क्षेत्रों वापी, अंकलेश्वर, नंदेशरी व वातवा की इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट से भूमिगत जल इस कदर प्रदूषित हो चुका है कि लोग पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं :...... इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)के सौजन्य से :.........
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14-04-2014, 04:24 PM | #120 |
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Re: जल ही जीवन हैं
पेयजल की समस्या :......... लेखक : सत्येंद्र सिंह...... पेयजल के प्रति शहरों की भूमिका सबसे गैर जिम्मेदाराना रही है। ऐसा लगता है जैसे हजारों साल से नीचे पड़े साफ जल को निकालकर और बहाकर बरबाद करने की पूरी योजना चल रही है। पृथ्वी पर पेयजल कुल पानी का 0.5 प्रतिशत है और अनुमान है कि पूरा पेयजल 95 मील की भुजा वाले घन में समाने भर का ही है। यह भण्डार दिनों-दिन सिमटता जा रहा है। इसके लिए बस एक ही तर्क दिया जाता है कि जनसंख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। यह सच है कि बढ़ती जनसंख्या पेयजल संकट का एक कारण है लेकिन इसे सबसे ज्यादा उभार कर अन्य कारणों को दबाने का प्रयास किया जा रहा है क्योंकि अन्य कारण सीधे बाजारवाद और उपभोक्तावाद पर चोट करते हैं। पेयजल संकट पर गिद्ध नजर पड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की और इन्होंने प्यास की कीमत भुनाना शुरू कर दिया। मीडिया और अन्य प्रचार माध्यमों द्वारा पानी के निजीकरण की बात उठाई जाने लगी, ताकि बड़े से बड़ा पानी का बाजार खड़ा किया जा सके। लेकिन यह समझना बुद्धि से परे लगता है कि सूखते जल स्रोतों का समाधान निजीकरण में कैसे हो सकता है? कहीं कोई उदाहरण नहीं मिलता कि कम्पनियाँ पेयजल स्रोतों को जीवित करने का काम कर रही हैं या बर्बाद होते पेयजल को संरक्षित करने का प्रयास कर रही है :...... इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)के सौजन्य से :.........
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जल ही जीवन हैं, पीले दांत, बालों का सोंदर्य, रक्तदान, हंसना ज़रूरी है |
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