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Old 20-09-2013, 10:23 PM   #61
rajnish manga
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Default Re: मोती और माणिक्य

सुल्तानुल मदारीस से निकाले जाने के बाद कैफी ने पढ़ना बंद नहीं किया। प्राइवेट परीक्षा में बैठते हुए उन्होंने दबीर माहिर (फारसी), दबीर कामिल (फारसी), आलिम (अरबी), आला काबिल (उर्दू), मुंशी (फारसी), मुंशी कामिल (फारसी) की डिग्री हासिल कर ली।कैफी साहब के घर का माहौल बहुत अच्छा था। शायरी का हुनर खानदानी था। उनके तीनों बड़े भाई शायर थे। आठ वर्ष की उम्र से ही कैफी साहब ने लिखना शुरू कर दिया था। 11 वर्ष की उम्र में पहली बार कैफी साहब ने बहराइच के मुशायरे में गजल पढ़ी। उस मुशायरे की अध्यक्षता मानी जयासी साहब कर रहे थे। कैफी साहब की गजल मानी साहब को बहुत पसंद आयी और उन्होंने कैफी को बहुत दाद दी। मंच पर बैठे बुजुर्ग शायरों को कैफी की प्रशंसा अच्छी नहीं लगी और फिर उनकी गजल पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया गया कि क्या यह उन्हीं की गजल है? कैफी साहब को इम्तिहान से गुजरना पड़ा। मिसरा दिया गया- इतना हंसो कि आंख से आंसू निकल पड़ेफिर क्या कैफी साहब ने इस मिसरे पर जो गजल कही वह सारे हिंदुस्तान और पाकिस्तान में मशहूर हुई। लोगों का शक दूर हुआ। कैफी साहब का पहला कविता संग्रह झनकार’ 1943 में प्रकाशित हुआ। आखिरे शब’ (1947), ‘आवारा सज्दे’ (1963) में प्रकाशित हुआ। 1992 में उनके पूर्व प्रकाशित संग्रहों की चुनी हुई कविताएं सरमायानाम से प्रकाशित हुर्इं। कैफी साहब ने फिल्मों में बहुत से गीत लिखे। उनके फिल्मी गीतों पर उनकी शायरी का रंग बदस्तूर रहा।

1974
में मेरी आवाज सुनोका प्रकाशन हुआ, जिसमें कैफी साहब के 240 फिल्मी नग्मे संग्रहीत हैं। इब्लीस की मजलिस--शूरा दूसरा इजलासका प्रकाशन 1983 में किया गया। कैफी आजमी बंबई से निकलने वालेअखबार ब्लिट्जमें करीब एक दशक तक व्यंग्य कॉलम लिखते रहे। कैफी का यह एक तरह से गद्य लेखन था, जिसका प्रकाशन 2001 में नई गुलिस्तांके नाम से दो खंडों में किया गया।शौकत आजमी के चलते कैफी थियेटर से भी जुड़ गए। 1943 में बंबई में इप्टा का गठन हुआ। कैफी बंबई इप्टा के अध्यक्ष बने। बाद में कैफी को पूरे देश में इप्टा के गठन और फैलाव की जिम्मेदारी दी गई। लंबे समय तक इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। 1985 में वह इप्टा के पुनर्गठन के बाद इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए और आजीवन इस पद पर रहे। कैफी ने इप्टा के लिए बहुत गीत और नाटक लिखे। बाल इप्टा के लिए भी नाटक व गीत लिखे। कैफी के दो नाटक हीर-रांझाऔर जहर--इश्कप्रकाशित हो चुके हैं। आखिरी शमाका प्रकाशन किया जाना बाकी है।

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Old 20-09-2013, 10:25 PM   #62
rajnish manga
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Default Re: मोती और माणिक्य

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर जितनी फिल्में आज तक बनी हैं, उनमें गरम हवाको आज भी सर्वोत्कृष्ट फिल्म का दर्जा हासिल है। गरम हवाफिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद कैफी आजमी ने लिखे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि गरम हवापर कैफी आजमी को तीन-तीन फिल्म फेयर अवार्ड दिए गए। पटकथा, संवाद पर बेस्ट फिल्म फेयर अवार्ड के साथ ही कैफी को गरम हवापर राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। पद्म श्री के साथ ही कैफी आजमी को आवारा सज्देकविता संग्रह पर उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी और साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का लोटस पुरस्कार, गालिब पुरस्कार, हिंदी अकादमी दिल्ली का शताब्दी सम्मान, महाराष्ट्र उर्दू अकादमी सम्मान मिला। विश्व भारती विश्वविद्यालय ने कैफी साहब को डी लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया।

जानकी कुटीर, बंबई में रहते हुए कैफी साहब को वह सब कुछ हासिल हुआ, जो अदब की दुनिया में किसी बड़ी से बड़ी हस्ती को हासिल हो सकता है। 1973 में फालिज के शिकार कैफी आजमी ने मिजवां की राह पकड़ ली। शौकत आजमी को तो साथ-साथ चलना ही था। कैफी बंबई महानगर (जानकी कुटीर) से निकल कर अपने पिछड़े साधनहीन गांव मिजवां (फतेह मंजिल) के हो गए। अपनी धरती अपने लोग का भावनात्मक लगाव और मिजवां के विकास का सपना कैफी के मन में बैठ गया।

जब कुछ लोगों ने कैफी पर यह इल्जाम लगाया कि अपने फायदे के लिए सड़क बनवा रहे हैं, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। लखनऊ के एक होटल में कैफी गिर पड़े और कूल्हे की हड्डी में तीन जगह फै्रक्चर हो गया। चार महीने तक उन्हें लखनऊ मेडिकल कॉलेज में भरती होना पड़ा।

अजीब आदमी था वो, एक ऐसा आदमी जिसके शरीर का पूरा बायां अंग फालिज से प्रभावित हो चुका हो। कूल्हे की हड्डी में तीन-तीन फ्रैक्चर हो चुके हों, व्हील चेयर के बिना न चल पाने की स्थिति में हो फिर भी जिंदगी की आखिरी सांस तक जूझता रहा हो। अपने गांव को मॉडल विलेज बनाने के लिए, सड़कें, अस्पताल, डाकघर, टेलीफोन, प्रशिक्षण केंद्र, कम्यूनिटी सेंटर, लड़कियों का प्राथमिक, जूनियर, हायर सैकेंड्री स्कूल, जो कुछ भी मिजवां में दिख रहा है, कैफी के संकल्प और सपनों का प्रतिफल नहीं तो और क्या है? इतना ही नहीं मृत्यु के 2-3 वर्ष पूर्व कैफी मिजवां की एक जनसभा में अपनी बेटी शबाना से एक वादा भी करा लेते हैं कि मेरे न होने की स्थिति में मेरी लड़ाई को आगे बढ़ाती रहोगी और अधूरा काम पूरा करोगी। अदब की दुनिया का यह रोशन ख्याल शायर 10 मई 2002 को जसलोक अस्पताल बंबई में सब को अलविदा कर इस दुनिया से चल दिया।

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