26-11-2012, 12:50 AM | #1 |
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राजनीति केवल खलनायक नहीं
गांधी-नेहरू, विनोबा भी हैं इसमें मित्रो, कांग्रेस के महासचिव और राज्यसभा सदस्य जनार्दन द्विवेदी ने रविवार, 25-11-2012 को जयपुर में राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा अकादमी परिसर में आयोजित 'पुस्तक पर्व' के दूसरे दिन एक सारगर्भित एवं पठनीय व्याख्यान दिया। मैं यहां उसके महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत कर रहा हूं। उम्मीद है सुधि सदस्यों को यह रुचिकर लगेगा। धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
26-11-2012, 12:51 AM | #2 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
मुझे संस्कृति, सद्भाव एवं राजनीति का विषय दिया गया है। अगर यह विषय संस्कृत-इतिहास और राजनीति होता तो भी मेरा काम आसान हो जाता, बीच में सद्भाव भी ले आए। कौनसी संस्कृति है जो सद्भाव से विमुख होगी? फिर भी मैं विषय से जोड़ने का प्रयास करूंगा। यह अशोक जी की गांधी वाली जो बात है, वैसी एक दुर्घटना मेरे साथ भी हुई है। लेकिन वह दुर्घटना मानसिक अधिक है, भौतिक कम है। मैंने किसी सार्वजनिक जीवन के प्रसंग में अपने संगठन को मैं व्यावहारिक राजनीति को अपनी बात से दूर रखूंगा। अपने संगठन को दो पंक्तियां दी थीं। मुझे ऐसा लगता है कि यह दोनों पंक्तियां अपने-अपने ढंग से जब तक वह संदर्भ जीवित है, तब तक हमेशा जीवित रहेंगी और उसके पीछे एक वैचारिक पृष्ठभूमि भी है, क्योंकि इसके बाद ही इस विषय पर आ सकता हूं। अतीत की नींव और भविष्य का निर्माण। यह पंक्ति बहुत प्रसिद्ध हुई है लेकिन उसका आरम्भ कहां से हुआ है, कोई नहीं जानता। कोई भविष्य निराधार रूप से तैयार नहीं हो सकता। उसका कोई आधार होना चाहिये। बहुत सारी विचारधाराएं जो संसार में फैलीं, वे अतीत से कटकर पनप नहीं सकीं। इसलिये अतीत की नींव पर ही भविष्य का निर्माण हो सकता है और यहीं से इतिहास और संस्कृति से सूत्र लिखे हैं। दूसरा वाक्य है मेरा गांधी अतीत नहीं भविष्य भी है। जब तक गांधी का नाम जीवित रहेगा, तब तक शायद यह बात भी किसी न किसी रूप से लोग याद करते रहेंगे। मेरे नाम से नहीं, मुझे गलतफहमी नहीं है। मैं कह रहा हूं यह भावना, यह विचार जैसे-जैसे समय बीत रहा है, वैसे-वैसे गांधी सारी दुनिया में और प्रांसगिक हो रहा है।
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26-11-2012, 12:52 AM | #3 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
सिर चढ़कर बोल रहा है गांधी का जादू
आज से 15-20 साल पहले एक अभियान चला था देश में गांधी को भुलाने का और गांधी को मिटाने का। लेकिन जादू तो वह जो सिर पर चढ़कर बोले और गांधी वह जादू है जो सिर पर चढ़कर बोल रहा है। आज दुनिया में गांधी की जितनी मूर्तियां लग रही हैं, हर प्रयास के साथ जिस तरह से गांधी का नाम जुड़ रहा है, वह गांधी की शक्ति है और उसको अगर मैं एक वाक्य में समेटकर कहूं तो जब तक इस संसार में अन्याय और अत्याचार रहेगा, तब तक उसके विरुद्ध प्रतिकार भी होगा और जब तक अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध प्रतिकार चलेगा, तब तक गांधी बना रहेगा। गांधी का संबंध कहीं मानव जीवन से जुड़ रहा है। इसलिए मैं इतिहास व संस्कृति के प्रवाह में गांधी का महत्व समझता हूं।
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26-11-2012, 12:53 AM | #4 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
नेहरू से आधुनिक कोई नहीं
तीसरी बात मुझे कहनी है और मैं जो नाम लेने जा रहा हूं वह राजनीतिक दृष्टि से नहीं है। मैं नहीं जानता कि आधुनिक भारत के इतिहास में महात्मा गांधी के बाद जवाहर लाल नेहरू से ज्यादा अधिक व्यापक और सही इतिहास दृष्टि का कोई व्यक्ति पैदा हुआ, जो एक साथ चिंतन, राजनेता और स्वप्नदर्शी वह रहा है। सपने जरूरी होते हैं, पर बेतुके नहीं होने चाहिये। जो सपना नहीं देखेगा वह नया निर्माण नहीं करेगा। नया निर्माण पहले सपने से पैदा होता है। इस अर्थ में नेहरू स्वप्नदर्शी भी थे। मैं नहीं जानता कि आधुनिक इतिहास में, आधुनिक भारत के इतिहास में नेहरू से अधिक आधुनिक कोई था। उनके जमाने में उनसे ज्यादा मॉडर्न कोई नहीं था और दुनिया में भी कम लोग थे। नेहरू से अधिक राजनीति में मौलिक भी कोई नहीं था और नेहरू से अधिक साहसी भी कोई नहीं था। समग्र नेहरू को आप पढ़िए, देखिए लोगों के सामने, जनता के सामने आजादी से पहले और आजादी के बाद भी इतनी खरी-खरी बात कहने वाला कोई नहीं था। जब वह आजादी की लड़ाई के लिए जाते थे, तो सामंती व्यवस्था के विरुद्ध जिस भाषा में वह बोलते थे, उसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। कहते थे यह राजे-महाराजे, यह उनके शब्द हैं। यह राजे-महाराजे आज भी समझे बैठे हैं कि इनका राज चल रहा है, गया। अरे भाई तुम गुलाम हो, दूसरो को गुलाम बनाना चाहते हो, गुलाम का गुलाम कौन बनना चाहेगा? हम सबसे आजादी चाहते हैं। उनसे भी चाहते हैं जो हमारे देश पर कब्जा किए बैठे हैं और तुमसे भी आजादी चाहते हैं।
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26-11-2012, 12:53 AM | #5 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
इतने साहस के साथ में उस समय बोलना और आजादी के बाद का तो पता ही नहीं। वह नेहरू भी कैसे संस्कृति से इतिहास प्रभावित होता है, मैं एक दृष्टि के लिए उनको कोट करना चाहता हूं, जो उनकी हिन्दी में अनुदित पुस्तक है भारत आज और कल, उससे लिया है-मैं अक्सर यह सोचकर हैरान रह जाता हूं कि हमारी जाति कहीं गुप्त महाभारत, रामायण, गीता और उपनिषदों को भूल जाए तो इसका क्या हश्र होगा? हमारी जड़ें उखड़ जाएंगी। हम अपनी उन सारी बुनियादी खूबियों को खो देंगे, जो युगों से हमारे साथ चली आ रही हैं और जिनके कारण हमारी दुनिया में हेसियत बनी हुई है। तब भारत, भारत न रह सकेगा। मैं उन परंपरावादियों से कहना चाहता हूं जो आज की तारीख में 17वीं और 18वीं शताब्दी का समाज बनाना चाहते हैं। बताओ नेहरू से अधिक परंपरा का समर्थक कौन है और नेहरू से अधिक आधुनिक कौन है?
इसका कोई जवाब दे दे। अगर यह सही है तो वे सारे सिद्धान्त भी सही हैं, जो इस देश और समाज के लिए गांधी और नेहरू ने दिए थे। और इस भूमिका के साथ अगर मैं कहूं तो संस्कृति के प्रति मेरी एक दृष्टि दूसरी बनती है। मैं मानता हूं कि संस्कृति भी एक मूल्य है। संस्कृति कोई गाथा नहीं है, न महापुरुष की गाथा है, न राजनीतिक इतिहास की गाथा है, न किसी की यशोगाथा है, और यह परंपरा हमारे यहां है। तुलसीदास जैसा व्यक्ति कहता है ‘येने प्राकृत जन गुन गाना, सिर धरि गिरा लगत पछताना।
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26-11-2012, 12:54 AM | #6 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
निंदित होने के बावजूद राजनीति अनिवार्य
अब आएं राजनीति पर, आपने राजनीति को भी जोड़ दिया है। देखने में थोड़ा तुक नहीं बनता, लेकिन सही जोड़ दिया है, क्योंकि मैं आज राजनीति पर भी कुछ कह देना चाहता हूं। आज राजनीति सबसे अधिक निन्दित है। सबसे अधिक टीका-टिप्पणी उसको लेकर होती है और होनी भी चाहिए क्योंकि राजनीति में राजनीति करने वालों की परीक्षा होती है ना, नन्दकिशोर आचार्यजी से कहना चाहता हूं साहित्यकार की परीक्षा अब नहीं होती। आप कुछ भी लिखकर बरी हो जाते हैं। सार्वजनिक जीवन वाला बरी नहीं होता है। वह जिम्मेदारी निभाता है तो आप टिप्पणी करते हैं और आपको जिम्मेदारी देते ही आप रणछोड़ दास हो जाते हैं, तो ऐसा नहीं चलता है। दोनों चीजें साथ नहीं चलेंगी। हम पानी में कूदें और गीले नहीं हों, ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन इतना निन्दित होने के बावजूद राजनीति अनिवार्य है।
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26-11-2012, 12:54 AM | #7 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
राजनीति कॅरियर नहीं मानव जीवन की व्यवस्था
मुझे कोई बता दे कि जब से मनुष्य पैदा हुआ है तब से कब राजनीति नहीं की? क्योंकि राजनीति वह नहीं है, राजनीति कॅरियर नहीं है। राजनीति मानव जीवन की व्यवस्था है। अगर इस मानव जीवन को व्यवस्था देनी है तो उसका कोई आधार होगा और उसके लिए कुछ लोग आगे आएंगे ही आएंगे। राजनीति खाली खलनायक नहीं है, राजनीति में गांधीजी हैं, नेहरू जी हैं, विनोबा भी हैं और लोग भी हैं। मैं समझता हूं इसलिए इस सार्वजनिक जीवन को, इस सार्वजनिक कर्म को, जिसका उद्देश्य पवित्र है, उसे सही पटरी पर बनाए रखने का सामाजिक दबाव भर बना रहना चाहिए, और वह दबाव बढ़ रहा है। वह दबाव इस संस्कृति की परम्परा में है, क्योंकि राजनीति सत्ता नहीं है। सत्ता एक माध्यम है। इसलिए चेतना जिस दिन जगाई जाएगी, उतनी राजनीति फलवती होगी। यह अनिवार्य कर्म ऐसा है जिसका सदुपयोग उसे सत्कर्म बनाता है और जिसका दुरुपयोग उसे दुष्कर्म बनाता है। इस अन्तर को बनाए रखने की जरूरत है। अब इस शब्द के बीच में एक शब्द और मुझे बीच-बीच में आता है। क्योंकि संस्कृति किसी एक चीज से तो नहीं बनती, संस्कृति में साहित्य भी है, संस्कृति में पत्रकारिता भी है, संस्कृति में धर्म भी है, संस्कृति में राजनीति भी है। इस देश की संस्कृति में सबका एक समन्वित रूप है और इसमें मुझे एक राजनीतिक चिन्तक फिर कहूंगा मैं, राम मनोहर लोहिया का एक वाक्य याद आता है। उन्होंने लिखा है धर्म दीर्घकालीन राजनीति है, और राजनीति अल्पकालिक धर्म है। ध्यान से इसको समझइगा। कौनसा धर्म ऐसा है जो यह न कहता हो कि धर्म को अगर जीवन में नहीं उतार पाए तो काहे के धार्मिक हो तुम? धारेति धर्म:। जिसे धारण किया जा सके, वह धर्म है। तो जो आचरण संहिता स्थाई हो गयी, वह धर्म बन गया। और राजनीति क्या है? कौन से हमारे जीवन का पक्ष है जो आज उस राजनीति से नियन्त्रित नहीं है, क्योंकि हमको किसी व्यवस्था में जीवन है और कौनसा ऐसा समाज होगा या समय होगा, जब कोई व्यवस्था नहीं होगी। बिना व्यवस्था के समाज नहीं होता है।
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26-11-2012, 12:55 AM | #8 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
गांधी को पढ़ना बहुत कठिन
इसलिए मैं समझता हूं कि लोहियाजी ने सही कहा था कि यह अल्पकालिक धर्म है और उसी पवित्रता के भाव से करना चाहिए, यहां संस्कृति और आपकी राजनीति का संबंध जुड़ जाता है और यहीं पर गांधी बीच में आता है। मैं गांधी को कोट करना चाहता हूं। गांधी ने जब वह पहली बार राजनीति में आए तो उन्होंने क्या लिखा? असल में गांधी को पढ़ना बहुत ही कठिन बात है, बहुत ज्यादा है। गांधी को टुकड़ों में पढ़ना। 60 हजार से ऊपर छपे हुए पन्ने हैं गांधी के बड़ी साइज के, छोटी किताब के नहीं, और इसके अलावा अब भी कुछ बचा हुआ है। टुकड़ों में पढ़कर और गांधी का जीवन एक क्षण भी उनके जीवन का ऐसा नहीं था जिस समय वह कभी अवकाश में रहते हों। लोगों से मिलना है, तब कुछ भी आॅटोमेटिक नहीं था, हर आदमी का जवाब हाथ से लिखकर देना है। गांधीजी की टाइप चिट्ठियां आपको नहीं मिलेंगी। इसके साथ साथ हम समझते हैं कोई सम्पादक हो गया, कोई लेखक हो गया, कोई कुछ हो गया, कोई कुछ हो गया और समझता है कि मैं बहुत बड़ा आदमी बन गया हूं। गांधी एक साथ जन नेता थे, पत्र लेखक थे, संवाददाता थे, सम्पादक थे, सिद्धान्त निर्माता थे, क्या नहीं थे गांधी? आश्रमवासी थे, आश्रम की व्यवस्था भी थे, हर काम खुद करना पड़ता था। अपना सब कुछ काम करते थे। दूसरे के भरोसे नहीं थे। तब ना ऐसी रेलगाड़ियां थीं, ना ऐसे वायुयान थे, न कारें थीं और देष में कोई जगह चले जाइए, आपको सुनने को मिलेगा गांधीजी आज ही आए थे, यह साधारण बात है। ऐसे नहीं आइंस्टीन ने कहा था कि कोई जमाना आएगा कि आने वाली पीढ़ियां यह विश्वास नहीं करेंगी कि गांधी जैसा हाड़-मांस का पुतला कभी इस धरती पर था और ऐसे नहीं कहा था। आइंस्टीन भी कोई साधारण दिमाग का व्यक्ति नहीं था।
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26-11-2012, 12:55 AM | #9 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
बहरहाल मैंने जो राजनीति की बात कही, वह राजनीति की बात में सिर्फ गांधी को फोकस करना चाहता हूं और आज का नहीं, गांधी 1915 में भारत आए थे राजनीति में प्रवेश के लिए, 1920 में उन्होंने लिखा जो उनको रियलाइजेशन हुआ। 12 मई 1920 को यंग इंडिया में लिखा था। वे दो अखबारों का नियमित सम्पादन करते थे यंग इंडिया और एलीजंट। उसमें वह पाठकों के पत्रों का जवाब भी देते थे। मेरे भीतर बैठे राजनीतिज्ञ ने मेरे एक भी निर्णय को मुख्य रूप से प्रभावित नहीं किया है और यदि मैं राजनीति में भाग लेता दिखाई देता हूं तो वह केवल इस कारण कि आज राजनीति में सर्प की कुंडली की भांति हमें जकड़ लिया है। वह राजनीति ही थी जो मुट्ठीभर अंग्रेजों का इतना विस्तार किया कि एक तिहाई दुनिया उनकी गुलाम हो गई। तो वह केवल इस कारण कि आज राजनीति ने सर्प की कुंडली की भांति हमें जकड़ लिया है और व्यक्ति कितनी भी कोशिश करे, इससे मुक्त नहीं हो सकता है। इसलिए मैं इस सर्प के साथ संघर्ष करना चाहता हूं। जैसा कि मैं कमोबेश सफलता के साथ जान-बूझकर 1894 से और अनजाने जैसा कि मैंने अब समझा है, होश संभालने की उम्र से करता आ रहा हूं। राजनीति में वह आए जो इस स्वप्न के साथ संघर्ष करना चाहता हो वरना राजनीति में रहने की जरूरत नहीं है। मेरी बिल्कुल स्पष्ट सीधी-सी राय यह है। उसके बाद देखिए, राजनीति कैसे बिगड़ सकती है?
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26-11-2012, 12:56 AM | #10 |
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Re: राजनीति केवल खलनायक नहीं
राजनीति में रहने वाले को गांधी जैसा निरपेक्ष होना चाहिए
और एक बात राजनीति में रहने वाले को गांधी जैसा निरपेक्ष भी होना चाहिए। जब उनको लगा कि भारत आजाद हो जाएगा। अब अपने देशवासियों को यह शिक्षा अभी से देनी शुरू कर देनी चाहिए कि सत्ता पाकर पागल मत हो जाना। गांधीजी ने 1 अप्रेल 1940 को कहा था और यह हिन्दुस्तान स्टेण्डर्ड में छपा था। यदि भारत केवल राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करके संतुष्ट हो जाता है और मेरे करने योग्य कोई बेहतर काम शेष नहीं रहता तो मैं हिमालय की ओर प्रस्थान कर जाऊंगा और मेरी वाणी सुनने के इच्छुक व्यक्तियों को मुझे वहां ही खोजना पड़ेगा।
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