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Old 27-11-2013, 10:02 PM   #1
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Default शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

बिरहा का सुल्तान शिव कुमार बटालवी




शिव कुमार बटालवी पंजाबी भाषा के मशहूर कवि / शायर हुये हैं जिन्हें उनकी रोमांटिक, विरह एंव दर्द की रचनाओं के लिये सदा याद किया जाता रहेगा.

1967 में साहित्य अकादमी पुरुस्कार जीतने वाले वह सबसे कम आयु के कवि
थे. उन्हें यह पुरुस्कार उनकी रचना "पूरन भगत - लूना" जो कि एक ऐतिहासिक कविता का रूप है
, के लिये दिया गया. यह रचना आधुनिक पंजाबी साहित्य की मास्टरपीस रचना मानी जाती है. उनकी रचनाओं को मोहन सिंह और अम्रिता प्रीतम की रचनाओं के बराबर माना जाता है जो कि भारत-पाकिस्तान सीमा रेखा के दोनों तरफ़ एक जैसी लोकप्रिय हैं.

शिव कुमार का जन्म 23 जुलाई, 1936 के दिन गांव बरा पिंड लोहटियां, तहसील शकरगढ जो कि अब पाकिस्तान में है, पं
डित कृष्ण गोपाल जी के घर पर हुआ (कुछ लोग उनका जन्म अक्टूबर 1937 का मानते हैं). पंडित कृष्ण गोपाल जी तहसीलदार थे एंव इनकी माता शांतिदेवी एक गृहणी थी. भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद इनका परिवार बटाला (जिला गुरदासपुर, पंजाब) में स्थानान्तरित हो गया.




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Last edited by rajnish manga; 27-11-2013 at 10:49 PM.
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Old 27-11-2013, 10:05 PM   #2
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

शिव कुमार ने अपनी मेट्रीकुलेशन 1953 में पंजाब यूनिवर्सिटी से उत्तीर्ण की और एफ़.एस.सी प्रोग्राम के लिये यूनियन क्रिस्चन कालेज, बटाला में दाखिला लिया परन्तु डिग्री पूरी करने से पहले ही उन्होंने एस एन कालेज क्वादियां में आर्टस प्रोग्राम में दाखिला ले लिया परन्तु इसे भी उन्होंने द्वतीय वर्ष में बीच में ही छोड दिया. इसके बाद उन्होंने बेजनाथ, हिमाचल प्रदेश में सिविल इंजिनियरिंग डिपलोमा के लिये दाखिला लिया परन्तु इसे भी उन्होंने बीच में ही छोड दिया. कुछ समय के लिये उन्होंने सरकारी रिपूदमन कालेज, नाभा में पढाई की. वह मशहूर पंजाबी रचनाकार गुरबक्शसिंह की पुत्री के प्रेम में पड़ गये जिसका विवाह जातिगत कारणों से कहीं अन्यत्र हो गया. प्रेम में आहत होने का असर शिव कुमार बटालवी की रचनाओं में साफ़ झलकता है हालांकि उन्होंने एक व्यक्तिगत इन्टर्व्यू के दौरान इस बात से इन्कार किया है कि उन्हें विरह का कोई ग़म है.

शिव बटालवी की पहला कविता संग्रह
1960 में "पींडा दा परागा" ( The Scarf of Sorrows) शीर्षक से प्रकाशित हुआ जिसके तत्काल प्रसिद्धि प्राप्त हुई. 1965 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरुस्कार से नवाजा गया.

1967 में इनका विवाह सुश्री अरुणा से, जो कि एक ब्राह्मण कन्या थी, के साथ हुआ. इनके दो बच्चे मेहरवान (1968) और पूजा (1969) हुये. 1968 में यह चंडीगढ आ गये जहां इन्होंने स्टेट बेंक आफ़ इंडिया में प्रोवेशनरी आफ़िसर के पद पर काम किया. शराब का अत्यधिक सेवन करते रहने के कारण आने वाले समय में इनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया, परन्तु इनका लिखना जारी रहा. इनकी रचनाओं में मौत का बुलावा स्पष्ट रूप से झलकता है.
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Old 27-11-2013, 10:08 PM   #3
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

बिरह का सुलतान शिव कुमार बटालवी पंजाबी के ऐसे आधुनिक कवि हैं जिनके गीतों में पंजाब के लोकगीतों का आनंद भी हैं।
शिव का जन्म 23 जुलाई 1936 को शकरगढ़
, पंजाब (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। बंटवारे के बाद उनका परिवार बटाला में आ गया। ढेरों गीत और कवितायें लिखने वाले शिव कुमार बटालवी को 1965 में अपने काव्य नाटक लूणा के लिये साहित्य अकादमी अवार्ड मिला। शिव के गीतों में प्यार है, दर्द है, सब से बड़ी बात है कि उन्होंने पंजाबी को अपने गीतों से समृद्ध किया। उन्हे बिरह का सुल्तान कहा जाता है। पंजाबी अपने इस कवि से बहुत प्यार करते हैं। पंजाब में कवितायें लोक गीत बन जाती है और कवि पढ़े चाहे जायें या नहीं मगर सुने बहुत जाते हैं। जैसे वारिस शाह की हीरगायी और सुनी जाती है। शिव के गीत भी पंजाब में बहुत लोकप्रिय है, इस का अंदाज इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके गीतों को लगभग सभी पंजाबी गायकों ने तो गाया ही, महेंद्र कपूर और नुसरत फतेह अली खान ने भी गाया। जगजीत सिंह तथा चित्र सिंह द्वारा गाये शिव के गीतों की एलबम मेरी सबसे प्रिय एलबम है।
असां ते जोबण रुते मरना
टुर जाणा असां भरे भराये
,
एह मेरा गीत किसे ना गाणा
एह मेरा गीत मैं आपे गा के
भलके ही मर जाणा.


तथा

यारणया रब करके मैंणूं
पैण बिरहों दे कीड़े वे
,
नैंना दे दो संदले बूहे
जाण सदा लई भीड़े वे.

उपरोक्त पंक्तियों को लिखने वाले शिव का देहान्त मात्र 36 वर्ष की उम्र में मई 7,1973 को हो गया।

(लेखक : राकेश पथरिया)
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Old 27-11-2013, 10:17 PM   #4
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

मैं इक शिकरा यार बनाया

माये नी माये
मैं इक शिकरा यार बनाया.
ओदे सिर ते कलगी
ओदे पैरीं झांजर
ते ओ चोग चुगेंदा आया.

इक ओदे रूप दी धुप तिखेरी
दुजा महकां दा तिरहाया
तीजा ओदा रंग गुलाबी
किसे गोरी मां दा जाया.

इश्के दा इक पलंग नवारी,

असां चानन्नियां विच डाया
तन दी चादर हो गई मैली
उस पैर जां पलंगे पाया.

दुखण मेरे नैनां दे कोये
विच हाड़ हंजुआं दा आईया
सारी रात गई विच सोचां
उस ए कि जुल्म कमाया.

सुबह सवेरे लै नी वटणा
असां मल मल ओस नव्हाया
देही दे विचों निकलण चींगां
ते साडा हाथ गया कुम्हलाया.

चूरी कुट्टां तां ओ खांदा नाही
ओन्हुं दिल दा मांस खवाया
इक उडारी ऐसी मारी
ओ मुड़ वतनी ना आया.

ओ माये नीं
मैं इक शिकरा यार बनाया
ओदे सिर ते कलगी
ओदे पैरीं झांजर
ते ओ चोग चुगेंदा आया.


शिकरा = बाज / तिखेरी = तीखी / तिरहाया = सराबोर / अड़िया = दोस्त / जाया = जन्मा / हाड़ हंजुआं दा = आंसुंओं की बाढ़ /
चींगां = चिंगारियां / चूरी = घी और रोटी से बनने वाला मीठा मिश्रण
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Old 27-11-2013, 10:23 PM   #5
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

उधारा गीत
सांनूं प्रभ जी,
इक अद गीत उधारा होर देयो.
साडी बुझदी जांदी आग्ग
,
अंगारा होर देयो.

मैं निक्की उम्रे
सारा दर्द हंडा बैठा
,

साडी जोबन रुत लई
,
दर्द कुंआरा होर देयो.


(हंडा = व्यतीत, खर्च)

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Old 27-11-2013, 10:29 PM   #6
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

उम्रां दे सरवर
उम्रां दे सरवर
साहां दे पाणी
गीता वे चुंज भरीं.

भलके ना रहने
पीड़ा दे चानन
हावां दे हंस सरीं
गीता वे चुंज भरीं.


गीता वे उम्रां दे सरवर छलिये
पल्छिन भर सुक जांदे
साहवां दे पानी पी लै वे अड़िया
अनचाहियां फिट जांदे
भलके न सानूं दईं वे उलमड़ा
भलके न रोस करीं
गीता वे चुंज भरीं.


हावां दे हंस
सुनींदे वे लोभी
दिल मरदा तां गांदे
इह बिरहों रुत हंजू चुकदे
चुकदे ते उड जांदे
ऐसे उडदे मार उडारी
मुड़ ना आण घरीं
गीता वे चुंज भरीं.


गीता वे चुंज भरें तां मैं तेरी
सोने चुंज मढ़ावां
मैं चंदरी तेरी बरदी थींवां
नाल थीए परछांवां
हाड़ाई वे ना तूं तिरहाया
मेरे वांग मरीं
गीता वे चुंज भरीं.


(सरवर = सरोवर / साहां = सांसें / चुंज = चोंच / भलके = सुबह सुबह /
हावां = आहें / उलमड़ा = उलाहना / हंजू = आंसू / घरीं = घर / चंदरी = तुच्छ
बरदी थींवा = नौकर बन जाऊं / नाल थीए परछांवां = परछाई बन जाऊं)


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Old 27-11-2013, 10:35 PM   #7
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

माये नी माये

माये नी माये
मेरे गीतां दे नैणा विच
बिरहों दी रड़क पवे


अद्दी अद्दी राती उठ
रोण मोये मितरां नूं
माये सानूं नींद न पवे.
भें भें सुगंधियां च
बणा फेहे चानन्नी दे
तांवी साडी पीड़ न सवे
कोसे कोसे साहां दी में
करां जे टकोर माये
सगों साहणु खाण नूं पवे.


आपे नी मैं बालड़ी
मैं हाले आप मत्तां जोगी
मात्त केड़ा एस नूं दवे
आख सूं नि माये इहनूं
रोवे बुल चिथ के नी
जग किते सुन न लवे.


आख माय्रे अद्दी अद्दी
रातीं मोये मित्रां दे
उच्ची उच्ची नां ना लवे
मते साडे मोयां पिछे
जग ए सड़िकरा नी
गीतां नुं वी चंदरा कवे.


(भें भें = भिगो भिगो कर / बणा फेहे = बांधूं फाहे
चानन्नी = चांदनी / तांवी = तो भी / कोसे कोसे साहां = गर्म सांसे / बालड़ी = बालिका
मत्तां = समझदारी / रोवे बुल चिथ के = होंठ दबा कर रोये / सड़िकरा = जलन करने वाला)

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Old 27-11-2013, 10:38 PM   #8
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

की पुछदे ओ हाल
की पुछदे ओ हाल फकीरां दा
साडा नदियों विछड़े नीरां दा
साडा हंज दी जूने आयां दा
साडा दिल जलयां दिल्गीरां दा.


साणूं लखां दा तन लभ गया
पर इक दा मन वी न मिलया
क्या लिखया किसे मुकद्दर सी
हथां दियां चार लकीरां दा.


तकदीर तां अपनी सौंकण सी
तदबीरां साथों ना होईयां
ना झंग छुटिया
,
न काण पाटे
झुंड लांघ गिया इंज हीरां दा.


मेरे गीत वी लोक सुणींदे ने
नाले काफिर आख सदींदे ने
मैं दर्द नूं काबा कह बैठा
रब नां रख बैठा पीड़ां दा.


(हंज = आंसू / सौंकण = सौतन)
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Old 27-11-2013, 10:48 PM   #9
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है

सूरत उसदी परियां वरगी
सीरत दी ओह मरियम लगदी
हसदी है तां फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी

लम्म सलम्मी सरूं क़द दी
उम्र अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणां दी गल्ल समझदी
गुमियां जन्म जन्म हन ओए
पर लगदै ज्यों कल दी गल्ल है
इयों लगदै ज्यों अज्ज दी गल्ल है
इयों लगदै ज्यों हुण दी गल्ल है
हुणे ता मेरे कोल खड़ी सी
हुणे ता मेरे कोल नहीं है
इह की छल है इह केही भटकण
सोच मेरी हैरान बड़ी है
नज़र मेरी हर ओंदे जांदे
चेहरे दा रंग फोल रही है
ओस कुड़ी नूं टोल रही है
सांझ ढले बाज़ारां दे जद
मोड़ां ते ख़ुशबू उगदी है
वेहल थकावट बेचैनी जद
चौराहियां ते आ जुड़दी है
रौले लिप्पी तनहाई विच
ओस कुड़ी दी थुड़ खांदी है
ओस कुड़ी दी थुड़ दिसदी है
हर छिन मैंनू इयें लगदा है
हर दिन मैंनू इयों लगदा है
ओस कुड़ी नूं मेरी सौंह है
ओस कुड़ी नूं आपणी सौंह है
ओस कुड़ी नूं सब दी सौंह है
ओस कुड़ी नूं रब्ब दी सौंह है
जे किते पढ़दी सुणदी होवे
जिउंदी जां उह मर रही होवे
इक वारी आ के मिल जावे
वफ़ा मेरी नूं दाग़ न लावे
नई तां मैथों जिया न जांदा
गीत कोई लिखिया न जांदा

इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है।

**
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Old 28-11-2013, 10:39 AM   #10
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Default Re: शिव कुमार बटालवी: बिरहा का सुल्तान

शिव कुमार बटालवी एक ऐसा शायर व एक ऐसा कवि था जिसने दर्द को पूरी तरह जिया था, जिसे दर्द से मुहब्बत थी. तभी तो अपने गीत में एक जगह शिव लिखते हैं मैं दर्द नूं काबा कैह बैठा, रब ना (= नाम) रख बैठा पीडां दा / की पूछदे ओ हाल फकीरां दा। सिर्फ दर्द ही नहीं इससे हटकर भी शिव के गीतों में झलक दिखाई देती है वो झलक है शरारत की. उनका लिखा एक गीत है:

इक मेरी अख काशनी, दूजा रात दे उनींदरे ने मारया,
शीशे नूं तिरेड़ पै गई बाल वोंदी ने ध्यान जो हटा लया.

(एक तो मेरी आँखें नीली हैं, दूसरे रात को नींद न आने का कष्ट है,
उस समय दर्पण चटक गया, जब बाल बनाते हुये मेरा ध्यान हट गया)

यह गीत पूरी तरह शरारत से भरा है जिसमें एक औरत की भावनाएं और उसकी चंचलता खुल कर बयान हो रही है.
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