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#1 |
Super Moderator
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![]() फिर प्रगति के एजेन्टों से जो जाहे अनुबंध करो. मुझे तुम्हारे संगठनों से राजकाज से काम नहीं. और भाषणों की छाया में लेना है विश्राम नहीं. बात अगर करनी है तो मेरे मतलब की बात करो, कान थके कर्तव्यों का ये थोथा रोना बन्द करो. मैं भूखा हूँ भैया पहले ------- कितने वाद गए आये हर वाद से वाद विवाद किया. हर वाद नयी आशा लाया हर वाद ने पर बर्बाद किया. यह स्थिति भयंकर होती है जिसमे कोई अपवाद नहीं, इस प्रबल यंत्रणा से मुझको तुम पूर्णतया निर्बन्ध करो. मैं भूखा हूँ भैया पहले ------- आचार संहिता को इंगित कर मेरा कंठ दबाओ न. नाम विसंगतियों का ले कर मेरा नाम मिटाओ न. अनुशासन मुझको भी प्रिय है पर उसकी सीमाएं हैं, मूल जरूरत के दर्शन को खोलो न कि बन्द करो. मैं भूखा हूँ भैया पहले ------- |
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#2 | |
Tech. Support
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phir bhi mera dhanyawaad kabool kare. ![]()
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#3 |
Super Moderator
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अद्भुत ... ठीक वही हालात, जहां से जन्म लेती है एक आम आदमी पार्टी ... ! अत्यंत श्रेष्ठ सृजन के लिए धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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#4 | |
Administrator
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![]() ![]() ![]() आज के भारत पर शानदार कटाक्ष। ![]() |
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#5 |
Super Moderator
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अभिषेक जी, सेंट अलैक जी, जीतेन्द्र जी, सिकंदर जी व सोमबीर जी, रचना पढ़ने के लिये, प्रशंसा करने के लिये एवं विचाराधीन विषय पर अपनी मूल्यवान टिप्पणी देने के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ. यह पंक्तियां स्वतः स्फूर्त हैं और मैं सोचता हूँ कि यह आज़ाद भारत में रहने वाले एक आम आदमी के ह्रदय की आवाज़ है जिसके सारे सपने टूट चुके हैं. यह अरण्यरोदन किसी हद तक सार्वकालिक हैं लेकिन इस सब का महत्व वर्तमान परिस्थितियों में और भी बढ़ गया है.
एक आम आदमी क्या चाहता है? सबसे पहले पेट भरने के लिये रोटी (बकौल मेकडूगल पहली मूल ज़रूरत) फिर कपड़ा और मकान. आज रोटी के भी लाले पड़े हुये हैं इस आम आदमी को. इसमें कोई शक नहीं कि हमारे देश ने आज़ादी के बाद के पैंसठ सालों में हर क्षेत्र में बहुत तरक्की की है. किन्तु आम आदमी को क्या मिला? सुरसा के खुले मुख की तरह बढते जाने वाले खर्च और सिकुड़ती आमदनी तथा सिकुड़ती मूल सुविधाएँ. क्या कारण है कि आम जन के लिये बनने वाली बड़ी बड़ी महत्वाकांक्षी योजनायें रेत की नदी में दफ़न हो जातीं हैं व सारे वेलफ़ेयर प्रोग्राम भ्रष्टाचार की गलियों में लूट लिये जाते हैं. जीतेन्द्र जी, सेंट अलैक जी और अभिषेक जी, इन पंक्तियों ने यदि आप जैसे मनीषियों को उद्वेलित किया है तो इसका श्रेय हमारी साझी पीड़ा की इमानदारी को जाता है. धन्यवाद. |
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#6 |
Special Member
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#7 |
Diligent Member
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आचार संहिता को इंगित कर मेरा कंठ दबाओ न.
नाम विसंगतियों का ले कर मेरा नाम मिटाओ न. अनुशासन मुझको भी प्रिय है पर उसकी सीमाएं हैं, मूल जरूरत के दर्शन को खोलो न कि बन्द करो. मैं भूखा हूँ भैया पहले bhukhe bhajan na hoye kanha aaj ke halat par ek dum stik kavita manga ji bahoot hi gaharayee se har baat samjhayee hai aapne ,aapka bahoot bahoot dhanyavaad ek sunder kavya sarjan ke liye / |
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मैं भूखा हूँ, रजनीश मंगा, i am hungry, pet ki aag, poetry of rajnish manga, revolutionary poetry |
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