04-02-2016, 01:42 PM | #1 |
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एक किस्सा हमेशा अधूरा रहा
जुगनू जैसा जलता-बुझता रहा,
पूरे होने की कोशिश में, हर क्षण मिटता रहा, बादल गरजे, बरसे नही, चातक उपेक्षा का मारा रहा, एक किस्सा हमेशा अधूरा रहा। खुद के होने में खुद को पाने का, खुद से हर क्षण युध्द करता रहा। मन कि पीर के कारन थे जो, उन भावों के उत्तर ढूंढता रहा। पर ये किस्सा हमेशा अधूरा रहा। |
05-02-2016, 06:04 PM | #2 | |
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Re: एक किस्सा हमेशा अधूरा रहा
Quote:
बहुत अर्थपूर्ण कविता जिसमें भावों की बड़ी प्रभावशाली अभिव्यक्ति दिखाई देती है. इसमें अपने अधूरेपन से बाहर निकल कर आने की व्याकुलता एवम् उस पीड़ा से उबरने का जतन दिखाई देता है जो निम्नलिखित पंक्तियों में प्रगट हो रहा है: खुद के होने में खुद को पाने का, खुद से हर क्षण युध्द करता रहा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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07-02-2016, 06:06 PM | #3 |
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Re: एक किस्सा हमेशा अधूरा रहा
Dhanyawaad sir!!
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08-02-2016, 10:42 AM | #4 |
Diligent Member
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Re: एक किस्सा हमेशा अधूरा रहा
कविता में इंसानी जीवन के निराश हताश और दुखी मन की बात को सुन्दर तरीके से बताया गया हैऔर मन में एक चाहत भी है इस दुःख से हतासा ने उबरने की इस और भी कवि अपने भाव प्रकट करते हैं ..
पर जब जब मन हिम्मत हारने लगे हर और निराशा नजर आये तब जीवन का दृष्टिकोण बदलने की कोशिश ही इंसान को उसके दुःख से और हताशा से निजात दिला सकती है |
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