07-06-2015, 08:54 PM | #1 |
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हमारे तीन बंदर….बंसी
गाँधी जी की किताब पड़ते पड़ते हमारी आँख लग गयी बंदर ही बंदर दिखने लगे लगा बंदरों की तादाद है बड़ गयी बंदरों को देख कर हमें अपने बंदरों की याद आ गयी जब अपने बंदरों को देखा तो हमारी आँखें देखती ही रह गयी गाँधी जी के थे बंदर तीन हमारे भी थे बंदर तीन गाँधी जी का बंदर देखता ना था हमारा भी पहले देखता ना था अब वो सब कुछ देखता मगर कहता मैने कुछ देखा नहीं गाँधी जी का बंदर सुनता ना था हमारा भी पहले सुनता ना था अब वो सब कुछ सुनता मगर कहता मैने कुछ सुना नहीं गाँधी जी का बंदर बोलता ना था हमारा भी पहले बोलता ना था अब वो सब कुछ बोलता मगर कहता मैने कुछ बोला नहीं अपने बंदरों में ऐसा बदलाव देख हम हैरान हो गये हमने बंदरों से पूछा तुम पहले ऐसे ना थे कैसे बदल गये बंदर बोले यह सब नेताओं से सीखा हमारे नेता जो भी करते हैं कहते हैं किया नहीं इतने घोटाले करते हैं मगर कुछ भी तो किया नहीं क्या क्या ना बोलते हैं मगर कहते हैं कुछ बोला नहीं सुनते रहते हैं सब की बातें मगर कहते हैं सुना नहीं उन में बदलाव देख हमने भी अपना दस्तूर बदल दिया हम भी जो कुछ करते हैं कहते हैं किया नहीं नेताओं के लिए ऐसा सुन कर हमें बहुत गुस्सा आया गुस्से में हमने अपना हाथ उठाया हाथ पलंग से जा टकराया नीद खुली तो ख्याल आया यह तो बंदर हैं इनका काम है नकल करना जैसा देखेंगे वैसा करेगे बंसी इनका कोई कसूर नहीं 'बंसी' इनका कोई कसूर नहीं बंसी(मधुर) Last edited by Bansi Dhameja; 07-06-2015 at 09:00 PM. |
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