04-09-2011, 01:31 PM | #1 |
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!!नज्म!!
मेरे ख्यालोँ पे छाई हो ऐसे बादल पे घटा झुकी हो जैसे निगाहोँ के हिसार मेँ सुबहो शाम तुम्हे रखना अच्छा लगता है ख्यालोँ की अंजुमन मेँ तुम्हारे वजूद को सजा कर तुमसे बातेँ करना खुद से बेगाना होकर सोचोँ के साए मेँ तुम्हारे साथ चलना दूर बहुत दूर यादोँ की वादियोँ मे खो जाना और फिर अपनी इस कैफियत पे हंसना ये मेरा पागलपन नही तो और क्या है तुम सामने हो दिल के करीब हो तुम्हे पाना मेरा नसीब हो फिर भी मुझे लगता है तुम्हे पाना इतना आसां नही जितना मै समझता हूँ पर मैँ अपने इस मासूम दिल का करूँ जो तुम्हारी ही तमन्ना करता है........
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04-09-2011, 04:51 PM | #2 |
Administrator
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Re: !!नज्म!!
बहुत ही अच्छी नज़्म है.
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04-09-2011, 06:08 PM | #3 |
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Re: !!नज्म!!
वाह वाह ... बहुत सुन्दर...
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05-09-2011, 12:52 AM | #5 |
अति विशिष्ट कवि
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Re: !!नज्म!!
सिकंदर जी ,वाह - वाह ; क्या कहने .बधाई .
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07-09-2011, 01:26 AM | #7 |
VIP Member
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Re: !!नज्म!!
गुदगुदी दिल में हुई,
वलवले जाग उठे, आरजूओं के शगूफे फूटे, उफक ए यास से पैदा हुई उम्मीद की बेताब किरण, शब्नामिस्तान ए तमन्ना में हर एक सिमत उजाला फैला, खोल दी देर से सोए हुए जज़्बात ने आँख खिरमन ए दिल में फिर इक आग सी भड़की चमकी, इक तड़प एक शरार - इस पे है अंजुमन ए दहर की गरमी का मदार, खून रग रग में रवां, इस से है हरकत में आलम का निज़ाम ! ज़िया फतेहाबादी
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07-09-2011, 01:35 AM | #8 |
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Re: !!नज्म!!
अक्सर अरमान जागते हैं... चमकते हैं...
बिखर जाते हैं... ऐसा ही एक जागा हुआ अरमान... इधर सर उठाए है... बिखर जाने को हरगिज़ तैयार नहीं... किसी सूरत भी नहीं... उस जागते अरमान का ख़्वाब भी क्या... तुम्हारे साथ कभी यूँ ख़ामोश बैठूँ... तब तक जब तक ख़ामोशी ख़ुद चीख़ न पड़े... आवाज़ में तब्दील होने को एक दूजे में तहलील होने को !
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05-10-2011, 07:36 PM | #9 |
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Re: !!नज्म!!
अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा भूले-भटके की रहनुमा हूँ मैं दिल ने सुनकर कहा-ये सब सच है पर मुझे भी तो देख क्या हूँ मैं राज़े-हस्ती[1] को तू समझती है और आँखों से देखता हूँ मैं शब्दार्थ:
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05-10-2011, 07:37 PM | #10 |
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Re: !!नज्म!!
सारा दिन मैं खून में लथपथ रहता हूँ
सारे दिन में सूख-सूख के काला पड़ जाता है ख़ून पपड़ी सी जम जाती है खुरच-खुरच के नाख़ूनों से चमड़ी छिलने लगती है नाक में ख़ून की कच्ची बू और कपड़ों पर कुछ काले-काले चकत्ते-से रह जाते हैं रोज़ सुबह अख़बार मेरे घर ख़ून से लथपथ आता है
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