11-11-2012, 06:42 PM | #11 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
Last edited by malethia; 13-11-2012 at 05:56 AM. |
07-12-2012, 04:12 PM | #12 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
श्लोक (5) प्रजापतिहिं प्रजाः सृष्टवा तासां स्थितिनिबंधनं त्रिवर्गस्य साधनमध्यायानां शतसहस्त्रेणाग्रे प्रोवाच।। भारतीय सिद्धान्त के मुताबिक जब तक द्वंद (अंदरूनी लड़ाई) है तब तक दुख भी रहेगा। इसलिए दुख को निकालकर फैंक देना चाहिए। भगवान शिव के समान दूसरा कोई नहीं है। इन तीनों विषयों की ज्वाला यहां पर नहीं है। मनुष्य का गम्य स्थान भारतीय दार्शनिकों नें इसे ही कहा है। भारतीय वागंमय का निर्माण भी इसी को प्राप्त करने के लिए ही हुआ है। ब्रह्मविद्या के अंतर्गत यह सारी विद्याएं मौजूद है। सारे देवताओं से पहले पूरे संसारे की रचना करने वाले प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा ने अपने सबसे बड़े पुत्र अथर्व के लिए ब्रह्मविद्या का निर्माण किया जो कि हर विद्या में सबसे बढ़कर है। इससे इस बात का साफ पता चल जाता है कि ब्रह्मविद्या के अंतर्गत कामशास्त्र को भी महत्व दिया गया है। आचार्य वात्सायायन के मतानुसार बह्मा ने प्रजा को उनके जीवन को नियमित बनाने के लिए कामसूत्र के बारे में बताया था- जो कि सुसंगत और परंपरागत माना गया है। बह्मा ने कामसूत्र को काम, अर्थ और धर्म का साधन मानकर इसकी रचना की है क्योंकि इन तीनों का आखिरी पड़ाव मोक्ष ही है और मनुष्य के जीवन का मकसद भी मोक्ष को प्राप्त करना ही है। इसलिए जब तक मोक्ष की असली परिभाषा को बहुत अच्छी तरह से समझा नहीं जाएगा तब तक इसको प्राप्त करना बहुत ही ज्यादा मुश्किल है। Last edited by malethia; 07-12-2012 at 04:15 PM. |
07-12-2012, 04:14 PM | #13 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
ब्रह्मा के लिए कामशास्त्र का निर्माण करना इसलिए जरूरी है कि काम आदिदेव है, इसकी शक्ति अपार है। जब तक काम का नियमित साधन नहीं किया जाता तब तक मानव जीवन भी नियमित नहीं हो सकता और उसकी कठिन से कठिन तपस्या पर भी पानी फेर सकता है।
योगवशिष्ठ के मतानुसार- ब्राह्मणों को जीवनमुक्त, नारदत्तऋषि, इच्छा से रहित, बहुज्ञ तथा विरागी समझा जाता है। वह देखने में आकाश की तरह कोम, विशद और नित्य होते है, लेकिन फिर भी वह काम के वशीभूत किस प्रकार हो गए। तीनों लोकों के जितने भी प्राणी है चाहे वह मनुष्य़ हो या देवता, उन सभी लोगों का शरीर स्वभाव से द्वयात्मक होता है। जब तक शरीर मौजूद है तब तक शरीर धर्म स्वभाव से ही जरूरी है। जो वासना प्राकृतिक होती है उसको निरोध के द्वारा नही दबाया जा सकता क्योंकि हर जीव प्रकृति के अनुसार ही चलता है तो फिर निग्रह का क्या काम। प्रकृति यान्ति भूतानि निग्रहः कि करिष्यति। इसी प्रकार मूलभूत प्रवृत्तियों का निरोध करना बेकार है। आचार्य वात्सयायन के मतानुसार मानव जीवन में कामसूत्र की सबसे ज्यादा जरूरत मानते हुए ही सबसे पहले ब्रह्मा जी ने कामसूत्र की रचना की थी। इसके साथ ही इस कथन के द्वारा ही ग्रंथ की प्रामाणिकता साबित हो जाती है। |
07-12-2012, 04:16 PM | #14 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
श्लोक (6)- तस्यैकदेशिकंमनुःस्वायम्भुवोधर्माधिकारिकंपृथक्चकार।। अर्थ- बह्माकेद्वारारचेगए 1 लाखअध्यायोंकेउसग्रंथकेधर्मविषयकभावकोस्वयम्भूकेपुत्रमनुनेअलगकिया। श्लोक (7)- बृहस्पतिर्थाधिकारिकम्।। श्लोक (8)- महादेवानुचरश्च नन्दी सहस्त्रेणाध्यायानां पृथक् कामसूत्रं प्रोवाच। श्लोक (9)- तदेव तु पञ्ञभिरध्यायशतैरौद्दालकिः श्वेतकेतुः सञ्ञिक्षेप।। |
07-12-2012, 04:24 PM | #15 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
श्लोक (10) तदेव तु पुनरध्यर्धेनाध्यायशतेन साधारण-साम्प्रयोगिककन्यासम्प्रयुक्तकभार्याधिकारिक-पारदारिक-वैशिकऔपनिषदिकैः सप्तभिरधिकरणैर्बाभ्रव्यः पाञ्ञालञ्ञक्षेप।। मानवजीवनकेमकसदकोनिर्धारितकरनेकेलिएऔरउसेकाबूकरनेकेलिएब्रह्मानेएकसंविधानबनायाजिसकेअंदरलगभग 1 लाखअध्यायथे।इनअध्य़ाय़ोंमेंजीवनकेहरपहलूकाविशद्, संयमनऔरनिरूपणकाउल्लेखथा।मनुनेउसविशालग्रंथको मथकर आचारशास्त्र का एक अलग संस्करण पेश किया जो मनुस्मृति या धर्मशास्त्र के नाम से प्रचलित है। मनु ने जो मनुस्मृति रची थी वह असली रूप में उपलब्ध नहीं है। प्रचलित स्मृति उसी स्मृति का संक्षिप्त विवरण है जिसे मनु ने पेश किया था। आचार्य बृहस्पति ने भी उसी विशाल ग्रंथ के द्वारा अर्थशास्त्र विषयक भाग अलग करके बार्हस्पत्यम अर्थशास्त्र की रचना की। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में बृहस्पति के अर्थशास्त्र के अंतर्गत ही देखने को मिलते है। ब्रह्मा से लेकर बाभ्रव्य तक की कामशास्त्र की रचना पर विहंगम दृष्टि डालने से ग्रंथ रचना पद्धति की परंपरा और उसके इतिवृत का भी बोध होता है। कामशास्त्र को ब्रह्मा ने नहीं रचा उन्होने तो सिर्फ इसके बारे में बताया है। इससे यह बात साबित हो जाती है कि रचनाकाल से ही कामसूत्र का प्रवचन काल शुरू होता है। कामसूत्र के छठे और सातवें अध्याय से पता चल जाता है कि ब्रह्मा के प्रवचन शास्त्र से पहले मनु ने मानवधर्म को अलग किया, उसके बाद बृहस्पति ने अर्थशास्त्र को अलग किया, इसके बाद फिर नन्दी ने इसको अलग किया। इसके बाद अर्थशास्त्र और मनुस्मृति की रचना हुई क्योंकि बृहस्पति और मनु ने कामसूत्र की रचना नहीं की बल्कि इसे सिर्फ अलग किया है। इसके बाद ही श्वेतकेतु और नन्दी ने इसके 1000 अध्यायों को छोटा करके 500 अध्यायों का बना दिया। इस बात से साफ जाहिर हो जाता है कि ब्रह्मा द्वारा रचित शास्त्र में से नन्दी ने कामविषयक सूत्रों को एक सहस्त्र अध्यायों में बांट दिया। उसने अपनी ओर से इसमें कुछ भी बदलाव नहीं किया क्योंकि वह प्रवचन काल था। उसने जो कुछ भी पढ़ा या सुना था वह ऐसे ही शिष्यों और जानने वालों को बताया। लेकिन श्वेतकेतु के काल में संक्षिप्तीकरण का प्रचलन हो चुका था और बाभ्रव्य के काल में तो ग्रंथ-प्रणयन और संपादन की एक मजबूत प्रणाली प्रचलित हो गयी। पांचाल द्वारा तैयार किए गए 7 अधिकरण इस प्रकार है- •साधारण अधिकरण •साम्प्रयोगिक अधिकरण •कन्या सम्प्रयुक्तक अधिकरण •भार्याधिकारिक अधिकरण •पारदरिक अधिकरण •वैशिक अधिकरण •औपनिषदिक अधिकरण |
07-12-2012, 04:42 PM | #16 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
श्लोक (11) तस्यं षष्ठं वैशिकमधिकरणं पाटलिपुत्रिकाणां गणिकानां नियोगाद् दत्तक पृथक चकार।। |
07-12-2012, 04:50 PM | #17 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
श्लोक (12) तत्प्रसगांत् चारायणः साधारणमधिकरणं पृथक् प्रोवाच। सुवर्णनाभः साम्प्रयोगिकम्। घोटकमुखः कन्यासम्प्रयुक्तकम्। गोनर्दीयो भार्याधिकारिकम्। गोणिकापुत्रः पारदारिकम्। कुचुमार औपनिषदिकमिति।। |
07-12-2012, 04:52 PM | #18 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
श्लोक (13) तत्र दत्तकादिभिः प्रणीतानां शास्त्रावयवानामेकदेशत्वात् महदिति च बाभ्रवीयस्य दुरध्येयत्वात् संक्षिप्य सर्वमर्थमल्पेन ग्रंथेन कामसूत्रमिदं प्रणीतम्। मानव जाति की तरक्की और उसकी परंपरा को बनाए रखऩे के लिए ब्रह्मा ने काम, अर्थ और धर्म तीनों पुरुषार्थों को प्राप्त करने के लिए 100 अध्यायों में उपदेश दिए हैं। उस प्रवचन में से धर्माधिकारिक भागों को लेकर मनु ने मनुस्मृति की रचना की। बृहस्पति ने अर्थपूरक विषयों को लेकर अर्थशास्त्र की स्वतंत्र रचना की। फिर उसी प्रवचन में से काम के विषय के भागों को लेकर नन्दी ने एक सहस्त्र अध्यायों में कामसूत्र की रचना की। ब्रह्मा से लेकर नन्दी तक की परंपरा को देखकर यह पता चलता है कि कामसूत्र ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना करने से पहले भी था। सृष्टि की रचना के बाद उन्नति और मानवी परंपरा को बनाए रखने के लिए ब्रह्मा ने कामसूत्र का भी उपदेश दिया जो धर्म और अर्थ से संबंधित था। उस विशाल प्रवचन के आधार पर ही नन्दी ने सहस्त्र अध्यायों के एक स्वतंत्र कामशास्त्र की रचना की अर्था कामसूत्र के प्रवर्तक नन्दी है। आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र ग्रंथ की शुरुआत में ही दावा किया था कि इसमें सभी प्रयोजनों का सम्यक समावेश किया गया है। |
07-12-2012, 04:53 PM | #19 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
श्लोक (14) तस्यायं प्रकरणधिकरणसमुद्देशः।। |
08-12-2012, 02:28 PM | #20 |
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Re: वात्स्यायन का कामसूत्र
nice book, thanks for posting.
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