22-08-2013, 07:42 PM | #1 |
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दो दोहे - रावण और कंस
आ जाओ हे कृष्ण तुम, लिए विष्णु का अंश। एक नहीँ अब तो यहाँ, कदम-कदम पर कंस॥ कंसो का ही राज है, रावण हैँ चहुँ ओर। भला आदमी मौन है, जैसे कोई चोर।। दोहे - आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश Last edited by dipu; 23-08-2013 at 03:52 PM. |
22-08-2013, 08:09 PM | #2 |
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Re: दो दोहे - रावण और कंस
बहुत बढिया!
अच्छा लगा| एक विनम्र सुझाव: कृपया font size थोडा सा बढा दीजिए। पढने में सुविधा होगी, विशेषकर हम जैसे लोगों को जिनकी आँखें कुछ कमजोर हैं। |
22-08-2013, 09:04 PM | #3 |
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Re: दो दोहे - रावण और कंस
उपरोक्त दोहे निश्चय ही प्रशंसा किये जाने योग्य हैं, जिनमें आज के हालात का सुन्दर चित्रण किया गया है और आम आदमी की पीड़ा भी व्यक्त की गयी है.
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23-08-2013, 09:26 AM | #4 |
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Re: दो दोहे - रावण और कंस
आदरणीय रजनीश जी आपकी प्रतिक्रियाओँ से हमेशा एक नई ऊर्जा का संचार होता है। हार्दिक आभार।
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23-08-2013, 09:31 AM | #5 |
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Re: दो दोहे - रावण और कंस
इन्टरनेटप्रेमी जी इन्टरनेट मोबाईल से चलाने के कारण कुछ असुविधा हो रही है। फिर भी प्रयास करूँगा। आपका बहुत बहुत आभार।
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