04-02-2013, 12:38 AM | #11 |
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Re: अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर
कैंसर के मरीजों के लिए साइबरनाइफ रोबोटिक रेडियो सर्जरी तकनीक उपयोगी साबित हो रही है क्योंकि इस तकनीक में न तो कैंसर का ट्यूमर निकालने के लिए कोई आपरेशन करना पड़ता है और न ही परंपरागत थैरेपी की तरह इसमें लंबा समय लगता है। मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में रेडियेशन आन्कोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. तेजिन्दर कटारिया ने बताया ‘कैंसर के मामले लगातार बढ रहे हैं। ज्यादातर मामलों में जब तक इस बीमारी का पता चलता है, तब तक यह बहुत बढ चुकी होती है। समय रहते पता चलने पर कैंसर का इलाज आसानी से हो सकता है। लेकिन इस बीमारी का नाम सुन कर ही मरीज बहुत घबरा जाते हैं।’ उन्होंने कहा कि साइबरनाइफ रोबोटिक रेडियो सर्जरी एक अत्याधुनिक तकनीक है जो कैंसर के मरीजों के लिए उपयोगी साबित हो रही है। उन्होंने बताया कि साइबरनाइफ तकनीक से इलाज में कोई चीरा नहीं लगाया जाता। इसमें ‘नॉन इन्वेसिव’ तरीके से ट्यूमर हटाया जाता है। यह उन मरीजों के लिए अत्यंत लाभदायक है जिनका कैंसर वाला ट्यूमर आपरेशन से नहीं निकाला जा सकता। साइबरनाइफ तकनीक में एनेस्थीसिया का भी उपयोग नहीं किया जाता।
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04-02-2013, 12:41 AM | #12 |
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Re: अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर
श्वसन अंगों का इलाज़ मुश्किल
बीएलके अस्पताल में रेडियेशन आन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख और एसोसिएशन आफ रेडियेशन आन्कोलॉजिस्ट आफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस हुक्कू ने कहा ‘इस तकनीक से इलाज के दौरान मरीज के शरीर में लक्षित ट्यूमर पर एक सत्र में 30 मिनट से 90 मिनट तक रेडियेशन बीम डाली जाती है और इस दौरान मरीज पूरी तरह होश में रहता है।’ डॉ हुक्कू के अनुसार, साइबरनाइफ तकनीक से इलाज में एक से पांच सत्र लगते हैं, जबकि पारंपरिक थैरेपी के लिए 25 से 40 सत्रों की जरूरत होती है। रेडियेशन बीम डालने पर अन्य उतकों या कोशिकाओं पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।’ उन्होंने कहा कि साइबरनाइफ तकनीक से फेफड़ों या जिगर में कैंसर के ट्यूमर हटाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि श्वसन क्रिया के कारण इन अंगों में हलचल होती रहती है। लेकिन यह मुश्किल भी नहीं होता। यह तकनीक उन मरीजों के लिए भी लाभकारी है जिनका एक बार कैंसर का इलाज होने पर ट्यूमर खत्म तो हो जाता है, लेकिन कुछ समय बाद फिर कैंसर का ट्यूमर बन जाता है।
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04-02-2013, 12:41 AM | #13 |
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Re: अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर
रेडियेशन डिलीवरी डिवाइस का कमाल
साइबरनाइफ तकनीक में एक रेडियेशन डिलीवरी डिवाइस होता है जिसे लीनियर एक्सीलेटर या लाइनेक कहा जाता है। लाइनेक को एक लचीली रोबोटयुक्त भुजा पर लगाया जाता है। डॉ हुक्कू ने कहा कि इलाज के दौरान एक्सरे ट्यूमर की तस्वीर लेता रहता है, शुरूआती सीटी स्कैन से उसे मिला कर ट्यूमर की स्थिति का पता लगाया जाता है और आधुनिक सॉफ्टवेयर के जरिये रोबोट वाली भुजा को इसकी जानकारी दी जाती है। यह भुजा लचीली होने की वजह से अलग अलग कोणों पर मुड़ सकती है और ट्यूमर वाले स्थान पर रेडियेशन बीम डाल सकती है।
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04-02-2013, 02:39 AM | #14 |
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Re: अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर
विश्व में मुंह के कैंसर के 86 प्रतिशत मामले भारत में
भारत मुंह के कैंसर के मामलों में पूरे विश्व में अब भी सबसे उपर बना हुआ है तथा देश में प्रत्येक वर्ष कैंसर के 75 से 80 हजार नये मामले सामने आते हैं। कैंसर के अधिकतर मामलों के लिए तंबाकू चबाने को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि भारतीय धूम्रपान करने की बजाय तंबाकू अधिक चबाते हैं। तंबाकू चबाने वालों की 26 प्रतिशत आबादी भारत में वास करती है जबकि धूम्रपान करने वालों में से 14 प्रतिशत भारतीय हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि गैर संचारी रोगों को कम करने के लिए तंबाकू चबाने पर रोक लगाना स्वास्थ्य मंत्रालय की महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की एकमात्र सबसे बड़ी चुनौती है । राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान (एनआईएचएफडब्ल्यू) के विशेषज्ञों की ओर से गुटखा के हानिकारक प्रभावों का अध्ययन करने के लिए हाल में तैयार एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पूरे विश्व के 86 प्रतिशत मुंह के कैंसर के मामले भारत में सामने आते हैं। सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि तंबाकू और गुटखा का सेवन देश में मुंह के कैंसर के 90 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है। अब स्वास्थ्य मंत्रालय वर्ष 2011 की अधिसूचना के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन पर जोर दे रहा है जिसमें गुटखा में तंबाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है।
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04-02-2013, 03:27 PM | #15 |
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Re: अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर
‘कैंसर ... क्या आप जानते हैं?
कैंसर की रोकथाम और इससे निपटने के लिए रणनीतियां बनाने और प्रयासों को और पुख्ता बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विभिन्न सरकारें और बड़े स्वास्थ्य संगठन हर साल चार फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाते हैं। विश्व कैंसर दिवस की शुरूआत ‘यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल’ (यूआईसीसी) ने वर्ष 1933 में जिनीवा में की थी। इस साल विश्व कैंसर दिवस की थीम ‘कैंसर ... क्या आप जानते हैं?’ है जो कैंसर के बारे में व्याप्त भ्रांतियों और उन्हें दूर करने की जरूरत पर केंद्रित है।
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04-02-2013, 03:28 PM | #16 |
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Re: अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर
बोन कैंसर : तकनीकें बचा सकती हैं अंगों को
बोन कैंसर यानी हड्डियों का कैंसर अब न तो लाइलाज है और न ही इसकी वजह से अंग काटने की नौबत आती है। विशेषज्ञों का दावा है कि नवीनतम तकनीकों की मदद से समय रहते बोन कैंसर का पता लगा कर उसका इलाज किया जा सकता है। इन आधुनिक तकनीकों की मदद से बोन कैंसर के कारण होने वाली मृत्यु दर घटाने में मदद मिली है। राजीव गांधी कैंसर इन्स्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के कन्सल्टेन्ट आर्थोपेडिक ओन्कोलॉजिस्ट डॉ. अक्षय तिवारी ने बताया कि अब बोन कैंसर अर्थात आस्टियोसरकोमा के 80 से 90 फीसदी मामलों में जो सर्जरी की जाती है, उसमें अंगों को काटना नहीं पड़ता। पहले बोन कैंसर वाले अंग को काटना मानक इलाज माना जाता था। अब आस्टियोसरकोमा का अगर समय रहते पता चल जाए, तो इसके 60 से 70 फीसदी मरीजों को उनके अंग काटे बिना बचाया जा सकता है।
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04-02-2013, 03:29 PM | #17 |
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Re: अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर
ट्यूमर होता है बच्चों में बीमारी का कारण
इंडियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन के मानद सचिव और ईएसआईपीजीआईएमएसआर के डीन डॉ. सुधीर कपूर ने बताया, बोन ट्यूमर हड्डियों में ही पैदा होता है और विकसित होता है। बोन कैंसर वाले करीब 35 फीसदी बच्चों को इस बीमारी का कारण यह ट्यूमर होता है। ऐसे बच्चों को बड़े होने पर भी बोन कैंसर होने की आशंका रहती है। डॉ. कपूर ने कहा कि कई मरीजों को जब इस बीमारी का पता चलता है, तब तक यह बीमारी अंतिम अवस्था में पहुंच चुकी होती है और प्रभावित अंग को काटने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता। यह बीमारी लाइलाज नहीं है, लेकिन आज भी हड्डियों से जुड़ी तकलीफ को लोग गंभीरता से नहीं लेते और शुरू में इस समस्या का पता ही नहीं चल पाता। नवीनतम तकनीकों में प्रोस्थेसिस का उपयोग प्रमुख है। इसकी मदद से उस हड्डी को ही हटा दिया जाता है, जहां कैंसर वाला ट्यूमर बनता है।
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04-02-2013, 03:30 PM | #18 |
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Re: अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर
एक्स्ट्राकारपोरियल रेडियोथैरेपी
एक अन्य तकनीक है एक्स्ट्राकारपोरियल रेडियोथैरेपी एंड रीइम्प्लान्टेशन। इस तकनीक में ट्यूमर हटाने के बाद, उस हड्डी को निकाल कर रेडियोथैरेपी दी जाती है। इस दौरान मरीज एनेस्थीसिया के असर के कारण बेहोश रहता है। रेडियोथैरेपी के बाद हड्डी फिर से यथास्थान पर लगा दी जाती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के आन्कोलॉजिस्ट डॉ. शिशिर रस्तोगी ने कहा कि बच्चों और किशोरों को हड्डियों का कैंसर होने की आशंका अधिक होती है। शुरू में दर्द को या इससे जुड़ी अन्य समस्याओं को हल्के तौर पर लिया जाता है। समय रहते अगर बीमारी का पता चल जाए, तो उसका इलाज हो सकता है।
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