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Old 29-08-2014, 10:55 PM   #61
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

फुफा मुंहफट भी थे और एक दिन इसी को लेकर महाभारत हो गई। गांव के एक महिला थी सुनैयनमां। जिसके बारे में फूफा कह रहे थे।

‘‘हरमजादी, रतिया मे सुते ले जा है भतरा के साथ तब रतिये मे नहाबो है, जन्नी है करकसनी।’’

सुनैयनमां के बारे में गांव में कई तरह के किस्से थे जिसमें से सबसे चर्चित यह था कि शादी के बाद उसने अपने पति को कभी सटने तक नहीं दिया। उसका साफ मानना था कि शारीरिक संबंध एक अपवित्र चीज है और इससे भगवान नखुश होते है। गांव में गाहे बेगाहे दालान पर इसकी चर्चा निकल जाती थी। गांव की बेटी होकर भी वह कभी ससुराल में नहीं रही
, इसी कारण से। एक दिन मैंने भी इसी चर्चा के क्रम में पूछ लिया –

‘‘फिर एक बेटा कैसे है? ’’

जबाब और चौंकाने वाला था।


जबाब दिया था कामो सिंह ने-


‘‘अरे एकरा ले केतना पंचयती होलई और पंच के फैसला पर इ करकसनीया सांय के साथ सुतलै हें।’’

एक दिन सुनैयनमां को देख फुफा ने टोक दिया
,-

‘‘देखीं देखीं हो, भैंसीया बोरलौ पानी में।’’
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Old 02-09-2014, 10:25 PM   #62
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

सुनैयनमां की आदत भी विचित्र थी। शाम या सुबह जब वह शौच से आती थी तो पनछुआरी के लिए अन्य औरतों की तरह वह सावधानी नहीं बरतती थी और कोई आता जाता रहे वह पूरी साड़ी उघाड़ कर पोखर में बैठ जाती और छपड़ छपड़ करती रहती, देर तक। इसी को देख दूर से फुफा ने किसी को सुनाया था। बोरलै भैंसीया पानी में।

और फिर लड़ाई शुरू....


आज वह शाम आ गई जिसका इंतजार दो दिनों से कर रहा था। शाम को वह दिखी और प्रसन्न मुद्र में दिखी, संतोष हुआ मिलना होगा। ससमय मैं उस बुढ़े बरगद के नीचे जा बैठा। वह आषाढ़ की पूर्णिमा की चांदनी रात थी। आकाश में कुछ कुछ बादल कभी घीर आते पर मिला जुला कर रात एकदम साफ थी। लग रहा था जैसे पूणम की उजली किरण रीना के स्वागत में बिछ गई हो। मैं बरगद पेड़ के नीचे बैठा इंतजार कर ही रहा था तभी बगल में एक भगजोगनी अपनी नन्हीं से रौशन बिखेरती दिखी। मैंने उसे पकड़ लिया। बचपन से ही सुनता आया हूं कि भगजोगनी को पकड़ कर जो मन्नतें मांगी जाती है वह पूर्ण हो जाती है और मैंने रीना को मांग लिया।

खैर
, यह इंतजार का सिलसिला चलते चलते घंटों बीत गए पर रीना नहीं आई। मन क्रोध से भर गया। लगभग पूरी रात उस बीरान सी जगह में काट दी पर कभी इसका एहसास न हुआ, अब आएगी, अब आएगी यही सोचता रहा की लगा अब बिहान हो जाएगा सो वहीं से कॉलेज की ओर टहलने निकल गया। टहलने के उस क्रम में जीवन से जुड़ी कई मुश्किलों और कल की चिंता पर मंथन किया जाता रहा और अन्नतः यह निर्णय हुआ कि आज ही पटना के लिए कूच कर जाना है। घर आया और सारी तैयारी तो थी ही पटना के लिए रवाना हो गए। फुफा ने बस तक जाकर सामान पहूंचा दिया और पहली बार पटना गया।
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Old 02-09-2014, 10:29 PM   #63
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

पहाड़ी पर उतरने के बाद टमटम से फार्मेसी होस्टल गया जहां रहने का इंतजाम किया गया था। वहां से उसी दिन पराडाइज कोचिंग चल गया और कब से क्लास आना है इसकी जानकारी इक्कठी की। होस्टल का वह कमरा बहुत बड़ा था जिसमें तीन चौकी लगी हुई थी। एक पर राजीव दा, एक पर मैं और एक पर कोई जज के पेशकार का बेटा रहता था। राजीव दा एक अलग तरह के चरित्र के साथ जी रहे थे। फार्मेसी की पढ़ाई पूरा किए चार साल हो गये पर अभी तक पटना में रहने के लिए हॉस्टल का कमरा अपने पास रखा था। उनकी पहचान प्रत्येक दिन उजर बग-बग कुर्ता और पूरा फलड़ पैजाम थी। दिन हो की रात वे कब आते और कब जाते कोई नहीं जानता। कभी कभी नहीं भी आते। कभी कभी चर्चा होती तो कहा जाता है कि उनका संबंध कई लड़कियों से है और सुबह से शाम उनका इसी सब में बीत जाता है। मैंने कभी इस तरह का कोई चीज महसूस नहीं की।

आज पटना मं रहने का पहला दिन था और राजीव दा ने मेरा परिचय मेरे एक अन्य सहकर्मी से कराया यही है बबलू। उसने सिर्फ मेरी ओर देखा बस, पता नहीं क्यों पहली ही नजर में वह एक अड़ीयल सा लगा और मेरी उससे कम ही बातचीत होने लगी। होस्टल में खाना बनाने का जिम्मा दोनों का था पर वह पढने चले जाने के बहाने दूसरे दिन से ही खाना की जिम्मेवारी मुझे थमा गया। मैं खाने में प्रत्येक दिन खिचड़ी ही बनता था, सब्जी मिलाकर। खैर मेरा मन कठोर हो गया था रीना के प्रति नहीं अपने जीवन को संबरने के प्रति और इसी को लेकर मैं अपने द्वारा निर्धरित पथ पर चल पड़ा था। कोंचिंग जाने का सिलसिल चल पड़ा था। कुछ दिन तो कोचिंग में कुछ समझ में ही नहीं आया, जो भी शिक्षक आए वह अग्रेजी मे पढ़ा कर चले गए और मुझे कुछ अटा ही नही। मैं दुगनी मेहनत प्रारंभ कर दी। किसी की सलाह पर अग्रेंजी का अखबार लेना प्रारंभ किया और फिर पन्द्रह दिन बाद में से क्लास में थोड़ी थोड़ी बात समझने लगा।
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Old 02-09-2014, 10:33 PM   #64
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

मैं अपना काम ईमानदारी से कर रहा था। खुमारी थी कुछ करने की, पर रह रह कर यादों का झरोखों से मन के अंदर प्रेम की ठंढी हवा आ आ कर झकझोर जा रही थी। पूरे तीन माह तक न तो मैं घर गया और न ही किसी प्रकार का उससे संपर्क हुआ। आसीन का महीना था और दुर्गा पूजा की छुटटी में घर गया। मेरे जाने से पहले ही मेरे आने की खबर गांव में फैल गई थी। बस से उतर कर जैसे ही घर जाने लगा वैसे ही जो पहला आदमी मिला वह था मेरा दोस्त मनोज। रास्ते में जो बात उसने बतई वह चौंकाने वाली थी। हम दोनों के प्रेम का राजफाश हो गया और रीना के घर बालों से लेकर पूरा गांव सारी प्रेम कहानी जान गया है।

यह हुआ कैसे! जब इसके बारे में पूछा तो पता चला की राजीव दा के हाथ रीना की लिखी एक चिठठी लग गई। रीना ने राजीव दा के घर से पटना का पता मालूम किया और एक पत्र लिख दिया था जो की राजीव दा के हाथ लग गई और उसे राजीव दा ने रीना के घर में दिखाने से पहले गांव के कई लोगों को दिखा दिया। यानि की राज फाश हो गया। मैं भी सहमा सहमा सा घर गया। किसी अनहोनी की आशंका से डरा डरा। घर में भी फुआ का मूड उखड़ा हुआ ही था। चलो जो हुआ सो हुआ, देखा जाएगा। आज घर से बाहर कहीं नहीं निकला और दिन भर सोया रहा। रीना को लेकर मन में जो गुस्सा था वह काफूर हो गया। यही सोंच रहा था कि उसपर क्या बीत रही होगी। एकआध बार खिड़की से झांक कर देखने का प्रयास किया तो वह कहीं नजर नहीं आई। मतलब साफ था उसपर प्रतिबंध लगा दिया गया है। दो दिनों तक रीना न तो गली में न ही छत पर नजर आई और तब मैं बिचलित हो गया। इन दो दिनों में कई प्रेम पत्र लिखे-फाड़े और अन्ततः एक प्रेम पत्र उसतक पहूंचाने का निर्णय लिया। पर कैसे, वह तो घर से निकलती ही नहीं? सबसे पहले उसका हालचाल लेने की कोशिश की जिसके लिए अपने मित्र जो उसका चचेरा भाई था रामू, उससे संपर्क किया।
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Old 02-09-2014, 10:36 PM   #65
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

‘‘की हो रामू की हाल है, शाम में उससे जब मुलाकात हुई तो कहा।

‘‘ठीक हई, पर तोरा नियर तो नहीं हई, खुब मस्ती करो हीं ने, पुरा गांव में तहलका मचल हई।’’

‘‘अच्छा बताहीं की यह पाप है। रीनमां से प्यार करोहीए कोई खेलौर थोड़े।’’

‘‘तहूं खूब कहो ही यार, प्यार व्यार साला यहां कोई समझो हई।’’

‘‘यार दोस्त के मदद नै करमहीं’’’

‘‘हां हो, जान देकर।’’

‘‘अच्छा, रीनमां के हाल बताउ, कैसन हई।’’

‘‘ठीके हई, पर ओकरा घर से निकले के मनाहीं हई।’’

‘‘तब इ लेटरवा ओकरा पहूंचा दहीं ने तब बड़ी एहसान होतई।’’

और बात बन गई
, रीना को लेटर मिल गया। मैंने अपनी सारी योजनाओं की जानकारी उसे दी की भविष्य को लेकर क्या क्या करना है और उसकी तैयारी भी कर रहा है। साथ ही उसी बुढ़े बरगद के नीचे मिलने का वादा मांगा। दो रात को मैं उस पेड़ के नीचे चला जाता। तब जाता जब मेरे सोने का समय होता। गांव में रहने का यह एक लाभ ही था। आठ बजते बजते सारा गांव खा पी कर सो जाता। बस एक आध दलान पर कुछ लोग जागे रहते। दो दिन इंतजार करने के बाद भी वह नहीं आई। तीसरे दिन उसका पत्र आया जिसमें उसने अपनी परेशानी लिखी। इस बात का रो रो कर जिक्र लिखा की वह मुझसे अटूट प्रेम करती है और जान देकर भी इसे निभाएगी। पहली बार जान देने की बात सामने आई। यानि प्रेम की अग्नि परीक्षा अब होनी थी। साथ ही उसने बतया कि मौका मिलते ही वह मिलने आएगी।
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Old 02-09-2014, 10:37 PM   #66
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

लगातार चार पांच रातों को इंतजार करते रहने के बाद एक रात रीना आ गई। मेरी खुशी का परावार न रहा। मैं झुमते हुए उसे सीने से लगा लिया और वह भी सीने में आकर ऐसे सट गई जैसे मां से बिछुड़ा हुआ बेटा मिलता हो। यह प्रेम की प्रकाष्ठा थी। रोंआं रोंआं रोमांचित था, पुलकित था। बहुत देर तक हमदोनों यूं ही सटे रहे। फिर वहीं बरगद की गोद में बैठ कर पहले तो उसने तीन माह के वियोग की चर्चा और बताया कि उससे पहली बार ऐसा दुख झेला है। सच भी था जब से होश संभाला है कभी इतने दिनों के लिए अलग नहीं हुआ और इसी बेचैनी ने उसे पटना के पते पर पत्र लिखने का साहस दिया। मेरी भी हालत कुछ कुछ ऐसी थी। कभी एक दिन के लिए वह मेरे नजरों के सामने से ओझल नहीं हुई और अब इतने दिन दूर रहने पर प्यार की कशिश का एहसास होने लगा। इसपर जब मैं ने पूछा तो उसने सिर्फ इतना ही कहा कि किसी की परवाह नहीं। प्यार किया तो डरना क्या। एक दम फिल्मी डायलॉग। किसी से डरता नहीं, आज नही तो कल सब जानता ही.....

प्रेम में होने का मतलब है प्रेम में होना, न पाना न खोना। इस बात की अनुभुति तब हुई जब वह हाथ छुड़ा कर जा रही थी और मैं मौन खड़ा देखता रहा। उसके मिलने से पहले वह एक देह थी पर मिलने के बाद वह प्रेम थी। जब वह चली गई तो उसके देह के होने का एहसास फिर से हुआ पर मिलने के बाद देह के होने का एहसास जाता रहा। वह बुढ़ा बरगद, पोखर और पोखर के उस पार स्थित शिवाला इस बात के साक्षी थे। कई दिनों से जब भी उसके आने का एहसास होता मन का भंवर जोर से नाचता? >>>

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Old 02-09-2014, 10:40 PM   #67
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

यह मिलन तीन चार घंटों तक हुआ। रीना अपने कमरे में अपनी विधवा भाभी के साथ सोती थी और जब वह सो गई तो वह मिलने आई थी। वेशक उसके अंदर भी मेरे जैसा ही एहसास रहा होगा पर उस धवल चांद की गोद में मिलकर एकाकार हुए दो मन की देह का मिलन संभव नहीं हो सका पर वह भी एक हो चुका था। दो देह के होने का एहसास रहा ही नहीं?

मैं उसका इंतजार कर रहा था और एक बार फिर निराश हो गया था कि वह नहीं आएगी तो उस चांदनी रात में लगा जैस एक परी आसमान से उतर कर मेरी ओर चली आ रही है। मन को हुए इस एहसास के बीच ही सचमुच रीना का आगमन हुआ। उसक आने के बाद सब कुछ जैसे बदल गया। झिंगुर की वह करकश आवाज मन में मिठांस घोलने लगी और दादुर की टर्र टर्र टर्र लगने लगा जैसे वीणा के तार उठे हो। तालाब में पानी लबालब । हमदोनों किनारे पर जा कर बरगद के सोरी पर बैठ गये। लग रहा था जैसे दोनों के मिलन का बरगद भी बेचैनी से इंतजार कर रहा हो।

करता भी क्यों नहीं इस बुढ़ा बरगद से भी अपना अपनापा है। बचपन से ही
, जब से होश संभाला है तभी से। घर के दस बांस आगे ही इसे बैठा हुआ देख रहा हूं और यह भी की कैसे गर्मी के दिनों में दर्जनों जानवर इसकी गोद में आ कर सो जाते है और दोपहर होने पर मैं भी सभी जानवरों को वहीं ला कर बंध देता था और साथ ही वहीं सो भी जाता था। उस बुढ़े बरगद पर चढ़ने का अभ्यास कब किया और कब सफल हो गया कहा नही जा सकता! पर जब से होश है अपने जीवन का एक बड़ा भाग उसके साथ बिताया है।
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Old 02-09-2014, 10:42 PM   #68
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बचपन में ही सुबह नींद से उठते ही गोटी कंचाखेलने के लिए यही आ जाता था और फिर जब जोर से फुआ चिल्लाती बबलुआ ही रे, छौड़ा सनक गेलई हें, खाना नै पीना दिन भर गोटी खेलना’’ उस छोटी छोटी गोल गोटियों ने भी खुब घुमाया। उसके बाद जैसे जैसे बढ़ता गया बुढ़ा बरगद जवान होता गया। दिन के कई घंटे उसकी गोद में बीत जाते। खास कर तब जब घर में डांट खाने का भय हो या फिर मार खाने का तो फिर मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकता सिवाय इसके? उसकी चार छः हाथियों से भी मोटे तने पर चढ़ना सब के बस की बात नहीं? और वह भी तब जब आठ दस फिट के बाद एक आदमी ऐतना लंबा चौड़ा और गहरा धोधर अपना मुंह फाड़े डरा रहा हो खबरदार! पर मेरा दिन उसी के साथ कट जाना था। धोधर के सहारे ही पेड़ के उपर चढ़ जाता और फिर कई मोटे तने में से एक सपाट से तना को चुनता और बीस तीस फिट की उंचाई पर अपनी आसनी जमा कर लंब लेट हो जाता।

कई दिन जब फुआ के अधिक गुस्से में होने की सूचना हो तो झोला झोली होने तक मेरा घर बार, मां बाप सब वही बुढ़ा बरगद था। बहुत दिनों तक बह मेरा आश्रयदाता रहा है और उसकी मोटी मोटी टहनियां में मां की गोद का एहसास पाया। जब भी उस बुढ़े बरगद के नीचे बैठता हूं तो उस दिन की याद ताजी हो जाती है जब मैंने उसकी टहनियों पर एक दिन और एक पुरी रात बिता दी थी। घटना ही ऐसी धटी की मन गुस्से से भर गया।
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हुआ यूं कि किरण फूटने के साथ ही घर मास्टर के दलान पर गुलुर गुलुर होने लगा और जब फुआ ने पूछा –

‘‘कि हो गलई हो मास्टर साहब।’’

‘‘अजी एगो बुतरू फेकल हई, पोखरिया में।’’

‘‘बुतरू, कैसन हई जी, कै दिन के।’’

‘‘की कहिओ, के पपियाही फेंक देलकै, अभी तो नलियो नै कटलै है, एक दम गोर बुराक है।

‘‘हे भगवान, इतना बड़का पाप! भला बोलहो तो, उ निमुंहा केकरो की बिगाड़ल कै हंे। जिंदे हई जी।’’

हां जी, हमहीं ने भोरे भोरे सबसे पहले देखलिए, लोटा ले के मैदान जा रहलिए हल की बुतरू के काने के आवाज अइलै, हमरा तो डर लगे लगलो पर नजदीक जा के दिखलिए तब ए गो नवजात बुतरू फेंकल हई। पैर हाथ सब में खोंटा लगल हई।’’

हे भगवान! फूआ ने जैस चित्कार किया हो। उस एक बच्चे के लिए उसने क्या क्या सितम नहीं उठाया और उठा रही है और कोई उसे फेंक कर चला गया, जैस वह भगवान से यही कह रही हो, मौन अधरों से। फिर उसने फूफा को आवाज दी।

‘‘नै सुनो हो।’’

‘‘की कहो हीं पगली।’’

‘‘देखो ने किदो ए गो बुतरू फेकन हई पोखरिया पर। के पपियाही ऐसन कैलक होत। सुत्ते में मन लगलई और अब फेंक देलकै। देखके आहो तो रखे लाइक होतई तो रख लेबै।’’

फूफा चले और उनसे पहले ही मैं भी भाग कर वहां पहूंच गया था। लोगों की हुजूम लग गई थी। मै उस सब के बीच से राह बनाता वहां पहूंचा तो देखा की बच्चा पोखर के बगल में कुंभी पर लेटाया हुआ है और एक लाल रंग की पुरानी साड़ी भी लपेटा हुआ है, फाड़ कर। मेरे मुंह से आह निकली। देखा की खोंटा-पिपरी हाथ पैर में लटका हुआ है और वह रोए जा रहा है। अभी किरण फूटी ही थी और सूरज ने धरती पर अपनी आभा नहीं बिखेरी थी बल्कि पुरूब बगैचा की तरफ सिंदूरी रंग का अभामंडल सूरज देवता के आने की सूचना दे रहा था।
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Last edited by rajnish manga; 02-09-2014 at 10:46 PM.
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

जितने लोग उतनी बातें। महिलायें चीत्कार कर रही थी।

‘‘हाय हाय। देखो तो, मंह झौसी बुतरूआ के कैसे फेक देलकै, रसलिला करे घरी मौज, आ इ घरी हत्यारिन माय बन गेलई।’’ नइकी चाची सबसे ज्यादा दुखी थी तभी कटारीवली की आवाज भी गूंजी।

‘‘के निरबंशा-निरबंशी के मौज के इस बुतरू फल भोग रहलई है।’’

‘‘ऐ गो हई हे, घर घर देखा, ऐके लेखा।’’

रामपुरवली ने आवाज दी थी। ‘‘जेकर घर देखो इहे हाल हई। बड़का घारा बला छुप जा हई और गरीबका के छिया-लेदर हो जा हई।’’

तरह तरह की बात हो रही थी। पर कुल मिला कर जो कनकुलूजन निकला उसे निकाला कामो मास्टर ने-

‘‘देखीं भाई बोले के तो नै चाहीं पर इ हउ बड़के घर के। इ सड़ीबा के फाट देख के अनुमान लगो हई और फेर गरीबका घरा में पेट वली जन्नी छुपतै ? सबका मत उनके साथ मिलने लगा पर कोई विरोध भी कर देता, जिनका तर्क होता की बड़का घरा बला तो तुरंत दु सो रूपया मेम साहब के दे हई ओर यही पर धोलाईआ हो जा है। दिक्कत तो गरीबका के होबो हई जेकरा पेटो गिराबे ले पैसा नै होबो हई।

तरह तरह के कयास, तरह तरह के अनुमान। पर उस अबोध की तड़पती आत्मा की ओर कोई नहीं देख रहा था। नजारा, आदमी के हैवानियत का जीता जागता उदाहरण था। बच्चा का कमर तक कपड़े में लपेटा हुआ था और दायें हाथ की एक उंगली खोंटों की एक झुंड के द्वारा कुतरा जा रहा था, वह प्रतिरोध भी करता और हाथ इधर उधर भी मारता पर खोंटा नहीं हटता और हाथ में ही लटका हुआ रहता। देखते ही देखते खोंटेने उसकी तर्जनी उंगली को उससे अलग कर दिया। चित्कार, चित्कार, चित्कार- पर निरर्थक!
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