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Old 03-02-2011, 06:27 AM   #11
Bond007
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जैन साहित्य

**बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोत में जैन साहित्य का भी योगदान रहा है । इसके ग्रन्थ भी बौद्ध साहित्य के समान धर्मपरक हैं ।

**भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में चौथी शती ई.पू. का इतिहास प्राप्त होता है ।

**परिशिष्ट वर्णन तथा भद्रबाहु चरित से चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन की प्रारंभिक तथा उत्तरकालीन घटनाओं की सूचना मिलती है । भगवती सूत्र से महावीर के जीवन कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके सम्बन्धों का विवरण मिलता है ।

**जैन साहित्य का पुराण चरित के अनुसार छठी शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक का इतिहास वर्णित है जिससे विभिन्न कालों की राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक दशा का ज्ञान प्राप्त होता है ।
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Old 03-02-2011, 06:29 AM   #12
Bond007
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लौकिक साहित्य

*बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोत में लौकिक साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान है ।

*सिन्ध तथा नेपाल में कई इतिवृतियाँ प्राप्त हुई हैं ।

*चचनामा नामक इतिवृतियों में सिन्धु विजय का वृतान्त प्राप्त होता है । इसमें नेपाल की वंशावलियों का नामोल्लेख मिलता है ।

*गार्गी संहिता से ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी मिलती हैं जिसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमणों का उल्लेख प्राप्त होते हैं ।

*इस ग्रन्थ यवनों के साकेत, पंचाल, मथुरा तथा कुसुमध्वज पर आक्रमण का उल्लेख प्राप्त होता है ।

*मुद्राराक्षस से चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में जानकारी प्राप्त होती है ।

*कालिदास कृत मालविकाग्निमित्रम् में शुंगकालीन राजनीतिक परिस्थितियों का विवरण है ।

*ऐतिहासिक जीवनियों में अश्वघोष कृत बहुचरित, वाणभट्ट का हर्षचरित, वाक्यपति का गोडवहो, विल्हण का विक्रमांगदेव चरित, पद्यगुप्त का नव साहसांहत्र चरित, संध्याकार नंदी कृत रामचरित, हेमचन्द्र कृत कुमार चरित, जयनक कृत पृथ्वीराज विजय आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है ।

*हर्षचरित से सम्राट हर्षवर्धन के जीवन तथा तत्कालीन समाज एवं धर्म विषयक अनेक महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है ।

*गौडवहो में कन्नौज नरेश यशोवर्मन के गोंड नरेश के ऊपर किये गये आक्रमण एवं वध का विवरण मिलता है
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Old 03-02-2011, 07:08 AM   #13
khalid
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हार्दिक आभार बंधु
इतने अच्छे सुत्र के निर्माण के लिए
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जैसे इबादत करना
वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना
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Old 03-02-2011, 07:24 AM   #14
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Originally Posted by khalid1741 View Post
हार्दिक आभार बंधु
इतने अच्छे सुत्र के निर्माण के लिए
आ हमरी तरफ से + बोंड जी को बहुते अच्छा जानकारी बा दिल खुस हो गैल
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Old 03-02-2011, 08:05 AM   #15
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Originally Posted by khalid1741 View Post
हार्दिक आभार बंधु
इतने अच्छे सुत्र के निर्माण के लिए
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Originally Posted by ABHAY View Post
आ हमरी तरफ से + बोंड जी को बहुते अच्छा जानकारी बा दिल खुस हो गैल
धन्यवाद खालिद मियां! धन्यवाद अभय बाबू!

भाई हमने सोचा कि क्यों ना अपने बिहारियों के बारे में सबको बताया जाये|
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Old 03-02-2011, 09:35 AM   #16
arvind
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Originally Posted by bond007 View Post
पुरातात्विक स्त्रोत

बिहार में सिंहभूम, हजारीबाग, रांची, सन्थाल परगना, मुंगेर आदि में पूर्व एवं मध्य प्रस्तर युगीन अवशेष तथा प्राचीनतम औजार प्राप्त हुए हैं ।

मुंगेर और नालन्दा से पूर्व प्रस्तर एवं मध्य प्रस्तर युग के छोटे-छोटे औजार मिले हैं ।
सारण स्थित चिरॉद और वैशाली के चेचर से नव-पाषाणीय युग की सामग्री प्राप्त हुई है ।
ताम्र पाषाणीय युगीन सामग्री चिरॉद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (गया), मनेर (पटना) से तत्कालीन वस्तुएँ एवं मृदभांड मिले हैं ।
मौर्यकालीन अभिलेख लौरिया नंदनगढ़, लौरिया अरेराज, रामपुरवा आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं तथा आहत सिक्*के की प्राप्ति से गुप्तकालीन जानकारियाँ मिलती हैं । प्राचीन स्मारकों, स्तम्भों, अभिलेखों व पत्रों में प्राचीन बिहार की ऐतिहासिक झलक मिलती है ।

पुरातात्विक स्त्रोतों में राजगीर, नालन्दा, पाटलिपुत्र एवं बराबर पहाड़ियों की पहाड़ियों में प्राचीन कालीन प्रमुख स्मारक मिले हैं ।

लाल चिन्हित किए गए जगह अब बिहार से दस वर्ष पूर्व अलग हुये राज्य झारखंड मे स्थित है।
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Old 03-02-2011, 02:19 PM   #17
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Unhappy बिहार का इतिहास

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Originally Posted by arvind View Post
लाल चिन्हित किए गए जगह अब बिहार से दस वर्ष पूर्व अलग हुये राज्य झारखंड मे स्थित है।
ओह, धन्यवाद श्रीमान; ध्यान नहीं दिया|

वैसे बिहारी भाई तो झारखंड में भी रहते हैं|
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Old 05-02-2011, 12:53 AM   #18
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विदेशी यात्रियों के विवरण

प्राचीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोतों से विशेष जानकरियाँ भारत में आने वाले विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से मिलती हैं । इन लेखकों में यूनानी, चीनी तथा अरबी-फारसी लेखक विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।

यूरोपियों यात्रियों में राल्च फिच, एडवर्ड टेरी मैनरीक, जॉन मार्शल, पीटर मुण्डी मचुकी, टैबेमियर, बॉरी और विशप हेवर ने अपने यात्रा वृतान्त में बिहार के सम्बन्ध में वर्णन किया है ।

मेगस्थनीज, डायमेक्स तथा डायोनिसियस आदि को यूनानी शासकों द्वारा पाटलिपुत्र के मौर्य दरबार में भेजे गये थे ।

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Old 05-02-2011, 12:55 AM   #19
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बिहार भ्रमण पर आने वाले विदेशी यात्री


मेगस्थनीज-यह बिहार आने वाला प्रथम और प्रसिद्ध यात्री था जो सेल्यूकस का राजदूत बनकर मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था । मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इण्डिका’ में पाटलिपुत्र नगर और उसके प्रशासन की विस्तृत चर्चा की है ।

डिमॉलिक्स-डिमॉलिक्स बिन्दुसार के दरबार में यूनानी शासक का राजदूत बनकर आया ।

फाह्यान-फाह्यान ३९८ ई. में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में आने वाला प्रथम चीनी यात्री था । उसने ४१४ ई. तक भारत में रहकर नालन्दा, पटना, वैशाली आदि स्थानों का भ्रमण किया ।

ह्वेन त्सांग- ह्वेनसांग चीनी यात्री हर्षवर्धन के शासनकाल में आया था । उसने अपनी यात्रा वृतान्त सी. यू. की में किया है ।

इत्सिंग- ७वीं शदी में आने वाला दूसरा चीनी यात्री था जो ६७३-६९२ ई. तक भारत में रहा । उसने नालन्दा बिहार में शिक्षा ग्रहण की ।

मुल्ला तकिया- मुल्ला तकिया ने अकबर के शासनकाल में जौनपुर से बंगाल तक की यात्रा की और सल्तनत काल में बिहार के इतिहास का अध्ययन किया ।

अब्दुल लतीफ- मध्यकालीन बिहार में यात्रा करने वाला ईरानी था, जो गंगा नदी के रास्ते आगरा से राजमहल तक गया था । इसने सासाराम, पटना, मुंगेर तथा सुल्तानगंज का जीवन्त दृश्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है ।

मुहम्मद सादिक- १६९१ ई. में उसके पिता पटना में दीवान खलीफा के पद पर नियुक्*त हुए उसी समय मुहम्मद सादिक आया और अपने यात्रा विवरण का उल्लेख “सुबहे सादिक" में किया ।

मुल्ला बहबहानी- यह एक ईरानी धर्माचार्य था जिन्होंने बिहार के राजमहल, भागलपुर, मुंगेर, पटना और सासाराम आदि शहरों का वर्णन अपने यात्रा वृतान्त मिरात-ए-अहवल-ए-जहाँनामा में किया है । वह पहली बार १८०७ ई. में पटना आया । वह पटना को जयतुल हिन्द (भारत का स्वर्ग) कहता था ।

राल्च फिच- यह पहला अंग्रेज था जो १५८५-८७ ई. के बीच यहाँ आया था |

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मध्यकालीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोत

बिहार का मध्यकालीन युग १२ वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है । ऐसा माना जाता है कि कर्नाटक राजवंश के साथ ही प्राचीन इतिहास का क्रम टूट गया था । इसी काल में तुर्कों का आक्रमण भी प्रारंभ हो गया था तथा बिहार एक संगठित राजनीतिक इकाई के रूप में न था बल्कि उत्तर क्षेत्र और दक्षिण क्षेत्रीय प्रभाव में बँटा था ।

अतः मध्यकालीन बिहार का ऐतिहासिक स्त्रोत प्राप्त करने के लिए विभिन्*न ऐतिहासिक ग्रन्थों का दृष्टिपात करना पड़ता है जो इस काल में रचित हुए थे ।

मध्यकालीन बिहार के स्त्रोतों में अभिलेख, नुहानी राज्य के स्रोत, विभिन्*न राजाओं एवं जमींदारों के राजनीतिक जीवन एवं अन्य सत्ताओं से उनके संघर्ष, यात्रियों द्वारा दिये गये विवरण इत्यादि महत्वपूर्ण हैं ।

ऐतिहासिक ग्रन्थों में मिनहाज उस शिराज की “तबाकत-ए-नासिरी" रचना है जिसमें बिहार में प्रारंभिक तुर्क आक्रमण की गतिविधियों के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती है । बरनी का तारीख-ए-फिरोजशाही भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्त्रोत है ।

मुल्ला ताकिया द्वारा रचित यात्रा वृतान्त से भी बिहार में तुर्की आक्रमण बिहार और दिल्ली के सुल्तानों (अकबर कालीन, तुर्की शासन, दिल्ली सम्पर्क) के बीच सम्बन्धों इत्यादि की जानकारियाँ मिलती हैं । प्रमुख ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘बसातीनुल उन्स’ जो इखत्सान देहलवी द्वारा रचित है । इसमें सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के तिरहुत आक्रमण का वृतान्त दिया गया है ।

रिजकुल्लाह की वकियाते मुश्ताकी, शेख कबीर की अफसानाएँ से भी सोलहवीं शताब्दी बिहार की जानकारी प्राप्त होती है ।

मध्यकालीन मुगलकालीन बिहार के सन्दर्भ में जानकारी अबुल फजल द्वारा रचित अकबरनामा से प्राप्त होती है । आलमगीरनामा से मुहम्मद कासिम के सन्दर्भ में बिहार की जानकारी होती है ।

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