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04-02-2014, 10:02 PM | #1 |
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Re: लोककथा संसार
Ref: बदी का फल
Lying witnesses. Dishonesty. Cheating. These existed thousands of years ago. They exist today. They will continue to exist a thousand years hence. |
05-02-2014, 03:29 PM | #2 | ||||
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Re: लोककथा संसार
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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05-02-2014, 03:34 PM | #3 |
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Re: लोककथा संसार
झारखंड की लोककथा
लालच का फल एक गांव में एक समृद्ध व्यक्ति रहता था. उसके पास धातु से बने हुए कई बरतन थे. गांव के लोग शादी आदि के अवसरों पर यह बरतन उससे मांग लिया करते थे. एक बार एक आदमी ने ये बरतन मांगे. वापस करते समय उसने कुछ छोटे बरतन बढा कर दिये. समृद्ध व्यक्ति ने पूछा- बरतन कैसे बढ गये? उसने कहा- मांग कर ले जाने वाले बरतनों में से कुछ गर्भ से थे. उनके छोटे बधे हुए हैं. समृद्ध व्यक्ति को छोटे बरतनों से लोभ हो गया. उसने बरतन लौटाने वाले व्यक्ति को ऐसे देखा, जैसे उसे कहानी पर विश्वास हो गया हो. उसने सारे बरतन रख लिये. कुछ दिन बाद वही व्यक्ति फिर से बरतन मांगने आया. समृद्ध व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए बरतन दे दिये. काफी समय तक बरतन वापस नहीं मिले. इस पर बरतनों के मालिक ने इसका कारण पूछा. बरतन मांग कर ले जाने वाले व्यक्ति ने जवाब दिया- मैं वह बरतन नहीं दे सकता, क्योंकि उनकी मृत्यु हो गयी है. समृद्ध व्यक्ति ने पूछा- परंतु बरतन कैसे मर सकते हैं? उत्तर मिला- यदि बरतन बधे दे सकते हैं, तो वे मर भी सकते हैं. अब उस समृद्ध व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह हाथ मलता रह गया.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
06-02-2014, 03:05 AM | #4 |
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Re: लोककथा संसार
First prepare the trap.
Then entrap. |
06-02-2014, 12:08 PM | #5 |
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Re: लोककथा संसार
इस छोटे से प्रसंग से यही पता चलता है कि जो व्यक्ति छोटे प्रलोभन में आ सकता है वह बड़े प्रलोभन में भी फंसाया जा सकता है. आपके विचार कथा के सन्दर्भ में सटीक बैठते हैं. आपका हार्दिक धन्यवाद, विश्वनाथ जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
07-02-2014, 03:35 PM | #6 |
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Re: लोककथा संसार
बुंदेलखंड की लोककथा
पंछी बोला चार पहर – (आलेख: रामकान्त दीक्षित) दोस्तों, पुराने समय की बात है। एक राजा था। वह बड़ा समझदार था और हर नई बात को जानने को इच्छुक रहता था। उसके महल के आंगनमें एक बकौली का पेड़ था। रात को रोज नियम से एक पक्षी उस पेड़ पर आकर बैठता और रात के चारों पहरों के लिए अलग-अलग चार तरह की बातें कहा करता। पहले पहर में कहता : “किस मुख दूध पिलाऊं, किस मुख दूध पिलाऊं” दूसरा पहर लगते बोलता : “ऐसा कहूं न दीख, ऐसा कहूं न दीख !” जब तीसरा पहर आता तो कहने लगता : “अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” जब चौथा पहर शुरू होता तो वह कहता : “सब बम्मन मर जायें, सब बम्मन मर जायें !” राजा रोज रात को जागकर पक्षी के मुख से चारों पहरों की चार अलग-अलग बातें सुनता। सोचता, पक्षी क्या कहता? पर उसकी समझ में कुछ न आता। राजा की चिन्ता बढ़ती गई। जब वह उसका अर्थ निकालने में असफल रहा तो हारकर उसने अपने पुरोहित को बुलाया। उसे सब हाल सुनाया और उससे पक्षी के प्रश्नों का उत्तर पूछा। पुरोहित भी एक साथ उत्तर नहीं दे सका। उसने कुछ समय की मुहलत मांगी और चिंता में डूबा हुआ घर चला आया। उसके सिर में राजा की पूछी गई चारों बातें बराबर चक्कर काटती रहीं। वह बहुतेरा सोचता, पर उसे कोई जवाब न सूझता। अपने पति को हैरान देखकर ब्राह्रणी ने पूछा, “तुम इतने परेशान क्यों दीखते हो ? मुझे बताओ, बात क्या है ?” >>>
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07-02-2014, 03:36 PM | #7 |
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Re: लोककथा संसार
ब्राह्मण ने कहा, “क्या बताऊं ! एक बड़ी ही कठिन समस्या मेरे सामने आ खड़ी हुई है। राजा के महल का जो आंगन है, वहां रोज रात को एक पक्षी आता है और चारों पहरों मे नित्य नियम से चार आलग-अलग बातें कहता है। राजा पक्षी की उन बातों का मतलब नहीं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर पक्षी की पहेलियां मेरी समझ में भी नहीं आतीं। राजा को जाकर क्या जवाब दूं, बस इसी उधेड़-बुन में हूं।”
ब्राह्राणी बोली, “पक्षी कहता क्या है? जरा मुझे भी सुनाओ।” ब्राह्राणी ने चारों पहरों की चारों बातें कह सुनायीं। सुनकर ब्राह्राणी बोली। “वाह, यह कौन कठिन बात है! इसका उत्तर तो मैं दे सकती हूं। चिंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो कि पक्षी की बातों का मतलब मैं बताऊंगी।” ब्राह्राण राजा के महल में गया और बोला, “महाराज, आप जो पक्षी के प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, उनको मेरी स्त्री बता सकती है।” पुरोहित की बात सुनकर राजा ने उसकी स्त्री को बुलाने के लिए पालकी भेजी। ब्राह्राणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बिठाया। रात हुई तो पहले पहर पक्षी बोला: “किस मुख दूध पिलाऊं, किस मुख दूध पिलाऊं ?” राजा ने कहा, “पंडितानी, सुन रही हो, पक्षी क्या बोलता है?” वह बोली, “हां, महाराज ! सुन रहीं हूं। वह अधकट बात कहता है।” >>>
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07-02-2014, 03:39 PM | #8 |
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Re: लोककथा संसार
राजा ने पूछा, “अधकट बात कैसी ?”
पंडितानी ने उत्तर दिया, “राजन्, सुनो, पूरी बात इस प्रकार है- लंका में रावण भयो बीस भुजा दश शीश, माता ओ की जा कहे, किस मुख दूध पिलाऊं। किस मुख दूध पिलाऊं ?” लंका में रावण ने जन्म लिया है, उसकी बीस भुजाएं हैं और दश शीश हैं। उसकी माता कहती है कि उसे उसके कौन-से मुख से दूध पिलाऊं?” राज बोला, “बहुत ठीक ! बहुत ठीक ! तुमने सही अर्थ लगा लिया।” दूसरा पहर हुआ तो पक्षी कहने लगा : ऐसो कहूं न दीख, ऐसो कहूं न दीख। राजा बोला, ‘पंडितानी, इसका क्या अर्थ है ?” पडितानी नेसमझाया, “महाराज ! सुनो, पक्षी बोलता है : “घर जम्ब नव दीप बिना चिंता को आदमी, ऐसो कहूं न दीख, ऐसो कहूं न दीख !” चारों दिशा, सारी पृथ्वी, नवखण्ड, सभी छान डालो, पर बिना चिंता का आदमी नहीं मिलेगा। मनुष्य को कोई-न-कोई चिंता हर समय लगी ही रहती है। कहिये, महाराज! सच है या नहीं ?” राजा बोला, “तुम ठीक कहती हो।”
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07-02-2014, 06:02 PM | #9 |
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Re: लोककथा संसार
श्रेष्ठ लघुकथाओ का सुन्दरतम संकलन........
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07-02-2014, 08:16 PM | #10 |
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Re: लोककथा संसार
प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद.
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