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27-01-2015, 11:45 AM | #1 |
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चाणक्यगीरी
विद्योत्तमा के देश से आए गुप्तचरों ने आकर चाणक्य से कहा- ‘‘मौर्य हाईकमान की जय हो!’’
चाणक्य ने प्रश्नवाचक दृष्टि से गुप्तचरों की ओर देखा। एक गुप्तचर ने कहा- ‘‘क्षमा करें, महामहिम। आज हम बहुत बुरी ख़बर लेकर आए हैं। चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘ख़बर सुनाने वाले के लिए कोई ख़बर अच्छी-बुरी नहीं होती, गुप्तचर। यह तो ख़बर सुनने वाले पर निर्भर करता है- ख़बर को अच्छा समझे या बुरा।’’ गुप्तचरों की समझ में कुछ नहीं आया। चाणक्य ने स्पष्ट करते हुए आगे कहा- ‘‘किसी को अच्छी लगने वाली ख़बर दूसरे के लिए बुरी हो सकती है और किसी को बुरी लगने वाली ख़बर दूसरे के लिए अच्छी हो सकती है।’’ गुप्तचरों ने आश्चर्य से पूछा- ‘‘हम समझे नहीं, महामहिम। आपकी बातें गूढ़ होती हैं। सबकी समझ में नहीं आतीं।’’ चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘नंदवंश के महाभोज में नंद राजा ने मेरी बेइज्जती की। मुझे बिना खाना खिलाए महाभोज से निर्वासित कर दिया। अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए मैंने नंद वंश का नाश करके मौर्य वंश की स्थापना की। नंद साम्राज्य का पतन नंद वंश और उनके समर्थकों के लिए बुरी ख़बर थी, किन्तु मौर्य वंश की स्थापना मौर्य वंश और उनके समर्थकों के लिए अच्छी ख़बर थी। इसलिए आप बेफि़क्र होकर ख़बर सुनाइए।’’ गुप्तचरों ने भयभीत स्वर में कहा- ‘‘महामहिम, विद्योत्तमा के राजमहल के बाहर सूचनापट्ट पर बहुत बुरी ख़बर लिखी है। कहते बहुत डर लग रहा है।’’ (क्रमशः)
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27-01-2015, 12:31 PM | #2 |
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Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं, गुप्तचरों। आप लोग भयमुक्त होकर बताइए- विद्योत्तमा के राजमहल के बाहर सूचनापट्ट पर क्या लिखा है?’’
एक गुप्तचर ने डरते हुए रुक-रुककर कहा- ‘‘सूचनापट्ट पर लिखा है... लिखा है... लिखा है- ‘विश्वासघाती विद्योत्तमा, भूतनी, चुड़ैल, डायन, परकटी बिल्ली, कौए की दुम, गधे की सींग, धोखेबाज, फरेबी, मक्कार, हार्दिक बधाई के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ... और आगे लिखा है...’’ गुप्तचरों की पूरी बात सुने बिना चाणक्य ने आगबबूला होते हुए कहा- ‘‘किस देश के राजा की इतनी हिम्मत जिसने विद्योत्तमा के राजमहल के बाहर सूचनापट्ट पर इतना बुरा संदेश लिखकर विद्योत्तमा को बदनाम करने की कोशिश की? मौर्य सेनापति से जाकर बोलो- मौर्य हाईकमान चाणक्य का आदेश है। तुरन्त हमले की तैयारी करे। हम उस घृष्ट राजा के देश पर चढ़ाई करके अपने मौर्य देश में मिला लेंगे और उस दुष्ट राजा को दस गज ज़मीन के नीचे दफ़ना देंगे।’’ गुप्तचरों ने कहा- ‘‘आपने पूरी ख़बर तो सुनी ही नहीं। आगे लिखा है- झूठी विद्योत्तमा, तुमने मुझे 99 बार उल्लू बनाकर 49 बार गधा साबित किया। बहुत-बहुत धन्यवाद।’’ चाणक्य ने घबड़ाकर कहा- ‘‘कक्ष का द्वार बन्द करो, गुप्तचरों। दीवारों के भी कान होते हैं। मुझे तो यह संदेश स्वयं विद्योत्तमा का ही लिखा लगता है, क्योंकि यह बात सिर्फ़ विद्योत्तमा ही जानती है- उसने मुझे कितनी बार उल्लू बनाकर गधा साबित किया।’’ गुप्तचरों ने कहा- ‘‘आप बिल्कुल ठीक समझे, महामहिम। हमारे गुप्तचरों ने विद्योत्तमा को खुद रात बारह बजे यह संदेश सूचनापट्ट पर लिखते देखा।’’ चाणक्य ने चिन्तित और गम्भीर होकर सिगार सुलगाते हुए कहा- ‘‘अगर लोगों को पता चल गया- विद्योत्तमा ने अक्ल की खदान, बुद्धि की लदान चाणक्य को 99 बार उल्लू बनाकर 49 बार गधा साबित किया है तो चाणक्य की बनी-बनाई इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। जो राजा-महाराजा आज चाणक्य का नाम सुनकर घबड़ाते हैं, कल चाणक्य का नाम सुनकर थूकने लगेंगे। यही नहीं, अगर मौर्य राजा को पता चल गया- अब चाणक्य के दिमाग़ में दम नहीं रहा तो चाणक्यगीरी कैसे चलेगी?’’ (क्रमशः)
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28-01-2015, 06:47 PM | #3 |
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Re: चाणक्यगीरी
आप ‘चाणक्यगीरी’ सूत्र में पढ़ रहे हैं ऐतिहासिक पात्रों विद्योत्तमा, कालीदास और चाणक्य पर आधारित एक पूर्णतया काल्पनिक अग्रिम सूत्र ‘आई एम सिंगल अगेन’ का प्रोमोशन।
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06-02-2015, 11:30 AM | #4 |
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Re: चाणक्यगीरी
गुप्तचरों की प्रारम्भिक सूचना के अनुसार मौर्य देश पर बहुत बड़ा संकट आने वाला था, क्योंकि पड़ोस का कोई राजा मौर्य देश पर बहुत बड़ा आक्रमण करने की गुपचुप तैयारी कर रहा था। एहतियात के तौर पर सेना को सतर्क कर दिया गया था और चाणक्य की अगुवाई में मौर्य सेनापति सेना का बहुत बड़ा चक्रव्यूह बनाकर दुश्मन के हमले का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए चौबीसों घण्टे सतर्क खड़े थे। उसी समय गुप्तचरों ने आकर बताया कि मौर्य देश पर और कोई नहीं, विद्योत्तमा हमला करने वाली है और उसके साथ उसकी सहेली और सेनापति अजूबी भी है जो अकेले एक हज़ार लोगों से लड़ने की क्षमता रखती है। गुप्तचरों की ख़बर सुनकर मौर्य सेना में हलचल मच गई। मौर्य देश के सरकारी नियमानुसार सेना के जिन अधिकारियों और सिपाहियों के पास सी॰एल॰, ई॰एल॰, सी॰एच॰ छुट्टियाँ इत्यादि बची थीं, चाणक्य के पास छुट्टी की अर्जी लगाकर जाने लगे। जिनके पास छुट्टियाँ नहीं बची थीं, वह बीमारी का बहाना बनाकर मेडिकल लीव पर जाने लगे। जिनके पास मेडिकल लीव भी नहीं बची थी, वे पेटदर्द, सिरदर्द और सीने में भयानक दर्द का नाटक करके ज़मीन पर लोटने लगे जिससे ‘येन केन प्रकारेण’ किसी प्रकार छुट्टी मिल जाए। चाणक्य ने हैरान और परेशान होकर मौर्य सेनापति से पूछा- ‘‘हमारी सेना अचानक बीमार क्यों पड़ गई, सेनापति?’’
मौर्य सेनापति ने चुपचाप एक काग़ज़ चाणक्य के हाथ में थमा दिया। चाणक्य ने कहा- ‘‘हमारी सेना के बीमार पड़ने का लिखित कारण देने की कोई आवश्यकता नहीं, सेनापति। आप मौखिक कारण भी दे सकते हैं।’’ मौर्य सेनापति ने कहा- ‘‘यह हमारी सेना के बीमार पड़ने का लिखित कारण नहीं है, महामहिम। यह मेरा त्यागपत्र है। मुझे पड़ोस के देश में एक राजकीय काॅलसेन्टर में बहुत अच्छी नौकरी मिल गई है। कल जाॅइन करना है।’’ चाणक्य ने मौर्य सेनापति का झूठ पकड़ते हुए कहा- ‘‘सच क्या है बताइए, सेनापति। झूठ मत बोलिए। आप मौर्य देश के सेनापति का इतना बड़ा पद छोड़कर पड़ोस के देश में काॅलसेन्टर की नौकरी करेंगे?’’ मौर्य सेनापति ने सिर झुकाते हुए कहा- ‘‘आपने मेरा झूठ पकड़ लिया। काॅलसेन्टर की नौकरी तो एक बहाना था। सच तो यह है- मैं पड़ोसी देश में पाव-भाजी का ठेला लगाना चाहता हूँ। सुना है- अच्छी बिक्री हो जाती है।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘झूठ पर झूठ न बोलिए, सेनापति। आप सेनापति होकर पाव-भाजी का ठेला लगाएँगे?’’ मौर्य सेनापति ने सिर झुकाते हुए कहा- ‘‘आपने फिर मेरा झूठ पकड़ लिया। सच तो यह है- मैं पड़ोसी देश में ब्राॅइलर मुर्गी बेचना चाहता हूँ। बड़ा मुनाफ़े का धन्धा है।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘झूठ न बोलिए, सेनापति। सेनापति की नौकरी छोड़कर आप मुर्गी बेचेंगे? सच बताइए- माजरा क्या है?’’ सेनापति ने निराशा भरे स्वर में कहा- ‘‘कुछ भी करूँगा। काॅलसेन्टर की नौकरी करूँगा, पाव-भाजी बेचूँगा, ब्राॅइलर मुर्गी बेचूँगा- मगर मौर्य देश के सेनापति की नौकरी नहीं करूँगा। विद्योत्तमा की सेना से लड़ने का आदेश तो आप देंगे नहीं। कहेंगे- विद्योत्तमा को समझाने की कोशिश करता हूँ। आपके समझाने से विद्योत्तमा न मानी और उसने हमारी सेना पर आक्रमण कर दिया तो भी आप लड़ने का आदेश नहीं देंगे। बिना लड़े मर जाने से अच्छा है- सेनापति की नौकरी से त्यागपत्र दे दूँ। यही कारण है- हमारी सेना के जवान अचानक बीमार पड़ने का नाटक कर रहे हैं। मौर्य सम्राट स्वयं हताश एवं निराश होकर मूँगफली का ठेला लगाने के लिए मूँगफली खरीदने गए हैं।’’
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06-02-2015, 11:31 AM | #5 |
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Re: चाणक्यगीरी
आप ‘चाणक्यगीरी’ सूत्र में पढ़ रहे हैं ऐतिहासिक पात्रों विद्योत्तमा, कालीदास और चाणक्य पर आधारित एक पूर्णतया काल्पनिक अग्रिम सूत्र ‘आई एम सिंगल अगेन’ का प्रोमोशन।
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06-02-2015, 04:35 PM | #6 |
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Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य अत्यधिक तन्मयता के साथ मौर्य सम्राट के लिए ‘चाणक्य नीति’ और ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ लिखने में व्यस्त थे। उसी समय गुप्तचरों ने आकर बताया- ‘‘महामहिम, पक्की ख़बर है- इस बार विद्योत्तमा की सहेली और सेनापति अजूबी नाचने-गाने वालों के भेष में हमारे देश में आ गई है और नाचते-गाते हुए राजमहल की ओर बढ़ रही है। गिरफ़्तारी का आदेश करिए।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘गिरफ़्तारी की कोई ज़रुरत नहीं। आने दो अजूबी को। नाचने-गाने वालों की भेष में आई है तो ज़रूर कोई विशेष बात होगी। कौन सा गीत गा रही है अजूबी?’’ गुप्तचरों ने कहा- ‘‘आप खुद सुन लीजिए, महामहिम। अब तो नाचने-गाने की आवाज़ यहाँ तक आ रही है। लगता है- अजूबी राजमहल नहीं, आपके निवास-स्थान की ओर ही आ रही है।’’ चाणक्य ने कान लगाकर गीत का बोल सुना और ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए कहा- ‘‘अजूबी तो ‘ये कहानी, बहुत पुरानी। आज होगी कहानी ख़त्म, घर-घर में खूब मनेगा जश्न।’ गा रही है। ऐसा प्रतीत होता है- विद्योत्तमा ने अजूबी को मेरी कहानी खत्म करने के लिए नियुक्त किया है। लगता है- ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ और ‘चाणक्य नीति’ अधूरी रह जाएगी, पूरा न कर पाऊँगा।’’ उसी समय अजूबी नाचने-गाने वालों के समूह के साथ वहाँ पर आ गई और चाणक्य से बोली- ‘‘मेरा नाम मधुबाला है। हम आपको अपना नाच-गाना दिखाना चाहते हैं। आदेश करिए।’’ चाणक्य ने मरी हुई आवाज़ में अजूबी से कहा- ‘‘इतना ख़राब गीत का बोल मुझे पसन्द नहीं। नाच-गाने में मरने-मारने की बात अच्छी लगती है क्या? कोई अच्छा सा गीत सुनाओ, मधुबाला।’’ अजूबी ने नाचते हुए दूसरा गीत गाना शुरू किया- ‘‘मैं लड़की सीधी-सादी। लगती कितनी भोली-भाली। नाम है मेरा मधुबाला। मेरा चेहरा कितना भोला-भाला।’’ चाणक्य की जान में जान आई- अजूबी ने तो अच्छे बच्चों की तरह तुरन्त दूसरा गीत सुनाना शुरू कर दिया। चाणक्य ने अजूबी की प्रसंशा करते हुए कहा- ‘‘वाह-वाह... क्या सुन्दर गीत है, क्या सुन्दर नृत्य है! किन्तु अफ़सोस, मौर्य देश के खजाने में इतना धन नहीं जिससे तुम्हारी नाचने-गाने की कला को पुरस्कृत किया जा सके। मैं क्षमा चाहता हूँ, मधुबाला।’’ मधुबाला के भेष में आई अजूबी ने मुस्कुराते हुए कहा- ''ऐसा न कहिये। आप दो-चार गीत और सुनिए।'' ऐसा कहकर अजूबी ने नृत्य के साथ चार गीत और सुनाया और अन्तिम गीत के अन्त में चुपके से चाणक्य को विद्योत्तमा के देश का अपना वह राजकीय चिह्न दिखा दिया जिससे चाणक्य अच्छी तरह से समझ सके कि वह अजूबी ही है। चाणक्य ने चैन की साँस लेते हुए सोचा- 'अच्छा, तो यह बात है। अजूबी लड़ने नहीं, दोस्ती करने आई है!'
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07-02-2015, 10:15 PM | #7 |
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Re: चाणक्यगीरी
यह प्रयोग हास्यरस से भरपुर तो है ही...साथ साथ अत्यंत रोचक भी है। ईस हास्यलेख के लिए धन्यवाद! कृपया आगे जारी रखें।
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08-02-2015, 07:51 AM | #8 |
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Re: 1Ï41Ó01Ð31Î91Ô51Ñ51Ï11Ó2 1Ñ61Ó2
Aitihasik patron par kiya gaya yah hasya prayog kitna safal raha yah to is promotion ki agli kadi aane ke bad hi pata chalega.
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07-02-2015, 10:52 PM | #9 |
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Re: चाणक्यगीरी
मजेदार ...!!
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08-02-2015, 09:01 PM | #10 |
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Re: चाणक्यगीरी
अदभुत्!
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