My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Hindi Forum > The Lounge
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 09-04-2013, 05:51 PM   #51
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

यह घटना उस समय की है, जब क्रांतिकारी रोशन सिंह को काकोरी कांड में मृत्युदंड दिया गया। उनके शहीद होते ही उनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में एक जवान बेटी थी और उसके लिए वर की तलाश चल रही थी। बड़ी मुश्किल से एक जगह बात पक्की हो गई। कन्या का रिश्ता तय होते देखकर वहां के दरोगा ने लड़के वालों को धमकाया और कहा कि क्रांतिकारी की कन्या से विवाह करना राजद्रोह समझा जाएगा और इसके लिए सजा भी हो सकती है।

किंतु वर पक्ष वाले दरोगा की धमकियों से नहीं डरे और बोले, ‘यह तो हमारा सौभाग्य होगा कि ऐसी कन्या के कदम हमारे घर पड़ेंगे, जिसके पिता ने अपना शीश भारत माता के चरणों पर रख दिया।’ वर पक्ष का दृढ़ इरादा देखकर दरोगा वहां से चला आया पर किसी भी तरह इस रिश्ते को तोड़ने के प्रयास करने लगा।

जब एक पत्रिका के संपादक को यह पता लगा तो वह आगबबूला हो गए और तुरंत उस दरोगा के पास पहुंचकर बोले, ‘मनुष्य होकर जो मनुष्यता ही न जाने वह भला क्या मनुष्य? तुम जैसे लोग बुरे कर्म कर अपना जीवन सफल मानते हैं किंतु यह नहीं सोचते कि तुमने इन कर्मों से अपने आगे के लिए इतने कांटे बो दिए हैं जिन्हें अभी से उखाड़ना भी शुरू करो तो अपने अंत तक न उखाड़ पाओ। अगर किसी को कुछ दे नहीं सकते तो उससे छीनने का प्रयास भी न करो।’ संपादक की खरी-खोटी बातों ने दरोगा की आंखें खोल दीं और उसने न सिर्फ कन्या की मां से माफी मांगी, अपितु विवाह का सारा खर्च भी खुद वहन करने को तैयार हो गया।

विवाह की तैयारियां होने लगीं। कन्यादान के समय जब वधू के पिता का सवाल उठा तो वह संपादक उठे और बोले, ‘रोशन सिंह के न होने पर मैं कन्या का पिता हूं। कन्यादान मैं करूंगा।’ वह संपादक थे- महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी।

संकलन: रेनू सैनी
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:52 PM   #52
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

बात तब की है जब अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल पकड़ लिए गए। उन्हें कोतवाली लाया गया। कोतवाली में निगरानी रखने वाला सिपाही सो रहा था। बिस्मिल के पास भागने का पूरा मौका था। उन्होंने देखा कि वहां केवल बुजुर्ग मुंशीजी जागे हुए हैं। बूढ़े मुंशी ने भांप लिया कि बिस्मिल भागने की सोच रहे हैं। वह तुरंत बिस्मिल के पैरों पर गिर गए और बोले, ‘ऐसा न करना। नहीं तो मैं बंदी बना लिया जाऊंगा और मेरे बच्चे भूखों मर जाएंगे।’

बिस्मिल को उन पर दया आ गई और उन्होंने भागने का विचार तत्काल त्याग दिया। संयोगवश दो दिनों के बाद ही ऐसा मौका उन्हें फिर मिला। उन्हें जब शौचालय ले जाया गया तो उनके साथ दो सिपाही थे। एक ने दूसरे से कहा कि इनके हाथों में बंधी रस्सियां हटा दो। मुझे विश्वास है कि ये भागेंगे नहीं। इसके बाद जब बिस्मिल शौचालय गए तो पाया कि शौचालय की दीवार ज्यादा ऊंची नहीं है। बस हाथ बढ़ाते ही वह दीवार के ऊपर हो जाते और क्षण भर में बाहर निकल जाते।

उन्होंने देखा कि बाहर सिपाही कुश्ती देखने में मगन हैं। वह भागने ही वाले थे कि उन्हें विचार आया कि जिस सिपाही ने विश्वास कर इतनी स्वतंत्रता दी उससे विश्वासघात कैसे करूं। उन्होंने भागने का विचार तुरंत त्याग दिया। उन्होंने अपनी आत्मकथा में जेलर पंडित चंपालाल की भी काफी बड़ाई की है। उन्हें भागने के कई मौके हासिल हुए लेकिन उन्होंने सोचा कि इससे पंडित चंपालाल के ऊपर आफत आ जाएगी। बिस्मिल के लिए विश्वास की रक्षा सबसे बड़ी चीज थी।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:52 PM   #53
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

एक बार वीरगढ़ राज्य की महारानी का हार कहीं खो गया। महारानी को हार बहुत प्रिय था। उन्होंने हार ढूंढने की बहुत कोशिश की पर वह नहीं मिला। हार के लिए महारानी को बहुत परेशान देखकर राजा ने घोषणा करवा दी कि जिस व्यक्ति को भी हार मिला हो, वह तीन दिनों के भीतर उसे वापस कर दे अन्यथा उसे मृत्युदंड का भागी होना पड़ेगा।

यह संयोग था कि हार एक संन्यासी को मिला था। उसके मन में हार के प्रति कोई आकर्षण नहीं था, फिर भी उसने यह सोचकर रख लिया कि कोई ढूंढता हुआ आएगा तो उसे दे देगा। उसने अगले दिन राजा की घोषणा सुनी, पर वह हार देने नहीं गया। वह अपनी साधना में लीन रहा। तीन दिन बीत गए।

चौथे दिन संन्यासी हार लेकर राजा के पास पहुंचा। राजा को जब पता चला कि तीन दिनों से हार उसके पास था, तो उसने क्रोधित होकर पूछा, ‘क्या तुमने मेरी घोषणा नहीं सुनी थी?’ संन्यासी ने जवाब दिया ‘सुनी थी, पर यदि मैं कल हार लौटाने आ जाता तो लोग कहते कि एक संन्यासी होकर मृत्यु से भयभीत हो गया।’ इस पर राजा ने पूछा, ‘तो आज चौथे दिन क्यों लाए?’ इस पर संन्यासी ने कहा, ‘मुझे मौत का भय नहीं है। पर मैं किसी दूसरे की संपत्ति को अपने पास रखना पाप समझता हूं। हार जैसी तुच्छ चीज से मुझे कोई लगाव नहीं।’ यह उत्तर सुनकर राजा लज्जित हो गया। महारानी को भी अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने हार बेचकर वह राशि गरीबों में बंटवा दी।

संकलन: लखविन्दर सिंह
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:53 PM   #54
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

एक बार कुदरत के सातों रंगों के बीच बहस छिड़ गई। प्रत्येक रंग यह साबित करने में लगा था कि वही सब से श्रेष्ठ है। सबसे पहले हरे रंग ने कहा कि वह जीवन और हरियाली का प्रतीक है, इसलिए ईश्वर ने उसका चयन खास तौर पर पत्तों के रंग के लिए किया है।

धरती का एक बड़ा भाग हरियाली से ढका हुआ है। नीले रंग ने उसकी बात काटते हुए कहा, ‘आकाश व समुद का रंग नीला है। जल ही जीवन है। नीला जल नीले आकाश के बादलों से होकर नीले समुद्र में समा जाता है। बिना इस चक्र के विकास संभव नहीं, इसलिए मैं तुम सबसे श्रेष्ठ हूं।’

तब पीला रंग बोला, ‘पीला खुशहाली का प्रतीक है। सूरज पीला है। पीली सूरजमुखी सारी दुनिया में हंसी व खुशी देती है। इसलिए मैं ही सर्वश्रेष्ठ स्थान का अधिकारी हूं।’ तभी नारंगी रंग ने कहा, ‘मैं मिठास और स्वास्थ्य का प्रतीक हूं। सभी मीठे व लाभकारी फलों पपीता, गाजर, आम व संतरा की छटा नारंगी है।’ तभी जामुनी रंग ने कहा, ‘श्रेष्ठ तो मैं हूं क्योंकि मैं पानी की गहराई व मन की शांति का प्रतीक हूं।’

वर्षा ऋतु रंगों की इस सारी बहस को ध्यान से सुन रही थी। वह पास आकर बोली, ‘तुम सभी श्रेष्ठ हो। सभी को ईश्वर ने किसी न किसी खास कारण से बनाया है। लेकिन सर्वश्रेष्ठ है तुम सबका एक साथ होना। रंगों को यह उपदेश जैसी बात अच्छी नहीं लगी, वे तो सिर्फ अपनी तारीफ सुनना चाहते थे। तभी आकाश में जोर से बिजली कड़की। सभी रंगों ने डर कर एक-दूसरे का हाथ पकड़ लिया और आकाश में बड़ा-सा इंद्रधनुष दिखाई देने लगा। रंगों ने देखा, सभी उनकी छटा निहार रहे थे। वर्षा ऋतु ने हंस कर समझाया, ‘तुम सबके अलग-अलग प्रशंसक हैं, लेकिन तुम्हारा एक साथ होना संपूर्ण जगत के लिए सुंदरता और जीवन का संदेश है।’ इसके बाद रंगों ने कभी एक-दूसरे से झगड़ा नहीं किया।

संकलन : अनामिका कौशिक
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:54 PM   #55
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

बहुत पुरानी बात है। फिलाडेल्फिया में फ्रैंकलिन नामक एक गरीब युवक रहता था। उसके मोहल्ले में हमेशा अंधेरा रहता था। वह रोज यह देखता था कि अंधेरे में आने-जाने में लोगों को बहुत दिक्कत होती है।

एक दिन उसने अपने घर के सामने एक बांस गाड़ दिया और शाम को उस पर एक लालटेन जला कर टांग दिया। लालटेन से उसके घर के सामने उजाला हो गया। लेकिन मोहल्ले के लोगों ने इसके लिए उसका मजाक उड़ाया। एक व्यक्ति बोला, ‘फ्रैंकलिन, तुम्हारे एक लालटेन जला देने से कुछ नहीं होगा। पूरे मोहल्ले में तो अंधेरा ही रहेगा।’

उसके घर वालों ने भी उसके इस कदम का विरोध किया और कहा, ‘तुम्हारे इस काम से फालतू में पैसा खर्च होगा।’ फ्रैंकलिन ने कहा, ‘मानता हूं कि एक लालटेन जलाने से ज्यादा लोगों को फायदा नहीं होगा मगर कुछ लोगों को तो इसका लाभ मिलेगा ही।’ कुछ ही दिनों में इसकी चर्चा शुरू हो गई और फ्रैंकलिन के प्रयास की सराहना भी होने लगी। उसकी देखादेखी कुछ और लोग भी अपने-अपने घरों के सामने लालटेन जला कर टांगने लगे।

एक दिन पूरे मोहल्ले में उजाला हो गया। यह बात शहर भर में फैल गई और म्युनिसिपल कमेटी पर चारों तरफ से यह दबाव पड़ने लगा कि वह उस मोहल्ले में रोशनी का इंतजाम अपने हाथ में ले। कमेटी ने ऐसा ही किया। इस तरह फ्रैंकलिन की शोहरत चारों तरफ फैल गई। एक दिन म्युनिसिपल कमेटी ने फ्रैंकलिन का सम्मान किया। इस मौके पर जब उससे पूछा गया कि उसके मन में यह खयाल कैसे आया, तो फ्रैंकलिन ने कहा, ‘मेरे घर के सामने रोज कई लोग अंधेरे में ठोकर खाकर गिरते थे। मैंने सोचा कि मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन अपने घर के सामने थोड़ा तो उजाला कर ही सकता हूं। हर अच्छे काम के लिए पहल किसी एक को ही करना पड़ती है। अगर हर कोई दूसरे के भरोसे बैठा रहे तो कभी अच्छे काम की शुरुआत होगी ही नहीं।’

संकलन: सुरेश सिंह
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:55 PM   #56
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

यह उस समय की बात है जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। खचाखच भरी एक रेलगाड़ी चली जा रही थी। यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था। सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री साधारण वेशभूषा में था इसलिए वहां बैठे अंग्रेज उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे। पर वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था। अचानक उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की जंजीर खींच दी। तेज रफ्तार में दौड़ती वह गाड़ी तत्काल रुक गई। सभी यात्री उसे भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और उसने पूछा, ‘जंजीर किसने खींची है?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘मैंने खींची है।’ कारण पूछने पर उसने बताया, ‘मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।’ गार्ड ने पूछा, ‘आपको कैसे पता चला?’ वह बोला, ‘श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है।पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।’

गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो यह देखकर दंग रहा गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं। दूसरे यात्री भी वहां आ पहुंचे। जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे। गार्ड ने पूछा, ‘आप कौन हैं?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ. एम. विश्वेश्वरैया।’ नाम सुन सब स्तब्ध रह गए। दरअसल उस समय तक देश में डॉ. विश्वेश्वरैया की ख्याति फैल चुकी थी। लोग उनसे क्षमा मांगने लगे। डॉ. विश्वेश्वरैया का उत्तर था, ‘आप सब ने मुझे जो कुछ भी कहा होगा, मुझे तो बिल्कुल याद नहीं है।’

संकलन: लाजपत राय सभरवाल
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:55 PM   #57
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

किसी गांव में एक पंडित जी रहते थे। वह घूम-घूमकर कथा सुनाते और धर्म की शिक्षा देते थे। एक बार वह एक शहर में कथा सुना रहे थे। वहां एक लुटेरा भी था। उसने देखा कि पंडित जी के पंडाल में बहुत लोग आते हैं और काफी चढ़ावा चढ़ाते हैं। उसने सोचा क्यों न इन्हें लूट लिया जाए। वह भक्तों के बीच बैठकर कथा सुनने लगा। पंडित जी कह रहे थे, ‘क्षमा और अहिंसा मनुष्य के आभूषण हैं। इन्हें कभी नहीं छोड़ना चाहिए।’ कथा समाप्त कर पंडित जी दक्षिणा आदि लेकर अपने गांव के लिए चल पड़े। उनके पीछे-पीछे लुटेरा भी चला।

एक सुनसान जगह पर लुटेरे ने उन्हें डराया और सारा माल देने को कहा। पंडित जी निडर थे और हमेशा अपने साथ एक लाठी रखते थे। वह लुटेरे की बात से डरे तो नहीं, उलटा उस पर प्रहार करने लग गए। पंडित जी के प्रतिकार से लुटेरा घबरा गया। वह बोला, ‘पंडित जी, आपने तो कहा था क्षमा और अहिंसा मनुष्य के आभूषण हैं। इन्हें नहीं छोड़ना चाहिए। फिर भी आप मुझे मार रहे हैं।’ पंडित जी ने कहा, ‘मैंने जो कहा, वह सत्य था। लेकिन वह मैंने सज्जनों के लिए कहा था, तुम जैसे दुष्टों के लिए नहीं। क्षमाशील होने का यह अर्थ नहीं कि हम कायर हो जाएं और दूसरा हमारे इस सद्गुण का अनुचित लाभ उठाए। कहां कैसा व्यवहार करना है, यह परिस्थितियों के आधार पर तय करना चाहिए।’ लुटेरे ने पंडित जी से क्षमा मांगी और नेक रास्ते पर चलने का वचन दिया।

संकलन: लखविन्दर सिंह
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:55 PM   #58
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

एक महात्मा रात-दिन एक जंगल में साधना करते रहते थे। एक दिन उस राज्य का राजा उस जंगल में कहीं से घूमता हुआ पहुंचा। एक निर्जन स्थान पर महात्मा जी को भक्ति में लीन देखकर वह सोचने लगा कि यह आखिर कैसे गर्मी, सर्दी, बरसात और हर तरह के कष्ट सहते हुए अपने लक्ष्य को साधने में लगे हुए हैं?

यह सोचकर उसने अपने मंत्री को आदेश दिया कि वह इस बात का पता लगाए कि सर्दी में महात्मा जी की रात कैसी बीतती है। मंत्री महात्मा जी के पास पहुंचा। उसने प्रश्न किया, ‘मुनिवर, मेरे महाराज जानना चाहते है कि इस सर्दी में आपकी रात कैसी गुजरती है?’

महात्मा बोले, ‘वत्स, मेरी रात तो कुछ आप जैसी ही कटती है पर दिन आपसे अच्छा गुजरता है।’ मंत्री ने राजा को यह बात बताई तो राजा अचरज में पड़ गया। उसने स्वयं महात्मा के पास जाने का निर्णय किया। उसने महात्मा के चरण स्पर्श करके निवेदन किया, ‘महात्मन, मैं इस राज्य का राजा हूं और आपसे यह जानना चाहता हूं कि सर्दी में आपकी रात कैसी गुजरती है?’

महात्मा ने मुस्कराकर कहा ,’मेरी रात कुछ आप जैसी ही गुजरती है पर दिन आप से अच्छा कटता है।’ राजा ने फिर पूछा, ‘मैं आपके इस रहस्यपूर्ण उत्तर को नहीं समझ पा रहा हूं। कृपया इसे स्पष्ट करें।’ महात्मा जी ने कहा ‘जब रात में मैं और आप गहन निद्रा में होते हैं तो वह रात आप जैसी ही बीतती है क्योंकि निद्रा देवी की गोद में सोए हुए हर मानव की स्थिति एक समान होती है। किंतु जब मैं और आप जागृत अवस्था में होते है, तब आप तो अपने बुरे-भले कामों में व्यस्त रहते है जबकि मैं उस समय भी परम पिता परमात्मा का श्रद्धापूर्वक स्मरण करता रहता हूं। इसलिए मेरा जागृत समय आपसे कहीं ज्यादा फलदायक होता है। इसी कारण मैंने कहा कि रात आप जैसी गुजरती है पर दिन आपसे अच्छा गुजरता है।’ यह सुनकर राजा उनके समक्ष नतमस्तक हो गया।

संकलन: विजय कुमार सिंह
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:56 PM   #59
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

एक चोर अक्सर एक साधु के पास आता और उससे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय पूछा करता था। लेकिन साधु टाल देता था। वह बार-बार यही कहता कि वह इसके बारे में फिर कभी बताएगा। लेकिन चोर पर इसका असर नहीं पड़ता था। वह रोज पहुंच जाता। एक दिन चोर का आग्रह बहुत बढ़ गया। वह जमकर बैठ गया। उसने कहा कि वह बगैर उपाय जाने वहां से जाएगा ही नहीं। साधु ने चोर को दूसरे दिन सुबह आने को कहा। चोर ठीक समय पर आ गया।

साधु ने कहा, ‘तुम्हें सिर पर कुछ पत्थर रखकर पहाड़ पर चढ़ना होगा। वहां पहुंचने पर ही ईश्वर के दर्शन की व्यवस्था की जाएगी।’ चोर के सिर पर पांच पत्थर लाद दिए गए और साधु ने उसे अपने पीछे-पीछे चले आने को कहा। इतना भार लेकर वह कुछ दूर ही चला तो उस बोझ से उसकी गर्दन दुखने लगी। उसने अपना कष्ट कहा तो साधु ने एक पत्थर फिंकवा दिया। थोड़ी देर चलने पर शेष भार भी कठिन प्रतीत हुआ तो चोर की प्रार्थना पर साधु ने दूसरा पत्थर भी फिंकवा दिया। यही क्रम आगे भी चला। ज्यों-ज्यों चढ़ाई बढ़ी, थोडे़ पत्थरों को ले चलना भी मुश्किल हो रहा था। चोर बार-बार अपनी थकान व्यक्त कर रहा था। अंत में सब पत्थर फेंक दिए गए और चोर सुगमतापूर्वक पर्वत पर चढ़ता हुआ ऊंचे शिखर पर जा पहुंचा।

साधु ने कहा, ‘जब तक तुम्हारे सिर पर पत्थरों का बोझ रहा, तब तक पर्वत के ऊंचे शिखर पर तुम्हारा चढ़ सकना संभव नहीं हो सका। पर जैसे ही तुमने पत्थर फेंके वैसे ही चढ़ाई सरल हो गई। इसी तरह पापों का बोझ सिर पर लादकर कोई मनुष्य ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता।’ चोर ने साधु का आशय समझ लिया। उसने कहा, ‘आप ठीक कह रहे हैं। मैं ईश्वर को पाना तो चाहता था पर अपने बुरे कर्मों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।’ उस दिन से चोर पूरी तरह बदल गया।

संकलन : विजय कुमार सिंह
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-04-2013, 05:56 PM   #60
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: प्रेरक प्रसंग

एक बार श्रावस्ती में भयंकर अकाल पड़ा। कई लोग भूख से तड़पकर मर गए। सबसे चिंताजनक स्थिति उन माताओं की थी, जिनकी गोद में दुधमुंह बच्चे थे और उनके घर के पुरुष काल के गाल में समा चुके थे। बुद्ध को जब यह पता चला तो वे चिंतित हो गए।

उन्होंने तत्काल धनवान लोगों की एक सभा बुलवाई और उनसे कहा, ‘आप इन माताओं और इनके बच्चों की रक्षा करें।’ वहां उपस्थित लोग बोले, ‘हमारे पास अनाज तो है, पर वह एक वर्ष ही चल पाएगा। इसमें से हमने दूसरों को अन्न दिया तो हमारा परिवार भूखों मर जाएगा। दूसरे घर का दीया जलाना भी तभी अच्छा लगता है जब अपने घर का दीया जल रहा हो।’

इस पर बुद्ध गंभीर होकर बोले, ‘आप लोग अपने स्वार्थ से ऊपर नहीं उठ पा रहे। क्या आपको विश्वास है कि आपके सदस्य की मृत्यु केवल अन्न न मिलने के कारण ही हो सकती है? क्या वे कोई अन्य रोग या दुर्घटना से बचे रहेंगे? क्या आप इस बात के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं कि एक साल में इन पीड़ित व्यक्तियों के अलावा कोई और काल का ग्रास नहीं बनेगा? आपको भविष्य के बारे में सब कुछ कैसे पता?’

यह सुनकर सभी ने अपने सिर नीचे कर लिए। इसके बाद बुद्ध बोले, ‘भाइयो, आपदाओं से मिलकर ही निपटा जाता है। यदि आज आप इनकी मिलकर सहायता करेंगे, तो अकाल जैसी इस विपत्ति से मुक्ति संभव है। किंतु यदि आप इनकी मदद नहीं करेंगे तो जीवन भर कोई आपकी सहायता करने को भी तैयार नहीं होगा। याद रखिए, विपत्ति में पड़े लोगों की सहायता करना ही सबसे बड़ा धर्म है।’

यह सुनकर श्रावस्ती के सभी सेठों और व्यापारियों ने अपने अनाज के भंडार खोल दिए। वे स्वयं भूखे लोगों में अन्न बांटने लगे। कुछ ही समय बाद सब लोगों के प्रयास से अकाल जैसी विपत्ति पर विजय पा ली गई और सब सुखपूर्वक रहने लगे।

संकलन: रेनू सैनी
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 04:34 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.