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Old 27-02-2014, 06:46 PM   #1
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Question अद्भुत दुनिया

रंग-बिरंगी दुनिया की अद्भुत तस्वीर और अनोखे रंग-ढंग
इस सूत्र में सब कुछ अंतर्जाल से लिया गया है....
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ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है, एंव अपनी अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है।
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Old 27-02-2014, 06:48 PM   #2
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Default Re: अद्भुत दुनिया

इसे मौत का रास्ता कहते हैं



कहते हैं जीवन और मृत्यु पर किसी का कोई वश नहीं होता. मनुष्य शरीर नश्वर है इसीलिए जिसने इस दुनियां में जन्म लिया है उसका अंत होना भी तय है. परंतु मानव शरीर का अंत कब और कहां होगा इसके बारे में कभी कोई नहीं जान पाया.




लेकिन दुनियां में एक स्थान ऐसा है जहां अगर आप पहुंच गए तो वहां से जीवित वापस लौटना बहुत कठिन या यूं कहें कि असंभव ही है.



ब्राजील की यह सड़क मौत की सड़क के रूप में जाने जाती है जहां से गुजरने वाली गाड़ियों या अन्य वाहनों का दुर्घटनाग्रस्त होना अब एक सामान्य लेकिन खतरनाक हकीकत बन चुकी है. कैमिनो डे ला मुर्टे के नाम से कुख्यात इस सड़क को वर्ष 1995 में इंटर अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक ने दुनियां की सबसे खतरनाक सड़क की संज्ञा से नवाजा है.




अभी कुछ ही दिन पहले यहां एक ट्रक का बहुत भयंकर एक्सिडेंट हुआ. हैरानी वाली बात है कि एक अनुभवी चालक द्वारा चलाया जा रहा ट्रक अचानक ही अनियंत्रित होकर गहरी खाई में गिर गया. खाई में ग़िरने के कारण ट्रक चालक की भी मृत्यु हो गई. एक अन्य हादसे में भी एक ट्रक की हालत इतनी बिगड़ गई कि उसमें बैठे चालक का क्या हुआ होगा इस बारे में सोचकर ही सिहरन सी होने लगती है.


सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो 38 मील लंबे इस सड़क मार्ग पर अब तक 300-400 हादसे घट चुके हैं. शोधकर्ता और वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सड़क की बनावट सही नहीं है, विषम रास्ता होने के कारण इस रास्ते पर हादसे होते हैं. लेकिन लोगों का तो कुछ और ही कहना है. वह इस सड़क पर होने वाले हादसों को पारलौकिक शक्तियों के साथ जोड़ते हैं.



युवाओं की पसंदीदा साइट यू-ट्यूब (YouTube) जिसमें गानों और फिल्मी दृश्यों के साथ-साथ लोग वास्तविक फुटेज भी डाल देते हैं, उसमें इन दोनों एक्सिडेंट की लाइव फुटेज अपलोड की गई है. आप स्वयं उन भयानक हादसों को देखकर यह अंदाजा लगा सकते हैं कि यह सड़क कितनी डरावनी और खतरनाक है.
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Old 27-02-2014, 06:50 PM   #3
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आत्मा का रहस्य

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ऐसा माना जाता है कि मानव शरीर नश्वर है, जिसने जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन अपने प्राण त्यागने ही पड़ते हैं. भले ही मनुष्य या कोई अन्य जीवित प्राणी सौ वर्ष या उससे भी अधिक क्यों ना जी ले लेकिन अंत में उसे अपना शरीर छोड़कर वापस परमात्मा की शरण में जाना ही होता है.








यद्यपि इस सच से हम सभी भली-भांति परिचित हैं लेकिन मृत्यु के पश्चात जब शव को अंतिम विदाई दे दी जाती है तो ऐसे में आत्मा का क्या होता है यह बात अभी तक कोई नहीं समझ पाया है. एक बार अपने शरीर को त्यागने के बाद वापस उस शरीर में प्रदार्पित होना असंभव है इसीलिए मौत के बाद की दुनियां कैसी है यह अभी तक एक रहस्य ही बना हुआ है.



किस्से-कहानियों या फिर अफवाहों में तो मौत के पश्चात आत्मा को मिलने वाली यात्नाएं या फिर विशेष सुविधाओं के बारे में तो कई बार सुना जा चुका है लेकिन पुख्ता तौर पर अभी तक कोई यह नहीं जान पाया है कि क्या वास्तव में इस दुनियां के बाद भी एक ऐसी दुनियां है जहां आत्मा को संरक्षित कर रखा जाता है अगर नहीं तो जीवन का अंत हो जाने पर आत्मा कहां चली जाती है?


गीता के उपदेशों में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि आत्मा अमर है उसका अंत नहीं होता, वह सिर्फ शरीर रूपी वस्त्र बदलती है. वैसे तो कई बार आत्मा की अमर यात्रा के विषय में सुना जा चुका है लेकिन फिर यह सबसे अधिक रोमांच और जिज्ञासा से जुड़ा मसला है.



शरीर त्यागने के बाद कहां जाती है आत्मा



गरूड़ पुराण जो मरने के पश्चात आत्मा के साथ होने वाले व्यवहार की व्याख्या करता है उसके अनुसार जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो उसे दो यमदूत लेने आते हैं. मानव अपने जीवन में जो कर्म करता है यमदूत उसे उसके अनुसार अपने साथ ले जाते हैं. अगर मरने वाला सज्जन है, पुण्यात्मा है तो उसके प्राण निकलने में कोई पीड़ा नहीं होती है लेकिन अगर वो दुराचारी या पापी हो तो उसे पीड़ा सहनी पड़ती है. गरूड़ पुराण में यह उल्लेख भी मिलता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत केवल 24 घंटों के लिए ही ले जाते हैं और इन 24 घंटों के दौरान आत्मा दिखाया जाता है कि उसने कितने पाप और कितने पुण्य किए हैं. इसके बाद आत्मा को फिर उसी घर में छोड़ दिया जाता है जहां उसने शरीर का त्याग किया था. इसके बाद 13 दिन के उत्तर कार्यों तक वह वहीं रहता है. 13 दिन बाद वह फिर यमलोक की यात्रा करता है.



पुराणों के अनुसार जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्याग कर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं. उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है. ये तीन मार्ग हैं अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग. अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है.
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Old 27-02-2014, 06:52 PM   #4
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रोमांचक मौत का तलबगार है वो

मौत का कुंआ, सुनकर ही दहशत का एक अजीबोगरीब माहौल बन जाता है. इस कुंए में जान की बाजी लगाने के लिए उतरा शख्स दर्शकों को यह एहसास भी नहीं होने देता कि वह इस कुंए से बचकर बाहर भी आ सकता है. दिल थाम कर दर्शक, हर पल, हर घड़ी उसकी जान की फिक्र लगाए बैठे रहते हैं कि किसी तरह ये खेल समाप्त हो और मोटरसाइकिल पर सवार वो युवक जीवित वापस आ जाए. अब गया तो तब गया जैसे भाव जहन में उठ ही रहे होते हैं कि कुंए का बाजीगर ठीक-ठाक सामने आकर खड़ा हो जाता है.

इंसान भी अजीब शख्सियत है, कभी मरने से डरता है तो कभी ऐसे काम करता है जिसमें मरने की तो जैसे गारंटी मिल जाती है. मौत से सामना होने का अनुभव खतरनाक तो होता है लेकिन जब किसी की आदत ही हो जाए खतरे से रूबरू होना तो कुछ किया भी नहीं जा सकता. लेकिन आंखों का धोखा भी ऐसे खतरनाक कारनामों के दौरान ही होता है जब हम एक व्यक्ति के मरने की संभावनाओं पर मुहर लगा देते हैं पर अंत में वह अच्छा खासा जीता-जागता हमारे सामने खड़ा हो जाता है.

खैर आजकल टी.वी. पर एक विज्ञापन बहुत चल रहा है ‘शौक बड़े काम की चीज है”…. वैसे देखा जाए तो लोग अपने शौक को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने से गुरेज नहीं करते. मजेदार से लेकर खतरनाक, सभी तरीके से फन, सभी प्रकार की मस्ती करना युवाओं को बहुत पसंद आता है. लेकिन क्या हो जब आपका यही शौक आपको मौत के करीब ले जाए और मौत की आहट आपको हर पल सुनाई देने लगे?

बंजी जंपिंग, राफ्टिंग, स्काइ डाइविंग, यह सब कुछ ऐसी एक्टिविटीज के नाम हैं जिन्हें करना सभी के बस की बात तो नहीं है लेकिन जिन्हें ये पसंद है वह पैसे या फिर किसी खतरे की परवाह किए बगैर अपने ऐसे खतरनाक शौक को पूरा करने निकल जाते हैं. अब इसे सनक कह लें या फिर खतरों से खेलने का अजीबोगरीब शौक लेकिन रूस में रहने वाला एक लड़का ऐसा है जिसे मौज-मस्ती के नाम पर ऐसे काम करने का शौक है जो उसे सीधा मौत के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दे और उसकी इस लिस्ट में आग में जलकर छत से कूदने जैसा शौक सबसे ऊपर है.

रूस में रहने वाले सन्या नाम के इस युवक के तो कहने ही क्या…..हमें तो उसकी हॉबीज के बारे में सच मानिए तो बात करते हुए भी सिहरन सी महसूस होती है. आप मानेंगे नहीं लेकिन सन्या ने ना सिर्फ ये बात कबूल की है बल्कि दुनिया के सामने एक ऐसा कारनामा करके दिखाया है जिसे देखकर रूह तक कांप जाए. उसने पहले तो पांचवें माले की छत पर खड़े होकर खुद को आग लगाई और फिर वहां से नीचे बर्फ के ढेर पर कूद गया.

मस्ती-मजे के लिए कुछ डिफरेंट करना सही है लेकिन खतरों के खिलाड़ी कहलवाने के लिए अपनी जान की बाजी लगते रहने जैसी हॉबीज कहीं सच में आपको जिंदगी से दूर ही ना ले जाए कम से कम इस बात का ध्यान तो रखना ही चाहिए.

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Old 27-02-2014, 06:57 PM   #5
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तुम भटकती रूहों को महसूस कर सकते हो?



जिन्दगी और मौत का सिलसिला चलता रहता है. कहते हैं जिसने इस धरती पर जन्म लिया है उसका मरना निश्चित है. बहुत से लोग तो इस बात पर भी विश्वास रखते हैं कि पैदा होने से पहले ही यह निर्धारित हो जाता है कि संबंधित व्यक्ति की मौत कहां, कैसे और कब होगी. इतना ही नहीं, पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की अवधारणा पर भी भरोसा रखने वाले बड़ी आसानी से मिल जाते हैं, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अतृप्त और अशांत रूहों के इंसानी दुनिया में होने जैसी बातें भी मानते हैं.

लेकिन यह सवाल शायद ही किसी के जहन में आया हो कि आखिर जिन्दगी और मौत के इस सिलसिले की शुरुआत कहां और किसने की? वैसे तो विभिन्न देशों में इस विषय से जुड़ी भिन्न-भिन्न कहानियां मौजूद हैं लेकिन आज हम आपको अंडमान द्वीप समूह के निवासियों के बीच चर्चित एक ऐसा कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका संबंध जिन्दगी और मौत के चक्रव्यूह से जुड़ा है.

कहते हैं अंडमान द्वीपसमूह पर रहने वाला व्यक्ति यरामुरुद पहला ऐसा इंसान था जिसने जिन्दगी के बाद मौत का स्वाद भी चखा था….इतना ही नहीं यह भी कहा जाता है कि अपनी मृत्यु के बाद रूह बनकर वापस भी लौट आया था. सुनने में भले ही यह सब आपको एक अच्छा टाइमपास लगे लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार यरामुरुद के मरने के पीछे एक बेहद दर्दभरी कहानी छिपी है जो हम आपको बताने जा रहे हैं.


अंडमान द्वीपसमूह पर यरामुरुद अपनी मां और भाई के साथ रहता था. एक बार यरामुरुद शिकार पर गया लेकिन वह किसी भी जानवर को मारने में सफल नहीं हुआ और खाली हाथ घर लौट आया. उसकी मां को बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर भी वह घर में पहले से ही रखे मांस को यरामुरुद के सामने ले आई और उसे मांस को काटने के लिए कहा. यरामुरुद मांस काटने ही लगा था कि वह चाकू उसके अपने हाथ में लग गया और यह सब देखकर उसकी मां ने कहा कि “तुम मर चुके हो, हम तुम्हें अपने साथ देखना नहीं चाहते इसलिए तुम यहां से दूर चले जाओ”.

असफल शिकार से लौटने के बाद उसकी मां वैसे ही बहुत क्रोधित थी इसलिए वह अपने दूसरे बेटे के साथ मिलकर यरामुरुद को जबरन दफनाने चल पड़ी. यरामुरुद को जमीन में गाड़ने के बाद वह जब घर लौटे तो यरामुरुद पहले से ही घर में मौजूद मिला. उसने अपनी मां से पूछा कि मैं मरा नहीं था तो तुमने मुझे जमीन में क्यों दफनाया? उसकी मां से कहा कि अब इस घर को और मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है इसलिए तुम्हारा मरना ही सबके लिए सही है. मां और भाई ने मिलकर कई बार यरामुरुद को दफनाने की कोशिश की लेकिन हर बार वह मौत के मुंह से वापस आ जाता था.

बार-बार की इस कोशिश से यरामुरुद की मां परेशान हो गई और उसे जंगल में ले गई और वहां एक पेड़ को खोदकर अपने बेटे को उसके भीतर जाकर आत्माओं और शैतानी ताकतों की आहट सुनने को कहा. अपनी मां की बात सुनकर यरामुरुद पेड़ के अंदर चला गया और जब उसे शैतानी शक्तियों का आभास होने लगा तो उसकी मां ने उसे मृत घोषित कर दिया. इस घटना के कुछ दिन बाद यरामुरुद भटकती रूह के रूप में अपने घर वापस आया और अपने भाई और मां को मौत के घाट उतार दिया.

अंडमान द्वीपसमूह के लोग इस दर्दनाक मौत को ही जीवन के बाद होने वाली मृत्यु का आधार मानते हैं.
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Old 27-02-2014, 07:03 PM   #6
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इस ‘संख्या’ का राज क्या है ?



देखिए जरा ! चीन ने फिर कमाल कर दिखाया और चीन ही क्यों अमेरिका, इंग्लैंड ना जाने कितने ऐसे देश हैं जिनका गुणगान उनके देश के लोग भले ही ना करें पर भारतीय उनका गुणगान करने में पीछे नहीं रहते हैं. क्या आप भी उन लोगों में एक हैं जिन्हें ‘आई एम इंडियन’ कहना अच्छा नहीं लगता है तो यकीनन इसे पढ़ने के बाद आप गर्व से कहेंगे ‘आई एम इंडियन’






* ‘प्लास्टिक सर्जरी’ इस शब्द को सुनते ही आपके दिमाग में विदेशी डॉक्टरों के चेहरे घूमने लगते होंगे पर जरा ठहरिए ! एक बार इस सच को भी जान लीजिए. 2000 ईसा पूर्व पहले भारत में प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत हुई और बाद में जाकर भारत अन्य देशों के लिए प्लास्टिक सर्जरी के मामले में मार्गदर्शक बन गया.


* शायद ही कोई ऐसा हो जिसे हीरे के आभूषण पसंद ना आते हों. क्या आप जानते हैं कि 5000 साल पहले भारत में हीरे को खोजा गया था.



  • अधिकाश लोग यह जानते होंगे कि मारकोनी ने रेडियो तरंगों का इस्तेमाल संदेश भेजने के लिए किया. मारकोनी को बिना तार के संदेश भेजने की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया पर सबसे पहले रेडियो द्वारा संदेश भेजने का नमूना सर जगदीश चन्द्र बोस ने पेश किया था.



  • किसी भी प्रकार के संदेश को लिखने के लिए स्याही का प्रयोग किया जाता है पर क्या आप जानते हैं कि चौथी शताब्दी ईसा पूर्व साउथ इंडिया में नुकीली सुई के द्वारा स्याही का प्रयोग किया जाने लगा था.



  • धातु विद्या की शुरुआत भारत में सबसे पहले की गई थी और भारत अन्य देशों के लिए मार्गदर्शक बना. दो हजार साल पहले भारत में स्टील धातु निर्मित की गई थी.



  • छठी शताब्दी ईसा पूर्व चिकित्सक सुश्रुत, मोतियाबिन्द की सर्जरी के बारे में जानकारी रखते थे. भारत को अपना मार्गदर्शक बनाकर ही चीन ने इस सर्जरी की शुरुआत की.





  • क्या आप जानते हैं कि छठी शताब्दी के लगभग भारत में गुप्ता साम्राज्य में शतरंज का खेल खेला जाता था. इतना ही नहीं, सांप-सीढ़ी के खेल को भी सालों पहले भारतीय राजा-महाराजा खेला करते थे.



  • सोलहवीं शताब्दी में मुगल शासक अकबर के शासनकाल के समय ऐसे घर का निर्माण किया गया था जिसे कुछ ही समय में उठाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता था.



  • आज मार्केट में हजार किस्म के शैम्पू हैं पर क्या आप जानते हैं कि शैम्पू शब्द को ‘चम्पू’ शब्द से लिया गया है. मुगल शासनकाल के समय चम्पू का इस्तेमाल सिर्फ बालों में तेल लगाने के लिए किया जाता था.



  • ऐसा माना जाता है कि विदेशों से ही फ्लश टॉयलेट का चलन शुरू हुआ पर ऐसा नहीं है. हड़प्पा सभ्यता के समय फ्लश टॉयलेट की खोज की जा चुकी थी.



  • द्धिआधारी अंक की खोज पिंगल ने 200 ईसा पूर्व की थी. पिंगल संस्कृत में ‘छन्दशास्त्र’ के रचनाकार का पारंपरिक नाम है.
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चेंज योर सिग्नेचर! आपकी तकदीर बदल जाएगी

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अकसर हम महापुरुषों से सुनते रहे हैं कि इंसान की पहचान उसके कर्मों से होती है. अर्थात कर्म ही जीवन का प्रधान तत्व है, लेकिन आपने कभी सुना है कि इंसान की पहचान उसके किए हुए हस्ताक्षर से भी होती है. सिग्नेचर करते वक्त हमने कभी गौर नहीं किया होगा कि हमारा सिग्नेचर हमारे व्यक्तित्व को भी दर्शाता है. आपका सिग्नेचर व्यवहार, समय, जीवन और चरित्र का आइना है, तो चलिए जानते हैं कि आप जो सिग्नेचर करते हैं उसके क्या मायने हैं:






1. जिस व्यक्ति के सिग्नेचर में अक्षर नीचे से ऊपर की ओर जाते हैं वह ईश्वर पर आस्था रखने वाला, आशावादी व साफ दिल का भी होता है. लेकिन उसमें कमी भी होती है. वह स्वभाव से झगड़ालू भी होता है.

2. ऊपर से नीचे की ओर हस्ताक्षर करने वाले लोग हमेशा निगेटिव चीजें सोचते हैं. उनका लोगों से मेल-मिलाप भी कम होता है.

3. जो लोग बिना पेन उठाए एक ही बार में पूरा सिग्नेचर करते हैं उनकी सोच रहस्यवादी, लडाकू तथा गुप्त प्रवृत्ति की होती है.

4. डरपोक, शर्मीले और शक्की मिजाज के वे लोग होते हैं जो अपने सिग्नेचर के अंत में डॉट या डैश लगाते हैं.

5. जल्दबाजी और अस्पष्ट रूप से हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति अपनी लाइफ को सामान्य रूप से नहीं जीता. ऐसे व्यक्ति ऊंचाई पर जाने के लिए किसी को भी धोखा दे सकते हैं.

6. सिग्नेचर करने के लिए यदि व्यक्ति पेन (कलम) पर जोर देता है, तो समझो वह भावुक, उत्तेजक, हठी और स्पष्टवादी व्यक्ति है.

7. स्पष्ट रूप से जल्दी से हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति अपने कार्य को बड़े ही समझदारी और तीव्र गति से निपटाते हैं.

8. अवरोधक चिह्न लगाने वाले व्यक्ति आलसी प्रवृत्ति के होते हैं. वह हमेशा सामाजिकता व नैतिकता की दुहाई देते हैं.

9. हस्ताक्षर के नीचे दो लकीरें खींचने वाला व्यक्ति भावुकता के साथ-साथ मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर होता है. उसे हर समय लगता है कि कोई है जो उसे नुकसान पहुंचा सकता है.

10. जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर में नाम का पहला अक्षर सांकेतिक रूप में तथा उपनाम पूरा लिखता है वह मृदुभाषी और व्यवहार कुशल होता है.


चर्चित व्यक्तियों के सिग्नेचर और उसके मायने


महात्मा गांधी: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिग्नेचर धागे की तरह शब्दों को जोड़ते हैं जो यह बताता है कि समस्या कितनी भी बड़ी हो पर उसे आसानी से सुलझाया जा सकता है.






अमिताभ बच्चन: बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन सिग्नेचर करते समय नीचे पूरी लाइन खींचते हैं और लाइन के नीचे दो बिंदियां भी लगाते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि वह रोमांटिक होने के साथ-साथ किसी भी खूबसूरत चीज को महत्व देते हैं.













अब्दुल कलाम: हस्ताक्षर के नीचे अकेली क्षैतिज रेखा इस बात की प्रतीक है कि व्यक्ति का अपने विचारों पर पूरा नियंत्रण है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का हस्ताक्षर भी कुछ इसी तरह का है.










नरेंद्र मोदी: भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का सिग्नेचर यह बताता है कि उनके अंदर आत्*मविश्*वास बहुत ही ज्यादा है. वह कोई भी काम पूरी तैयारी के साथ करते हैं लेकिन अगर कोई उनका अपमान करता है तो वो उसे जिंदगीभर नहीं भूलते.






राहुल गांधी: कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सिग्नेचर से यह पता चलता है कि वह अपने काम करने के लिए योजना बनाकर कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि अपने काम में आई परेशानियों को झेल नहीं पाते.





अरविंद केजरीवाल: दिल्*ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के सिग्नेचर से पता चलता है कि वो बेहद भावुक इंसान हैं. वह ना तो खुद की गलती बर्दाश्त कर सकते हैं और ना ही अपने साथ काम करने वाले व्यक्ति की, लेकिन उनके सिग्नेचर की कमजोरी यह है कि वह किसी भी काम को बीच में छोड़ देते हैं.







स्टीव जॉब्स: हस्ताक्षर करते समय अगर आप कैपिटल लेटर से शुरुआत करते हैं तो यह माना जाता है कि आपके अंदर विश्वास की कमी है. वहीं अगर आप स्मॉल लेटर से इसकी शुरुआत करते हैं तो इसे विश्वास से लबरेज माना जाता है. स्टीव जॉब्स भी अपने सिग्नेजर करते समय स्मॉल लेटर का यूज करते थे.
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द डेडली बरमूडा ट्राएंगल

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द डेडली ट्राएंगल, शैतानों का टापू आदि नामों से जाना जाने वाला बरमूडा ट्राएंगल पृथ्वी के सबसे रहस्मयी और हैरतंगेज स्थानों में से एक है. प्यूर्टोरिको, फ्लोरिडा और बरमूडा नामक तीन स्थानों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने वाला यह त्रिकोण अटलांटिक महासागर में अमेरिका के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है. एक लंबे समय से यह त्रिकोण वैज्ञानिकों और आम जन-मानस की उत्सुकता और जिज्ञासा का केन्द्र बना हुआ है, जिसका कारण यहां से गुजरने वाले समुद्री जहाजों और नावों का गायब हो जाना है. बरमूडा के इस खतरनाक ट्राएंगल की सीमा में प्रवेश करने के बाद हवाई जहाज और समुद्री जहाज यकायक अपना रास्ता भटक जाते हैं और ना जाने किस दुनियां में खो जाते हैं. ना तो जहाज में सवार लोगों का ही कुछ पता चलता है और ना ही किसी भी प्रकार का कोई अवशेष हाथ लगता है.






वैसे तो इस रहस्यमयी ट्राएंगल के विषय में बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं लेकिन अभी तक कोई भी इन घटनाओं की हकीकत तक नहीं पहुंच पाया है. बरमूडा ट्राएंगल से जुड़े अनेक तथ्यों में सबसे ज्यादा भयानक तथ्य यह है कि यह त्रिकोण अब तक 8, 000 लोगों को गायब कर चुका है या फिर उनकी जान ले चुका है. इस ट्राएंगल ने अब तक जिन जहाजों को अपना शिकार बनाया है उनमें से मुख्य हैं:




  • मैरी सेलेस्टी – 4 दिसंबर, 1872 को इस ट्राएंगल के मध्य मैरी सेलेस्टी नाम का एक अकेला और असहाय समुद्री जहाज पाया गया. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि इसमें कोई भी जीवित या मृत व्यक्ति नहीं मिला. समुद्री लुटेरों का हाथ होने की बात भी इसीलिए प्रमाणित नहीं हो सकी, क्योंकि यात्रियों का कीमती सामान और खाने-पीने की वस्तुएं सभी अपने स्थान पर सुरक्षित पड़ी थीं. यह रहस्य अभी तक सुलझ नहीं पाया है कि जहाज में सवार यात्री और कर्मी कहां चले गए.
  • एलन ऑस्टिन – वर्ष 1881 में एलन ऑस्टिन नामक एक समुद्री जहाज न्यूयॉर्क, अमेरिका के लिए निकला लेकिन वह रास्ते में ही कहीं खो गया और जब वह मिला तो उसमें सवार जहाज कर्मियों का कोई पता नहीं चला.
यूएसएस साइक्लोप्स – अमेरिका का यह लापता जहाज बरमूडा ट्राएंगल से जुड़ा सबसे बड़ा रहस्य है. मार्च 1918 में यूएसएस साइक्लोप्स 309 जहाज कर्मियों को लेकर निकला. बरमूडा ट्राएंगल को पार करते समय यह खो गया और आज तक इस जहाज का कुछ भी पता नहीं चला है. ना तो जहाज कभी मिला और ना ही जहाज में सवार लोग. उस दिन मौसम भी अनूकूल था. यहां तक कि जहाज में मौजूद क्रू सदस्य भी यही कह रहे थे कि उन्हें कोई भी समस्या नहीं है.
  • कैरल ए. डीयरिंग – 1921 में बाराबडोस से कैरल ए. डियरिंग नामक खोये हुए जहाज की सूचना लेने के लिए एक खोजी दल भेजा गया. जब यह दल जहाज के समीप पहुंचा तो उन्होंने एक खराब हालत में जहाज को देखा जिसमें सभी क्रू सदस्य और बरमूडा से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब थे.

कुछ लोग बरमूडा के इस ट्राएंगल को दूसरे ग्रह से आए लोगों का शोध केन्द्र मानते हैं. उनका कहना है कि समुद्र के नीचे एलियन विभिन्न शोधों को अंजाम देते हैं और वह नहीं चाहते कि मनुष्य उनके कार्य में बाधा उत्पन्न करें, इसीलिए वह यह सब करते हैं. बरमूडा के इस छुपे रहस्य को जांचने के लिए कई वैज्ञानिकों द्वारा निम्नलिखित सिद्धांतों पर विचार किया जा रहा है:







  • मीथेन गैस – बरमूडा त्रिकोण से संबंधित सबसे प्रमुख सिद्धांत है समुद्र में व्याप्त मीथेन गैस. वैज्ञानिकों का मानना है कि समुद्र के नीचे मीथेन गैस का भंडार है जो फूट सकता है. परिणामस्वरूप पानी का घनत्व कम हो जाता है और जहाज धीरे-धीरे नीचे की ओर गिरने लगता है. यहां तक कि यह आसमान में उड़ने वाले जहाज को भी अपनी चपेट में लेकर ध्वस्त कर देती है.
  • सरगासो सी – वैज्ञानिकों का कहना है कि बरमूडा टाएंगल के भीतर एक ऐसा समुद्र है जिसका कोई तट नहीं है और वह अंदरूनी झटकों से बंधा हुआ है. जब कोई जहाज वहां से गुजरता है तो वह वहां फंसकर गतिहीन हो जाता है.
  • इलेक्ट्रॉनिक फॉग – कई वैज्ञानिक इस बात से सहमति रखते हैं कि बरमूडा ट्राएंगल के बीच एक कठोर और अजीब बादल या कोहरा छा जाता है जो समुद्री या हवाई जहाजों को निगल जाता है.

इन सब सिद्धांतों और कथाओं के अलावा बरमूडा ट्राएंगल को एक पौराणिक कथा के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है कि जब हनुमान जी समुद्र पारकर लंका जाने लगे थे तो उन्हें एक ऐसी राक्षसी का सामना करना पड़ा था जो किसी भी जीव की परछाई को बंदी बना सकती थी. हो सकता है यहां भी ऐसी कोई शक्ति हो या फिर सच में यह दूसरे ग्रह के प्राणियों का शोध केन्द्र हो. लेकिन अभी इस ट्राएंगल की हकीकत को समझने में बहुत लंबा समय लग सकता है.
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Old 27-02-2014, 11:47 PM   #9
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