12-12-2012, 02:50 PM | #1 |
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टूट गए सितार के तार
मित्रो, सितार के सर्वश्रेष्ठ कलाकार भारत रत्न पं. रविशंकर का निधन हो गया है। मैं यह सूत्र उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए स्थापित कर रहा हूं। मैं इसमें उनके जीवन के बारे में जानकारियां साझा करूंगा। आप सभी इस सूत्र में रविशंकरजी के प्रति अपने उदगार प्रकट करने के लिए स्वतंत्र हैं। धन्यवाद।
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12-12-2012, 03:12 PM | #2 |
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Re: टूट गए सितार के तार
पंडित रविशंकर भारतीय संगीत के सबसे महान सितारवादक थे। एक सितार वादक के रूप में उन्होंने पुरे विश्व में ख्याति अर्जित की। वीटल्स के जॉर्ज हैरीसन ने उन्हें एक समय 'विश्व संगीत का गॉडफादर' बताया था. भारतीय शास्त्रीय संगीत का पश्चिम समेत पूरी दुनिया में परचम लहराने में पंडित रविशंकर का अहम योगदान था. भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति दे।
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12-12-2012, 03:20 PM | #3 | |
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Re: टूट गए सितार के तार
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unke samman me jitna bhi kahe vo kam rahega .... har bharitiye unko hamesha yaad rakhega....
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13-12-2012, 01:45 PM | #4 |
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Re: टूट गए सितार के तार
पंडित जी के जाने से संगीत जगत में जो स्थान रिक्त हुआ है शायद कभी भी भर नहीं पायेगा
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
14-12-2012, 01:59 AM | #5 |
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Re: टूट गए सितार के तार
पंडितजी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए आप सभी का आभारी हूं, मित्रो। अब शुरू करता हूं उनके विषय में कुछ जानकारियां साझा करना। उम्मीद है, यह आपको रुचिकर लगेंगी। धन्यवाद।
बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे पं. रविशंकर बड़े भाई उदय शंकर की तरह ही कदमों की ताल पर दुनिया की सैर करना चाहते थे, लेकिन उनके मूल स्वभाव में कहीं न कहीं संगीत आत्मसात था। यही वजह थी कि धीरे-धीरे उनका मन सितार की आल्हादित करने वाली तरंगों में रमने लगा। सितार के बेजान धातु के तारों में पं. रविशंकर का मन ऐसा रमा कि उनकी अंगुलियों ने इन्हें जब भी झंकृत किया, समूची दुनिया झूम उठी।
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14-12-2012, 01:59 AM | #6 |
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Re: टूट गए सितार के तार
सितार के निर्जीव तारों से देश-दुनिया के करोड़ों संगीतप्रेमियों के दिलों में सुरीली तान छेड़ने वाले पं. रविशंकर अब मौन हैं और खामोश है वह सितार, जो लगभग 73 वर्षों से संगीत की दुनिया में रवि शंकर का पर्याय बन चुकी थी। संगीत के लिए चर्चित देश-विदेश का शायद ही ऐसा कोई कार्यक्रम स्थल रहा हो, जहां पं. रवि शंकर ने अपने हुनर से संगीत रसिकों को मोहपाश में न बांधा हो! कहा जाता है कि जब वह सितार वादन करते थे, तब चारों दिशाएं उनके संगीत के जादू से बच नहीं पाती थीं। अपनी अंतिम सांस तक संगीत की अथक साधना करते रहे पंडितजी संगीत का स्वर्णिम अध्याय लिखते रहे। आज भले ही पंडितजी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन कठिन मेहनत से जोड़ा गया उनका संगीत का खजाना युगों-युगों तक संगीत के चाहने वालों के दिलों में उनकी यादों को सजल आंखों से सम्मान दिलाएगा। संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान देने के लिए उन्हें वर्ष 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने कई फिल्मों में भी संगीत भी दिया। विश्व संगीत के गॉडफादर कहे जाने वाले पंडितजी ने कई मौलिक राग गढ़े। उनका वादन मौलिकता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था। भारत से कहीं ज्यादा उनकी पहचान पश्चिमी देशों में थी।
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14-12-2012, 02:01 AM | #7 |
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Re: टूट गए सितार के तार
लता-आशा के प्रशंसक
देश-दुनिया को सितार के तारों से झंकृत कर देने वाले पं. रविशंकर के मन में कलाकार होने के नाते हर दूसरे कलाकार के लिए सम्मान था। भले ही पं. रविशंकर ने दुनिया के हर कोने में सितार की धुनें छेड़ी हों, लेकिन उन्हें पार्श्व गायिका लता मंगेशकर और उनकी बहन आशा भोसले का गायन बेहद पसंद था। वह दोनों के बहुत बडे प्रशंसक रहे। वे अक्सर कहते थे कि मुझे दोनों बहनों द्वारा गाई गई ठुमरी और गजल बहुत अच्छी लगती हैं। इन दोनों के शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक नहीं, बल्कि कई गीत मुझे बेहद पसंद हैं।
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14-12-2012, 02:06 AM | #8 |
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Re: टूट गए सितार के तार
दिया संगीत को नया आयाम
(चित्र में देखिए पंडितजी को हैरीसन दम्पती के साथ) हर भारतीय शास्त्रीय वाद्य यंत्र की तरह सितार को भी शुरुआती दौर में उपेक्षा की नजर देखा जाता था। यह इतना लोकप्रिया नहीं था, जितना कि आज है। वैश्विक स्तर पर सितार की धुनों पर सभी को झूमने पर मजबूर करने वाले पं. रविशंकर की साधना का ही कमाल था कि इस वाद्य यंत्र को वैश्विक पहचान मिली। उन्होंने सितार बजाने की परम्परा को नया आयाम दिया। इससे विदेशियों में भी भारतीय संगीत के प्रति रुचि बढ़ी। इसका लाभ उन्हें मिला और वह आगे बढ़ते गए। पं. रविशंकर ने दिल्ली आकाशवाणी के लिए आर्केस्ट्रा पार्टी बनाई थी। कुछ वर्षों तक इसके जरिए उन्होंने अलग-अलग रागों को बड़े ही अनोखे रूप में लोगों तक पहुंचाया। वह भारत के पहले कलाकार हैं, जिन्हें पश्चिमी फिल्मों में संगीत देने के प्रस्ताव मिले। सितार को इस बुलंदी पर पहुंचाने के लिए पं. रविशंकर ने कड़ा संघर्ष किया है। पश्चिमी देशों में उन्हें जो पहचान मिली, उसमें पश्चिमी संगीतज्ञ जॉर्ज हैरिसन का सहयोग जरूर रहा। असल में वर्ष 1966 में संगीत ग्रुप बीटल्स के सदस्य जॉर्ज हैरिसन पं. रविशंकर के शिष्य बने, उन्होंने कई नए राग बनाए। हैरिसन ने ही उन्हें ‘विश्व संगीत के पितामह’ की उपाधि दी थी। 92 वर्ष की उम्र में 12 दिसम्बर, 2012 की अलसुबह संगीत का यह वैश्विक सितारा अपनी सितार को छोड़कर हमेशा के लिए मौन हो गया।
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14-12-2012, 02:38 AM | #9 |
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Re: टूट गए सितार के तार
(चित्र में देखिए पत्नी सुकन्या के साथ नई दिल्ली के एक संगीत कार्यक्रम में पंडितजी) पं. रविशंकर का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बंगाली ब्राह्मण बैरिस्टर श्याम शंकर के घर 7 अप्रेल, 1920 को हुआ था। उनका परिवार मूलत: पूर्वी बंगाल के जैस्सोर जिले के नरैल गांव का रहने वाला था। पं. रविशंकर बचपन से ही संगीत के माहौल में पले-बढ़े और विभिन्न तरह के वाद्य यंत्रों के प्रति उनकी रुचि रही। उन्होंने अपने जीवन के पहले 10 वर्ष बेहद गरीबी में बिताए। उनका पालन-पोषण उनकी मां ने किया, क्योंकि जब वह महज आठ वर्ष के थे, तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पं. रविशंकर बड़े भाई पं. उदय शंकर के बैले ट्रुप में थे। पं. रवि शंकर जब केवल 10 वर्ष के थे, तभी संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ। भाइयों के जरिए ही उनकी रुचि संगीत में हुई। बकौल पंडितजी, पहले तो मैंने नृत्य सीखना शुरू किया, पर अधिक दिनों तक इस क्षेत्र में नहीं रहा। सितार के जादू से बंधे पं. रविशंकर उस्ताद अलाउद्दीन खान से दीक्षा लेने मैहर पहुंचे और खुद को उनकी सेवा में समर्पित कर दिया। संगीत के अलावा पं. रवि शंकर पारिवारिक जीवन को भी लेकर काफी चर्चा में रहे। उन्होंने दो शादियां कीं। पहली शादी गुरु अलाउद्दीन खान की बेटी अन्नपूर्णा से हुई, लेकिन बाद में उनका तलाक हो गया। उनकी दूसरी शादी सुकन्या से हुई, जिससे उनकी एक संतान अनुष्का शंकर हैं। अनुष्का भी मशहूर संगीतकार और सितार वादक हैं। इसके अलावा उनका सम्बंध एक अमेरिकी महिला सू जोंस से भी रहा, जिनसे उनकी एक बेटी नोरा जोंस हुई। हालांकि सू से उन्होंने शादी नहीं की।
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14-12-2012, 02:43 AM | #10 |
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Re: टूट गए सितार के तार
जीवन से जुड़े रोचक पहलू
पं. रविशंकर ने भारत में पहला कार्यक्रम साल 1939 में दिया था। उस मसय उनकी उम्र महज 10 साल थी। देश के बाहर उन्होंने पहला कार्यक्रम साल 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ में दिया। वहीं, यूरोप में पहला कार्यक्रम 1956 में दिया था। वह साल 1949 से लेकर साल 1956 तक आल इंडिया रेडियो के संगीत निदेशक रहे। पं. रविशंकर ने उस्ताद अलाउद्दीन खान से सितारवादन सीखा, जिन्हें वह प्यार से ‘बाबा’ कहा करते थे। कवि-गीतकार अल्लामा मोहम्मद इकबाल के लिखे गीत ‘सारे जहां से अच्छा...’ की धुन पं. रविशंकर ने ही बनाई थी। साल 1986 से लेकर 1992 तक वे राज्य सभा के सदस्य रहे। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी पं. रविशंकर का नाम नॉमिनेट किया जा चुका है। पं. रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को ‘नट भैरव’, ‘अहीर ललित’, ‘यमन मांझ’ और ‘पूर्वी कल्याण’ सहित तकरीबन 30 नए रागों की सौगात दी। 1950-60 के दशक के मध्य वर्षों में पं. रविशंकर भारतीय संगीत के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय दूत बने। उन्होंने अपना पहला राग वर्ष 1945 में तैयार किया और अपने सफल रिकॉर्डिंग कॅरियर की शुरु आत की। उन्होंने कर्नाटक संगीत का उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत में मिश्रण किया। खास तौर पर उसकी ताल की गणितीय संरचना को शास्त्रीय संगीत में शामिल किया। उन्होंने प्रस्तुतियों में संगत करने वाले तबला वादकों को भी प्रमुख कलाकार के तौर पर तरजीह दिलाई। पं. रविशंकर को सबसे अधिक प्रसिद्धि 1960 के दशक में उस समय मिली, जब उन्हें हिप्पियों ने स्वीकारा। अपने मित्र जॉर्ज हैरिसन के साथ मोंटेरेरी और वुडस्टॉक महोत्सवों में हिस्सा लेने और बांग्लादेश में आयोजित होने वाले कंसर्ट्स में भाग लेने के बाद वे पश्चिमी देशों के घर-घर में पहचाने जाने लगे। उन्होंने तीन किताबें भी लिखीं, जिनमें से दो अंग्रेजी ‘माई म्यूजिक’ और ‘माई लाइफ एंड राग माला’ थी। इसके अलावा एक किताब ‘राग अनुराग’ बांग्ला भाषा में लिखी। संगीत की नई खेप तैयार करने के लिए उन्होंने नई दिल्ली में ‘रविशंकर म्यूजिक सेंटर’ की स्थापना की थी।
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