03-08-2012, 04:00 PM | #1 |
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राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
03-08-2012, 04:20 PM | #2 |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
एक बयान पर करें नज़र -
टीम अन्ना हमेशा से सत्ता चाहती थी : कांग्रेस टीम अन्ना की राजनीतिक विकल्प तलाश करने की नीयत जाहिर करने के बाद उसके खिलाफ अपने हमले जारी रखते हुए कांग्रेस ने आज कहा कि टीम अन्ना के सदस्य हमेशा से सत्ता चाहते थे। कांग्रेस नेता और केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री जी. के. वासन ने चेन्नई में संवाददाताओं से कहा, ‘‘कांग्रेस पिछले एक वर्ष से लगातार कह रही है कि अन्ना और उनकी टीम की दिलचस्पी राजनीति में है और वह हमेशा सत्ता में आना चाहते थे।’’
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03-08-2012, 04:26 PM | #3 |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
पहले तो अलैक जी को यह एक ज्वलंत और काफी महत्वपूर्ण मुद्दा उठाने के लिए धन्यवाद.
कांग्रेस के इस रवैये के पीछे उनका अहंकार दीखता है, उन्हें लगता है हर बार गाँधी परिवार नामक घोड़े पर सवार होकर, भारत के मुस्लिमो को हांक कर सत्ता के शिखर पर वो लोग बार बार विराजमान हो जायेंगे. लेकिन उन्हें नहीं पता की वक़्त बदल चूका है. अब लोग उनके बहकावे में नहीं आने वाले. जहाँ तक अन्ना की टीम का सवाल है मेरा मानना है की उन्हें पहले अपना एक agenda बनाना होगा. हम लोगो को उनकी भ्रस्टाचार के मुद्दे पर राय पता है लेकिन उनकी कश्मीर पर क्या राय है, पाकिस्तान के बारे में उनका क्या ख्याल है, विदेश नीति कैसी होनी चाहिए, अर्थ नीति कैसी होनी चाहिए, इन सवालों पर टीम अन्ना को अपना नजरिया जनता को बताना होगा. जहाँ तक मैं देख पा रहा हूँ. उनको हिसार policy को आगे बढ़ाना चाहिए. चुन चुन कर इमानदार उम्मीदवारो का समर्थन करना चाहिए, चाहे वो किसी भी पार्टी के हो. वैसे टीम अन्ना का रुझान सेण्टर राईट में ज्यादा है. और अंत में यही कहूँगा, "कांग्रेस सत्ता में वापिस" २०१४ में इससे बुरी खबर और कोई नहीं हो सकती.
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03-08-2012, 04:34 PM | #4 | |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
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अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब संधर्ष शुरू किया तो सारे भ्रष्टाचारी नेता, चाहे वो किसी भी दल के हो, पूरा दाना पानी लेकर टीम अन्ना के खिलाफ मुहिम मे जुट गए थे। सबका इतिहास ढूंढ रहे थे, अन्ना को सेना से भगोड़ा बताने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुये थे, पाँच साल बाद अरविंद केजरीवाल के पास लाखो रुपये चुकाने के लिए विभागीय नोटिश आता है। वही सभी भ्रष्टाचारी नेता आराम से स्विस बैंक मे अपना बैंक बैलेन्स बढ़ाने मे लगे हुये रहते है। एक माननीय मंत्री जी संसद भवन खुलेआम अन्ना हज़ारे का माखौल उड़ाते है, और बाकी मंत्री बेशर्मी से उसपर ठहाका लगाते है। कोई उनको चुनाव लड़कर जीतने के लिए ललकारता है, कोई उनके दौड़ने पर आश्चर्य करता है.... हद हो गई भाई। मगर किसी ने इसके पीछे छिपी मंशा पर कुछ नहीं बोला। बोलते भी कैसे..... भला कोई अपने पैर मे कुल्हाड़ी कैसे मार सकता है? कैसे कह सकता है की देश मे भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिये। कैसे कहे की मुझे जेल भेज दो। बेहतर है की अन्ना को ही जेल भेज दो। कैसे कहे की हम दोषी है, इसीलिए अन्ना को दोषी कह दो। कैसे कहे की भ्रष्टाचार खत्म करो, इसीलिए अन्ना को खत्म कर दो। |
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03-08-2012, 04:35 PM | #5 |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
जब से ये खबर सुनी है मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा है ! लेकिन अब सोचने वाली ये बात है की अन्ना जी राजनीति के दलदल मेँ उतरने के बाद कब तक खुद को कीचड़ से बचाकर रख सकेँगे ?
क्या गारंटी होगी की उनकी पार्टी की सभी सदस्य पूरी ईमानदारी के साथ देश की सेवा मे लगे रहेँगे ?
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03-08-2012, 05:11 PM | #6 | |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
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03-08-2012, 05:14 PM | #7 | |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
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03-08-2012, 05:19 PM | #8 | |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
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10-12-2012, 09:28 PM | #9 |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
अन्ना हजारे ने तो अपनी राजनैतिक बनाने का विचार त्याग दिया है लेकिन उनके साथी केजरीवाल ने तो अपनी नई पार्टी लांच कर ही दी ,देखना ये है की केजरीवाल और नकी पार्टी क्या गुल खिलाती है ,सिर्फ अन्य पार्टी के नेताओं का भण्डाफोड़ ही करती रहेगी या कुछ और करेगी !
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10-12-2012, 10:40 PM | #10 |
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Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका
मित्रो, मैंने जब यह सूत्र बनाया था, तब स्थितियां अलग थीं, लेकिन जैसा कि आप सभी बुद्धिजीवी बन्धु जानते हैं, अब स्थितियां एकदम जुदा हैं यानी अरविन्द केजरीवाल अपनी टीम को लेकर अन्ना हजारे से अलग हो गए हैं और उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी घोषित कर दी है। दूसरी ओर अन्ना हजारे ने उन्हें एक बार समर्थन देने के बाद स्पष्ट रूप से सत्ता लोलुप बताते हुए नए सिरे से विचार करने की बात की है। मेरा मानना है कि इन नई परिस्थितियों में किसका क्या कदम क्या होगा और उसके परिणाम क्या होंगे, इस पर हमें एक बार पुनर्विचार करना होगा। ... तो इस विषय में क्या ख़याल है आपका? इस पर अपने विचार अवश्य प्रकट करें। धन्यवाद।
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