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Old 03-12-2010, 12:41 PM   #21
amit_tiwari
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Originally Posted by Kumar Anil View Post

तिवारी जी शुक्रिया मेरी पीड़ा मेँ सहभागिता के लिए ।मित्र आपका कथन शत प्रतिशत सत्य है कि सोद्देश्यपूर्ण सूत्र मेँ अर्थपूर्ण प्रविष्टि ही की जानी चाहिए । निशाँत जी के सूत्र चरित्रहीन के मामिँक विश्लेषण मे डूबने के लिए उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मैँ प्रायः हर दूसरे तीसरे उसे पढ़ता अवश्य हूँ मगर आज वो अनर्गल प्रलाप भरे सूत्रोँ के धक्के खाकर अन्तिम पृष्ठ पर अपनी नियति पर आँसू बहा रहा है । आप जैसे विवेकशील मेरी मनःस्थिति का स्वतः अनुमान कर सकते हैँ । कतिपय सदस्योँ को अपनी पोस्ट मेँ अप्रासंगिक रूप से ही ही हा हा मात्र लिखकर प्रविष्टि बढ़ाते हुए पाया , निश्चय ही कालान्तर मेँ इसके दुष्परिणाम हमारे सम्मुख होँगे ।प्रेम के सम्बन्ध मेँ सूत्रधार उसे सेक्स बता रहा है । प्रेम की व्यापकता को कितने संकीर्ण अर्थ मेँ प्रस्तुत किया जा रहा है बल्कि मैँ तो देख रहा हूँ कि इन मायावी शब्दोँ के माध्यम से फोरम मेँ विकार पैदा करने का एक सतत् कार्यक्रम जारी हो गया है ।
[/quote]

क्या कुछ होना बचा है बन्धु?

हर इमेल बॉक्स में ५० प्रतिदिन की संख्या में आने वाली स्पैम पर सूत्र ! भीख मांगने की कला (???) पर सूत्र ! व्यक्तिगत संदेशों वाले विषयों पर सूत्र और उन पर बधाइयों का ऐसा तांता जैसे तीन पुश्तों से बाँझ के घर जुड़वां बच्चे पैदा हो गए |

अब भी ना चेते तो ...

मैं पर्वतारोही हूँ।
शिखर अभी दूर है।
और मेरी साँस फूलनें लगी है।

[/QUOTE]

Get a life.
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Old 03-12-2010, 01:37 PM   #22
YUVRAJ
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Default Re: दिल की बात

अमित भाई जी,
पतंगे की जिंदगी की चिंता न करें और दिल से सहयोगपूर्ण भाव से सहयोग करें। आपसे काफी उम्मीदें अभी भी जिंदा हैं। पैकिंग को तो एक न एक दिन डस्टबीन का रुख करना ही होगा। अन्दर का समान ही काम आना है। जब तक लोगों का दिल करे पैकिंग को सजाने दें, डिस्प्ले में।
अब जो संस्कार मिले हैं उन्हें लोग छोड़ने से रहे। आपसे क्या छिपा है और कनवा राजा वाली कहावत भी हमें तो आप जैसे को बतानी नहीं पड़ेगी।
शायद आप जैसा न लिख सकूँगा इस लिये वक्तव्य को दिल पर न लें।
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Old 03-12-2010, 01:42 PM   #23
Kumar Anil
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Default Re: दिल की बात

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Originally Posted by bhaaiijee View Post
मित्र अनिल,
विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति पढ़ कर हर्ष हुआ /
मैं आपके अवसाद को तनिक क्षीण करने की चेष्टा कर रहा हूँ /
मित्रवर! इस फोरम के सिद्धांत बहुत कुछ भारतीय परिवेश और भारतीय सोच पर टिके हुए हैं / अपने इस फोरम में हम हिन्दी (देवनागरी लिपि) में लिखना पढ़ना चाहते हैं और सचमुच हम ऐसा ही कर रहे हैं / कुछ नवागत सदस्य , मोबाइल (ऐसे जिनमे हिंदी से लिख पाना संभव नहीं है) से फोरम का भ्रमण करने वाले सदस्य, अत्यंत धीमी इन्टरनेट गति के माध्यम से फोरम में घूमने वाले सदस्य और हाँ ! कुछ तकनीकी परेशानियों से पीड़ित सदस्य ही रोमन में या फिर अंगरेजी में लिखते हैं / हमें ऐसे सदस्यों की मजबूरी समझनी ही पड़ती है /अब देखिये .. सभी सदस्यों की सोच एक जैसी तो नहीं हो सकती है , न / अपने इस फोरम में दोनों ही प्रकार की भाषाओं और विधाओं (अंगरेजी एवं हिन्दी-देवनागरी और रोमन) में लिखने की स्वतन्त्रता है किन्तु हिन्दी भाषा के प्रेमी सदस्य भला ऐसे रोमन लिखने वाले सदस्यों से कैसे विचलित हो सकते हैं ? हमें तो सभी को साथ लेकर चलना है !! कोई कंधा छोटा है कोई बड़ा तो क्या साथ छोड़ दें !! नहीं मित्र नहीं !! ऐसा तो हमारा स्वभाव नहीं है / जब वे रोमन लिखना नहीं छोड़ सकते तो हम हिंदी लिखना कैसे छोड़ सकते हैं /
सभी नियामक और प्रभारी अपने अपने कार्य में परिपक्व हैं निरंतर क्रियाशील हैं / कुछ नए नए विचारों - विषयों और फोरम के उत्कर्ष के लिए हम सभी निरंतर चर्चा कर रहे हैं / तमगों की रेवड़ियां सदस्यों को फोरम में(नियंत्रित किन्तु) स्वचालित पद्धति के अनुसार प्राप्त हो रही हैं /
साफ़ सुथरे और सार गर्भित सूत्रों और प्रविष्टियों की हमें भी आवश्यकता है और हम निरंतर स्वयं को ऐसे ही वातावरण में पाते हैं किन्तु यदि बगीचे में खिले हुए गुलाबों के मध्य कोई एक दो खरपतवार के पौधे खड़े हों तो उनसे हमें घृणा नहीं करनी चाहिए बल्कि गुलाबों पर प्यार बरसाना चाहिए / गुलाब दीर्घजीवी हैं किन्तु खरपतवार...? अल्पजीवी !
मुझे आपसे कुछ बहुउद्देशीय सूत्रों की प्रतीक्षा है /
धन्यवाद /
आदरणीय जय जी उर्फ भाईजी , सादर प्रणाम
अगर हमारे वार्तालाप हिन्दी मेँ हो सकते हैँ तो हम उसे देवनागरी मेँ लिपिबद्ध करने मेँ क्योँ असहज महसूस करते हैँ । जहाँ तक मोबाईल से भ्रमण का प्रश्न है मैँ स्वयँ उसी का सफलतापूर्वक प्रयोग करता हूँ । हाँ उर्दू लफ्जोँ मेँ नुक्ते का टकंण करने मेँ असमर्थ रहा । दो भिन्न सदस्योँ को एक साथ उद्धृत कर उत्तर देने मेँ भी तकनीकी अज्ञानतावश असमर्थ रहा किन्तु यह कुछ विवशताओँ के बावजूद बहुत मुफीद है । जहाँ तक रोमन का प्रश्न है कम से कम आपकी बात , विचार , भाव स्पष्ट तो होने चाहिए । आपको अशुद्ध वर्तनी , अशुद्ध शब्द और वाक्य विन्यास से युक्त प्रविष्टियोँ के अधिसँख्य दृष्टान्त मिल जायेँगे जो पढ़ते वक्त कचोटते हैँ । यदि ससमय उनकी एडिटिंग हो जाये तो कितना अच्छा रहे और सदस्य विशेष भी अपनी गलती का अहसास कर अगली बार उस दोष से मुक्त होने का सम्भव प्रयास करेगा । आप गुलाबोँ के मध्य खरपतवार दिखा रहे हैँ परन्तु मुझे तो खरपतवारोँ की नर्सरी मेँ कुछ असहज , किँकर्तव्यविमूढ़ , व्याकुल गुलाब सूखे की मार से बचने के लिए बस बाट जोहते दिखायी दे रहे हैं । वे उन क्षणोँ को कोस रहेँ हैँ जब उन्होने अपने हिस्से का खाद और पानी उन नामुरादोँ को पिलाकर अपने वजूद के लिए ही चुनौती तैयार कर ली । आप मेरे अग्रज हैँ और अनुकरणीय भी । मैँ आपके लेखन का तो प्रशंसक था ही अब यह भी देख रहा हूँ कि शाँतचित्त हो चीजोँ को सुलझाने मेँ भी सिद्धहस्त हैँ । आपके पदेन दायित्वोँ की विवशता का भी भान है मुझे । मुझे आशा ही नहीँ वरन् पूर्ण विश्वास है कि आप जैसे कुशल प्रशासक शीघ्र ही किसी जादुई कीटनाशक से इन खरपतवारोँ को समूल नष्ट कर इस उपवन को महका देँगे ।
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Old 03-12-2010, 01:44 PM   #24
YUVRAJ
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Thumbs up Re: दिल की बात

वाह क्या खूब…
आपकी रचना बहुत ही सुन्दर है तेजी…

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Originally Posted by teji View Post

हम जीवन के महाकाव्य हैं

केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं।


कंकड़-पत्थर की धरती है
अपने तो पाँवों के नीचे


हम कब कहते बन्धु! बिछाओ
स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।


तुमको रास नहीं आ पायी
क्यों अजातशत्रुता हमारी


छिप-छिपकर जो करते रहते
शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।


कहते-कहते हमें मसीहा
तुम लटका देते सलीब पर


हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।


तुम सामुहिक बहिष्कार की
मित्र! भले योजना बनाओ


जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोर हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।
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Old 03-12-2010, 01:52 PM   #25
YUVRAJ
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Thumbs up Re: दिल की बात

........
बहुत ही सही और उचित सलाह पर सभी सदस्यों पर यह दबाव न बनाया जाये, साथ ही साथ साहित्यिक और देवनागरी से जरूरी है कि एक भयमुक्त समाज का निर्माण किया जाये। जो की अभी शैशव काल में है मित्र अनिल जी।
हार्दिक धन्यवाद।
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Originally Posted by Kumar Anil View Post
आदरणीय जय जी उर्फ भाईजी , सादर प्रणाम
अगर हमारे वार्तालाप हिन्दी मेँ हो सकते हैँ तो हम उसे देवनागरी मेँ लिपिबद्ध करने मेँ क्योँ असहज महसूस करते हैँ । जहाँ तक मोबाईल से भ्रमण का प्रश्न है मैँ स्वयँ उसी का सफलतापूर्वक प्रयोग करता हूँ । हाँ उर्दू लफ्जोँ मेँ नुक्ते का टकंण करने मेँ असमर्थ रहा । दो भिन्न सदस्योँ को एक साथ उद्धृत कर उत्तर देने मेँ भी तकनीकी अज्ञानतावश असमर्थ रहा किन्तु यह कुछ विवशताओँ के बावजूद बहुत मुफीद है । जहाँ तक रोमन का प्रश्न है कम से कम आपकी बात , विचार , भाव स्पष्ट तो होने चाहिए । आपको अशुद्ध वर्तनी , अशुद्ध शब्द और वाक्य विन्यास से युक्त प्रविष्टियोँ के अधिसँख्य दृष्टान्त मिल जायेँगे जो पढ़ते वक्त कचोटते हैँ । यदि ससमय उनकी एडिटिंग हो जाये तो कितना अच्छा रहे और सदस्य विशेष भी अपनी गलती का अहसास कर अगली बार उस दोष से मुक्त होने का सम्भव प्रयास करेगा । आप गुलाबोँ के मध्य खरपतवार दिखा रहे हैँ परन्तु मुझे तो खरपतवारोँ की नर्सरी मेँ कुछ असहज , किँकर्तव्यविमूढ़ , व्याकुल गुलाब सूखे की मार से बचने के लिए बस बाट जोहते दिखायी दे रहे हैं । वे उन क्षणोँ को कोस रहेँ हैँ जब उन्होने अपने हिस्से का खाद और पानी उन नामुरादोँ को पिलाकर अपने वजूद के लिए ही चुनौती तैयार कर ली । आप मेरे अग्रज हैँ और अनुकरणीय भी । मैँ आपके लेखन का तो प्रशंसक था ही अब यह भी देख रहा हूँ कि शाँतचित्त हो चीजोँ को सुलझाने मेँ भी सिद्धहस्त हैँ । आपके पदेन दायित्वोँ की विवशता का भी भान है मुझे । मुझे आशा ही नहीँ वरन् पूर्ण विश्वास है कि आप जैसे कुशल प्रशासक शीघ्र ही किसी जादुई कीटनाशक से इन खरपतवारोँ को समूल नष्ट कर इस उपवन को महका देँगे ।

Last edited by YUVRAJ; 03-12-2010 at 01:56 PM. Reason: edit
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Old 03-12-2010, 01:58 PM   #26
Kumar Anil
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और उन पर बधाइयों का ऐसा तांता जैसे तीन पुश्तों से बाँझ के घर जुड़वां बच्चे पैदा हो गए |

क्या उपमा दी है मान गये गुरु आपके पाण्डित्य को ।मेरा सलाम कुबूल करेँ ।
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Old 03-12-2010, 09:35 PM   #27
amit_tiwari
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Originally Posted by kumar anil View Post
और उन पर बधाइयों का ऐसा तांता जैसे तीन पुश्तों से बाँझ के घर जुड़वां बच्चे पैदा हो गए |

क्या उपमा दी है मान गये गुरु आपके पाण्डित्य को ।मेरा सलाम कुबूल करेँ ।
उपमा क्या भाई क्रोध है ! आक्रोश है और फिर भी शब्दों को दबा रहे हैं क्यूंकि अरविन्द भाई का नाम है |

सब जान समझ गए हम, अब क्या कहें विधाता !
कल जो लिखते थे गंध, आज बन रहे हैं ज्ञाता !!!

धर्म, लाज, सम्बन्ध और कुल के वो हर्ता
मूछें मोड़, सीना तान बन रहे दुःख हर्ता !!!

प्रेम, भाव, संस्कार का जो एक लेश भी ये पाते!
बिना किसी के कहे शर्म से खुद ही मर जाते !
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Old 03-12-2010, 10:20 PM   #28
jai_bhardwaj
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हम जमीं के चाँद तारों में रहे मसरूफ यूं,
आसमां के चाँद तारे, बेरहम हँसते रहे !!
हमने जैसे ही कलम की नोक कागज़ पे रखी
हम इधर रोते रहे कागज़ कलम हँसते रहे !!
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
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Old 03-12-2010, 10:54 PM   #29
Sikandar_Khan
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खुद को श्रेष्ठ बताकर दूसरे को कमजोर समझना ये कहां कि बुद्धिमानता है ।
फोरम के हर एक सदस्य का फोरम के लिए महत्वपूर्ण है बिना सभी के सहयोग से कोई भी अकेला कुछ नही कर सकता है
एक या दो गुलाब से माला नही बनाई जा सकती है ।
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 03-12-2010, 11:42 PM   #30
jai_bhardwaj
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Originally Posted by kumar anil View Post
मुझे आशा ही नहीँ वरन् पूर्ण विश्वास है कि कुशल प्रशासक शीघ्र ही किसी जादुई कीटनाशक से इन खरपतवारोँ को समूल नष्ट कर इस उपवन को महका देँगे ।


अनिल भाई, राम राम /
आज ताजमहल देखने में अद्वितीय अवश्य प्रतीत होता है किन्तु क्या किसी ने ऐसे भव्य भवनों की नींव में लगे टेढ़े मेढ़े और बदरंग पत्थरों को देखा और सराहा है ?
हम जब भी किसी मंदिर के शीर्ष में लगे त्रिशूल की चमक से चमत्कृत हो रहे हों तो हमें उसी मंदिर की सीढ़ियों के विषय में भी सोचना होगा !
आप और अमित भाई ने सर्वथा उचित ही कहा है कि अभी इस पटल का वह स्वरुप नहीं आया है जिसकी कल्पना हम सभी ने की है ..... और सच कहूं तो उस कल्पना का पांच प्रतिशत अंश भी अभी नहीं दिख रहा है यहाँ ... / हम फिर से यही कहेंगे कि हम सभी (प्रबंधन व सदस्य) एक ही प्रयास कर रहे हैं कि हम अपनी कल्पना को साकार कर सकें किन्तु हम यह भी जानते हैं कि यह कार्य चुटकियों का नहीं है क्योंकि '' रोम एक दिन में नहीं निर्मित हुआ था/' हमें आप सभी का सहयोग एवं अथक धैर्य वांछित है /
मित्र, नया नया नलकूप लगाने पर आरम्भ में कई दिनों तक बालू मिश्रित पानी आता है किन्तु कुछ दिनों के उपरान्त बालू का अंश मात्र नहीं रह जाता है / कुछ दिनों के बाद तो हम बालूमिश्रित जल प्राप्ति के दिनों को भूल भी जाते हैं / हम निरंतर स्वच्छता की तरफ अग्रसर हैं / पूर्ण स्वच्छ और कल्पना के मूर्त रूप में समय कितना लगेगा, यह भविष्य की कोख में है / धन्यवाद /
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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