15-09-2016, 10:39 AM | #1 |
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आकाश महेशपुरी के दोहे
... 1- कलयुग के इस दौर मेँ, बस हैँ दो ही जात। एक अमीरी का दिवस, अरु कंगाली रात॥ ... 2- कौन यहाँ है जानता, कब आ जाए अन्त। चलना अच्छी राह पर, कर देँ शुरू तुरन्त॥ ... 3- मौसम मेँ है अब कहाँ, पहले जैसी बात। जाड़े मेँ जाड़ा नहीँ, गलत समय बरसात॥ ... 4- यारी राजा रंक की, या दोनोँ की प्रीत। अक्सर क्योँ लगती मुझे, ये बालू की भीत॥ ... 5- ध्यान रखे जो वक्त का, रहता है खुशहाल। जो इससे है चूकता, दुख भोगे तत्काल।। ... 6- कुछ कहने से पूर्व ही, कर लेँ सोच विचार। ऐसा ना हो बाद मेँ, बढ़ जाए तकरार।। ... 7- हिन्दू-मुस्लिम से बड़ा, अपना भारत देश। ये लड़ते तो देश के, दिल को लगती ठेस।। ... 8- यह भी तो अच्छा नहीँ, भरना केवल पेट। कर लेते हैँ जानवर, भी भोजन से भेँट॥ .... 9- कैसी उसकी सोच है, कैसा है इंसान। छोटी-मोटी बात से, हो जाती पहचान॥ ... 10- मौसम तो बरसात का, किन्तु बरसते नैन। सूखी सूखी ये धरा, पंक्षी भी बेचैन।। ... 11- थोड़ा कम भोजन करेँ, काम करेँ भरपूर। निर्धनता इससे डरे, रोग रहेँ सब दूर।। ... 12- रूप सलोना हो भले,मन मेँ बैठा मैल। ऐसे मानव से भले, लगते मुझको बैल।। ... 13- यदि बूढ़े माँ-बाप को, पुत्र करे लाचार। उससे पापी कौन है, तुम ही बोलो यार।। ... 14- आग लगे जब गाँव मेँ, संकट हो घनघोर। कितनी छोटी सोच है, खुश हो जाते चोर।। ... 15- आँखोँ मेँ बादल नहीँ, दिल के सूखे खेत। हरियाली गुम हो चली, दिखती केवल रेत॥ ... 16- खाता है जो धन यहाँ, बिना किये कुछ काम। माफ उसे करते नहीँ, अल्ला, साईँ, राम।। ... 17- ये हैँ शत्रु समाज के, ताड़ी और शराब। हो जाते विद्वान भी, पीकर बहुत खराब।। ... 18- ना कोई छोटा यहाँ, बड़ा न कोई आज। सब हारे इस वक्त से, जग मेँ इसका राज।। ... 19- प्रेम भाव घर मेँ अगर, तो दौलत है फूल। वरना ये लगता जहर, चुभता बन के शूल।। ... 20- वह धन धन होता नहीँ, जो रखता है चोर। धन चोरी का आग है, बचे न कोई कोर।। ... 21- चाहे धूप कठोर हो, या जलता हो पाँव। काम धाम करते सदा, वे ही पाते छाँव।। ... 22- मीठा भी फीँका लगे, इतना मीठा बोल। पर इस चक्कर मेँ कहीँ, झूठ न देना घोल।। ... 23- आ जाओ हे कृष्ण तुम, लिए विष्णु का अंश। एक नहीँ अब तो यहाँ, कदम-कदम पर कंस॥ ... 24- कंसो का ही राज है, रावण हैँ चहुँ ओर। भला आदमी मौन है, जैसे कोई चोर।। ... 25- होता यदि दूजा हुनर, होते हम भी खास। भूखे कबसे फिर रहे, ले कविता आकाश।। ... 26- कविता का आकाश ले, हम तो खाली पेट। लौटे हैँ बाजार से, लेकर केवल रेट।। ... 27- मुझ पर मातु जमीन का, इतना है उपकार। इसके खातिर छोड़ दूँ, जी चाहे घर-बार।। ... 28- मातु-पिता घर-बार से, धरती बहुत महान। इसके आगे मैँ तुझे, भूल गया भगवान।। ... 29- चालू हो जाता पतन, सुनेँ लगाकर ध्यान। आ जाता इंसान मेँ, जिस दिन से अभिमान।। ... 30- बादल के दल आ गये, ले दलदल का रूप। रूप दलन का देख कर, बिलख रही है धूप।। ... 31- वे जग मेँ हैँ मर चुके, सत्य न जिनके संग। बिन डोरी कबतक उड़े, जैसे कटी पतंग।। ... 32- बोली से ही सुख मिले, बोली से संताप। बोली से मालूम हो, मन के कद की नाप।। ... 33- संकट हो भारी बहुत, अंधेरा घनघोर। उसमेँ भी कुछ रास्ते, जाते मंजिल ओर।। ... 34- दारू पीने के लिए, जो भी बेचे खेत। बन जाता है एक दिन, वह मुट्ठी की रेत।। ... 35- धरती की चन्दा तलक, जाती है कब गंध। इसीलिए करिए सदा, समता मेँ सम्बन्ध।। ... 36- आलम ये बरसात का, देख रहे हैँ नैन। धनी देखकर मस्त हैँ, मुफलिस हैँ बेचैन।। ... 37- पशुओँ को बन्धक बना, हम लेते आनन्द। आजादी खुद चाहते, कितने हैँ मतिमन्द।। ... 38- कल की बातेँ याद रख, पर ये रखना याद। आगे जो ना सोचते, हो जाते बरबाद।। ... 39- भारत देश महान की, यह भी है पहचान। घर आए इंसान को, कहते हैँ भगवान।। ... 40- अच्छाई की राह पर, चलते रहिए आप। दुःख चाहे जो भी मिले, या कोई संताप।। ... 41- जिसके डर से सौ कदम, रहती चिन्ता दूर। कहते उसको कर्म हैँ, दुख जिससे हो चूर।। ... 42- पूजा करने से नहीँ, या लेने से नाम। आगे बढ़ते हैँ सभी, बस करने से काम।। ... 43- अच्छी बातेँ सोचिए, अच्छी कहिए बात। अच्छाई अच्छी लगे, दिन हो चाहे रात।। ... 44- जाति धर्म के नाम पर, लड़ते जो दिन रात। भारत माँ के लाल वे, करते माँ से घात।। ... 45- कथनी करनी एक हो, और इरादा नेक। बैर भाव जाता रहे, मिलते मित्र अनेक।। ... 46- रोगी सब संसार है, और पेट है रोग। रोटी एक इलाज है, दर-दर भटकेँ लोग।। ... 47- इस लोभी संसार मेँ, जीना है दुश्वार। यारी भी झूठी लगे, झूठा लगता प्यार।। ... 48- कहते हैँ वैभव किसे, जाने कहाँ किसान। फुरसत कब देते उसे, कष्टोँ के फरमान।। ... 49- धीरे धीरे ही सही, करते कोशिश रोज। वे ही भर पाते यहाँ, जीवन मेँ कुछ ओज।। ... 50- एक सफलता है यही, चैन अगर हो पास। यह पाने के वास्ते, कर आलस का नाश।। ... 51- धन असली है खो रहा, यह पूरा संसार। नाम कहूँ तो पेड़ है, जो धरती का सार।। ... 52- कैसे हो सकता भला, अमर किसी का नाम। अमर नहीँ जब ये धरा, नश्वर सारे धाम।। ... 53- असली धन है गाँव मेँ, हरियाली है नाम। याद करूँ जब शहर को, दिखलाई दे जाम।। ... 54- अगर किसी भी भष्ट को, वोट दे रहे आप। तो समझेँ हैँ दे रहे, निज बच्चोँ को श्राप।। ... 55- जीवन है जो देश का, भूखों देता जान। देता सबको रोटियां, कहते उसे किसान।। ... 56- सोना ही महँगा नहीं, महँगे आलू प्याज। पर सबसे महँगा हुआ, भाई-चारा आज।। ... 57- कानों पर होता नहीं, तनिक मुझे विश्वास। गाली देते देश को, इसके ही कुछ खास।। ... 58- अपनी ही वह सम्पदा, कर देते हैं नष्ट। और माँगते भीख तो, सुनकर होता कष्ट।। ... 59- हम सबके ही वास्ते, सैनिक देते जान। जाति-धर्म के नाम पर, क्यों लड़ते नादान।। ... 60- एक धर्म होता अगर, होती दुनिया एक। बिना किसी मतभेद क्या, होते युद्ध अनेक।। दोहे- आकाश महेशपुरी |
15-09-2016, 05:58 PM | #2 | |
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Re: आकाश महेशपुरी के दोहे
Quote:
हम सबके ही वास्ते, सैनिक देते जान। जाति-धर्म के नाम पर, क्यों लड़ते नादान।। सभी दोहे सटीक और अर्थपूर्ण हैं .. बधाइयाँ |
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15-09-2016, 06:25 PM | #3 |
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Re: आकाश महेशपुरी के दोहे
सोना ही महँगा नहीं, महँगे आलू प्याज।
पर सबसे महँगा हुआ, भाई-चारा आज।। उक्त दोहे समेत सभी दोहे बेहतरीन हैं. बहुत सुंदर. धन्यवाद, आकाश जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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