15-09-2016, 05:46 PM | #1 |
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गम और तन्हाई
खुद को डुबो देते हैं नशे में ग़म में और तन्हाई में फितरते सादगी को बदल देते हैं रुसवाइयों से रुसवा करके शोरे दिल को समंदर की लहरों में लपेटे डूबा देते हैं उसे उसी गहराई में बचने को एक मुसीबत से उतरे हैं दूसरी खाई में ताकि ज़ख्म न दिखे ज़माने को जो नासूर बने चुभते हैं नासूर बने हैं ज़ख्म अब जीने की और न ख्वाहिश है निकलती आहें जलते जिगर से, औरों के दर्द को देखा तो हम अपनी आहें भूल गए पानी से शमा जलाते हैं न कि पानी से शमा बुझाते हैं वक़्त की बहती नदी है किनारे ज़िंदगी और मौत हैं ग़म कटे बदली हवाएं और खुशियाँ आ गईं जब सांसे हुई पूरी और मौत ने बाहें फैलाई . |
16-09-2016, 07:17 AM | #2 | |
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Re: गम और तन्हाई
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16-09-2016, 12:46 PM | #3 |
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Re: गम और तन्हाई
[QUOTE=rajnish manga;559291]बहुत खूब. अकेलेपन की अनुभूति हर व्यक्ति के लिये कष्टदायक होती है और टीस दे जाती है. आपने शब्दों के सुंदर प्रयोग से उस अनुभव को प्रभावशाली अंदाज़ में प्रस्तुत किया है. कविता को पढ़ने पर आप की गहरी सोच का सहज अनुमान हो जाता है. धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.[/QUOT
बहुत बहुत धन्यवाद भाई ..... इस रचना पर आपने विषय की गंभीरता को देखते हुए अपने विचार रखे . सच इंसान के लिए अकेलापन एक सजा से कम नहीं पुनः आभारी हूँ प्रसंशात्मक टिपण्णी के लिए भाई |
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