01-12-2012, 06:24 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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लड़की
जहां में सबसे उम्दा फिर भी नेमत सिर्फ़ लड़की है . न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ; सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है . जहाँ पहुँचा दे किस्मत , पर नशा सबमें ही होता है ; शराब आख़िर शराब ही है , दुकां भर छोटी - बड़की है . कुछ इसकी बेबसी वरना ये काटे कान मर्दों के ; बस अपने जिस्म के चुगलीपने से सहमी हड़की है . है गहरी झील सी आँखों में फ़िर भी जादुई पानी ; जो डूबे इसमें जितना , उसमें उतनी प्यास भड़की है . मैं छज्जे से जिसे हूँ ताकता , कुछ तो इशारा दे ; क्या उसके दिल की कुण्डी भी मेरी नज़रों से खड़की है . मुझे तो लगता , वो भी याद करती मुझको रह - रह के ; तभी तो आँख अक्सर मेरी ख़ुब जोरों से फड़की है . रचयिता~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . |
01-12-2012, 06:27 PM | #2 |
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Re: लड़की
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01-12-2012, 07:37 PM | #3 |
Administrator
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Re: लड़की
एक और उम्दा रचना।
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01-12-2012, 10:11 PM | #4 | |
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Re: लड़की
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01-12-2012, 11:04 PM | #5 | |
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Re: लड़की
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कभी मिशरी सी लगती है, कभी कडवी सी लगती है कभी सूखी नदी लगती, या बदली सी बरसती है कवि की कल्पना सी है, सृष्टि की सृष्टि-रचना है मेरी आँखों में रहती है, मुझे आँखों में रखती है। हँसाने पर नहीं हँसती, मगर मुस्कान रहती है रहे गागर में सागर सी, कदाचित ही छलकती है शांत तो धूलि पैरों की, कुपित तो है विषम आँधी कभी लड़ जाए ईश्वर से, कभी अपने से डरती है। असीम स्नेह देती है, मृदुल ममता से भरती है सहमती है, सिसकती है, सरसती है, संभलती है ये माता है, ये बहना है, ये बेटी, पत्नी, साथी 'जय', कभी चुपचाप रहती है, कभी ये खुल के कहती है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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01-12-2012, 11:39 PM | #6 |
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Re: लड़की
[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;188724]
न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ; सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है . डॉ. राकेश श्रीवास्तव, ऐसी सुन्दर रचना के लिये तारीफ़ के जितने शब्द लिखे जाएँ, नाकाफ़ी हैं. रचना की इन पंक्तियों को लिखने के लिये जो दिल चाहिए और जो भावनाओं की शिद्दत चाहिए वही गज़ल के आरम्भ से ले कर अंत तक हर शब्द में झलकती है. एक अति श्रेष्ठ रचना से रु-ब-रू करवाने के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद. |
02-12-2012, 06:42 AM | #7 |
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Re: लड़की
वैसे तो मुझे अधिकतर कवितायें समझ में तो नहीं आती लेकिन फिर भी आपकी कविताओं में काफी नयापन लगता है और वो आकर्षित करती हैं।
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
02-12-2012, 09:49 AM | #8 |
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Re: लड़की
अत्यधिक आभार आपका मित्र श्री Arvind जी .
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20-12-2012, 09:16 PM | #9 | |
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Re: लड़की
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20-12-2012, 09:27 PM | #10 |
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Re: लड़की
सर्वश्री अभिषेक जी , डार्क सेंट अलैक जी , कल्याण दास जी , पोस्ट मैन जी ,रजनीश मंगा जी एवं सिकंदर खान जी ; आप सभी का पढ़ने व प्रतिक्रिया देने हेतु विशेष आभार . साथ ही उन सम्मानित पाठकों का भी हार्दिक आभार , जिन्होंने सूत्र के सन्दर्भ में अपने चिन्ह विशेष नहीं छोड़े हैं .
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