23-04-2011, 12:54 AM | #11 |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
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23-04-2011, 01:27 AM | #12 |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
आप '' न्याय '' शब्द को कैसे परिभाषित करेंगे ..
अर्थात कैसे कहेंगे की न्याय " हुआ " या " हो रहा है ".....ऐसा तभी होगा जब वो दिखेगा तो उसी तरह मानवता को लीजिये ये जब तक प्रदर्शित नहीं होगी आप कैसे मानेंगे की " मानवता '' है मेरे ख्याल से यहाँ जिस प्रदर्शन की बात मैंने कही उसका अर्थ थोड़ा व्यापक था आपने जिस प्रदर्शन का जिक्र किया वो संवेदनारहित होता है जो देर सवेर अपनी पहचान बता ही देता है
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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23-04-2011, 07:23 AM | #13 | |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
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संवेदनाओँ का आधार ही मानवीय है जबकि ख़ुशी और धन का अर्जन स्वयं के लिये है । अब इस थोड़े की व्याख्या जटिल ही नहीँ असम्भव है । इस थोड़े का कोई सार्वभौमिक फ़ार्मूला ईज़ाद हो ही नहीँ सकता । इस थोड़े पर सर्वसम्मति हमारी प्रगति और विकास के लिये बाधक सिद्ध होगी । हम इस थोड़े से के प्लेटफॉर्म पर सन्तुष्ट , तृप्त भाव से खड़े होकर स्थिर , गतिहीन हो जायेँगे । इतिहास उठाकर देख लीजिये , हमारी कुछ ज़्यादा की भूख हमेशा जिंदा रही और वास्तव मेँ यही भूख हमेँ जिँदा रखती है । इस भूख के साथ कदमताल मिलाने वाले अग्रणी होते हैँ , नायक होते हैँ । आंशिक रूप से यूटोपिया की इस अवधारणा के तहत हम सबके भीतर अगर इस थोड़े से संतृप्त होने का बोध जगा तो मानव प्रजाति को विलुप्त होने मेँ समय नहीँ लगेगा । समय के साथ परिभाषायेँ बदलती रहती हैँ और ये थोड़ा कब व्यापक होता जाता है , हमेँ पता भी नहीँ चलता । हाँ , इस बात से इत्तेफाक़ जरूर रखूँगा कि भूख और हवस मेँ फर्क़ अवश्य बनाये रखना है क्योँकि भूख मानवीय है और हवस दानवीय ।
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दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो । |
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23-04-2011, 07:59 AM | #14 |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
आदमी को चाहिये सुविधाये बल्कि अनन्त सुविधाये
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Gaurav kumar Gaurav |
23-04-2011, 10:14 AM | #15 |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता है भोलू
संतोषम परम सुखं
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
23-04-2011, 10:20 AM | #16 | |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
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23-04-2011, 10:39 AM | #17 | |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
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मानवता रहित संवेदना - वैसी संवेदना जो केवल खुद के स्वार्थ के लिए हो ..दुसरे से जिसका कोई सरोकार न हो ..केवल मेरा मेरा और मेरा ....कभी दुसरे के बारे में सोचा ही गया हो / मानवता रहित ख़ुशी - केवल अपनी ख़ुशी को देखना ..मुझे फलां मिल जाए ..मेरा ये काम हो जाए ..मै ऐसा बन जाऊं ...आदि आदि / मानवता रहित धन - वैसा धन जो गलत तरीके से कमाया गया हो ... किसी के हक़ को छिनकर ..किसी गरीब से अवैध तरीके से लिया गया ...गलत कार्य करके कमाया गया / तो ये सीमा है ( कुछ हद तक ) इस '' थोड़े " की प्रगति और विकास हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए ...अगर सकारात्मक न हो तो वो केवल वृद्धि कहलाएगी / ये यूटोपिया नहीं है ...कई लोग हमारे आस पास ही मिल जायेंगे / हमारे आस्तित्व के लिए ही इस तरह की भूख हमेशा से हमें नुक्सान पहुंचाती रही है / इतिहास में ऐसा ही प्रदर्शित हुआ है / संतृप्त होना निश्चय ही विकास का मार्ग अवरुद्ध करता है पर हमें संतुष्ट होना ही नहीं है ...हमें तो सकारात्मक विकास करना है / जैसे अगर हम विस्फोटक का प्रयोग किसी को मारने के लिए करतें हैं तो ये सकारात्मक तो नहीं कहलाएगी / परन्तु अब जबकि हम आदिम युग से निकल चुकें है तो इस स्तिथि में हमें मानवतावादी होना ही चाहिए क्यूंकि यही भूख हमें विनाश की और अग्रसर कर रही है /
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23-04-2011, 11:00 AM | #18 | |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
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हम विस्फोटक का प्रयोग किसे मारने के लिए कर रहे हैं इससे फर्क पड़ता है
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23-04-2011, 11:10 AM | #19 | |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
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परन्तु मै मानता हूँ की अगर अस्तित्व की बात जब तक नहीं आये तब तक उस विस्फोटक का प्रयोग किसी के लिए भी करना सकारात्मक तो नहीं ही कहलायेगा / जहां तक इस्तेमाल की बात है तो उसे यदि हम सड़क बनाने के लिए पहाड़ काटने में करतें हैं जिससे लोगों का आवागमन सुगम हो सके तो ये उसका मानवीय पहलु हुआ /
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23-04-2011, 11:15 AM | #20 |
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Re: आदमी को क्या चाहिये
और अगर पशु रुपी मनुष्य को मारने के लिए करते हैं तो
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