18-10-2011, 04:22 PM | #1 |
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हास्य कविताएँ
एक आदमी चिल्ला रहा था कुछ बेचा जा रहा था आवाज कुछ इस तरह आई शरीर में स्फुर्ति न होने से परेशान हो भाई थकान से टूटता है बदन काम करने में नहीं लगता है मन खुद से ही झुंझलाए हो या किसी से लड़कर आए हो तो हमारे पास है ये दवा सभी परेशानियां कर देती है हवा मैंने भीड़ को हटाया सही जगह पर आया मैंने कहा इतनी कीमती चीज कहीं मंहगी तो नहीं है वो बोला आपने भी ये क्या बात कही है इतने सारे गुण सिर्फ दो रुपए में लीजिए भाई साब दिलदार बीड़ी पीजिए
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
18-10-2011, 04:23 PM | #2 |
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Re: हास्य कविताएँ
पिताजी ने बेटे को बुलाया पास में बिठाया,
बोले आज राज की मैं बात ये बताऊंगा। शादी तो है बरबादी मत करवाना बेटे, तुमको किसी तरह मैं शादी से बचाऊंगा। बेटा मुस्कुराया बोला ठीक फरमाया डैड, मौका मिल गया तो मैं भी फर्ज ये निभाऊंगा। शादी मत करवाना तुम कभी जिन्दगी में, मैं भी अपने बच्चों को यही समझाऊंगा
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18-10-2011, 04:23 PM | #3 |
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Re: हास्य कविताएँ
एक नए अखबार वाले सर्वे कर रहे थे
मैंने कहा मैं भी खूब अखबार लेता हूं जागरण, भास्कर, केसरी ओ हरिभूमि हिन्दी हो या अंगरेजी सबका सच्चा क्रेता हूं पत्रकार बोला इतनों को कैसे पढ़ते हैं मैंने कहा ये भी बात साफ कर देता हूं पढ़ने का तो कोइ भी प्रश्न ही नहीं है साब मैं कबाड़ी हूं पुराने तोलकर लेता हूं
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18-10-2011, 04:24 PM | #4 |
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Re: हास्य कविताएँ
एक हास्य कवि जी के पास एक नेता आया
बोला हॅंसाने की कला हमें भी सिखाइए कवि ने कहा कि योगासन है अलग मेरा सुबह सुबह चार घंटे आप भी लगाइए बुद्धि तीव्र हो जाएगी नाचने लगेगा मन सीख लीजिए ना व्यर्थ समय गवांइए नेताजी ने कहा कविराज बतलाओ योग कवि बोला यहां आके मुर्गा बन जाइए
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18-10-2011, 04:24 PM | #5 |
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Re: हास्य कविताएँ
जीवन का किसी क्षण कोई भी भरोसा नहीं
जोखिम ना आप यूं अकेले ही उठाइए सबसे सही है राह फैलाए खड़ी है बांह बीमा कम्पनी को इस जाल में फंसाइए पति पत्नी से बोला फायदे का सौदा है ये प्रिय आप भी जीवन बीमा करवाइए पत्नी बोली करवा रखा है आपने जनाब उससे कोई फायदा हुआ हो ता बताइए
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18-10-2011, 04:24 PM | #6 |
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Re: हास्य कविताएँ
उस रात मैं बहुत डर रहा था
क्योंकि मैं एक कब्रिस्तान के पास से गुजर रहा था एक तो मौसम बदहाल था और दूसरा गर्मी से मेरा बुरा हाल था अचानक मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं जब मेरी नजरें कब्र पर बैठे एक आदमी पर चढं गईं मैंने कहा इतनी रात को यहां से कोई भूलकर भी नहीं फटकता यार तू कब्र पर बैठा है तुझे डर नहीं लगता मेरी बात सुनते ही वो ऐंठ गया बोला इसमें डरने की क्या बात है कब्र में गरमी लग रही थी, इसलिए बाहर आके बैठ गया
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18-10-2011, 04:26 PM | #7 |
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Re: हास्य कविताएँ
कमबख्त
गम जुदाई सब साथ कर गया अच्छे अच्छों को माफ कर गया मैंने सोचा दिल पर रख रहा है हाथ कमबख्त जेब साफ कर गया
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18-10-2011, 04:26 PM | #8 |
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Re: हास्य कविताएँ
विशेष छूट
हेयर ड्रेसर ने, विशेष छूट के शब्द, इस तरह बताए बाल काले करवाने पर, मुंह फ्री काला करवाएं दोहे पढ़कर सुनकर देखकर निकला यह निष्कर्ष योद्धा बन लड़ते रहो जीवन है संघर्ष जग में सबके पास है अपना अपना स्वार्थ केवल तेरा कर्म है मानव तेरे हाथ कर्मक्षेत्र में जो डटे लिया लक्ष्य को साध वही चखेंगे एक दिन मधुर जीत का स्वाद रखती है प्रकृति सदा परिवर्तन से मेल शूरवीर नित ढूंढते सदा नया इक खेल मौन हुआ वातावरण मांग रहा हूंकार वक्त पुकारे आज फिर हो जाओ तैयार जागो आगे बढ़ चलो करो शक्ति संधान केवल दृढ़ संकल्प से संभव नवनिर्माण कुछ तो ऐसा कर चलो जिस पर हो अभिमान इस दुनिया की भीड़ में बने अलग पहचान
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18-10-2011, 04:29 PM | #9 |
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Re: हास्य कविताएँ
कविता खुशबू का झोंका, कविता है रिमझिम सावन
कविता है प्रेम की खुशबू, कविता है रण में गर्जन कविता श्वासों की गति है, कविता है दिल की धड़कन हॅंसना रोना मुस्काना, कवितामय सबका जीवन कविता प्रेयसी से मिलन है, कविता अधरों पर चुंबन कविता महकाती सबको, कविता से सुरभित यह मन कभी मेल कराती सबसे, कभी करवाती है अनबन कण कण में बसती कविता, कवितामय सबका जीवन कविता सूर के पद हैं, कविता तुलसी की माला कविता है झूमती गाती, कवि बच्चन की मधुशाला कहीं गिरधर की कुंडलियां, कहीं है दिनकर का तर्जन गालिब और मीर बिहारी, कवितामय सबका जीवन कविता है कभी हॅंसी तो, कभी दर्द है कभी चुभन है बन शंखनाद जन मन में, ला देती परिवर्तन है हैं रूप अनेकों इसके, अदभुत कविता का चिंतन मानव समाज का दर्शन, कवितामय सबका जीवन
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18-10-2011, 04:30 PM | #10 |
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Re: हास्य कविताएँ
ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म
ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म इसमें प्राण बसे हैं सबके, करले मानव यह शुभ कर्म खेतों से हरियाली खो गई, उजडे जगल सारे देख धरा की ऐसी हालत, रोते चांद सितारे मारे वन्य जानवर सारे, कुछ तो कर मानव तू शर्म ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म प्राण बसे हैं मानव तेरे, शुद्ध हवा में जल में जीने की सुध सीखी, तूने कुदरत के आंचल में पल में वरना बनते खाक, ये तेरे हाड मांस और चर्म ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म अगर प्रदूषण यूं फैलेगा, हम सब होंगे रोगी त्यागो अपनी नादानी को, बनो न इतने भोगी योगी होकर पुण्य कमाओ, समझो ये कुदरत का मर्म ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म
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